नये भारत की खोज-(आठवां प्रवचन)
अच्छे लोग और अहित
प्रश्नकर्ताः आप जो विस्फोटक बातें देश के जीवन और गांधी जी के संबंध में कह रहे हैं, उससे तो लोग आपसे दूर चले जाएंगे।
उत्तरः मैं इसके लिए जरा भी ध्यान नहीं रखता हूं कि लोग मेरे करीब आएंगे या मुझसे दूर जाएंगे। वह मेरा प्रयोजन भी नहीं है। जो ठीक है और सच है, उतना ही मैं कहना चाहता हूं। सत्य का क्या परिणाम होगा, इसकी मुझे जरा भी चिंता नहीं है। अगर वह सत्य है तो लोगों को उसके साथ आना पडेगा, चाहे वह आज दूर जाते हुए मालूम पडे। और लोग पास आएं इसलिए मैं असत्य नहीं बोल सकता हूं। फिर, सत्य जब भी बोला जाएगा, तभी प्राथमिक परिणाम उसका यही होगा कि लोग भागेंगे। क्योंकि हजारों वर्ष से जिस धारणा में वे पले हैं, उस पर चोट पडेगी। सत्य का हमेशा ही यही परिणाम हुआ है। सत्य हमेशा डेवेस्टेटिंग है, एक अर्थों में..कि वह जो हमारी धारणा है, उसको तो तोड डालो। और अगर धारणा तोडने से हम बचना चाहें, तो हम सत्य नहीं बोल सकते। जान कर मैं किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाह रहा हूं, डेलिब्रेटलि मैं किसी को चोट पहुंचाना नहीं चाहता हूं। लेकिन सत्य जितनी चोट पहुंचाता है, उसमें मैं असमर्थ हूं, उतनी चोट पहुंचेगी; उसको बचा भी नहीं सकता। फिर मैं कोई राजनितिक नेता नहीं हूं कि इसकी फिकर करूं कि लोग मेरे पास आएं। कि मैं इसकी फिकर करूं कि पब्लिक ओपीनियन क्या है? Continue reading “नये भारत की खोज-(प्रवचन-08)”