संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-18)

प्रवचन-अट्ठारहवां

न भोग, न दमन–वरन जागरण

मेरे प्रिय आत्मन्!

तीन सूत्रों पर हमने बात की है जीवन-क्रांति की दिशा में।

पहला सूत्र था: सिद्धांतों से, शास्त्रों से मुक्ति। क्योंकि जो किसी भी तरह के मानसिक कारागृह में बंद है, वह जीवन की, सत्य की खोज की यात्रा नहीं कर सकता है। और वे लोग, जिनके हाथों में जंजीरें हैं, उतने बड़े गुलाम नहीं हैं, जितने वे लोग, जिनकी आत्मा पर विचारों की जंजीरें हैं; वादों, सिद्धांतों, संप्रदायों की जंजीरें हैं। आदमी की असली गुलामी मानसिक है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-18)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-17)

प्रवचन-सत्रहवांं-(दमन से मुक्ति)

मेरे प्रिय आत्मन्!

जीवन-क्रांति के सूत्र, इस चर्चा के तीसरे सूत्र पर आज आपसे बात करनी है।

पहला सूत्र: सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति।

दूसरा सूत्र: भीड़ से, समाज से–दूसरों से मुक्ति।

और तीसरा सूत्र आज। इस तीसरे सूत्र को समझने के लिए मन का एक बहुत अदभुत राज समझ लेना आवश्यक है।

मन की बड़ी अदभुत प्रक्रिया है, साधारणतः पहचान में न पड़े ऐसी। और वह प्रक्रिया यह है कि मन को जिस ओर से बचाने की कोशिश की जाए, मन उसी ओर जाना शुरू हो जाता है; जहां से मन को हटाया जाए, मन वहीं पहुंच जाता है; जिस तरफ पीठ की जाए, मन के सामने वही सदा के लिए उपस्थित हो जाता है। निषेध मन के लिए निमंत्रण है, Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-17)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-16)

प्रवचन-सौहलवां

भीड़ से, समाज से–दूसरों से मुक्ति

 मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य का जीवन जैसा हो सकता है, मनुष्य जीवन में जो पा सकता है, मनुष्य जिसे पाने के लिए पैदा होता है–वही चूक जाता है, वही नहीं मिल पाता है। कभी कोई एक मनुष्य–कभी कोई कृष्ण, कभी कोई राम, कभी कोई बुद्ध, कभी कोई गांधी–कभी कोई एक मनुष्य के जीवन में फूल खिलते हैं और सुगंध फैलती है। लेकिन शेष सारी मनुष्यता बिना खिले मुरझा जाती है और नष्ट हो जाती है।

कौन सा दुर्भाग्य है मनुष्य के ऊपर? कौन सी कठिनाई है? Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-16)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-15)

प्रवचन-पंद्रहवां

सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति

 मेरे प्रिय आत्मन्!

अभी-अभी सूरज निकला। सूरज के दर्शन करता था। देखा आकाश में दो पक्षी उड़े जाते हैं। आकाश में न तो कोई रास्ता है, न कोई सीमा है, न कोई दीवाल है, न उड़ने वाले पक्षियों के कोई चरण-चिह्न बनते हैं। खुले आकाश में, जिसकी कोई सीमाएं नहीं, उन पक्षियों को उड़ता देख कर मेरे मन में एक सवाल उठा: क्या आदमी की आत्मा भी इतने ही खुले आकाश में उड़ने की मांग नहीं करती है? क्या आदमी के प्राण भी नहीं तड़पते हैं सारी सीमाओं के ऊपर उठ जाने को–सारे बंधन तोड़ देने को? Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-15)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-14)

प्रवचन-चौहदवां-(नारी–एक और आयाम)

मनुष्य-जाति के इतिहास में भेद की, भिन्नता की लंबी कहानी जुड़ी हुई है। बहुत प्रकार के वर्ग हमने निर्मित किए हैं–गरीब का, अमीर का; धन के आधार पर, पद के आधार पर। और सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि हमने स्त्री-पुरुष के बीच भी वर्गों का निर्माण किया है! शायद हमारे और सारे वर्ग जल्दी मिट जाएंगे, स्त्री-पुरुष के बीच खड़ी की गई दीवाल को मिटने में बहुत समय लग सकता है। बहुत कारण हैं। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-14)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-13)

प्रवचन-तैरहवां–(नारी और क्रांति)

मेरे प्रिय आत्मन्!

व्यक्तियों में ही, मनुष्यों में ही स्त्री और पुरुष नहीं होते हैं–पशुओं में भी, पक्षियों में भी। लेकिन एक और भी नई बात आपसे कहना चाहता हूं: देशों में भी स्त्री और पुरुष देश होते हैं।

भारत एक स्त्री देश है और स्त्री देश रहा है। भारत की पूरी मनःस्थिति स्त्रैण है। ठीक उसके उलटे जर्मनी या अमेरिका जैसे देशों को पुरुष देश कहा जा सकता है। भारत की पूरी आत्मा नारी है। और इसलिए ही भारत कभी भी आक्रामक नहीं हो पाया–पूरे इतिहास में आक्रामक नहीं बन पाया। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-13)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-12)

बारहवां प्रवचन-(युवा चित्त का जन्म)

मेरे प्रिय आत्मन्!

