भक्तिसूत्र-(प्रवचन-20)

बीसवां प्रवचन—अहोभाव, आनंद, उत्सव है भक्ति

दिनांक २२ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार :

1—परम विरहासक्ति पर कुछ कहें?

2—ध्यान की गहराई की अवस्था स्थायी कैसे हो?

3—क्या मुक्ति के लिए अन्ततः आराध्य की छवि का विसर्जन भी अनिवार्य है?

4—आपके समीप आकर आपकी ओर देखा ही न गया। ऐसे क्यों हो जाता है? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-20)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-19)

(विशेष: दिनांक १९ एवं २० मार्च, )

(१९७६ को भगवान श्री प्रवचन के लिए उपस्थित नहीं हए…!)

उन्नीसवां प्रवचन—प्रज्ञा की थिरता है मुक्ति

दिनांक २१ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र:

वादो नावलम्ब्य ।।७४।।

बाहुल्यावकाशादनियतत्ववच्च ।।७५।।

भक्तिशास्त्राणि मननीयानि तदुद्बोधक कर्माण्यपि करणीयानि।।७६।।

सुखदुःस्वेच्छालाभादित्यक्ते काले प्रतीक्ष्यमाण क्षगार्द्धमपि व्यर्थं न नेयम्।।७७।।

अहिंसासत्यशौचदयास्तिक्यादिचारित्र्याणि परिपालनियानि।।७८।।

सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितैर्भगवानेव भजनीयः।।७९।। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-19)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-18)

अठारहवां प्रवचन—एकांत के मंदिर में है भक्ति

दिनांक १८ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—मैं बिलकुल अकेली हूं, बुढ़ापा भी आ गया है, पैर से अपाहिज हूं, नाच भी नहीं सकती! क्या मेरे जिए आशा की काई किरण संभव है?

2—आपको सुनकर तथा ध्यान करने से मेरी अज्ञात के प्रति आस्था जगने लगी है। क्या यह नए परिवेश का सम्मोहन तो नहीं?

3—वेद कुरान को त्याग कियो

परित्याग कियो री पुरानन को Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-18)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-17)

सत्रहवां प्रवचन—कान्ता जैसी प्रतिबद्धता है भक्ति

दिनांक १७ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

 सूत्र :

त्रिरूपभंगपूर्वकं नित्यदासनित्यकांता भजनात्मकं

वा प्रेमैव कार्यम्, प्रेमैव कार्यम्

भक्त एकान्तिनो मुख्याः

कण्ठावरोधरोमांचाश्रुभिः परस्परं लपमानाः

पावयन्ति कुलानि पृथिवीं च

तीर्थीकुर्वन्ति तीर्थानि सुकर्मीकुर्वन्ति

कर्माणि सच्छास्त्रीकुर्वन्ति शास्त्राणि Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-17)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-16)

सोलहवां प्रवचन–उदासी नहीं–उत्सव है भक्ति

दिनांक १६ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद की पुराणकथा तथा होली उत्सव पर प्रकाश डालें।

2—यारी करके देखा यार मिलता नहीं, बेवफा मिलता है लेकिन बावफा मिलता नहीं।

3—भगवान इस समय हमारे और आपके बीच क्या करवाता है?

4—जो अनुभव आपके सान्निध्य और प्रवचन में होता है, वह कैसे अधिक समय तक रहे?

5—आपके जानने से पहले राधास्वामी संत से प्रभावित था,…मांस और शराब छोड़ने की शर्त थी। फिर अपनी किताब…बढ़िया अनूभव करता हूं। अब संन्यास…क्या केवल माला से ही काम नहीं चल सकता? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-16)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-15)

पंद्रहवा प्रवचन—हृदय-सरोवर का कमल है भक्ति

दिनांक १५ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

अन्यस्मात् सौलभ्यं भक्तौ

प्रमाणान्तरस्यानपेक्षत्वात् स्वयंप्रमाणत्वात्

शान्तिरूपात्परमानन्दरूपाच्च

लोकहानौ चिन्ता न कार्या निवेदितात्मलोकवेदत्वात्

न तदसिद्धौ लोकव्यवहारो हेयः किन्तु फलत्यागस्तत्साधनं च कार्यमेव

स्त्रीधननास्तिकवैरिचरित्रं न श्रवणीयम्

अभिमानदम्भादिकं त्याज्यम्

तदर्पिताखिलाचारः सन् कामक्रोधाभिमानादिकं तस्मिन्नेव करणीयम् Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-15)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-14)

चौदहवां प्रवचन—असहाय हृदय की आह है प्रार्थना-भक्ति

दिनांक १४ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न-सार:

1—भगवान! सामर्थ्य तो कुछ है नहीं और प्यास उठी अनंत की। मिलन होगा?

