प्रवचन-अट्ठारहवां
न भोग, न दमन–वरन जागरण
मेरे प्रिय आत्मन्!
तीन सूत्रों पर हमने बात की है जीवन-क्रांति की दिशा में।
पहला सूत्र था: सिद्धांतों से, शास्त्रों से मुक्ति। क्योंकि जो किसी भी तरह के मानसिक कारागृह में बंद है, वह जीवन की, सत्य की खोज की यात्रा नहीं कर सकता है। और वे लोग, जिनके हाथों में जंजीरें हैं, उतने बड़े गुलाम नहीं हैं, जितने वे लोग, जिनकी आत्मा पर विचारों की जंजीरें हैं; वादों, सिद्धांतों, संप्रदायों की जंजीरें हैं। आदमी की असली गुलामी मानसिक है। Continue reading “संभोग से समाधि की ओर-(प्रवचन-18)”