अनंत की पुकार-(प्रवचन-12)

 

प्रवचन-बारहवां-(काम के नये आयाम)

अहमदाबाद -अंतरंग वार्ताएं……

आप लोग सारी बात कर लें तो थोड़ा मेरे खयाल में आ जाए, तो मैं थोड़ी बात कर लूं।

एक विचार यह है कि जो आर्थिक तकलीफ हमें होती है यहां पर, आप बाहर में जहां-जहां प्रवचन करके आए हैं, वहां सब मित्रों को निवेदन हम करें कि वे सब थोड़ा-थोड़ा, जितना हो सके, सहयोग करें बंबई के केंद्र को।

अभी जो बहनजी ने बताया उसके ऊपर मैं एक सजेशन देना चाहूंगा कि जितने भी हमारे मित्र हैं या हमारे जो शुभेच्छु हैं, मेंबरशिप टाइप में एक फिक्स्ड एमाउंट रख दिया जाए कि एनुअली इतना देना पड़ेगा सबको। मेरे खयाल से यह बहुत कुछ हमको मदद दे सकेगा हमारी आर्थिक व्यवस्था को सुधारने में। अगर ग्यारह रुपये एनुअली भी रख दें हम तो कोई बड़ी चीज नहीं है देने की दृष्टि से। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-12)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-11)

 

प्रवचन-ग्याहरवां-(ध्यान-केंद्र: मनुष्य का मंगल)

अहमदाबाद  – अंतरंग बार्ताएं……

हमारा विचार है कि एक मेडिटेशन हॉल और एक गेस्ट हाउस बनाना है। तो मैं आपको यह पूछना चाहता हूं कि ऐसा हम लोग जो फंड इकट्ठा करने का सोच रहे हैं, जो पंद्रह लाख रुपये करीब का हमारा अंदाज है, वह करने का पक्का मकसद क्या है? और ऐसा करने से वह जीवन जागृति केंद्र, उस सब जगह से क्या फायदा है? उसके लिए कुछ समझाएं।

यह तो बड़ा कठिन सवाल पूछा।

आपने तो सभी कठिन सवालों के जवाब दिए हैं।

बहुत सी बातें हैं। एक तो, जैसी स्थिति में आज हम हैं ऐसी स्थिति में शायद दुबारा इस मुल्क का समाज कभी भी नहीं होगा। इतने संक्रमण की, ट्रांजिशन की हालत में हजारों-सैकड़ों वर्षों में एकाध बार समाज आता है–जब सारी चीजें बदल जाती हैं, जब सब पुराना नया हो जाता है। ये क्षण सौभाग्य भी बन सकते हैं और दुर्भाग्य भी। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-11)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-10)

प्रवचन-दसवां-(कार्यकर्ता का व्यक्तित्व)

अहमदाबाद-अंतरंंग वार्ताएं…… 

दोत्तीन बातें कहनी हैं। एक तो इस संबंध में थोड़ा समझना और विचारना जरूरी है। काम बड़ा हो और कार्यकर्ता उसमें उत्सुक हो काम करें, तो उन कार्यकर्ताओं में कुछ होना चाहिए, तो काम को आगे ले जा सकते हैं, नहीं तो नहीं ले जा सकते। वह कोई सामान्य संस्था हो, कोई सेवा-प्रसारी हो, कोई और तरह की सामाजिक संस्था हो, तो एक बात है। जिस तरह की बात लोगों में पहुंचानी है, तो हमारे पास जो कार्यकर्ता हों, उनमें उस तरह की कोई लक्षणा और उस तरह के कुछ गुण होने चाहिए। तो ही काम ठीक से पहुंचे, नहीं तो नहीं पहुंच सकता। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-10)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-09)

 

प्रवचन-नौवा-(धर्म की एक सामूहिक दृष्टि)

अहमदाबाााद-अंतरंग वार्ताएं…….

मेरे प्रिय आत्मन्!

इस देश के दुर्भाग्य की कथा बहुत लंबी है। समाज का जीवन, समाज की चेतना इतनी कुरूप, इतनी विकृत और विक्षिप्त हो गई है जिसका कोई हिसाब बताना भी कठिन है। और ऐसा भी मालूम पड़ता है कि हमारी संवेदनशीलता भी कम हो गई है, यह कुरूपता हमें दिखाई भी नहीं पड़ती। जीवन की यह विकृति भी हमें अनुभव नहीं होती। और आदमी रोज-रोज आदमियत खोता चला जाता है, उसका भी हमें कोई दर्शन नहीं होता।

ऐसा हो जाता है। लंबे समय तक किसी चीज से परिचित रहने पर मन उसके अनुभव करने की क्षमता, सेंसिटिविटी खो देता है। बल्कि उलटा भी हो जाता है; यह भी हो जाता है कि जिस चीज के हम आदी हो जाते हैं वह तो हमें दिखाई नहीं पड़ती, ठीक चीज हमें दिखाई पड़े तो वह भी हमें दिखाई पड़नी मुश्किल हो जाती है। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-09)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-08)

 

प्रवचन-आठवां-(रस और आनंद से जीने की कला)

अहमदाबाद -अंतरंग वार्ताएं……

मैं एक मैगजीन में आपके जीवन के बारे में, आपके जीवन-दर्शन के बारे में कुछ देना चाहती हूं।

तो जीवन का देगी कि जीवन-दर्शन का देना चाहिए।

दोनों साथ में!

