साक्षी की साधना-(प्रवचन-13)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

तेरहवां प्रवचन

…परमात्मा के दर्शन शुरू हो जाएंगे। वह एक पक्षी का गीत सुनेगा, तो पक्षी के गीत में उसे परमात्मा की वाणी सुनाई पड़ेगी। वह एक फूल को खिलते देखेगा, तो उस फूल के खिलने में भी परमात्मा की सुवास की सुगंध उसे मिलेगी। उसे चारों तरफ एक अपूर्व शक्ति का बोध होना शुरू हो जाता है। लेकिन यह होगा तभी जब मन हमारा इतना निर्मल और स्वच्छ हो कि उसमें प्रतिबिंब बन सके, उसमें रिफ्लेक्शन बन सके। तुमने देखा होगा झील पर कभी जाकर, अगर झील पर बहुत लहरें उठती हों, आकाश में चांद हो, तो फिर झील पर कोई चांद का प्रतिबिंब नहीं बनता। और अगर झील बिलकुल शांत हो, उसमें कोई लहर न उठती हो, दर्पण की तरह चुप और मौन हो, तो फिर चांद उसमें दिखाई पड़ता है। और जो चांद झील में दिखाई पड़ता है, वह उससे भी सुंदर होता जो ऊपर आकाश में होता है। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-13)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-12)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

बारहवां प्रवचन

पूछा है: सत्य के खोजने की आवश्यकता ही क्या है? साधना की जरूरत क्या है? ध्यान को करने से क्या प्रयोजन? जो-जो हमारी वासनाएं हैं, इच्छाएं हैं, उनको पूरा करें, वही जीवन है, सत्य को खोजने इत्यादि की क्या आवश्यकता है?

बहुत महत्वपूर्ण है। पहले दिन मैंने यह कहा: सामान्यतया हमारा मन सुख चाहता है, लेकिन जो भी हम उपलब्ध करते हैं उससे सुख मिलता नहीं। सामान्यतया हमारा मन पद चाहता है, लेकिन जिस पद पर भी हम पहुंच जाएं, चाह का अंत नहीं आता, चाह आगे बढ़ जाती है। सामान्यतया हमारा मन जो भी चाहता है वह मिल जाए, तो भी चाह समाप्त नहीं होती, चाह आगे बढ़ जाती है। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-12)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-11)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

ग्यारहवां प्रवचन

वह शांति का अनुभव आपके भीतर सत्य की प्यास बन जाए, तो ठीक, अगर आप समझ लें कि वही सत्य है, तो आप भूल में पड़ गए हैं और भ्रांति में पड़ गए हैं। वह सत्य नहीं है। उससे केवल प्यास पैदा होनी चाहिए कि जो इस व्यक्ति के भीतर उपलब्ध हुआ है, वह मेरे भीतर कैसे पैदा हो जाए? वह व्यक्ति जो आपके भीतर इस भांति की प्यास, असंतोष पैदा कर देता है, ठीक अर्थों में आपका सहयोगी है। और जो व्यक्ति इस भ्रांति को पैदा करता है कि आपको मैं सत्य दे दूंगा। उससे बड़ा शत्रु इस जमीन पर आपका दूसरा नहीं हो सकता है। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-11)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-10)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

दसवां प्रवचन

सुबह जो हमने साधना की साक्षीभाव की, हम जगाना चाहते हैं, क्या वह भी चित्त का एक अंश नहीं होगा या कि चित्त से परे होगा?

बहुत महत्वपूर्ण है और ठीक से समझने योग्य है। साधारणतः हम जो भी जानते हैं, जो भी करते हैं, जो भी प्रयत्न होगा, वह सब चित्त से होगा, वह मन से होगा, माइंड से होगा। अगर आप राम-राम जपते हैं, तो जपने की क्रिया मन से होगी। अगर आप मंदिर में पूजा करते हैं, तो पूजा करने की क्रिया मन का भाव होगी। और अगर आप कोई ग्रंथ पढ़ते हैं, तो पढ़ने की क्रिया मन की होगी। और आत्मा को जानना हो, तो मन के ऊपर जाना होगा। मन की कोई क्रिया मन के ऊपर नहीं ले जा सकती। मन की कोई भी क्रिया मन के भीतर ही रखेगी। स्वाभाविक है कि मन की किसी भी क्रिया से, जो मन के पीछे है, उससे परिचय नहीं हो सकता। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-10)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-09)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

