शरद चांदनी बरसी—(प्रवचन—दसवां)
दिनांक 20 जनवरी, 1979; श्री ओशो आश्रम, पूना
प्रश्नसार :
1—भगवान! आपने कहा: “सत्संग, जागो। सुबह पास ही है; हाथ फैलाओ और पकड़ो। परमात्मा को याद करने का क्षण सत्संग, करीब आ गया। नाचो, गुनगुनाओ, मस्त होओ। बांटो। जागो–नाचते हुए।’
इस मधुभरी मस्ती को छलकते देख अपने अपने न रहे। घर घर न रहा। यह कैसा जागना हुआ–लोग नफरत करने लगे! भगवान, यह कैसी नई जिंदगी आई! गुनगुनाती, नाचती हुई, मधुभरी मस्ती ले आई! सब छूट गया! Continue reading “बिरहिनी मंदिर दियना बार-(प्रवचन-10)”