सत्य की खोज-ओशो
पांचवां–प्रवचन
शुन्य से सत्य की ओर
(27 फरवरी 1969 रात्रि)
मेरे प्रिय आत्मन्!
बहुत से प्रश्न मित्रों ने पूछे हैं।
एक मित्र ने पूछा है, आत्मा दिखाई नहीं देती है और जो नहीं दिखाई देती, उसका इतना महत्व क्यों माना जाता है? और आप भी उसी न दिखाई पड़ने वाली आत्मा की बात क्यों कर रहे हैं?
वृक्ष दिखाई पड़ता है, जड़ें दिखाई नहीं पड़तीं; जड़ें जमीन के भीतर छिपी होती हैं। लेकिन इस कारण नहीं दिखाई पड़ने वाली जड़ों का मूल्य कम नहीं हो जाता है। बल्कि जो वृक्ष दिखाई पड़ता है, वह उन्हीं जड़ों पर निर्भर होता है, जो दिखाई नहीं पड़तीं। और वृक्ष की ही देख-सम्हाल में जो समय गंवा देगा और जड़ों की फिकर नहीं करेगा, उसका वृक्ष सूख जाने वाला है। उस वृक्ष पर न पत्ते आएंगे, न फूल आएंगे, न फल लगेंगे। नहीं दिखाई पड़ने वाली जड़ों में ही वृक्ष के प्राण छिपे हैं। Continue reading “सत्य की खोज-(प्रवचन-05)”