सोरवान विश्वविद्यालय की दीवालों पर जगह-जगह एक नया ही वाक्य लिखा हुआ दिखाई पड़ता है। जगह-जगह दीवालों पर, द्वारों पर लिखा है: प्रोफेसर्स, यू आर ओल्ड! अध्यापकगण, आप बूढ़े हो गए हैं!

सोरवान विश्वविद्यालय की दीवालों पर जो लिखा है, वह मनुष्य की पूरी संस्कृति, पूरी सभ्यता की दीवालों पर लिखा जा सकता है। सब कुछ बूढ़ा हो गया है, अध्यापक ही नहीं। मनुष्य का मन भी बूढ़ा हो गया है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-12)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-11)

प्रवचन-ग्याहरवां–(युुवक कौन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

युवकों के लिए कुछ भी बोलने के पहले यह ठीक से समझ लेना जरूरी है कि युवक का अर्थ क्या है?

युवक का कोई भी संबंध शरीर की अवस्था से नहीं है। उम्र से युवा होने का कोई भी संबंध नहीं है। बूढ़े भी युवा हो सकते हैं, और युवा भी बूढ़े हो सकते हैं। ऐसा कभी-कभी होता है कि बूढ़े युवा हों, ऐसा अक्सर होता है कि युवा बूढ़े होते हैं। और इस देश में तो युवक पैदा भी होते हैं, यह भी संदिग्ध बात है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-11)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-10)

दसवां प्रवचन–(विद्रोह क्या है)

हिप्पीवाद पर मैं कुछ कहूं, ऐसा छात्रों ने अनुरोध किया है।

इस संबंध में पहली बात, बर्नार्ड शा ने एक किताब लिखी है: मैक्जिम्स फॅार ए रेवोल्यूशनरी..क्रांतिकारी के लिए कुछ स्वर्ण-सूत्र। और उसमें पहला स्वर्ण-सूत्र बहुत अदभुत लिखा है। और एक ढंग से पहले स्वर्ण-सूत्र पर भी बात पूरी हो जाती है। पहला स्वर्ण-सूत्र लिखा है: दि फस्र्ट गोल्डन रूल इ.ज दैट देअर आर नो गोल्डन रूल्स! पहला-स्वर्ण नियम यही है कि कोई भी स्वर्ण-नियम नहीं हैं। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-10)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-09)

प्रवचन-नौवां–(जनसंख्या विस्फोट)

पृथ्वी के नीचे दबे हुए, पहाड़ों की कंदराओं में छिपे हुए, समुद्र की तलहटी में खोजे गए ऐसे बहुत से पशुओं के अस्थिपंजर मिले हैं जिनका अब कोई भी निशान शेष नहीं रह गया। वे कभी थे। आज से दस लाख साल पहले पृथ्वी बहुत से सरीसृपों से भरी थी, सरकने वाले जानवरों से भरी थी। लेकिन आज हमारे घर में छिपकली के अतिरिक्त उनका कोई प्रतिनिधि नहीं रह गया है। छिपकली भी बहुत छोटा प्रतिनिधि है। दस लाख साल पहले उसके पूर्वज हाथियों से भी पांच गुने और दस गुने बड़े थे। वे सब कहां खो गए? इतने शक्तिशाली पशु पृथ्वी से कैसे विनष्ट हो गए? किसी ने उन पर हमला किया? किसी ने एटम बम, हाइड्रोजन बम गिराया? Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-09)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-08)

प्रवचन-आठवां-(प्रेम और विवाह)

मनुष्य की आत्मा, मनुष्य के प्राण निरंतर ही परमात्मा को पाने के लिए आतुर हैं। लेकिन किस परमात्मा को? कैसे परमात्मा को? उसका कोई अनुभव, उसका कोई आकार, उसकी कोई दिशा मनुष्य को ज्ञात नहीं है। सिर्फ एक छोटा सा अनुभव है, जो मनुष्य को ज्ञात है और जो परमात्मा की झलक दे सकता है। वह अनुभव प्रेम का अनुभव है। जिसके जीवन में प्रेम की भी कोई झलक नहीं है, उसके जीवन में परमात्मा के आने की कोई संभावना नहीं है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-08)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-07)

प्रवचन-सातवां-(युवक और यौन)

एक कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा।

एक बहुत अदभुत व्यक्ति हुआ है। उस व्यक्ति का नाम था नसरुद्दीन। एक मुसलमान फकीर था। एक दिन सांझ अपने घर से बाहर निकला था किन्हीं मित्रों से मिलने के लिए, द्वार पर ही बचपन का बिछुड़ा हुआ एक साथी घोड़े पर से उतरा। बीस वर्षों बाद वह मित्र उसे मिला था। गले वे दोनों मिल गए। लेकिन नसरुद्दीन ने कहा कि तुम ठहरो घड़ी भर, मैं किन्हीं को वचन दिया हूं, उनसे मिल कर अभी लौट आता हूं। दुर्भाग्य कि वर्षों बाद तुम मिले हो और मुझे अभी घर से जाना पड़ेगा, लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-07)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-06)

प्रवचन-छठवां-(यौन: जीवन का ऊर्जा-आयाम)

प्रश्न: धर्मशास्त्रों में स्त्रियों और पुरुषों का अलग रहने में और स्पर्श आदि के बचने में क्या चीज है? इतने इनकार में अनिष्ट वह नहीं होता है?

