सातवां-प्रवचन-(जीवन में प्रेम का साक्षात्कार)
मेरे प्रिय आत्मन्!
एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी चर्चा शुरू करना चाहूंगा।
एक राजमहल के द्वार पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। सुबह से भीड़ का इकट्ठा होना शुरू हुआ था, अब दोपहर आ गई थी। और लोग बढ़ते ही गए थे। जो भी आकर खड़ा हो गया था, वह वापस नहीं लौटा था। सारे नगर में उत्सुकता थी, कुतूहल था कि राजमहल के द्वार पर क्या हो रहा है? वहां एक बड़ी अघटनीय घटना घट गई थी। सुबह ही सुबह एक भिखारी ने अपना भिक्षा पात्र राजा के सामने फैलाया था। भिखारी तो बहुत होते हैं, लेकिन भिखारी का कोई चुनाव नहीं होता, कोई शर्त नहीं होती। उस भिखारी की शर्त भी थी। Continue reading “जीवन दर्शन-(प्रवचन-07)”