ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-10)

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

ध्यान विधि है मूर्च्छा को तोड़ने की-(प्रवचन-दसवां)

दसवां प्रवचन; दिनांक ३० सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

क्या आप इस सूत्र पर कुछ कहना पसंद करेंगे?–

नास्ति कामसमो व्याधि नास्ति मोह समो रिपु:।

नास्ति क्रोध समो वहिनास्ति ज्ञानात् परं सुखम्।।

काम के समान कोई व्याधि नहीं है, मोह के समान कोई शत्रु नहीं है, क्रोध के तुल्य कोई अग्नि नहीं है और ज्ञान के उत्कृष्ट कोई सुख नहीं है। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-10)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-09)

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

संन्यास: ध्यान की कसम-(प्रवचन-नौवां)

नौवां प्रवचन; दिनांक २९ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

मैं वर्षों से संन्यास लेने के लिए सोच-विचार कर रहा हूं, लेकिन कोई न कोई बाधा आ जाती है और मैं रुक जाता हूं। क्या करूं क्या न करूं, आप ही कहें। और यह भी बताएं कि परमात्मा क्या है, कौन है?

रामाकृष्ण चतुर्वेदी,

सोच-विचार से संन्यास का कोई संबंध नहीं। सोच-विचार की संन्यास में कोई गति भी नहीं। सोच-विचार सेतु नहीं है, बाधा है। जितना सोचोगे उतना उलझोगे। सोच-विचार से मार्ग नहीं मिलता। मिल भी रहा हो तो छिटक जाता है। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-09)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-07)

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

श्रद्धा और सत्य का मिथुन-(प्रवचन-सातवां)

सातवां प्रवचन; दिनांक २७ सितंबर, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान

ऐतरेय ब्राह्मण में यह सूत्र आता है:

श्रद्धया पत्नी सत्यं यजमानः। श्रद्धा सत्यं तदित्युत्तमं मिथुनम।

श्रद्धा सत्येन मिथुने न स्वर्गाल्लोकान जयतीति।

अर्थात (जीवन-यज्ञ में) श्रद्धा पत्नी है और सत्य यजमान। श्रद्धा और सत्य की उत्तम जोड़ी है। श्रद्धा और सत्य  की जोड़ी से मनुष्य दिव्य लोकों को प्राप्त करता है।

भगवान, इस सूत्र का आशय समझाने की अनुकंपा करें। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-07)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-05)

सत्य की कसौटी -(प्रवचन-पांचवां)

दिनांक 25 सितंबर, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

मनुस्मृति का यह बहुत लोकप्रिय श्लोक है:

सत्यं ब्रूयात्प्रिंयं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम।

प्रियं च नानृतं बू्रयादेष धर्म: सनातनः।।

अर्थात मनुष्य सत्य बोले, प्रिय बोले, अप्रिय सत्य को न बोले, और असत्य प्रिय को भी न बोले। यह सनातन धर्म है।

भगवान, इस पर कुछ कहने की कृपा करें।

शरणानंद,

मनुस्मृति इतने असत्यों से भरी है कि मनु हिम्मत भी कर सके हैं इस सूत्र को कहने की, यह भी आश्चर्य की बात है। मनुस्मृति से ज्यादा पाखंडी कोई शास्त्र नहीं है। भारत की दुर्दशा में मनुस्मृति का जितना हाथ है, किसी और का नहीं। मनुस्मृति ने ही भारत को वर्ण दिए हैं। शूद्रों का यह जो महापाप भारत में घटित हुआ है, जैसा पृथ्वी में कहीं घटित नहीं हुआ, उसके लिए कोई जिम्मेवार है तो मनु जिम्मेवार हैं। यह मनुस्मृति की शिक्षा का ही परिणाम है, क्योंकि मनुस्मृति है हिंदु धर्म का विधान। वह हिंदु धर्म की आधारशिला है। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-05)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-04)

ध्यान पर ही ध्यान दो-(प्रवचन-चौथा)

दिनांक 24 सितंबर, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न:भगवान,

यह एक प्रचलित श्लोक है:

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्।

परोपकार: पुण्याय पापाय परपीड़न।।

अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन ही मुख्य हैं–परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप।

भगवान, इस पर कुछ कहने की कृपा करें।

शरणानंद,

यह सूत्र निश्चित ही बहुत विचारणीय है, क्योंकि इस देश का सारा आधार इसी सूत्र पर निर्भर है। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-04)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-03)

अंतर्यात्रा पर निकलो-(प्रवचन-तीसरा)

दिनांक 23 सितंबर, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

अथर्ववेद में एक ऋचा है–

पृष्ठात्पृथिव्या अहमन्तरिक्षमारुहम्

अन्तरिक्षाद्दि विमारूहम्, दिवोनाकस्य

पृष्ठात्ऽ सर्‌वज्योतिरगामहम्।

अर्थात हम पार्थिव लोक से उठ कर अंतरिक्ष लोक में आरोहण करें, अंतरिक्ष लोक से ज्योतिष्मान् देवलोक के शिखर पर पहुंचें, और ज्योतिर्मय देवलोक से अनंत प्रकाशमान ज्योतिपुंज में विलीन हो जाएं।

 भगवान कृपया बताएं कि ये लोक क्या हैं और कहां हैं? Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-03)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-02)

जगत सत्य बह्म सत्य -(दूसरा-प्रवचन)

दिनांक 22 सितंबर, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

आदिगुरु शंकराचार्य के “जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्य’ सूत्र का खंडन करते हुए आपने कहा कि जगत भी सत्य है और ब्रह्म भी सत्य है। लेकिन सत्य की परिभाषा है–वह, जो कि नश्वर नहीं है। इसलिये जगत जो कि नश्वर है, सत्य कैसे होगा? मिथ्या ही होगा। ब्रह्म अनश्वर है, इसलिए सत्य है।

आपसे अनुरोध है कि सत्य की परिभाषा करते हुए इस पहलू पर प्रकाश डालें।

पंडित ब्रह्मप्रकाश,

बड़े भाग्य कि आप भी इस मयकदे में पधारे! ऐसे तो मयकदे में आना अच्छी बात नहीं है और आ ही गये हैं तो बिना पीए जाना अच्छी बात नहीं है। जाम हाजिर है। जी भर कर पी कर लौटें। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-02)”

ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-01)

अपने-अपने काराग्रह-(पहला प्रवचन)

दिनांक २१ सितंबर, १९8०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

संत रज्जब ने क्या हम सोए हुए लोगों को देख कर ही कहा है: ज्यूं मछली बिन नीर। समझाने की अनुकंपा करें।

नरेंद्र बोधिसत्व,

और किसको देख कर कहेंगे? सोए लोगों की जमात ही है। तरहत्तरह की नींदें हैं। अलग-अलग ढंग हैं सोए होने के। कोई पद की शराब पी कर सोया है। लेकिन सारी मनुष्यता सोयी हुईं है। जिन्हें तुम धार्मिक  कहते हो वे भी धार्मिक नहीं है, क्योंकि बिना जागे कोई धार्मिक नहीं हो सकता है। हिंदू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं, जैन हैं–लेकिन धार्मिक मनुष्य का कोई पता नहीं चलता। धार्मिक मनुष्य हो तो हिंदू नहीं हो सकता है। ये सब सोए होने के ढंग हैं। कोई मस्जिद में सोया हुआ है, कोई मंदिर में सोया है। Continue reading “ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रवचन-01)”

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