2—क्या प्रेम और मृत्यु के बीच कोई आंतरिक संबंध है?

3—बहुतेरे आपके संन्यासी ध्यान नहीं करते; कहते हैं, समझ काफी है। क्या उनकी यह समझ काफी है?

4—भगवान! मैं आपसे संन्यस्त नहीं हुआ; फिर भी क्या आप मृत्यु के क्षण में मुझे धक्का देने आएंगे?

5—क्यों आप प्रतिदिन प्रवचन के लिए आने पर और फिर विदा लेते हुए भी हाथ जोड़कर हमें प्रणाम करते हैं?

6—कब किस घड़ी में संन्यासी शिष्य के भीतर से अपेक्षा का भाव गिर जाता है? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-14)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-13)

तेरहवां प्रवचन—शून्य का संगीत है प्रेमा-भक्ति

दिनांक १३ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

अनिर्वचनीशं प्रेमस्वरूपम्

मूकास्वादमवत्

प्रकाशते क्वापि पात्रे

गुणरहितं सूक्ष्मतरमनुभवरूपम्

तत्प्राप्य तदेवावलोकयति तदेव शृणोति

भाषयति तदेव चिन्तयति

गौणी त्रिधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा

उत्तरस्मांदुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति

अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम! Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-13)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-12)

बारहवां प्रवचन—अभी और यहीं है भक्ति

दिनांक १२ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न-सार :

1—भगवान, भक्ति और भोग में क्या कुछ आंतरिक तारतम्य है?

2—एक मित्र ने…सुझाव दिया है! कि नारद के सूत्र में सुधार होना चाहिए!

3—क्या कारण है कि कामवासना के उठने पर होश में भी उसकी प्रगाढ़ता बनी रहती है?

4—जिसे आप स्वप्न कहते हैं, वह हमें सत्य मालूम देता है और आपका सत्य हमारे लिए स्वप्नवत है। किसकी गंगा उलटी बहती है? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-12)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-11)

ग्यारहवां प्रवचन—शून्य की झील में प्रेम का कमल है भक्ति

दिनांक ११ मार्च, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

दुःसंगः सर्वथैव त्याज्य

कामक्रोधमोहस्मृतिभ्रंशबुद्धिनाशसर्वनाशकारणत्वात्

तरंगायिता अपीमे संगात्समुद्रायन्ति

कस्तरति कस्तरति मायाम? यः संगास्त्यजति यो

महानुभावं सेवते निर्ममो भवति

यो विविक्तस्थानं सेवते, यो लोकबन्धमुन्मूलयति, Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-11)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-10)

दसवां प्रवचन—परम मुक्ति है भक्ति

दिनांक २० जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार :

1—मुझे कभी लगता है कि मैंने आपसे बहुत-बहुत पाया है और कभी यह भी कि मैं आपसे बहुत चूक रहा हूं। ऐसा क्यों?

2—एक भक्त भगवान होना पसंद करे और दूसरा सिर्फ भक्त रहना चाहे, तो दोनों में श्रेष्ठ कौन है?

3—”भक्त्या अनुवृत्या’ ऐसा कहा है, तो भक्ति साकार ही होना चाहिए। सूर्य सूर्यलोक में साकार ही है, वैसे ही भगवान भी साकार क्यों नहीं? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-10)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-09)

नौवां प्रवचन—हृदय का आंदोलन है भक्ति

दिनांक १९ जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

तस्याः साधनानि गायन्त्याचार्यः

तत्तु विषयत्यागात् संगत्यागाच्च

अव्यावृतभजनात्

लोकेऽपि भगवद्गुणश्रवणकीर्तनात्

मुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवत्कृपालेशाद्वा

महत्संगस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च

लभ्यतेऽपि तत्कृपयैव

तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्

तदेव साध्यतां तदेव साध्याताम्

पहला सूत्र: “तस्या साधनानि गायन्त्याचार्याः‘। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-09)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-08)

आठवां प्रवचन—अनंत के आंगन में नृत्य है भक्ति

दिनांक १८ जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1—प्रेम भक्ति का जनक है या भक्ति प्रेम की जननी ? प्रेम कली है और भक्ति फूल? अथवा प्रेम आदि है और भक्ति अंत? या दोनों भिन्न हैं?

2—इस कथन में क्या सच्चाई है कि भक्ति है द्वैत और ज्ञान है अद्वैत?

