तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-16)-ओशो

अचेतन पाप के पार—(प्रवचन—सोहलवां)

प्रश्‍नसार:

1—दमन के बिना अपने स्‍त्रोत पर लौटने का क्‍या उपाय है?

2—पश्‍चिम के मनोविश्‍लेषक मन के निर्ग्रंथन के उपाय में सफल क्‍यों नहीं हो पाते?

3—क्‍या यह सच नहीं है कि कोई विधि तब तक शक्‍तिशाली नहीं होती जब तक व्‍यक्‍ति को दीक्षित न किया जाए?

4—अगर तादात्‍म्य एकमात्र पाप है तो अनेक विधियां ऐसा क्‍यों कहती है कि किसी चीज के साथ एकात्‍म हो जाओ? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-16)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-15)-ओशो

शुद्ध चैतन्‍य में प्रवेश की विधियां—(प्रवचन—पंद्रहवां)

सूत्र:

22—अपने अवधान को ऐसी जगह रखो,

      जहां तुम अतीत की किसी घटना को देख रहे हो

      और अपने शरीर को भी।

      रूप के वर्तमान लक्षण खो जाएंगे,

      और तुम रूपांतरित हो जाओगे। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-15)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-14)-ओशो

प्रेम को ध्‍यान बनाओ, ध्‍यान को प्रेम—(प्रवचन—चौहदवां)

      प्रश्नसार:

1—समाधि को केंद्रित होना क्‍यों कहते है?

      2—ध्‍यान के बिना कैसे अकेला प्रेम पर्याप्‍त है?

      3—मनुष्‍य संवेदनहीन क्‍यों है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-14)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-13)-ओशो

आत्‍यंतिक केंद्र में प्रवेश—(प्रवचन—तेहरवां)

सूत्र:

18—किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो;

       दूसरे विषय पर मत जाओ।

       यहीं विष्‍यय के मध्‍य में—आंनद।

 19—पावों या हाथों का सहारा दिया बिना सिर्फ नितंबों

            पर बैठो। अचानक केंद्रित हो जाओगे।

 20—किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा,

            अनुभव को प्राप्‍त हो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-13)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-12)-ओशो

उदगम की खोज में—(प्रवचन—बाहरवां)

प्रश्‍नसार:

1—कृपया बताएं कि नाभि—केंद्र, तीसरी आँख और मेरूदंड के काम क्‍या है?

2—बुद्ध की तपश्‍चर्या संसार के विपरित मालूम होती है; यह मध्‍य मार्ग नहीं मालूम होती।

3—ह्रदय केंद्र को विकसित करने के व्‍यावहारिक उपायक्‍या है?

4—क्‍या प्रेम में भी मध्‍य मार्ग पकड़ना चाहिए या प्रेम और घृणा की ध्रुवीय अति को छूना चाहिए? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-12)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-11)-ओशो

त्रिनेत्र, नाभि—केंद्र और मध्‍य–मार्ग—(प्रवचन—ग्‍याहरवां)

      सूत्र:

15—सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने

पर आंखों के बीच का स्‍थान सर्वग्राही हो जाता है।

16—हे भगवती, जब इंद्रियां ह्रदय में विलीन हों,

कमल के केंद्र पर पहुंचो।

17—मन को भूलकर मध्‍य में रहो—जब तक। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-11)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-10)-ओशो

केंद्रित, संतुलित और आप्‍तकाम होओ—(प्रवचन—दसवां)

      प्रश्‍नसार:

1—क्‍या आत्‍मोपलब्‍धि बुनियादी आवश्‍यकता है?

2—मनन, एकाग्रता और ध्‍यान पर प्रकाश डालें।

3—नाभि—केंद्रके विकास के लिए जो प्रशिक्षण है

   वह ह्रदय और मस्‍तिक के केंद्रों के प्रशिक्षण

   से भिन्‍न कैसे है?

