पांचवां-प्रवचन-(प्रार्थना क्या है
उदयपुर; 5 जनू, 1969; दोपहर
एक मित्र ने पूछा है कि आपने कहा कि खोज छोड़ देनी है। और अगर खोज हम छोड़ दें, तो फिर तो विज्ञान का जन्म नहीं हो सकेगा?
मैंने जो कहा है, खोज छोड़ देनी है, वह कहा है उस सत्य को पाने के लिए, जो हमारे भीतर है, उसकी खोज करनी व्यर्थ है, बाधा है। लेकिन हमारे बाहर भी सत्य है। और हमसे बाहर जो सत्य है, उसे तो बिना खोज के कभी नहीं पाया जा सकता। इसलिए दुनिया में दो दिशाएं हैंः एक जो हमसे बाहर जाती है। हमसे बाहर जानेवाला जो जगत है, अगर उसके सत्य की खोज करनी हो, जो विज्ञान करता है, तो खोज करनी ही पड़ेगी। खोज के बिना बाहर के जगत का कोई सत्य उपलब्ध नहीं हो सकता। Continue reading “कहा कहूं उस देस की-(प्रवचन-05)”