जीवन का क्या मूल्य है? जीवन का कोई भी मूल्य नहीं है, दर्शन का ही मूल्य है।

आपने ही कल बताया कि जीवन से भागना नहीं चाहिए।

हां, तो क्या लिखना है, बोल, क्या बताना है?

मैं आपसे प्रश्न पूछ लेती हूं। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-08)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-07)

सातवां प्रवचन -ध्यान-केंद्र के बहुआयाम

अहमदाबाद -अंतरगंवार्ताएं…..

वह जगह तो किसी भी कीमत पर छोड़ने जैसी नहीं है। हम तो अगर पचास लाख रुपया भी खर्च करें, तो वैसी जगह नहीं बना सकेंगे। दस एकड़ का कंपाउंड है। उसकी जो दीवाल है बनी हुई नौ फीट ऊंची, अपन बनाएं तो पांच लाख रुपये की तो सिर्फ उसकी कंपाउंड वॉल बनेगी। नौ फीट ऊंची पत्थर की दीवाल है। और वह करीब-करीब पंद्रह लाख में मिले तो बिल्कुल मुफ्त है। लेकिन यह सब तो उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्व पूर्ण यह है कि वह  बंबई में होते हुए उसके भीतर जाते से ही आपको लगे नहीं कि बंबई में हैं..माथेरान में हैं। इतने बड़े दरख्त हैं, और इतनी शांत जगह है। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-07)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-06)

 

प्रवचन-छट्ठवां-(संगठन और धर्म)

अहमदाबाद,  अंतरंग वार्ताएं…….

सुबह मैंने आपकी बातें सुनीं। उस संबंध में पहली बात तो यह जान लेनी जरूरी है कि धर्म का कोई भी संगठन नहीं होता है; न हो सकता है। और धर्म के कोई भी संगठन बनाने का परिणाम धर्म को नष्ट करना ही होगा। धर्म नितांत वैयक्तिक बात है, एक-एक व्यक्ति के जीवन में घटित होती है; संगठन और भीड़ से उसका कोई भी संबंध नहीं है।

लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि और तरह के संगठन नहीं हो सकते हैं। सामाजिक संगठन हो सकते हैं, शैक्षणिक संगठन हो सकते हैं, नैतिक-सांस्कृतिक संगठन हो सकते हैं, राजनैतिक संगठन हो सकते हैं। सिर्फ धार्मिक संगठन नहीं हो सकता है। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-06)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-05)

 

प्रवचन-पांचवा-(अवधिगत संन्यास)

अहमदाबाद,  अंतरंग वार्ताएं…….

मेरे मन में इधर बहुत दिनों से एक बात निरंतर खयाल में आती है और वह यह कि सारी दुनिया से, आने वाले दिनों में, संन्यासी के समाप्त हो जाने की संभावना है। संन्यासी, आने वाले पचास वर्षों बाद, पृथ्वी पर नहीं बच सकेगा। वह संस्था विलीन हो जाएगी। उस संस्था के नीचे की ईंटें तो खिसका दी गई हैं, उसका मकान भी गिर जाएगा।

लेकिन संन्यास इतनी बहुमूल्य चीज है कि जिस दिन दुनिया से विलीन हो जाएगी उस दिन दुनिया का बहुत अहित हो जाएगा।

मेरे देखे, संन्यासी तो चला जाना चाहिए, संन्यास बच जाना चाहिए। और उसके लिए पीरियाडिकल संन्यास का, पीरियाडिकल रिनन्सिएशन का मेरे मन में खयाल है। वर्ष में, ऐसा कोई आदमी नहीं होना चाहिए, जो एकाध महीने के लिए संन्यास न ले ले। जीवन में तो कोई भी ऐसा आदमी नहीं होना चाहिए जो दो-चार बार संन्यासी न हो गया हो। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-05)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-04)

 

प्रवचन-चौथा-(“मैं’ की छाया है दुख)

अहमदाबाद अंतरंग वार्ताएं….