धर्म के दो रूप हैं। जैसे कि सभी चीजों के होते हैं। एक स्वस्थ और एक अस्वस्थ।

स्वस्थ धर्म तो जीवन को स्वीकार करता है। अस्वस्थ धर्म जीवन को अस्वीकार करता है। जहां भी अस्वीकार है, वहां अस्वास्थ्य है। जितना गहरा अस्वीकार होगा, उतना ही व्यक्ति आत्मघाती है। जितना गहरा स्वीकार होगा, उतना ही व्यक्ति जीवनोन्मुख है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-06)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-05)

प्रवचन-पांचवां

समाधि: संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन

मेरे प्रिय आत्मन्!

मित्रों ने बहुत से प्रश्न पूछे हैं। सबसे पहले एक मित्र ने पूछा है कि मैंने बोलने के लिए सेक्स या काम का विषय क्यों चुना है?

इसकी थोड़ी सी कहानी है। एक बड़ा बाजार है। उस बड़े बाजार को कुछ लोग बंबई कहते हैं। उस बड़े बाजार में एक सभा थी। और उस सभा में एक पंडित जी, कबीर क्या कहते हैं, इस संबंध में बोलते थे। उन्होंने कबीर की एक पंक्ति कही और उसका अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ; जो घर बारै आपना, चले हमारे साथ। उन्होंने यह कहा कि कबीर बाजार में खड़ा था और चिल्ला कर लोगों से कहने लगा कि लकड़ी उठा कर मैं बुलाता हूं उन्हें, जो अपने घर को जलाने की हिम्मत रखते हों, वे हमारे साथ आ जाएं। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-05)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-04)

प्रवचन-चौथा

माधि: अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटा सा गांव था। उस गांव के स्कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्चे सोए हुए थे।

राम की कथा सुनते समय बच्चे सो जाएं, यह आश्चर्य नहीं। क्योंकि राम की कथा सुनते समय बूढ़े भी सोते हैं। इतनी बार सुनी जा चुकी है जो बात, उसे जाग कर सुनने का कोई अर्थ भी नहीं रह जाता। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-04)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-03)

प्रवचन-तीसरा–(संभोग: समय-शून्यता की झलक)

 मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा। बहुत वर्ष बीते, बहुत सदियां, किसी देश में एक बड़ा चित्रकार था। वह जब अपनी युवा अवस्था में था, उसने सोचा कि मैं एक ऐसा चित्र बनाऊं, जिसमें भगवान का आनंद झलकता हो। मैं ऐसी दो आंखें चित्रित करूं, जिनमें अनंत शांति झलकती हो। मैं ऐसे एक व्यक्ति को खोजूं, एक ऐसे मनुष्य को, जिसका चित्र, जीवन के जो पार है, जगत से जो दूर है, उसकी खबर लाता हो। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-03)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-02)

प्रवचन-दूसारा -(संभोग: अहं-शून्यता की झलक)

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक सुबह, अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के किनारे पहुंच गया था। उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। झुक कर उसने देखा, पत्थरों से भरा हुआ एक झोला पड़ा था। उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया, वह सुबह सूरज के उगने की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज उग आए, वह अपना जाल फेंके और मछलियां पकड़े। वह जो झोला उसे पड़ा हुआ मिल गया था, जिसमें पत्थर थे, वह एक-एक पत्थर निकाल कर शांत नदी में फेंकने लगा। सुबह के सन्नाटे में उन पत्थरों के गिरने की छपाक की आवाज सुनता, फिर दूसरा पत्थर फेंकता। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-02)”

संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-01)

पहला प्रवचन–संभोग: परमात्मा की सृजन-ऊर्जा

मेरे प्रिय आत्मन्!

प्रेम क्या है?

जीना और जानना तो आसान है, लेकिन कहना बहुत कठिन है। जैसे कोई मछली से पूछे कि सागर क्या है? तो मछली कह सकती है, यह है सागर, यह रहा चारों तरफ, वही है। लेकिन कोई पूछे कि कहो क्या है, बताओ मत, तो बहुत कठिन हो जाएगा मछली को।

आदमी के जीवन में भी जो श्रेष्ठ है, सुंदर है और सत्य है, उसे जीया जा सकता है, जाना जा सकता है, हुआ जा सकता है, लेकिन कहना बहुत मुश्किल है। और दुर्घटना और दुर्भाग्य यह है कि जिसमें जीया जाना चाहिए, जिसमें हुआ जाना चाहिए, उसके संबंध में मनुष्य-जाति पांच-छह हजार वर्ष से केवल बातें कर रही है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-01)”

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