होनी होय सो होय-(प्रवचन-10)

दसवां प्रवचन-नेति-नेति

प्रश्नसार:

पहला प्रश्नः ओशो, अपने ज्ञान-चक्षुओं के आधार पर जब भी आपको पाया तो दो रूपों में। आपके आरंभिक जीवन के प्रेरणा-स्रोत स्वामी विवेकानंद ही रहे होंगे, तत्पश्चात भगवान बुद्ध होंगे। और उसके बाद आप स्वयं ही बुद्ध हो गए। स्वामी विवेकानंद भारत के दूसरे कृष्ण थे; उपनिषदों व अन्य भारतीय ग्रंथों के मूर्धन्य विद्वान थे। ऐसे महापुरुष पर आपके मुखारविंद से एक लंबी प्रवचनमाला की अपेक्षा है। शंका भी है कि विवेकानंद पर आप शायद नहीं भी बोलें; कारण कि उनका समग्र चिंतन हिंदू शब्द व हिंदू सभ्यता पर आधारित है। और हिंदू शब्द से आपको घृणा है, ऐसा मुझे कई बार प्रतीत हुआ है।

विशेष प्रार्थना है कि स्वामी विवेकानंद के मौलिक विचारों पर व चिंतन पर आप मंथन करते हुए हमें शुभ्र, सात्विक, सच्चाईपूर्ण नवनीत का प्रसाद प्रदान करेंगे! Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-10)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-09)

नौवां प्रवचन

सखि, वह घर सबसे न्यारा

सूत्र:

साहिब है रंगरेज चुनरी मेरी रंग डारी।

स्याही रंग छुड़ायके रे दियो मजीठा रंग।

धोय से छूटे नहीं रे दिन दिन होत सुरंग।।

भाव के कंुड नेह के जल में प्रेम रंग देइ बोर।

दुख देह मैल लुटाय दे रे खूब रंगी झकझोर।।

साहिब ने चुनरी रंगी रे पीतम चतुर सुजान।

सब कुछ उन पर बार दूं रे तन मन धन और प्रान।।

कहै कबीर रंगरेज पियारे मुझ पर हुए दयाल।

सीतल चुनरी ओढ़ि के रे भई हौं मगन निहाल।।

 

अब गुरु दिल में देखिया, गावन को कछु नाहिं।

कबिरा जब हम गावते, तब जाना गुरु नाहिं।।

सुन्न मंडल में घर किया, बाजै सब्द रसाल।

रोम रोम दीपक भया, प्रगटे दीन दयाल।।

सुन्न सरोवर मीन मन, नीर तीर सब देव। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-09)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-08)

आठवां प्रवचन-प्रज्ञा संन्यास है

प्रश्न-सार:

01-तुम्हें पा के मैंने जहां पा लिया है

जमीं तो जमीं आसमां पा लिया है।

जमाने के गम प्यार में जल गए हैं

उम्मीदों के लाखों दीये जल गए हैं

न उजड़ेगा जो आशियां पा लिया है!

तुम्हें पा के मैंने जहां पा लिया है!

 

 02-मेरे बूढ़े ससुर जवान बेटे की अचानक मृत्यु से विक्षिप्त से हो गए हैं, और मैं संसार से बिल्कुल मुक्ति पाना चाहती हूं। किंतु मेरे ये गेरुआ वस्त्र कहीं उनकी मृत्यु का कारण न बनें। और मैं संन्यास लेना चाहती हूं। कृपया मार्गदर्शन करें। बड़ी आशा लेकर आई हूं। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-08)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-07)

सातवां प्रवचन

पीले प्याला हो मतवाला

सूत्र:

इब न रहूं माटी के घर में, इब मैं जाइ रहूं मिली हरि में।

छिनहर घर अरु झिरहर टाटी, घन गरजन कंपै मेरी छाती।

दसवैं दारि लागि गई तारी, दूरि गवन आवन भयौ भारी।

चहुं दिसी बैठे चारि पहरिया, जागत मूसि गए मोरी नगरिया।

कहै कबीर सुनहु रे लोई, भानंड़ घड़ण संवारण सोई।

पी ले प्याला हो मतवाला, प्याला नाम अमीरस का रे। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-07)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-06)

छठवां प्रवचन-(सत्संग)

प्रश्न-सार:

01-आज बड़ी मुद्दत के बाद आपके सन्मुख होने का अवसर मिला। एक अजब अनुभव से गुजरा। ऐसा लगता था जैसे आंखों के सामने प्रकाश ही प्रकाश है। और बड़ी अजीब सी सुगंध से नासापुट भर गए थे। रीढ़ में अंदर पसीना सा जा रहा था। मैं कहां था, खबर नहीं है। शब्दों का बस संगीत था..पहली बार, अर्थ न था। …आनंद! प्रभु आनंद!

