जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-19)

अज्ञात अपरिचित गहराइयों में–(प्रवचन–उन्‍नीसवां)

तेरहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

शरीर : मन का अनुगामी:

प्रश्न: ओशो नारगोल शिविर में आपने कहा कि योग के आसन प्राणायाम मुद्रा और बंध का आविष्कार ध्यान की अवस्थाओं में हुआ तथा ध्यान की विभिन्न अवस्थाओं में विभित्र आसन व मुद्राएं बन जाती हैं जिन्हें देखकर साधक की स्थिति बताई जा सकती है। इसके उलटे यदि वे आसन व मुद्राएं सीधे की जाएं तो ध्यान की वही भावदशा बन सकती है। तब क्या आसन प्राणायाम मुद्रा और बंधों के अभ्यास से ध्यान उपलब्ध हो सकता है? ध्यान साधना में उनका क्या महत्व और उपयोग है? Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-19)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-18)

तंत्र के गुह्य आयामों में—(प्रवचन—अट्ठाहरवां)

बारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

 भीतर के पुरुष अथवा स्त्री से मिलन:

प्रश्न: ओशो कल की चर्चा के अंतिम हिस्से में आपने कहा कि बुद्ध सातवें शरीर में महापरिनिर्वाण को उपलब्ध हुए। लेकिन अपने एक प्रवचन में आपने कहा है कि बुद्ध का एक और पुनर्जन्म मनुष्य शरीर में मैत्रेय के नाम से होनेवाला है। तो निर्वाण काया में चले जाने के बाद पुन मनुष्य शरीर लेना कैसे संभव होगा इसे संक्षिप्त में स्पष्ट करने की कृपा करें।

सको छोड़ो, पीछे लेना, तुम्हारे पूरे नहीं हो पाएंगे नहीं तो। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-18)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-17)

मनस से महाशून्य तक—(प्रवचन—सतहरवां)

(ग्यारहवीं प्रश्नोत्तर चर्चा)

कुंडलिनी जागरण के लिए प्रथम तीन शरीरों में सामंजस्य आवश्यक:

प्रश्न ओशो कल की चर्चा में आपने अविकसित प्रथम तीन शरीरों के ऊपर होनेवाले शक्तिपात या कुंडलिनी जागरण के प्रभाव की बात की। दूसरे और तीसरे शरीर के अविकसित होने पर कैसा प्रभाव होगा इस पर कुछ और प्रकाश डालने की कृपा करें भ्यसाथ हत्ती यह भी बताएं कि प्रथम तीन शरीर— फिजिकल ईथरिक और एस्ट्रल बॉडी को विकसित करने के लिए साधक इस संबंध में पहली बात तो यह समझने की है कि पहले, दूसरे और तीसरे शरीरों में सामंजस्य, हार्मनी होनी जरूरी है। ये तीनों शरीर अगर आपस में एक मैत्रीपूर्ण संबंध में नहीं हैं, तो कुंडलिनी जागरण हानिकर हो सकता है। और इन तीनों के सामंजस्य में, संगीत में होने के लिए दो—तीन बातें आवश्यक हैं। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-17)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-16)

ओम् साध्य है, साधन नहीं—(प्रवचन—सौहलवां)

(दसवीं प्रश्नोत्तर चर्चा)

प्रश्न: ओशो कल सातवें शरीर के संदर्भ में ओम् पर कुछ आपने बातें की। इसी संबंध में एक छोटा सा प्रश्न यह है कि अर ऊ और म के कंपन किन चक्रों को प्रभावित करते हैं और उनका साधक के लिए उपयोग क्या हो सकता है? इन चक्रों के प्रभाव से सातवें चक्र का क्या संबंध है?

ओम् के संबंध में थोड़ी सी बातें कल मैंने आपसे कहीं। उस संबंध में थोड़ी सी और बातें जानने जैसी हैं। एक तो यह कि ओम् सातवीं अवस्था का प्रतीक है, सूचक है, वह उसकी खबर देनेवाला है। ओम् प्रतीक है सातवीं अवस्था का। सातवीं अवस्था किसी भी शब्द से नहीं कही जा सकती। कोई सार्थक शब्द उस संबंध में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए एक निरर्थक शब्द खोजा गया, जिसमें कोई अर्थ नहीं है। यह मैंने कल आपसे कहा। इस शब्द की खोज भी चौथे शरीर के अनुभव पर हुई है। यह शब्द भी साधारण खोज नहीं है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-16)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-15)

धर्म के असीम रहस्य सागर में—(प्रवचन—पंद्रहवां)