नौवां प्रवचन

मैं बंद किए हुए हूं, उनकी मैं चर्चा करूंगा। क्योंकि दिखाई पड़ना शुरू हो जाए, पहला तो यह जरूरी है कि दीवाल दिखाई पड़े भीतर, दिखाई पड़े तो फिर टूट सकती है। अब जिस कैदी को यही भूल गया हो कि मैं कैदी हूं, फिर तो मुश्किल हो गया, फिर कैद से छुटकारे का कोई रास्ता न रहा। पहली तो बात यह कि यह दिखाई पड़े, अनुभव में आए कि हम भीतर कैद में घिर गए हैं, एक बिलकुल एक कारागृह में बंद हैं। और खुद ही उसे सम्हाले हुए हैं, खुद ही उसके ईंटें रखते हैं, खुद ही उसकी दीवालों पर जहां-जहां द्वार है वहां-वहां बंद कर देते हैं, रोशनी भीतर न पहुंचे इसके सब उपाय करते हैं और फिर चिल्लाते हैं कि हे परमात्मा! हम अंधकार में खड़े हुए हैं, हम क्या करें? Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-09)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-08)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

आठवां प्रवचन

…उसके बिना समाधि को उपलब्ध करना संभव नहीं है। आज के तीसरे चरण में समाधि का आगमन कैसे हो, उस संबंध में हम विचार करेंगे।

समाधि साधी नहीं जा सकती, लेकिन उसका आगमन हो सकता है। यह तो पहली बात है, जो जान लेनी जरूरी है। समाधि साधी नहीं जा सकती, उसका आगमन हो सकता है। जैसे हम घर के भीतर सूर्य के प्रकाश को गठरियों में बांध कर नहीं ला सकते, लेकिन अगर द्वार खुला छोड़ दें, तो प्रकाश आ सकता है। लाया नहीं जा सकता, आ सकता है। तो समाधि के आगमन में हमें जो करना है, वह द्वार खोलने जैसा काम है। अत्यंत नकारात्मक है, निगेटिव है। सिर्फ बाधाएं हटा देने की जरूरत है, समाधि आएगी। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-08)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-07)

साक्षी की साधना-(साधाना-शिविर)–ओशो

सातवां प्रवचन

बहुत से प्रश्न मेरे समक्ष हैं। सबसे पहले तो यह पूछा गया है कि मेरी बातें अव्यावहारिक मालूम होती हैं। ठीक प्रतीत होती हैं, लेकिन अव्यावहारिक मालूम होती हैं।

यह ठीक से समझ लेना जरूरी है–मनुष्य के इतिहास में जो-जो हमें अव्यावहारिक मालूम पड़ा है, वही कल्याणप्रद सिद्ध हुआ है। और जिसे हम व्यावहारिक समझते हैं, उसने ही हमें आश्चर्यजनक रूप से दुख में, हिंसा में और पीड़ा में डाला है। निश्चित ही जो आप कर रहे हैं वह आपको व्यावहारिक मालूम होता होगा, प्रेक्टिकल मालूम होता होगा, लेकिन उसका परिणाम क्या है आपके जीवन में? व्यावहारिक जो आपको मालूम पड़ता है, आप कर रहे हैं, लेकिन उसका परिणाम क्या है? उसका परिणाम तो सिवाय दुख और चिंता के कुछ भी नहीं। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-07)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-06)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

छठवां-प्रवचन

चित्त मुक्त हो, इस संबंध में कल सुबह हमने बात की है। वह पहला चरण है स्वयं का विवेक जग सके इस दिशा में। दूसरे चरण में स्वयं का विवेक कैसे जाग्रत हो, किन विधियों, किन मार्गों से भीतर सोई हुई विवेक की शक्ति जाग जाए, इस संबंध में हम आज बात करेंगे।

इसके पहले कि हम इस संबंध में विचार करना शुरू करें, एक अत्यंत प्राथमिक बात समझ लेनी जरूरी है। और वह यह कि मनुष्य के भीतर केवल वे ही शक्तियां जाग्रत होती हैं और सक्रिय, जिन शक्तियों के लिए जीवन में चुनौती खड़ी हो जाती है, चैलेंज खड़ा हो जाता है। वे शक्तियां सोई हुई ही रह जाती हैं, जिनके लिए जीवन में चुनौती नहीं होती। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-06)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-05)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

पांचवां-प्रवचन

सबसे पहले एक प्रश्न पूछा है। और उससे संबंधित एक-दो प्रश्न और भी पूछे हैं।

पूछा है: मन चंचल है और बिना अभ्यास और वैराग्य के वह कैसे थिर होगा?

यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। और जिस ध्यान की साधना के लिए हम यहां इकट्ठे हुए हैं, उस साधना को समझने में भी बहुत सहयोगी होगा। इसलिए मैं थोड़ी सूक्ष्मता से इस संबंध में बात करना चाहूंगा। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-05)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-04)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

चौथा-प्रवचन

मनुष्य के जीवन में…और जीवन के आनंद का कोई अनुभव नहीं होता, उस संबंध में थोड़ी सी बात मैंने आपसे कही थी। आज सुबह अंधेपन का कौन सा मौलिक आधार है, उस पर हम बात करेंगे।

कई सौ वर्ष पहले, यूनान की सड़कों पर एक आदमी देखा गया था। भरी दोपहरी में सूरज के प्रकाश में भी वह हाथ में एक कंदील लिए हुए था। लोगों ने उससे पूछा कि यह क्या पागलपन है, इस कंदील को लेकर इस भरी दोपहरी में किसे खोज रहे हो? उस आदमी ने कहा: एक ऐसे आदमी की खोज करता हूं, जिसके पास आंखें हों। वह आदमी था उस समय का एक बहुत अदभुत फकीर डायोजनीज। डायोजनीज को मरे हुए बहुत वर्ष हो गए और डायोजनीज जीवन भर वह लालटेन लिए हुए खोजता रहा उस आदमी को, जिसके पास आंखें हों। लेकिन उसे वह आदमी नहीं मिला। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-04)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-03)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर) ओशो

तीसरा-प्रवचन

जो दिखाई पड़ जाए उसका जीवन में प्रविष्ट हो जाना, वह भी उतना महत्वपूर्ण नहीं है, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो जीवन में प्रविष्ट हो। वह आरोपित, जबरदस्ती, चेष्टा और प्रयास से न हो, बल्कि ऐसे ही सहज हो जाए–जैसे वृक्षों में फूल खिलते हैं, या सूखे पत्ते हवाओं में उड़ जाते हैं, या छोटे-छोटे तिनके और लकड़ी के टुकड़े नदी के प्रवाह में बह जाते हैं। उतना ही सहज जीवन में उसका आगमन हो जाए। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-03)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन–अहंकार का विसर्जन

ध्यान के संबंध में दो-तीन बातें समझ लें और फिर हम ध्यान का प्रयोग करें।

पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि ध्यान का श्वास से बहुत गहरा संबंध है। साधारणतः देखा होगा, क्रोध में श्वास एक प्रकार से चलती है, शांति में दूसरे प्रकार से चलती है। कामवासना मन को पकड़ ले, तो श्वास की गति तत्काल बदल जाती है। और कभी अगर श्वास बहुत शांत, धीमी, गहरी चलती हो, तो मन बहुत अदभुत प्रकार के आनंद को अनुभव करता है। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-02)”

साक्षी की साधना-(प्रवचन-01)

साक्षी की साधना-(साधना-शिविर)–ओशो

पहला-प्रवचन

हम ध्यान के लिए बैठे थे। ध्यान से मेरा प्रयोजन है एक चित्त की ऐसी स्थिति जहां कोई संताप, जहां कोई प्रश्न, जहां कोई जिज्ञासा शेष न रह जाए। हम निरंतर जीवन-सत्य के संबंध में कुछ न कुछ पूछ रहे हैं। ऐसा मनुष्य खोजना कठिन है जो जीवन के सत्य के संबंध में किसी जिज्ञासा को न लिए हो। न तो हमें इस बात का कोई ज्ञान है कि हम कौन हैं, न हमें इस बात का कोई ज्ञान है कि हमारे चारों ओर जो जगत फैला है, वह क्या है। हम जीवन के बीच में अपने को पाते हैं बिना किसी उत्तर के, बिना किसी समाधान के। चारों तरफ प्रश्न हैं और उनके बीच में मनुष्य अपने को घिरा हुआ पाता है। Continue reading “साक्षी की साधना-(प्रवचन-01)”

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