 

02-मुझ पर ऐसे जैन संस्कार पड़े हैं कि मन की सूक्ष्म वैचारिक अवस्था यानी आत्मा। और आप उसी मन को मारने के लिए, छोड़ने के लिए कहते हैं। मैं समझ नहीं पाता। दुविधा में पड़ जाता हूं। कृपया प्रकाश डालें।

 

03-आप कहते हैं, होनी होय सो होय। तो क्या कुछ न करें? बस उसी पर छोड़ दें? Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-06)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन

पीवत रामरस लगी खुमारी

सूत्र:

छारि पर्यौ आतम मतवारा।

पीवत रामरस करत बिचारा।।

बहुत मोलि महंगै गुड़ पावा।

लै कसाब रस राम चुवावा।।

तन पाटन मैं कीन्ह पसारा।

मांगि मांगि रस पीवै बिचारा।।

कहैं कबीर फाबी मतवारी।

पीवत रामरस लगी खुमारी।। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-05)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन

मधुर मधुर मेरे दीपक जल

प्रश्न-सार:

 

01-क्या मोहब्बत की घड़ी है आजकल

इक सदी इक लमहा है आजकल

आरजुओं को अब बरसाएं हम कहां

दिल की कलियां खिल रही हैं आजकल

दिल की दुनिया आनंद से आबाद है

मुस्तकिल रोशनी जल रही है आजकल

Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-04)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन

मैं अपने साहिब संग चली

 

सूत्र:

 

भींजै चुनरिया प्रेम-रस बूंदन।

आरत साज के चली है सुहागिन पिय अपने को ढूंढन।

काहे की तोरी बनी चुनरिया काहे को लगे चारों फूंदन।

पांच तत्त की बनी रे चुनरिया नाम के लागे फूंदन।

चढ़िगे महल खुल गई रे किबरिया दास कबीर लागे झूलन।।

भींजै चुनरिया प्रेम-रस बूंदन।

 

मैं अपने साहिब संग चली।

हाथ में नरियल मुख में बीड़ा, मोतियन मांग भरी।

मैं अपने साहिब संग चली।

लिल्ली घोड़ी जरद बछेड़ी, तापै चढ़ि के चली।

मैं अपने साहिब संग चली।

नदी किनारे सतगुरु भेंटे, तुरत जनम सुधरी।

कहै कबीर सुनो भाई साधो, दोउ कुल तारि चली।

मैं अपने साहिब संग चली। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-03)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन

छाया मत छूना मन

 

प्रश्न-सार:

 

01-जब भी मैं किसी व्यक्ति के साथ आपकी करुणा और प्रेम-भाव के बारे में बातचीत करता हूं, तो आवाज रुंध जाती है, शब्द खो जाते हैं और पोर-पोर रोना आ जाता है, तब लगता है, मैं आपके अत्यंत निकट हूं। कृपया बताएं कि मैं आपकी अनंत अनुकंपा का ऋण कैसे चुकाऊं?

 

02-वर्षों से एक प्रश्न बार-बार मेरे मन में उठ रहा था। सोचा था, आपसे प्रश्न का समाधान मिल जाएगा, किंतु यहां आकर मेरा प्रश्न तो क्या, मैं ही खो गया हूं। ऐसा क्यों?

 

03-क्या तृष्णा-रहित जीवन ही भगवत्ता है? साथ ही आपसे जो सुख मिला है, उसके लिए धन्यवाद देता हूं। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-02)”

होनी होय सो होय-(प्रवचन-01)

होनी होय सो होय-कबीर

पहला प्रवचन

मंगन से क्या मांगिए

सूत्र:

 

मोर फकिरवा मांगि जाय,

मैं तो देखहू न पौल्यौं।

मंगन से क्या मांगिए,

बिन मांगे जो देय।

कहैं कबीर मैं हौं वाही को,

होनी होय सो होय।

 

चली मैं खोज में पिय की। मिटी नहिं सोच यह जिय की।।

रहे नित पास ही मेरे। न पाऊं यार को हेरे।।

बिकल चहुं ओर को धाऊं। तबहु नहिं कंत को पाऊं।।

धरों केहि भांति सों धीरा। गयौ गिर हाथ से हीरा।।

कटी जब नैन की झाईं। लख्यौं तब गगन में साईं।।

कबीर शब्द कहि त्रासा। नयन में यार को वासा।। Continue reading “होनी होय सो होय-(प्रवचन-01)”

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