(नौवीं प्रश्नोत्तर चर्चा)

धर्म और विज्ञान के भिन्न दृष्टिकोण:

प्रश्न : ओशो कल की चर्चा में आपने कहा कि विज्ञान का प्रवेश पांचवें शरीर स्पूचुअल बॉडी तक संभव है। बाद में चौथे शरीर में विज्ञान की संभावनाओं पर चर्चा की। आज कृपया पांचवें शरीर में हो सकने वाली कुछ वैज्ञानिक संभावनाओं पर संक्षिप्त में प्रकाश डालें।

क तो जिसे हम शरीर कहते हैं और जिसे हम आत्मा कहते हैं, ये ऐसी दो चीजें नहीं हैं कि जिनके बीच सेतु न बनता हो, ब्रिज न बनता हो। इनके बीच कोई खाई नहीं है, इनके बीच जोड़ है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-15)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-14)

सात शरीर और सात चक्र—(प्रवचन—चौहदवां)

आठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

साधक की बाधाएं:

प्रश्न: ओशो कल की चर्चा में आपने कहा कि साधक को पात्र बनने की पहले फिकर करनी चाहिए जगह— जगह मांगने नहीं जाना चाहिए। लेकिन साधक अर्थात खोजी का अर्थ ही है कि उसे साधना में बाधाएं हैं। उसे पता नहीं है कि कैसे पात्र बने कैसे तैयारी करे। तो वह मांगने न जाए तो क्या करे? सही मार्गदर्शक से मिलना कितना मुश्किल से हो पाता है।

लेकिन खोजना और मांगना दो अलग बातें हैं। असल में, जो खोजना नहीं चाहता वही मांगता है। खोजना और मांगना एक तो हैं ही नहीं, विपरीत बातें हैं। खोजने से जो बचना चाहता है वह मांगता है, खोजी कभी नहीं मांगता। और खोज और मांगने की प्रक्रिया बिलकुल अलग है। मांगने में दूसरे पर ध्यान रखना पड़ेगा—जिससे मिलेगा। और खोजने में अपने पर ध्यान रखना पड़ेगा—जिसको मिलेगा। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-14)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-13)

सात शरीरों से गुजरती कुंडलिनी—(प्रवचन—तैहरवां)

सातवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

मनुष्य के सात शरीर:

प्रश्न: ओशो कल की चर्चा में आपने कहा कि कुंडलिनी के झूठे अनुभव भी प्रोजेक्ट किए जा सकते हैं— जिन्हें आप आध्यात्मिक अनुभव नहीं मानते हैं मानसिक मानते हैं। लेकिन प्रारंभिक चर्चा में आपने कहा था कि कुंडलिनी मात्र साइकिक है। इसका ऐसा अर्थ हुआ कि आप कुंडलिनी की दो प्रकार की स्थितियां मानते हैं— मानसिक और आध्यात्मिक। कृपया इस स्थिति को स्‍पष्‍ट करें।

सल में, आदमी के पास सात प्रकार के शरीर हैं। एक शरीर तो जो हमें दिखाई पड़ता है—फिजिकल बॉडी, भौतिक शरीर। दूसरा शरीर जो उसके पीछे है और जिसे ईथरिक बॉडी कहें— आकाश शरीर। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-13)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-12)

सतत साधना : न कहीं रुकना, न कहीं बंधना—(प्रवचन—बाहरवां)

छठवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

प्रश्न: ओशो आपने पिछली एक चर्चा में कहा कि सीधे अचानक प्रसाद के उपलब्ध होने पर कभी— कभी दुर्घटना भी घटित हो सकती है और व्यक्ति क्षतिग्रस्त तथा पागल भी हो सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है। तो सहज ही प्रश्न उठता है कि क्या प्रसाद हमेशा ही कल्याणकारी नहीं होता है? और क्या वह स्व— संतुलन नहीं रखता है? दुर्घटना का यह भी अर्थ होता है कि व्यक्ति अपात्र था। तो अपात्र पर कृपा कैसे हो सकती है?

