क्षणभंगुरता का बोध—(प्रवचन—तेरहवां)
अध्याय—9
सूत्र:
मां हि पार्थ व्यपाश्त्यि येऽपि स्युः पापयोनय:।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रस्तिऽपि यान्ति परां गतिम्।। 32।।
किं पुनर्ब्राह्मणा: पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।। 33।।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरू।
मामेवैष्यीसि युज्ज्वैवमात्मानं मत्यरायण:।। 34।। Continue reading “गीता दर्शन-(प्रवचन-112)”