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक धर्मगुरु ने एक रात एक सपना देखा। सपने में उसने देखा कि वह स्वर्ग के द्वार पर पहुंच गया है। जीवन भर स्वर्ग की ही उसने बातें की थीं। और जीवन भर, स्वर्ग का रास्ता क्या है, वह लोगों को बताया था। वह निश्चिंत था कि जब मैं स्वर्ग के द्वार पर पहुंचूंगा तो स्वयं परमात्मा मेरे स्वागत को तैयार रहेंगे।

लेकिन वहां द्वार पर तो कोई भी नहीं था। द्वार खुला भी नहीं था, बंद था। और द्वार इतना बड़ा था कि उसके ओर-छोर को देख पाना संभव नहीं था। उस विशाल द्वार के समक्ष खड़े होकर वह एक छोटी सी चींटी की तरह मालूम होने लगा, इतना छोटा मालूम होने लगा। उसने बहुत द्वार को खटखटाया, लेकिन उस विशाल द्वार पर उस छोटे से आदमी की आवाजें भी पैदा हुईं या नहीं, इसका भी पता लगना कठिन था। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-04)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-03)

प्रवचन-तीसरा-(कार्यकर्ता की विशेष तैयारी)

अहमदाबाद,  अंतरंग वार्ताएं…..

मनुष्य के जीवन में, और विशेषकर इस देश के जीवन में, कोई सर्वांगीण क्रांति आ सके, उसके लिए साधनों के संबंध में दिन भर हमने बात की।

लेकिन साधन अत्यंत जड़, अत्यंत परिधि की बात है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण और जरूरी वे मित्र हैं जो उस क्रांति को और आंदोलन को लोगों तक ले जाएंगे। उन मित्रों के संबंध में थोड़ी बात कर लेनी बहुत जरूरी होगी।

एक तो, जब भी किसी नये विचार को, किसी नई हवा को लोकमानस तक पहुंचाना हो, तब जो लोग पहुंचाना चाहते हैं उनकी एक विशेष मानसिक तैयारी अत्यंत जरूरी और आवश्यक है। यदि उनकी तैयारी नहीं है मानसिक, तो वे जो पहुंचाना चाहते हैं उसे तो नहीं पहुंचा पाएंगे, बल्कि हो सकता है उनके सारे प्रयत्न, जो वे नहीं चाहते थे, वैसा परिणाम ले आएं। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-03)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-02)

प्रवचन-दूसरा-(एक एक कदम)

अहमदाबाद, अंतरंग वर्ताएं..

कोई दो सौ वर्ष पहले, जापान में दो राज्यों में युद्ध छिड़ गया था। छोटा जो राज्य था, भयभीत था; हार जाना उसका निश्चित था। उसके पास सैनिकों की संख्या कम थी। थोड़ी कम नहीं थी, बहुत कम थी। दुश्मन के पास दस सैनिक थे, तो उसके पास एक सैनिक था। उस राज्य के सेनापतियों ने युद्ध पर जाने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह तो सीधी मूढ़ता होगी; हम अपने आदमियों को व्यर्थ ही कटवाने ले जाएं। हार तो निश्चित है।

और जब सेनापतियों ने इनकार कर दिया युद्ध पर जाने से…उन्होंने कहा कि यह हार निश्चित है, तो हम अपना मुंह पराजय की कालिख से पोतने जाने को तैयार नहीं; और अपने सैनिकों को भी व्यर्थ कटवाने के लिए हमारी मर्जी नहीं। मरने की बजाय हार जाना उचित है। मर कर भी हारना है, जीत की तो कोई संभावना मानी नहीं जा सकती। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-02)”

अनंत की पुकार-(प्रवचन-01)

प्रवचन-पहला-(ध्यान-केंद्र की भूमिका)

अहमदाबाद, अंतरंग वर्ताएं..

मेरे प्रिय आत्मन्!

कुछ बहुत जरूरी बातों पर विचार करने को हम यहां इकट्ठा हुए हैं। मेरे खयाल में नहीं थी यह बात कि जो मैं कह रहा हूं एक-एक व्यक्ति से, उसके प्रचार की भी कभी कोई जरूरत पड़ेगी। इस संबंध में सोचा भी नहीं था। मुझे जो आनंदपूर्ण प्रतीत होता है और लगता है कि किसी के काम आ सकेगा, वह मैं लोगों से, अब मेरी जितनी सामर्थ्य और शक्ति है उतना कहता हूं। लेकिन जैसे-जैसे मुझे ज्ञात हुआ और सैकड़ों लोगों के संपर्क में आने का मौका मिला, तो मुझे यह दिखाई पड़ना शुरू हुआ कि मेरी सीमाएं हैं; और मैं कितना ही चाहूं तो भी उन सारे लोगों तक अपनी बात नहीं पहुंचा सकता हूं जिनको उसकी जरूरत है। और जरूरत बहुत है, और बहुत लोगों को है। पूरा देश ही, पूरी पृथ्वी ही कुछ बातों के लिए अत्यंत गहरे रूप से प्यासी और पीड़ित है। Continue reading “अनंत की पुकार-(प्रवचन-01)”

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