 दो—तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं। एक तो प्रभु कोई व्यक्ति नहीं है, शक्ति है। और शक्ति का अर्थ हुआ कि एक—एक व्यक्ति का विचार करके कोई घटना वहां से नहीं घटती है। जैसे नदी बह रही है। किनारे जो दरख्त होंगे, उनकी जड़ें मजबूत हो जाएंगी; उनमें फूल लगेंगे, फल आएंगे। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-12)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-11)

मुक्ति सोपान की सीढियां—(प्रवचन—ग्‍याहरवां)

पांचवीं प्रश्नोत्तर चर्चा:

शक्तिपात और प्रसाद:

प्रश्न: ओशो आपने नारगोल शिविर में कहा कि शक्तिपात का अर्थ है— परमात्मा की शक्ति आप में उतर गई। बाद की चर्चा में आपने कहा कि शक्तिपात और ग्रेस में फर्क है। इन दोनों बातों में विरोधाभास सा लगता है। कृपया इसे समझाएं।

दोनों में थोड़ा फर्क है, और दोनों में थोड़ी समानता भी है। असल में, दोनों के क्षेत्र एक—दूसरे पर प्रवेश कर जाते हैं। शक्तिपात परमात्मा की ही शक्ति है। असल बात तो यह है कि उसके अलावा और किसी की शक्ति ही नहीं है। लेकिन शक्तिपात में कोई व्यक्ति माध्यम की तरह काम करता है। अंततः तो वह भी परमात्मा है। लेकिन प्रारंभिक रूप से कोई व्यक्ति माध्यम की तरह काम करता है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-11)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-10)

आंतरिक रूपांतरण के तथ्य—(प्रवचन—दसवां)

चौथी प्रश्नोत्तर चर्चा

प्रश्न : ओशो कल की चर्चा में आपने कहा कि शक्ति का कुंड प्रत्येक व्यक्ति का अलग— अलग नहीं है लेकिन कुंडलिनी जागरण में तो साधक के शरीर में स्थित कुंड से ही शक्ति ऊपर उठती है। तो क्या कुंड अलग— अलग हैं या कुंड एक ही है इस इस स्थिति को कृपया समझाएं।

सा है, जैसे एक कुएं से तुम पानी भरो। तो तुम्हारे घर का कुआं अलग है, मेरे घर का कुआं अलग है, लेकिन फिर भी कुएं के भीतर के जो झरने हैं वे सब एक ही सागर से जुड़े हैं। तो अगर तुम अपने कुएं के ही झरने की धारा को पकड़कर खोदते ही चले जाओ, तो उस मार्ग में मेरे घर का कुआं भी पड़ेगा, औरों के घर के कुएं भी पड़ेंगे, और एक दिन तुम वहां पहुंच जाओगे जहां कुआं नहीं, सागर ही होगा। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-10)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-09)

श्वास की कीमिया—(प्रवचन—नौवां)

तीसरी प्रश्नोत्तर चर्चा

प्रश्न :  ओशो रूस के बहुत बड़े अध्यात्मविद् और मिस्टिक जॉर्ज गुरजिएफ ने अपनी आध्यात्मिक खोज— यात्रा के संस्मरण ‘मीटिंग्स विद दि रिमार्केबल मेन’ नामक पुस्तक में लिखे हैं। एक दरवेश फकीर से उनकी काफी चर्चा भोजन को चबाने के संबंध में तथा योग के प्राणायाम व आसनों के संबंध में हुई जिससे वे बड़े प्रभावित भी हुए। दरवेश ने उन्हें कहा कि भोजन को कम चबाना चाहिए कभी— कभी थी सहित भी निगल जाना चाहिए; इससे पेट शक्तिशाली होता है। इसके साथ ही दरवेश ने उन्हें किसी भी प्रकार के श्वास के अभ्यास को न करने का सुझाव दिया। दरवेश का कहना था कि प्राकृतिक श्वास—प्रणाली में कुछ भी परिवर्तन करने से सारा व्यक्तित्व अस्तव्यस्त हो जाता है और उसके घातक परिणाम होते हैं इस संबंध में आपका क्या मत है?

 इसमें पहली बात तो यह है कि यह तो ठीक है कि अगर भोजन चबाया न जाए, तो पेट शक्तिशाली हो जाएगा। और जो काम मुंह से कर रहे हैं वह काम भी पेट करने लगेगा। लेकिन इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-09)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-08)

यात्रा: दृश्य से अदृश्य की और—(प्रवचन—आठवां)

दूसरी प्रश्नोत्तर चर्चा:

प्रश्न : ओशो आपने नारगोल शिविर में कहा है कि कुंडलिनी साधना शरीर की तैयारी है। कृपया इसका अर्थ स्पष्ट समझाएं।

हली बात तो यह शरीर और आत्मा बहुत गहरे में दो नहीं हैं; उनका भेद भी बहुत ऊपर है। और जिस दिन दिखाई पड़ता है पूरा सत्य, उस दिन ऐसा दिखाई नहीं पड़ता कि शरीर और आत्मा अलग—अलग हैं, उस दिन ऐसा ही दिखाई पड़ता है कि शरीर आत्मा का वह हिस्सा है जो इंद्रियों की पकड़ में आ जाता है और आत्मा शरीर का वह हिस्सा है जो इंद्रियों की पकड़ के बाहर रह जाता है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-08)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-07)

