न नाव, न यात्री—सत्रहवां प्रवचन
ध्यान योग शिविर दिनांक 16 जनवरी रात्रि: माथेरान।
सूत्र :
ब्रह्मैवाहं सर्ववेदान्तवेद्यं नाहं वेद
व्योमवातादिरूपमू। रूपं नाहं
नाम नाहं न कर्म ब्रह्मैवाहं
सच्चिदानंदरूपम्।। 20।।
नाहं देहो जन्य-मृत्यु कुतो मे
नाहं प्राण: क्षुत्पिपासे कुतो मे।
नाहं चेत: शोकमोहौ कुतो मे
नाहं कर्ताबंधमोक्षौ कुतो मे।।
इत्युपनिषत्।। 21।।
मैं समस्त वेदांत द्वारा जाना गया ब्रह्म ही हूं और मैं आकाश, वायु आदि जान पड़ने वाली वस्तु नहीं हूं। मैं रूप नहीं हूं नाम नहीं हूं और कर्म नहीं हूं वरन केवल सच्चिदानंद स्वरूप ब्रह्म ही हूं। मैं देह नहीं हूं तो फिर मुझे जन्म-मरण कहां सेही? मैं प्राण नहीं हूं तो मुझे भूख-प्यास कैसे लगे? मैं मन नहीं हूं तो मुझे शोक-मोह किस बात का हो? Continue reading “सर्वसार-उपनिषद–प्रवचन-17”