सातवां-प्रवचन-(जीवन ही है प्रभु)
मेरे प्रिय आत्मन्!
‘जीवन ही है प्रभु’ इस संबंध में और बहुत से प्रश्न मित्रों ने पूछे हैं।
एक मित्र ने पूछा है: बुराई को मिटाने के लिए, अशुभ को मिटाने के लिए, पाप को मिटाने के लिए विधायक मार्ग क्या है? पाजिटिव रास्ता क्या है? क्या ध्यान और आत्मलीनता में जाने से बुराई मिट सकेगी? ध्यान और आत्मलीनता तो एक तरह का पलायन, एस्केप है, जिंदगी से भागना है। ऐसा कोई मार्ग, विधायक, सृजनात्मक, जो भागना न सिखाता हो, जीना सिखाता हो, उस संबंध में कुछ कहें?
पहली तो बात यह है कि ध्यान पलायन नहीं है और आत्मलीनता पलायन नहीं है। बल्कि जो आत्मा से बच कर और सब तरफ भाग रहे हैं, वे पलायन में हैं। जो मेरे निकटतम है उसे जानने से बचने की कोशिश एस्केप है। हम अपने से ही बचने के लिए भाग रहे हैं। Continue reading “जीवन ही है प्रभु-(प्रवचन–07)”