4—क्‍या सभी बुद्धपुरूष नाभि—केंद्रित है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-10)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-09)-ओशो

केंद्रीभूत होने की कुछ विधियां—प्रवचन—नौवां

सूत्र:

13—या कल्‍पना करो कि मोर की पूंछ के पंचरंगें वर्तुल

निस्‍सीम अंतरिक्ष में तुम्‍हारी पाँच इंद्रियां है।

अब उनके सौंदर्य को भीतर ही धुलने दो।

उसी प्रकार शून्‍य में या दीवार पर किसी बिंदु के साथ

कल्‍पना करो, जब तक कि वह बिंदु विलीन न हो जाए।

14—अपने पूरे अवधान को अपने मेरूदंड के मध्‍य में

कमल तुतु सी कोमल स्‍नायू में स्‍थित करो।

और उसमें रूपांतरित हो जाओ। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-09)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-08)-ओशो

तांत्रिक शुद्धि का आधार अभेद है—प्रवचन—आठवां

      प्रश्‍नसार:

1—शुद्धि से तंत्र का अभिप्राय क्‍या है?

एक बात अक्सर पूछी जाती है :

तांत्रिक शुद्धि का तंत्र का क्या मतलब है जब वह कहता है की प्रगति के लिए मन का शुद्धिकरण, की शुद्धि बुनियादी शर्त है?

सामान्‍यत: शुद्धि का जो अर्थ लिया जाता है वही तंत्र का अर्थ नहीं है। सामान्यत: हम हर चीज को शुभ और अशुभ में, भले और बुरे में बांटते हैं। यह विभाजन किसी भी कारण से हो सकता है, यह स्वास्थ्य—विज्ञान की दृष्टि से भी हो सकता है, नैतिक दृष्टि से भी हो सकता है, या किसी भी तरह हो सकता है। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-08)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-07)-ओशो

प्रेम करते हुए प्रेम ही हो जाओ—प्रवचन—सातवां

      सूत्र:

10— प्रिय देवी, प्रेम किए जाने के क्षण में प्रेम में ऐसे

         प्रवेश करो जैसे कि वह नित्‍य जीवन हो।

11— जब चींटी के रेंगने की अनुभूति हो तो इंद्रियों के

            सब द्वार बंद कर दो। तब!

12— जब किसी बिस्‍तर या आसन पर हो तो अपने को

            वजनशून्‍य हो जाने दो—मन के पार। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-07)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-06)-ओशो

स्‍वप्‍न का अतिक्रमण कैसे हो—प्रवचन—छठवां

प्रश्‍नसार:

1—स्‍वप्‍न देखते हुए बोधपूर्ण कैसे हुआ जाए?

2—प्रयत्‍न क्‍यों करें अगर नाटक के पात्र भर है?

एक मित्र ने पूछा है :

क्या समझाने की कृप्‍या करेंगे की स्वप्न देखते हुए बोधयूर्ण होने के अन्य उपाय क्या हैं?

ह प्रश्न उन सबके लिए महत्वपूर्ण है जो ध्यान में उत्सुक हैं। क्योंकि सचाई यह है कि स्‍वप्‍न देखने की प्रक्रिया का अतिक्रमण ही ध्यान है। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-06)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-05)-ओशो

अवधान, शिव—नेत्र और आत्‍मोपलब्‍धि–प्रवचन—पांचवां

सूत्र:

5—    भृकुटियों के बीच अवधान को स्‍थिर कर विचार

को मन के सामने करो। फिर सहस्‍त्रार तक रूप

को श्‍वास—तत्‍व से, प्राण से भरने दो।

वहां वह प्रकाश की तरह बरसेगा। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-05)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-04)-ओशो

मन के धोखों से सावधान—(प्रवचन—चौथा)

     प्रश्‍नसार:

1—ऐसी आसान विधियों से क्‍या ज्ञान—उपलब्‍धि संभव है?

2—काम करते हुए क्‍या श्‍वास—बोध का प्रयोग किया जा सकता है?

प्रश्न :

यह कैसे संभव है कि कोई व्यक्ति बस श्वास— क्रिया के एक विशेष बिंदु पर होश साधर ज्ञान को उयलब्ध जाए? श्वास—प्रश्वास के ऐसे छोटे क्षणिक अंतराल के प्रति सजग होकर अचेतन से मुक्त होना कैसे संभव है?

