सहज आसिकी नाहिं—(प्रश्नचर्चा)—ओशो
अंतर-आकाश के फूल—प्रवचन-दसवां
दिनांक 09 दिसम्बर सन् 1980 ओशो आश्रम पूना।
पहला प्रश्न: भगवान,
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्
यस्मिन देवा अधि विश्वे निषेदुः।
यस्तं न वेद किमृचा करिष्यति
य इत् दद् विदुस्त इमे समासते।।
जिसमें सब देवता भलीभांति स्थित हैं उसी अविनाशी परम व्योम में सब वेदों का निवास है। जो उसे नहीं जानता वह वेदों से क्या निष्कर्ष निकालेगा? परंतु जो जानता है Continue reading “सहज आसिकी नाहिं-(प्रवचन-10)”