लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-10)

दसवां प्रवचन-(समर्पण ही सत्संग है)

दिनांक 30 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

दुर्लभं त्रैयमेवैवत् देवानुग्रह हेतुकम्।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुयं महापुरुषसंश्रयः।।

मनुष्य देह, मुमुक्षा और महापुरुष का आश्रय, ये तीनों अति दुर्लभ हैं–अलग-अलग होकर भी। जब तीनों एक साथ मिलें तब तो परमात्मा का अनुग्रह ही है। तब मोक्ष करीब है। फिर भी आप चूक सकते हैं।

भगवान, हमारे लिए इस सुभाषित की विशद व्याख्या करने की अनुकंपा करें। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-10)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-09)

नौवां प्रवचन-(योग ही आनंद है)

दिनांक 28 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, आप सदा आनंदमग्न हैं, इसका राज क्या है? मैं कब इस मस्ती को पा सकूंगा?

योगानंद, मैं तुम्हें नाम दिया हूं योगानंद का, उसमें ही सारा राज है।

मनुष्य दो ढंग से जी सकता है। या तो अस्तित्व से अलग-थलग, या अस्तित्व के साथ एकरस। अलग-थलग जो जीएगा, दुख में जीएगा–चिंता में, संताप में। यह स्वाभाविक है। क्योंकि अस्तित्व से भिन्न होकर जीने का अर्थ है: जैसे कोई वृक्ष पृथ्वी से अपनी जड़ों को अलग कर ले और जीने की चेष्टा करे। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-09)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-08)

आठवां प्रवचन-(सवाल अहिंसा का नहीं,कोमलता का)

दिनांक 28 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः। सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।

स्मृतिलाभै सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्षः।।

आहार की शुद्धि होने पर सत्व की शुद्धि होती है, सत्व की शुद्धि होने पर ध्रुव स्मृति की प्राप्ति होती है। और स्मृति की प्राप्ति से समस्त ग्रंथियां खुल जाती हैं।

भगवान, छांदोग्य उपनिषद के इस सूत्र की व्याख्या करने की अनुकंपा करें। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-08)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-07)

सातवां प्रवचन-गुरु स्वयं को भी उपाय बना लेता है

दिनांक 27 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, शाटयायनीय उपनिषद गुरु की महिमा इस प्रकार गाता है:

गुरुदेव परौ धर्मो गुरुदेव परा गतिः।

एकाक्षर    प्रदातमम्    नाभिनन्दति।

तस्य श्रुत तपो ज्ञानं स्रवत्यामघटाम्बुयत्।।

गुरु ही परम धर्म है, गुरु ही परम गति है। जो एक अक्षर के दाता गुरु का आदर नहीं करता, उसके श्रुत, तप और ज्ञान धीरे-धीरे ऐसे ही क्षीण होकर नष्ट हो जाते हैं जैसे कच्चे घड़े का जल। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-07)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-06)

छठवां प्रवचन-(अद्वैत की अनुभूति ही संन्यास है)

दिनांक 26 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

कर्मत्यागान्न संन्यासौ न प्रैषोच्चारणेन तु।

संधौ जीवात्मनौरैक्यं संन्यासः परिकीर्तितः।।

कर्मों को छोड़ देना कुछ संन्यास नहीं है। इसी प्रकार, मैं संन्यासी हूं, ऐसा कह देने से भी कोई संन्यासी नहीं होता है। समाधि में जीव और परमात्मा की एकता का भाव होना ही संन्यास कहलाता है।

भगवान, संन्यास के इस प्रसंग में कहे गए मैत्रेयी उपनिषद के इस सूत्र को हमारे लिए बोधगम्य बनाने की अनुकंपा करें।

आनंद मैत्रेय! Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-06)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-05)

पांचवां प्रवचन– (मेरे संन्यासी तो मेरे हिस्से हैं)

दिनांक 25 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, संस्कृत में एक सुभाषित है कि यदि शील अर्थात शुद्ध चरित्र न हो तो मनुष्य के सत्य, तप, जप, ज्ञान, सर्व विद्या और कला, सब निष्फल होते हैं।

सत्यं तपो जपो ज्ञान

      सर्वा विद्याः कला अपि।

नरस्य निष्फलाः सन्ति

      यस्य शील न विद्यते।। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-05)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-04)

चौथा प्रवचन-(संसार से पलायन नहीं, मन का रूपांतरण)

दिनांक 24 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

मन  एव  मनुष्यानां  कारणं  बंधमोक्षयोः।

बंधाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्।।

अर्थात मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। जो मन विषयों में आसक्त होगा वह बंधन का तथा जो विषयों से पराङ्मुख होगा वह मोक्ष का कारण होगा। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-04)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-03)

तीसरा प्रवचन-मैं सदैव परम, प्रत्यक्ष और लब्ध हूं

दिनांक 23 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, पैंगल उपनिषद के अनुसार चार महावाक्य हैं।

पहला: तत्वमसि, वह तू है; दूसरा: त्वं तदसि, तू वह है; तीसरा: त्वं ब्रह्मास्मि, तू ब्रह्म है; और चौथा: अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूं।

भगवान, इन महावाक्यों के अर्थ और अर्थभेद बताने की अनुकंपा करें।

चिदानंद, उपनिषद सदगुरु और शिष्य के बीच शून्य में हुआ संवाद है। आंखों-आंखों में बात हो गई है। हृदय ने हृदय पर गीत गाया है। न तो गुरु ने कुछ कहा है और न शिष्य ने कुछ सुना है, फिर भी गुरु ने सब कह दिया और शिष्य ने सब सुन लिया है। Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-03)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-02)

दूसरा प्रवचन-(कच्ची कंध उते काना ऐ)

दिनांक 22 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

01-भगवान, पंजाबी भाषा में एक टप्पा है, जिसमें एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से कहता है–

कच्ची कंध उते काना ऐ

मिलणा तां रब नूं है

तेरा पिआर बहाना है।

अर्थात कच्ची दीवार पर कौवा बैठा है। और मिलना तो परमात्मा से है, तेरा प्यार बहाना है।

भगवान, क्या लौकिक प्रेम अलौकिक प्रेम का साधन है? कृपया समझाएं।

विनोद भारती, टप्पा तो यह प्यारा है: Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-02)”

लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-01)

पहला प्रवचन-(यह क्षण है द्वार प्रभु का)

दिनांक 21 नवम्बर, 1980,श्री ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न:

भगवान, आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला के लिए आपने नाम चुना है: लगन महूरत झूठ सब।

निवेदन है कि संत पलटू के इस वचन पर प्रकाश डालें।

आनंद दिव्या, पलटू का पूरा वचन ऐसा है–

पलटू सुभ दिन सुभ घड़ी, याद पड़ै जब नाम।

लगन महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम।।

धर्म तो परवानों की दुनिया है! दीवानों की, मस्तों की। वहां कहां लगन-महूरत! धर्म तो शुरू वहां होता है जहां समय समाप्त हो जाता है। वहां कहां लगन-महूरत! Continue reading “लगन महूूरत झूठ सब-(प्ररवचन-01)”

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