गहरे नीले और बैंजली रंगों के पुष्पों की घाटी—(प्रवचन-आठवां)
ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो
(ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 28 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)
सूत्र:02
नीनागावा शिंजेमन, जो छंदबद्ध कविता का एक सुन्दर कवि और येन
का श्रद्धालु था, उसके अन्दरसुप्रसिद्ध सद्गुरु इनका शिष्य बनने की
इच्छा जागृत हुई,
जो उन दिनों नीले बैंजनी फूलों की घाटी मुस्कीनो में डेटोकूजी मठ का
सद्गुरु था।
उसे इक्यू द्वारा बुलवाया गया,
और बुद्ध मंदिर के प्रवेशद्वार पर उनके मध्य निम्न संवाद हुआ।
इन- आप कौन हैं?
नीनागावा: मैं बौद्ध धर्म का एक श्रद्धालु उपासक हूं।
इक्यू: आप कहां के हैं?
नीनागावा: आपके ही क्षेत्र का।
इक्यू: ओह! और इन दिनों वहां कैसा क्या हो रहा है? Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-08)”