जीवन संगीत-(प्रवचन–09)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)–ओशो

नौवां-प्रवचन

मेरे प्रिय आत्मन्!

तीन दिनों की चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न मित्रों ने भेजे हैं। जितने प्रश्नों के उत्तर संभव हो सकेंगे, मैं देने की कोशिश करूंगा।

एक मित्र ने पूछा है कि आप नये विचारों की क्रांति की बात कहते हैं। क्या अब भी कभी हो सकता है जो पहले नहीं हुआ है? इस पृथ्वी पर सभी कुछ पुराना है, नया क्या है?

इस संबंध में जो पहली बात आपसे कहना चाहता हूं, वह यह कि इस पृथ्वी पर सभी कुछ नया है, पुराना क्या है? पुराना एक क्षण नहीं बचता, नया प्रतिक्षण जन्म लेता है। पुराने का जो भ्रम पैदा होता है, इसलिए पैदा होता है, कि हम दो के बीच जो अंतर है, उसे नहीं देख पाते। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–09)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–08)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)–ओशो

आठवां-प्रवचन

मैंने कहा है कि क्रांति तो एक विस्फोट है। सडन एक्सप्लोजन है। और फिर मैं ध्यान की प्रक्रिया और अभ्यास के लिए कहता हूं कि इन दोनों में विरोध नहीं है? नहीं, इन दोनों में विरोध नहीं है।

यदि मैं कहूं कि पानी जब भाप बनता है, तो एक विस्फोट है, सौ डिग्री पर पानी भाप बन जाता है। और फिर मैं किसी से कहूं कि पानी को धीरे-धीरे गरम करो, ताकी वह भाप बन जाए। वह आदमी मुझसे कहे कि आप तो कहते हैं, पानी एकदम से भाप बन जाता है। फिर हम धीरे-धीरे गरम करने का अभ्यास क्यों करें? Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–08)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–07)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)–ओशो

सातवां–प्रवचन

तीन दिन की चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न मित्रों ने पूछे हैं।

एक मित्र ने पूछा है कि यदि आत्मा सब सुख-दुख के बाहर है, तो दूसरों की आत्माओं की शांति के लिए जो प्रार्थनाएं की जाती है, उनका क्या उपयोग है?

यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है और समझना उपयोगी होगा। पहली तो बात यह है कि आत्मा निश्चय ही सब सुख-दुखों सब शांतियों, अशांतियों, सब राग द्वेषों मूलतः सभी तरह के द्वंद्व और द्वैत के अतीत है। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–07)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–06)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)–ओशो

छठवां–प्रवचन

सत्य की खोज में, उसे जानने की दिशा में, जिसे जान कर फिर कुछ और जानने को शेष नहीं रह जाता है। और उसे पाने के लिए; जिसे पाए बिना हम ऐसे तड़फते हैं, जैसे कोई मछली पानी के बाहर, रेत पर फेंक दी गई हो। और जिसे पा लेने के बाद हम वैसे ही शांत और आनंदित हो जाएं, जैसे मछली सागर में वापस पहुंच गई हो। उस आनंद, उस अमृत की खोज में, एक और दिशा और द्वार की चर्चा आज की संध्या में करूंगा।

सत्य को खोजने का उपकरण क्या है? रास्ता क्या है? साधन क्या है? मनुष्य के पास एक ही साधन मालूम पड़ता है विचार। एक ही शक्ति मालूम पड़ती है कि मनुष्य सोचे और खोजे। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–06)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–05)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)–ओशो

पांचवां-प्रवचन

…ताकि पूरे प्रश्नों के उत्तर हो सकें। सबसे पहले तो एक मित्र ने पूछा है कि कल मैंने कहा कि खोज छोड़ देनी है। और अगर खोज हम छोड़ दें, फिर तो विज्ञान का जन्म नहीं हो सकेगा।

मैंने जो कहा है, खोज छोड़ देनी है, वह कहा है उस सत्य को पाने के लिए जो हमारे भीतर है। खोज करनी व्यर्थ है, बाधा है। लेकिन हमारे बाहर भी सत्य है। और हम से बाहर जो सत्य है, उसे बिना तो खोज के कभी नहीं पाया जा सकता। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–05)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–03)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर) —ओशो

तीसरा-प्रवचन

एक अदभुत व्यक्ति हुआ, नाम था च्वांगत्सु। रात सोया, एक स्वप्न देखा। स्वप्न देखा कि एक तितली हो गया हूं, फूल-फूल उड़ रहा हूं। सुबह उठा तो बहुत उदास था। मित्र उसके पूछने लगे, कभी उदास नहीं देखा, इतने उदास क्यों हो? दूसरे उदास होते थे, तो पूछते थे राह च्वांगत्सु से, मार्ग पाते थे। और उसे तो कभी किसी ने उदास नहीं देखा था।

च्वांगत्सु ने कहा, क्या बताऊं, क्या फायदा है, एक बहुत उलझन में पड़ गया हूं। रात एक सपना देखा कि मैं तितली हो गया हूं!

मित्र कहने लगे, पागल हो गए हो, इसमें चिंता की क्या बात है? Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–03)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–02)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर) —ओशो

दूसरा-प्रवचन

उसे अनबंधा किया जा सकता है, जो कारागृह में हो, उसे मुक्त किया जा सकता है। जो सोया हो, उसे जगाया जा सकता है। लेकिन जो जागा हो और इस भ्रम में हो कि सो गया हूं, उसे जगाना बहुत मुश्किल है। और जो मुक्त हो और सोचता हो कि बंध गया हूं, उसे खोलना बहुत मुश्किल है। और जिसके आस-पास कोई जंजीरें न हों, और आंख बंद करके सपना देखता हो कि मैं जंजीरों में बंधा हूं और पूछता हो कैसे तोडूं इन जंजीरों को? कैसे मुक्त हो जाऊं? कैसे छुटूं? तो बहुत कठिनाई है।

रात्रि इस संबंध में पहले सूत्र पर मैंने आपसे कुछ कहा। मनुष्य की आत्मा परतंत्र नहीं है और हम उसे परतंत्र माने हुए बैठे हैं। मनुष्य की आत्मा को स्वतंत्र नहीं बनाना है। बस यही जानना है कि आत्मा स्वतंत्र है। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–02)”

जीवन संगीत-(प्रवचन–01)

जीवन संगीत-(साधना-शिविर)  ओशो

पहला-प्रवचन

मेरे प्रिय आत्मन्!

अंधकार का अपना आनंद है, लेकिन प्रकाश की हमारी चाह क्यों? प्रकाश के लिए हम इतने पीड़ित क्यों? यह शायद ही आपने सोचा हो कि प्रकाश के लिए हमारी चाह हमारे भीतर बैठे हुए भय का प्रतीक है। फियर का प्रतीक है।

हम प्रकाश इसलिए चाहते हैं, ताकि हम निर्भय हो सकें। अंधकार में मन भयभीत हो जाता है। प्रकाश की चाह कोई बहुत बड़ा गुण नहीं। सिर्फ अंतरात्मा में छाए हुए भय का सबूत है। भयभीत आदमी प्रकाश चाहता है। और जो अभय है, उसे अंधकार भी अंधकार नहीं रह जाता। अंधकार की जो पीड़ा है, जो द्वंद्व है, वह भय के कारण है। और जिस दिन मनुष्य निर्भय हो जाएगा, उस दिन प्रकाश की यह चाह भी विलीन हो जाएगी। Continue reading “जीवन संगीत-(प्रवचन–01)”

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