कुंडलिनी जागरण व शक्तिपात—(प्रवचन—सातवां)

पहली प्रश्नोत्तर चर्चा:   ताओ—मूल स्वभाव:

प्रश्न:

ओशो ताओ को आज तक सही तौर से समझाया नहीं गया है। या तो विनोबा भावे ने ट्राई किया या फारेनर्स ने ट्राई किया या हमारे एक बहुत बड़े विद्वान मनोहरलाल जी ने ट्राई किया लेकिन ताओ को या तो वे समझा नहीं पाए या मैं नहीं समझ पाया। क्योंकि यह एक बहुत बड़ा गंभीर विषय है।

ताओ का पहले तो अर्थ समझ लेना चाहिए। ताओ का मूल रूप से यही अर्थ होता है, जो धर्म का होता है। धर्म का मतलब है स्वभाव।  जैसे आग जलाती है, यह उसका धर्म हुआ। हवा दिखाई नहीं पड़ती है, अदृश्य है, यह उसका स्वभाव है, यह उसका धर्म है। मनुष्य को छोड्कर सारा जगत धर्म के भीतर है। अपने स्वभाव के बाहर नहीं जाता। मनुष्य को छोड्कर जगत में, सभी कुछ स्वभाव के भीतर गति करता है। स्वभाव के बाहर कुछ भी गति नहीं करता। अगर हम मनुष्य को हटा दें तो स्वभाव ही शेष रह जाता है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-07)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-06)

गहरे पानी पैठ—(प्रवचन—छठवां)

(समापन प्रवचन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

तीन दिनों में बहुत से प्रश्न इकट्ठे हो गए हैं और इसलिए आज बहुत संक्षिप्त में जितने ज्यादा प्रश्नों पर बात हो सके, मैं करना चाहूंगा।

कितनी प्यास?

एक मित्र ने पूछा है कि ओशो विवेकानंद ने रामकृष्ण से पूछा कि क्या आपने ईश्वर देखा है? तो रामकृष्ण ने कहा लूं जैसा मैं तुम्हें देख रहा हूं ऐसा ही मैने परमात्मा को भी देखा है। तो वे मित्र पूछते हैं कि जैसा विवेकानंद ने रामकृष्ण से पूछा क्या हम भी वैसा आपसे पूछ सकते हैं?

 पहली तो बात यह, विवेकानंद ने रामकृष्ण से पूछते समय यह नहीं पूछा कि हम आपसे पूछ सकते हैं या नहीं पूछ सकते हैं। विवेकानंद ने पूछ ही लिया। और आप पूछ नहीं रहे हैं, पूछ सकते हैं या नहीं पूछ सकते हैं, यह पूछ रहे हैं। विवेकानंद चाहिए वैसा प्रश्न पूछनेवाला। और वैसा उत्तर रामकृष्ण किसी दूसरे को न देते। यह ध्यान रहे, रामकृष्ण ने जो उत्तर दिया है वह विवेकानंद को दिया है, वह किसी दूसरे को न दिया जाता। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-06)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-05)

कुंडलिनी, शक्तिपात व प्रभु प्रसाद—(प्रवचन—पांचवां)

अंतिम ध्यान प्रयोग

मेरे प्रिय आत्मन्!

हुत आशा और संकल्प से भर कर आज का प्रयोग करें। जानें कि होगा ही। जैसे सूर्य निकला है, ऐसे ही भीतर भी प्रकाश फैलेगा। जैसे सुबह फूल खिले हैं, ऐसे ही आनंद के फूल भीतर भी खिलेंगे। पूरी आशा से जो चलता है वह पहुंच जाता है, और जो पूरी प्यास से पुकारता है उसे मिल जाता है।

जो मित्र खड़े हो सकते हों, वे खड़े होकर ही प्रयोग को करेंगे। जो मित्र खड़े हैं, उनके आसपास जो लोग बैठे हैं, वे थोड़ा हट जाएंगे.. .कोई गिरे तो किसी के ऊपर न गिर जाए। खड़े होने पर बहुत जोर से क्रिया होगी—शरीर पूरा नाचने लगेगा आनंदमग्न होकर। इसलिए पास कोई बैठा हो, वह हट जाए। जो मित्र खड़े हैं, उनके आसपास थोड़ी जगह छोड़ दें—शीघ्रता से। और पूरा साहस करना है, जरा भी अपने भीतर कोई कमी नहीं छोड देनी है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-05)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-04)

ध्‍यान पंथ ऐसो कठिन—(प्रवचन—चौथा)

प्रभु—कृपा और साधक का प्रयास

मेरे प्रिय आत्मन्!

