राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-10)

संन्‍यास है : मैं से मुक्‍ति—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक 10 दिसम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रमश्‍ पूना।

प्रश्‍नसार:

प्रश्‍न–01 भगवान:

एक गीत और मुझे गाना है

एक छन्द और गुनगुनाना है

गीत तो वही है जो हुलस—हुलस

अपने ही कण्ठों ने गाये हों

भाव तो वही है जो उमग—उमग

अपने ही प्राणों से आये हों Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-10)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-09)

दास मलूका यों कहै—(प्रवचन—नौवां)

दिनांक 9 दिसम्‍बर 1979

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सूत्र:

मलूका सोइ पीर है, जो जानै पर—पीर।

जो पर—पीर न जानही, सो काफिर बेपीर।।

जहां—जहां बच्छा फिरै, तहांत्तहां फिरै गाय।

कह मलूक जहं संतजन, तहां रमैया जाय।।

कह मलूक हम जबहिं तें लीन्ही हरि की ओट।

सोवत हैं सुखनींद भरि, डारि भरम की पोट।। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-09)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-08)

प्रभु, मुझ पर अनुकम्‍पा करें—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक 18 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

प्रश्‍न—01 भगवान! यह जो मेरा जन्मों—जन्मों का अहंकार है, वही शायद आपके और मेरे बीच बड़ी बाधा है। यही अहंकार मुझे आपके चरणों में झुकने नहीं देता, मिटने नहीं देता

प्रश्‍न—02 भगवान, मैं धनी होना चाहता हूं, बड़ा पद भी पाना चाहता हूं, सुंदर स्त्री भी। मैं क्या करूं?

प्रश्‍न—03 भगवान, क्या सच ही सभी धार्मिक क्रिया—कांड व्यर्थ हैं? Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-08)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-07)

अब मैं अनुभव पदहिं समाना—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 17 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम पूना।

 सूत्र:

अब मैं अनुभव पदहिं समाना।।

सब देवन को भर्म भुलाना, अविगति हाथ बिकाना।

पहला पद है देई—देवा, दूजा नेम—अचारा।।

तीजे पद में सब जग बंधा, चौथा अपरंपारा।।

सुन्न महल में महल हमारा, निरगुन सेज बिछाई।

चेला गुरु दोउ सैन करत हैं, बड़ी असाइस पाई।। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-07)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-06)

मुरदे—मुरदे लड़ि मरे—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक 16 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार:

प्रश्‍न–01 भगवान, कहते हैं कि अस्तित्व में कुछ भी निष्प्रयोजन नहीं है। यदि ऐसा है तो मनुष्य के जीवन में अहंकार, ईष्या और घृणा का क्या प्रयोजन है? क्या इनके बिना जीवन नहीं चल सकता?

प्रश्‍न—02 भगवान, पहली ही बार आया हूं। जहां देखता हूं, चारों ओर आंखों में बहुत ही अद्भुत शांति नजर आ रही है। ऐसा लगता है कि फरिश्तों की नगरी में आ गया हूं।

प्रश्‍न–03 भगवान, मैं अपने को बड़ा ज्ञानी समझता था, पर आपने मेरे ज्ञान के टुकड़े—टुकड़े कर रख दिए। अब आगे क्या मर्जी है? Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-06)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-05)

चरण गहो जाय साध के—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 15 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सूत्र:

गर्व न कीजे बावरे, हरि गर्वप्रहारी।

गर्वहिं ते रावन गया, पाया दुख भारी।।

जरन खुदी रघुनाथ के मन नाहिं सोहाती।

जाके जिय अभिमान है, ताकी तोरत छाती।।

एक दया औ दीनता, ले रहिए भाई।

चरन गहो जाय साध के, रीझैं रघुराई।। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-05)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-04)

भौर कब होगी?—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक 14 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार:

प्रश्‍न—01 भगवान, वर्षो की अभिलाषा लेकर दर्शन हेतु गत वर्ष मैं आश्रम आया था। प्रातःसमय प्रवचन में दर्शन के बाद मेरे अंदर नजदीक से दर्शन करने की प्रबल आकांक्षा जाग्रत हुई। इसके लिए बस एक ही उपाय था कि मैं झूठ बोलूं कि मुझे संन्यास लेना है। तभी निकटता प्राप्त हो सकती थी। और वही मैंने किया। यहां तक कि आपने भी पूछा कि ध्यान करते हो, तो मैं झूठ ही बोला था कि हां, सक्रिय ध्यान करता हूं।………

 प्रश्‍न—02 भगवान, भोर कब होगी? Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-04)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-03)

अंत एक दिन मरौगे रे—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 13 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सूत्र:

सोई सहर सुबह बसे, जहं हरि के दासा।

दरस किए सुख पाइए, पूजै मन आसा।।

साकट के घर साधजन, सुपनैं नहिं जाहीं।

तेइत्तेइ नगर उजाड़ हैं, जहं साधू नाहीं।।

मूरत पूजैं बहुत मति, नित नाम पुकारैं।

कोटि कसाई तुल्य हैं, जो आतम मारैं।। 

परदुःख—दुखिया भक्त है, सो रामहिं प्यारा। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-03)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-02)

तुम अभी थे यहां—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 12 नवम्‍बर 1979;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार:

01-भगवान!

तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां।

तुम्हारी सांसों की गंध इन हवाओं में है।

प्यारे कदमों की आहट फिजाओं में है।

तुम्हें देखा किए ये जमीं—आसमां

तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां।

तुम्हें देखा तो सांसें रुकी ही रहीं

मेरे मालिक! ये आंखें झुकीं ही नहीं,

होश आते ही तुम छुप गए हो कहां!

तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-02)”

राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-01)

गुरु मारैं प्रेम का बान—(प्रवचन—पहला)

दिनांक 11 नवम्‍बर1979श्री रजनीश आश्रम पूना।

सूत्र:

अब तेरी शरण आयो राम।।

जबै सुनिया साध के मुख, पतितपावन नाम।।

यही जान पुकार कीन्ही, अति सतायो काम।।

विषय सेती भयो आजिज, कह मलूक गुलाम।। 

सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है।

जहंवां सुमिरन होय, धन्य सो ठाम है।।

सांचा तेरा भक्त, जो तुझको जानता।

तीन लोक को राज, मनैं नहिं आनता।। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै-(प्रवचन-01)”

राम दुवारे जो मरैै (मलूक वाणी)-ओशो

राम दुवारे जो मरैै (मलूक वाणी)

(बाबा मलूकदास की अमृत वाणी पर बोलेेओर के दस दूलर्भ प्रवचन का संकलन जो 18-11-1979 से 10-12-1979 तक पूना आश्रम में)

लूकदास न तो कवि है, न दाशीनिक है, न धर्मशास्‍त्री है—दीवाने है, परवाने है। और परमात्‍मा को उन्‍होंने ऐसे जाना है, जैसे परवाना शमा को जानता है। वह पहचान बड़ी और है। दूर—दूर से नहीं, परिचय मात्र नहीं है वह पहचान है। अपने को गंवा कर, अपने को मिटाकर होती है।

राम दूवारे जो मरे। Continue reading “राम दुवारे जो मरैै (मलूक वाणी)-ओशो”

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