आध्यात्मिक क्रांतिके दो सूत्र-(प्रवचन तेेेहरवां)
मेरे प्रिय आत्मन्!
“क्या भारत में आध्यात्मिक क्रांति की आवश्यकता है?’ इस संबंध में कुछ कहने के पहले, एक अत्यंत भ्रामक हमारी धारणा रही है, उस धारणा को समझ लेना जरूरी है।
सैकड़ों वर्षों से हम इस बात को मान कर बैठ गए हैं कि हमारा देश आध्यात्मिक है। और इस मान्यता ने हमें आध्यात्मिक होने से रोका है। अगर कोई बीमार आदमी यह समझ ले कि वह स्वस्थ है, तो उसके स्वस्थ होने की सारी संभावना समाप्त हो जाती है। बीमार आदमी को जानना जरूरी है कि वह बीमार है। इस जानने के द्वारा ही वह बीमारी से लड़ भी सकता है, बीमारी को बदल भी सकता है, स्वस्थ भी हो सकता है। लेकिन अभागा है वह बीमार आदमी जिसको यह भ्रम पैदा हो जाए कि मैं स्वस्थ हूं। क्योंकि यह भ्रम ही उसे बीमारी से मुक्त होने की कोई भी चेष्टा नहीं करने देगा। Continue reading “नये समाज की खोज-(प्रवचन-13)”