ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-08)

गहरे नीले और बैंजली रंगों के पुष्पों की घाटी—(प्रवचन-आठवां)  

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

 (ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 28 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

 सूत्र:02

नीनागावा शिंजेमन, जो छंदबद्ध कविता का एक सुन्दर कवि और येन
का श्रद्धालु था, उसके अन्दरसुप्रसिद्ध सद्‌गुरु इनका शिष्य बनने की
इच्छा जागृत हुई,

जो उन दिनों नीले बैंजनी फूलों की घाटी मुस्कीनो में डेटोकूजी मठ का
सद्‌गुरु था।

उसे इक्यू द्वारा बुलवाया गया,

और बुद्ध मंदिर के प्रवेशद्वार पर उनके मध्य निम्न संवाद हुआ।

इन- आप कौन हैं?

नीनागावा: मैं बौद्ध धर्म का एक श्रद्धालु उपासक हूं।

इक्यू: आप कहां के हैं?

नीनागावा: आपके ही क्षेत्र का।

इक्यू: ओह! और इन दिनों वहां कैसा क्या हो रहा है? Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-08)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-07)

मैं अभी मरा नहीं हूं—(प्रवचन-सातवां)  

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

 (ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 27 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

सूत्र:

एक भूतपूर्व सम्राट ने सद्‌गुरु गूडो से पूछा:

एक बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति को मृत्यु के बाद क्या घटता है?
गूडो ने उत्तर दिया:

मैं इसे कैसे जान सकता हूं?

भूतपूर्व सम्राट ने कहा:

आपको इस वजह से जानना चाहिए- क्योंकि आप एक सद्‌गुरु हैं।
गूडो ने उत्तर दिया:

वह तो ठीक है श्रीमान्!

लेकिन मैं अभी मरा ही नहीं हूं। Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-07)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-06)

जागरण—(प्रवचन-छठवां)  

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

(ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 26 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

सूत्र:

महान सदगुरु गीजान के सान्निध्य में

तीन वर्षों के कठोर प्रशिक्षण के बाद भी

कोश सतोरी प्राप्त करने में समर्थ न हो सका था।

सात दिनों के विशिष्ट अनुशासन सत्र के प्रारम्भ में ही

उसने सोचा कि अंतिम रूप से उसके लिए यह अवसर आ पहुंचा है,
वह मंदिर के द्वार की मीनार के ऊपर चढ़ गया।

और बुद्ध की प्रतिमा के सामने जाकर उसने यह प्रतिज्ञा की:

या तो मैं यहां अपने सपने को साकार करूंगा,

अथवा इस मीनार के नीचे गिरे, वे मेरे मृत शरीर को पाएंगे। Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-06)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-05)

मौन का सद्‌गुरु—(प्रवचन पांचवां)  

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

(ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 25 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

सूत्र:

वहां एक भिक्षु रहता था, जो अपने को ‘मौन का सदगुरु’ कहता था।
वास्तव में वह एक ढोंगी था, और उसके पास कोई प्रामाणिक समझ न थी।

अपने धोखा देने वाले निरर्थक ज़ेन का व्यापार करने के लिए-

उसने अपने पास सेवा के लिए दो वाक्पटु भिक्षुओं को,

लोगों के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए रख छोड़ा था। Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-05)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-04)

लुलियांग का जलप्रपात—प्रवचन-चौथा

ऋतु आये फल होय–The Gras grow by Itself–ओशो

(ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 22 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

सूत्र:

कनफ्यूशियस लुलियांग के विशाल जलप्रपात को देख रहा था।

वह दो सौ फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है,

और उसके झाग पंद्रह मील दूर तक पहुंचते हैं।.

मछली-घड़ियाल जैसे जीव भी उसके प्रवाह में जीवित नहीं रह पाते।
फिर भी कनफ्यूशियस  ने एक वृद्ध व्यक्ति को

उसके अन्दर जाते हुए देखा।

यह सोचते हुए कि वह वृद्ध व्यक्ति, किसी मुसीबत से पीड़ित होकर ही
अपने जीवन को समाप्त कर देने को इच्छूक है,

कनफ्यूशियस  ने अपने एक शिष्य को आदेश दिया: Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-04)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-03)

शून्यता और भिसु की नाक–(प्रवचन-तीसरा)
ऋतु आये फल होयThe Gras grow by Itself–ओशो

 (ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 23 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

सूत्र:

सीको ने अपने एक भिक्षु से कहा:

क्या तुम शून्यता को झपटकर पकड़ सकते हो?

भिक्षु ने कहा: मैं प्रयास करूंगा,

और उसने अपनी हथेलियों को प्यालानुमा बनाकर हवा में

उसे मुट्ठियों में पकड़ने का प्रयास किया।

सीको ने कहा: ऐसा करना ठीक नहीं है,

तुमने वहां कोई भी चीज नहीं पाई।

भिक्षु ने कहा : आप ही ठीक हैं, प्यारे सदगुरु, पर कृपया हमें इससे
बेहतर उपाय करके बतालाइए।
Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-03)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-02)

सद्‌गुरु और शिष्ट–प्रवचन-दूसरा

ऋतु आये फल होयThe Gras grow by Itself–ओशो

(ज़ेन पर ओशो द्वारा दिनांक 22 फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

लीहन्ध हर समय व्यस्त नहीं रहता था।

यिन शेंग ने अवसर पाकर उससे गुहा रहस्यों को दिए जाने की मांग की:
मुंह मोड़कर लहित्थू ने उसे दूर हटा दिया होता, और उससे कुछ कहा ही
नहीं होता।

लेकिन यह ख्याल कर

कि कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में वह भी विकसित हो सकता है–

उसने कहा

मेरा ख्याल था कि तुम मेधावी और होशियार हो, Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-02)”

ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-01)

ऋतु आये फल होयThe Gras grow by Itself–ओशो

ज़ेन : एक प्राकृतिक प्रवाह

(ज़ेन पर ओशो द्वारा फरवरी 1975 में अंग्रेजी में दिये गये अमृत प्रवचनों का हिन्दी में अनुवाद)

ज़ेन का महत्व क्या है?–(पहला प्रवचन)

प्रवचन : दिनांक 21 फरवरी 1975

सारसूत्र:

किसी व्यक्ति ने सद्‌गुरु बोकूजू से पूछा :

हमें कपड़े पहनने होते हैं और प्रतिदिन भोजन करना होता है,
इस सभी से हम कैसे बाहर आएं?

बोकूजू ने उत्तर दिया :

हम कपड़े पहनें, हम भोजन करें।

प्रश्नकर्त्ता ने कहा :

मैं कुछ समझा नहीं।

बोकूजू ने उत्तर दिया :

यदि तुम नहीं समझे,

तो अपने कपड़े पहन लो,

और खाना खा लो।

 ज़ेन क्या है?

ज़ेन है एक बहुत असाधारण विकास। Continue reading “ऋतु आये फल होय-(प्रवचन-01)”

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