क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन–(प्रेम की भाषा)

ईश्वर मर गया है। कैसे पुनरुज्जीवित हो सकता है, इस संबंध में पिछले तीन दिनों में थोड़ी-सी बात मैंने आपसे कही। उस बारे में बहुत से प्रश्न यहां आए हैं। उनमें से थोड़े-से प्रश्नों का, जो कि सभी प्रश्नों के प्रतिनिधि प्रश्न हैं, मैं आपको उत्तर दूंगा।

सबसे पहले तो बहुत-से मित्रों ने यह पूछा है–यह बात सुनकर कि ईश्वर मर गया है, हमें बहुत दुख हुआ है?

आपको दुख हुआ इस बात से, मुझे बहुत खुशी हुई है, क्योंकि मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं, जिनसे मैंने कहा कि ईश्वर मर गया है तो उन्होंने कहा, मर जाने दो, हर्जा क्या है? मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूं जिनसे मैंने कहा कि ईश्वर मर गया है तो उन्होंने कहा–ईश्वरलाल ठेकेदार? अच्छा आदमी था बेचारा, कैसे मर गया? Continue reading “क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-04)”

क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन–(ज्ञान की पहली किरण)

आज की चर्चा मैं एक छोटी-सी घटना से प्रारंभ करूंगा। एक सराय में मुझे ठहरना था। सराय में बहुत-से लोग ठहरे थे, जगह भी न थी। फिर भी मुझे एक कमरा मिल गया। आधी रात गए, वहां मैं आ गया।

हमेशा ही सभी सरायों  में ऐसे मेहमान आ जाते हैं। इसलिए कोई जगह नहीं होती, लेकिन फिर जगह बनानी पड़ती है। मैं जिस कमरे में था, उस कमरे में ही नए मेहमान को, लाकर ठहरा दिया गया था। कमरा छोटा था और मेहमान ज्यादा हो गए। लेकिन देख कर मैं हैरान हो गया। आधी रात हो गई थी, वह थका हुआ मेहमान, अपनी पगड़ी भी उसने अलग नहीं की, अपने जूते भी नहीं खोले और बिस्तर पर लेट गया, फिर वह करवटें बदलने लगा। फिर भी उसे नींद आने की संभावना मुझे नहीं दिखाई पड़ी तो मैंने उससे पूछा–मित्र! क्या उचित नहीं होगा कि तुम अपने कपड़े उतार दो पगड़ी और जूते अलग कर दो, ताकि आराम से सो सको? Continue reading “क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-03)”

क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन–(जो मिटेगा, वही पायेगा)

कल संध्या एक बात मैंने आपसे कही थी। उस संबंध में बहुत-से प्रश्न उपस्थित हुए हैं। मैंने कल आपको कहा कि ईश्वर मर गया है और वह घटना सौभाग्यपूर्ण है, क्योंकि जो ईश्वर मर गया है, वह ईश्वर ही नहीं था। जो मर सकता है, वह ईश्वर ही नहीं है। जो अविरत है। सदा है और शाश्वत है, वही ईश्वर है। उस शाश्वत ईश्वर को जानने के लिए, मनुष्य को स्वयं ही मिटना पड़ता है, ईश्वर को बनाना नहीं पड़ता है। उस शाश्वत ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य को ईश्वर निर्मित नहीं करना होता है, वरन स्वयं को ही प्रेरणा देनी होती है और स्वयं को मिटा देना होता है। मनुष्य मिटता है तो ईश्वर उपलब्ध होता है। मनुष्य जब स्वयं को खोता है तो परमात्मा को पाता है। जो ईश्वर मर गया है, वह मनुष्य के द्वारा निर्मित ईश्वर था। मनुष्य ने जिसे बनाया है, वह मिटेगा। उस अनबनाए को, अनिक्रियेटेड को जानना है, जो कि नहीं मिटता है तो मनुष्य को स्वयं को खोना जरूरी है। Continue reading “क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-02)”

क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-01)

क्या ईश्वर मर गया है-(पहला-प्रवचन)

जो मर जाए वह ईश्वर ही नहीं

एक छोटी सी कहानी से मैं आज की चर्चा प्रारंभ करना  चाहूंगा।

एक सुबह की बात है।

एक पहाड़ से एक व्यक्ति गीत गाता हुआ नीचे उतर रहा था। उसकी आंखों में किसी बात को खोज लेने का प्रकाश था। उसके हृदय में किसी सत्य को जान लेने की खुशी थी। उसके कदमों में उस सत्य को दूसरे लोगों तक पहुंचा देने की गति थी। वह बहुत उत्साह और आनंद से भरा हुआ प्रतीत हो रहा था।

अकेला था वह पहाड़ के रास्ते पर और नीचे मैदान की ओर उतर रहा था। बीच में उसे एक बूढ़ा आदमी मिला, जो पहाड़ की तरफ, ऊपर को चढ़ रहा था। Continue reading “क्या ईश्वर मर गया है?-(प्रवचन-01)”

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