ह प्रश्न अर्थपूर्ण है, और यह प्रश्न अनेक के मन में उठा होगा। कई चीजें यहां समझने की हैं। समझा जाता है कि अध्यात्म एक कठिन उपलब्धि है। यह दोनों में कुछ नहीं है, न यह कठिन है और न उपलब्धि ही। तुम जो भी हो तुम आध्यात्मिक ही हो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-04)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-03)-ओशो

श्‍वास: शरीर और आत्‍मा के बीच सेतु—(प्रवचन—तीसरा)

सूत्र:

शिव कहते है:

1—हे देवी, यह अनुभव दो श्‍वासों के बीच घटित हो

सकता है। श्‍वास के भीतर आने के पश्‍चात और बहार

लौटन के ठीक पूर्व—श्रेयस है, कल्‍याण है।

2—जब श्‍वास नींचे से ऊपर की और मुड़ती है, और फिर

जब श्‍वास ऊपर से नीचे की और मुड़ती है, इन दो मोड़ों के

द्वारा उपलब्‍ध हो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-03)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-02)-ओशो

योग और तंत्र; समर्पण और विधि—प्रवचन—दूसरा

प्रश्‍न सार:

1—योग और तंत्र में क्‍या फर्क है?

2—समर्पण की विधि क्‍या है?

3—कैसे कोई विधि रास आती है?

कई प्रश्न हैं।

पहला प्रश्न:

परंपरागत योग और तंत्र में भेद क्या है? क्या वे एक ही चीज हैं?

तंत्र और योग बुनियादी रूप से भिन्न हैं। यद्यपि दोनों एक ही लक्ष्य पर ले जाते हैं, तो भी उनके रास्ते भिन्न हैं; भिन्न ही नहीं विपरीत हैं। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-02)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-01)-ओशो

तंत्र—सूत्र (भाग—01) ओशो

तंत्र में प्रवेश—(प्रवचन—पहला)

सूत्र:

देवी कहती है:

हे शिव, आपका सत्‍य क्‍या है?

यह विस्‍मय—भरा विश्‍व क्‍या है?

इसका बीज क्‍या है?

विश्‍व–चक्र की धुरी क्‍या है?

रूपों पर छाए लेकिन रूप के परे

यह जीवन क्‍या है?

देश और काल, नाम और प्रत्‍यय के परे जाकर

हम इसमें कैसे पूर्णत: प्रवेश करें?

मेरे संशय निमूर्ल करें।

कुछ भूमिका की बातें। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-01)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-भाग-01-(ओशो)

तंत्र-सूत्र—ओशो

ये  प्रवचन माला ओशो अंग्रेजी में बोले थे स्वामी योग चिन्मय के अथक महनता ओर प्रयास से इन्हें हिन्दी में घारा परवाह रूपांतरित किया गया है, ये सब इतना सूंदर है की आप किताब को पढ़ते हुए भूल जाते है कि ओशो बोले या रूपातरित है, क्योंकि शिष्य के अंदर गुरू की ध्वनि गुंजयमान होती रहती हैै, वह उसमें डूब कर वहीं शब्द लाता है जो गुरू के मुखार बिंंंंदु पर आने वाले थे। नमन उस महान विभुति काेे जिससेेप्रयास से हजारों लाखो लोग उन महान  विज्ञान भैरव तंत्र को हिन्दी में पढ़ सके।

मनसा आनंद

वििज्ञान भैरव तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है। वह दार्शनिक भी नहीं है। तंत्र शब्‍द का अर्थ है। विधि, उपाय, मार्ग। इस लिए यह एक वैज्ञानिक ग्रंथ है। विज्ञान ‘’क्‍यों‘’ की नहीं, ‘’कैसे’’ की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है। यह अस्‍तित्‍व क्‍यों है? विज्ञान पूछता है, यह आस्‍तित्‍व कैसे है? जब तुम कैसे का प्रश्‍न पूछते हो, तब उपाय, विधि, महत्‍वपूर्ण हो जाती है। तब सिद्धांत व्‍यर्थ हो जाती है। अनुभव केंद्र बन जाता है। Continue reading “तंत्र-सूत्र-भाग-01-(ओशो)”

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