दसवां प्रवचन-(समर्पण ही सत्संग है)
दिनांक 30 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।
पहला प्रश्न: भगवान,
दुर्लभं त्रैयमेवैवत् देवानुग्रह हेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुयं महापुरुषसंश्रयः।।
मनुष्य देह, मुमुक्षा और महापुरुष का आश्रय, ये तीनों अति दुर्लभ हैं–अलग-अलग होकर भी। जब तीनों एक साथ मिलें तब तो परमात्मा का अनुग्रह ही है। तब मोक्ष करीब है। फिर भी आप चूक सकते हैं।
भगवान, हमारे लिए इस सुभाषित की विशद व्याख्या करने की अनुकंपा करें। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-10)”