3—संन्यास के लिए गैरिक वस्त्र क्यों जरूरी हैं? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-08)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-07)

सातवां प्रवचन—योग और भोग का संगीत है भक्ति

दिनांक 17 जनवरी, 1976; रजनीश आश्रम, पूना

सूत्र :

सा तु कर्मज्ञानयोगेभ्योऽप्यधिकतरा।

फलरूपत्वात्।

ईश्वरस्या६यभिमानद्वेषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च।

तस्या ज्ञानमेव साधनमित्येके।

अन्योन्याश्रयत्वमित्यन्ये।

स्वयं फलरूपतेति ब्रह्मकुमाराः।

राजगृह भोजनादिषु तथैव दृष्टत्वात्।

न तेन राजपरितोषः क्षुधाशांतिर्वा।

तस्मात्सैव ग्राह्या मुमुक्षुभिः। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-07)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-06)

छठवां प्रवचन—प्रसादस्वरूपा है भक्ति

दिनांक १६ जनवरी, १९७६; रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार :

1—विराट का अनुभव किसी न किसी रूप में अभिव्यक्त होता ही है। क्या ऐसा नहीं है?

2—आये थे दर पर तेरे सिर झुकाने के लिए, उठता नहीं है सिर अब वापस जाने के लिए…!

3—प्रवचन सुनते समय प्रेम-विभोर हो आंसू बहने लगते हैं और अचेतन में अहंकार को रस आता है कि अहोभाव के आंसू बहा रहा हूं। क्या इससे अद्वैत का रूखा-सूखा मार्ग अच्छा नहीं? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-06)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन—कलाओं की कला है भक्ति

दिनांक 15 जनवरी, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना

 सूत्र :

तल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात् ।।

पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्यः।।

कथादिष्विति वर्गः।।

आत्मरत्यविरोधेनेति शांडिल्यः।।

नारदस्तु तदर्पिताखिलाचारिता

तद्धिस्मरणे परमव्याकुलतेति

यथा वज्रगोपिकानाम्।।

तद्धिहीनं जाराणामिव।।

नास्त्येव तस्मिंस्तत्सुखसुखित्वम्।। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-05)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन—सहजस्फूर्त अनुशासन है भक्ति

दिनांक १४ जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्न-सार:

1—जीवन की व्यर्थता का बोध ही क्या जीवन में अर्थवत्ता का प्रारंभ-बिंदु बन जाता है?

इस विराट अस्तित्व में मैं नाकुछ हूं, यह अप्रिय तथ्य स्वीकारने में बहुत भय पकड़ता है। इस भय से कैसे ऊपर उठा जाए?

2—आपसे मिलकर भी यदि हमारा उद्धार न हुआ, तब तो शायद असंभव ही है। कम से कम मुझ निरीह पर तो रहम खाइए। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-04)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन–बड़ी संवेदनशील है भक्ति

दिनांक १३ जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम पूना

सूत्र:

सा न कामयमाना निरोधरूपत्वात्।।

निरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यासः।।

तस्मिन्नन्यता तद्धिरोधिषूदासीनता च।।

अन्याश्रयाणां त्यागो५नन्यता।।

लोके वेदेषु तदनुकूलाचरणं तद्धिरोधिषूदासीनता।।

भवतु निश्चयदाढर्यादूर्ध्वं शास्त्ररक्षणम्।।

अन्यथा पातित्याशङ्कया।।

लोको५पि तावदेव किन्तु भोजनादिव्यापारस्त्वाशरीधारणावधि।। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-03)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन-स्वयं को मिटाने की कला है भक्ति

दिनांक १२ जनवरी, १९७६; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रश्नसार:

1–“अथातो’–“अब का मोड़-बिंदु हम सामान्य सांसारिक जनों के जीवन में कब आ पाता है?

2–भक्ति की यात्रा और सदगुरू के बीच कैसा संबंध है?

3–साधना भी है और सिद्धि भी। कृपापूर्वक उसके अलग-अलग रूपों को हमें समझाएं।

4–मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मैं अधपका फल हूं…?

5–क्या भक्ति-साधना के भी कुछ साधन हैं, या वह सर्वथा स्वतः स्फूर्त और सहज है? Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-02)”

भक्तिसूत्र-(प्रवचन-01)

पहला प्रवचन— परम प्रेमरूपा है भक्ति

सूत्र:

अथातो भक्तिं व्याख्यास्यामः।। १ ।।

सा त्वस्मिन् परमप्रेमरूपा।। २ ।।

अमृतस्वरूपा च।। ३ ।।

यल्लब्ध्वा पुमान सिद्धो भवति

अमृतो भवति तृप्तो भवति।। ४ ।।

यत्प्राप्य न किग्चिक्षाग्छति न शोचति

न द्वेष्टि न रमते नोत्साही भवति।। ५ ।।

यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति

आत्मारामो भवति।। ६ ।। Continue reading “भक्तिसूत्र-(प्रवचन-01)”

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