 एक मित्र ने पूछा है कि ओशो क्या ध्यान प्रभु की कृपा से उपलब्ध होता है?

 इस बात को थोड़ा समझना उपयोगी है। इस बात से बहुत भूल भी हुई है। न मालूम कितने लोग यह सोचकर बैठ गए हैं कि प्रभु की कृपा से उपलब्ध होगा तो हमें कुछ भी नहीं करना है। यदि प्रभु—कृपा का ऐसा अर्थ लेते हैं कि आपको कुछ भी नहीं करना है, तो आप बड़ी भ्रांति में हैं। दूसरी और भी इसमें भांति है कि प्रभु की कृपा सबके ऊपर समान नहीं है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-04)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-03)

ध्यान है महामृत्यु—(प्रवचन—तीसरा)

(कुंडलिनी—योग साधना शिविर)   नारगोल

 महामृत्यु : द्वार अमृत का:

प्रश्‍न:

एक मित्र पूछ रहे हैं कि ओशो कुंडलिनी जागरण में खतरा है तो कौन सा खतरा है? और यदि खतरा है तो फिर उसे जाग्रत ही क्यों किया जाए?

तरा तो बहुत है। असल में, जिसे हमने जीवन समझ रखा है, उस पूरे जीवन को ही खोने का खतरा है। जैसे हम हैं, वैसे ही हम कुंडलिनी जाग्रत होने पर न रह जाएंगे; सब कुछ बदलेगा—सब कुछ—हमारे संबंध, हमारी वृत्तियां, हमारा संसार; हमने कल तक जो जाना था वह सब बदलेगा। उस सबके बदलने का ही खतरा है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-03)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-02)

बुंद समानी समुंद में—(प्रवचन—दूसरा)

(कुंडलिनी—योग साधना शिविर)   नारगोल

मेरे प्रिय आत्मन्!

र्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत—चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत—अनंत रूपों में प्रगटन है।

 ऊर्जामय विराट जीवन:

हम कहां शुरू होते हैं और कहां समाप्त होते हैं, कहना मुश्किल है। Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-02)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-01)

यात्रा कुंडलिनी की (साधना शिविर)—(प्रवचन—पहला)

मेरे प्रिय आत्मन्,

मुझे पता नहीं कि आप किस लिए यहां आए हैं। शायद आपको भी ठीक से पता न हो, क्योंकि हम सारे लोग जिंदगी में इस भांति ही जीते हैं कि हमें यह भी पता नहीं होता कि क्यों जी रहे हैं, यह भी पता नहीं होता कि कहां जा रहे हैं, और यह भी पता नहीं होता कि क्यों जा रहे हैं।

 मूर्च्छा और जागरण:

जिंदगी ही जब बिना पूछे बीत जाती हो तो आश्चर्य नहीं होगा कि आपमें से बहुत लोग बिना पूछे यहां आ गए हों कि क्यों जा रहे हैं। शायद कुछ लोग जानकर आए हों, संभावना बहुत कम है। हम सब ऐसी मूर्च्छा में चलते हैं, Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(प्रवचन-01)”

जिन खोजा तिन पाइयां-(ओशो)

जिन खोजा तिन पाइयां–ओशो

(कुंडलिनी—योग पर साधना—शिविर, नारगोल में ध्‍यान—प्रयोगों के साथ प्रवचन एवं मुंबई में प्रश्‍नोत्‍तर चर्चाओं सहित उन्‍नीस ओशो—प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)

भूमिका:

(मनुष्य का विज्ञान)

सुनता हूं कि मनुष्य का मार्ग खो गया है। यह सत्य है। मनुष्य का मार्ग उसी दिन खो गया, जिस दिन उसने स्वयं को खोजने से भी ज्यादा मूल्यवान किन्हीं और खोजों को मान लिया।
मनुष्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सार्थक वस्तु मनुष्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। उसकी पहली खोज वह स्वयं ही हो सकता है। खुद को जाने बिना उसका सारा जानना अंतत: घातक ही होगा। अज्ञान के हाथों में कोई भी शान सृजनात्मक नहीं हो सकता, और जान के हाथों में अज्ञान भी सृजनात्मक हो जाता है।

Continue reading “जिन खोजा तिन पाइयां-(ओशो)”

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