राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-10)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मनुष्य बीज है भगवत्ता का—प्रवचन-दसवां

प्रश्न-सार:

1—शतपथ ब्राह्मण में एक प्रश्न है: को वेद मनुष्यस्य? मनुष्य को कौन जानता है?

क्या मनुष्य इतना जटिल और रहस्यपूर्ण है कि उसे कोई नहीं जान सकता है?

2—आप कितनी करुणावश बोल रहे हैं! उसे इस देश के लोग नहीं समझते और क्रुद्ध होते हैं। क्या आप इतना जोखिम लिए बगैर अपना कार्य नहीं संपन्न कर सकते? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-10)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-09)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

अनुशासन नहीं—स्वतंत्रता-प्रवचन-नौवां

प्रश्न-सार

1—अतीत के बुद्धों ने सोए हुए लोगों के लिए भी कुछ अनुशासन बताए, जो अब समय-बाह्य हो गए हैं। उनके लिए आप क्या अनुशासन देंगे?

2—अशनाया वै पात्मामतिः। अर्थात भूख ही सब पापों की जड़ है, वही बुद्धि को भ्रष्ट करती है।

एतरेय ब्राह्मण के इस सूत्र को समझने वाले लोग दरिद्रता को कब और क्यों आदर देने लगे? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-09)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-08)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

जीवन का शंखनाद—प्रवचन-आठवां

प्रश्न-सार

1—देवता परोक्ष से प्रेम करते हैं, प्रत्यक्ष से द्वेष।

गोपथ ब्राह्मण के इस सूत्र को खोलने की अनुकंपा करें।

2—आपके आश्रम में क्या एक नये प्रकार की वर्ण-व्यवस्था, एक नये प्रकार की आश्रम-व्यवस्था नहीं है? क्या आप महर्षि मनु की वैज्ञानिक व्यवस्था और आश्रम-व्यवस्था को गलत सिद्ध कर सकते हैं? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-08)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-07)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

धर्म-अधर्म के पार : कोरा आकाश—प्रवचन-सातवां

प्रश्न-सार-

1—आपने अपने संन्यासियों के लिए एक से एक सुंदर नाम चुने हैं। लेकिन पिछले दिन मैं एक नाम देख कर चकित रह गया–स्वामी वीत धर्म। क्या धर्म का भी अतिक्रमण करना है? यदि हां, तो कृपया बताएं कि उसके पार क्या है?

2—आप कहते हैं कि जगत सत्य है, जीवन सत्य है; उन्हें स्वीकार कर अहोभाव के साथ जीओ। लेकिन भौतिकवादी तो यही मान कर जी रहे हैं, लेकिन उनके जीवन में भी उत्सव कहां है? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-07)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-06)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मेरा एकमात्र प्रयोजन : तुम जागो-प्रवचन-छटवां

प्रश्न-सार:

1—यजुर्वेद का सूत्र है: व्रत से दीक्षा, दीक्षा से दक्षिणा, दक्षिणा से श्रद्धा और श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है।

सत्य-प्राप्ति के ये चार चरण समझाने की अनुकंपा करें।

2—बुद्ध, महावीर और कृष्ण की प्रतिमाओं में आपने मनोहारी रंग भरे थे। और अब आप उन्हीं प्रतिमाओं का बड़ी बेरहमी से खंडन कर रहे हैं। क्या इन मूर्तियों द्वारा अमूर्त की यात्रा अब असंभव हो गई है या कि आप हमें अपने आप के प्रति लौटने पर मजबूर कर रहे हैं? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-06)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-05)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मैं धर्म नहीं, धार्मिकता दे रहा हूं—प्रवचन-पांचवां

प्रश्न-सार:

1—जो इतनी नींद में हैं कि उन्हें अपनी प्यास का पता ही नहीं या स्वप्न के पानी को पीकर ही वे जागने का आभास पा रहे हैं, वे कैसे वास्तविक प्यास का अनुभव कर सकेंगे? क्या आपका आनंद का झरना उनकी प्यास को जगा कर उन्हें तृप्त नहीं कर देगा?

क्या आपका सामर्थ्यवान प्रकाश उन अंधेरे कमरों को भी प्रकाशित नहीं कर देगा जिनके कि दरवाजे बंद हैं? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-05)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-04)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मौलिक क्रांति: ध्यान-प्रवचन-चौथा

प्रश्न-सार

1—क्या मेरी हस्ती को मिटाने की अनुकंपा करेंगे, ताकि मेरा अंतर्बीज प्रस्फुटित होकर पुष्पित एवं फलित हो सके।

2—कृष्ण की हिंसा को आपने हिटलर की हिंसा से भी ज्यादा खतरनाक बताया। दूसरी ओर कृष्ण के बहुत से वचनों को आप अदभुत कहते हैं। क्या हिंसा का इतना अनुमोदन करने वाला भी अदभुत सत्य-वचन कह सकता है? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-04)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-03)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

प्रेम: समाधि की छाया—(प्रवचन-तीसरा)

प्रश्न-सार

1—क्या आप इस संत-वाणी को बोधगम्य बनाने की अनुकंपा करेंगे–सेवा से पवित्रता, तप से शक्ति, त्याग से शांति तथा अपनत्व से प्रीति स्वतः हो जाती है।

पहला प्रश्न: भगवान,

आपके प्रश्नों के उत्तर बहुत ही तर्कपूर्ण तथा कमाल के हैं। आपकी व्याख्या व्यावहारिक तथा जीवन-उपयोगी है। मैं विश्वास करता हूं कि अपनी आंखों से देखो तथा अपने पैरों चलो।

क्या आप इस संत-वाणी को बोधगम्य बनाने की अनुकंपा करेंगे–सेवा से पवित्रता, तप से शक्ति, त्याग से शांति तथा अपनत्व से प्रीति स्वतः हो जाती है। Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-03)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-02)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मैं जीवन सिखाता हूं—प्रवचन-दूसरा

प्रश्न-सार

1—आपके पास कोई नया विचार या जीवन-दर्शन नहीं है। और एक ओर आप स्वयं गीता, बाइबिल, कुरान आदि धर्मग्रंथों द्वारा प्रतिपादित धर्मों को नहीं मानते, फिर आप उनके विचारों की चोरी क्यों करते हैं?

पहला प्रश्न: भगवान,

आप पर यह आरोप लगाया जाता है कि आपके पास कोई नया विचार या जीवन-दर्शन नहीं है। और यह भी आलोचना की जाती है कि एक ओर आप स्वयं गीता, बाइबिल, कुरान आदि धर्मग्रंथों द्वारा प्रतिपादित धर्मों को नहीं मानते, फिर आप उनके विचारों की चोरी क्यों करते हैं? Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-02)”

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-01)

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

भीतर के राम से पहचान-प्रवचन पहला

प्रश्न-सार

1—आपने आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला को नाम दिया है: रामनाम जान्यो नहीं।

क्या सच ही मृत्यु सिर्फ उनके लिए है जो राम को नहीं जानते हैं? इस राम को कैसे जाना जाता है? और पूजा क्या है?

2—आपको पांच वर्ष से पढ़ता-सुनता हूं और शिविर में भी भाग लेता हूं, लेकिन संन्यास नहीं ले पाया। मैं विचित्तरसिंह खानदान से हूं, लेकिन बहुत ही डरपोक हूं। मेरी समझ में कुछ नहीं आता। कृपा करके मार्ग-दर्शन करें। Continue reading “राम नाम जान्यो नहीं-(प्रवचन-01)”

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