साहिब मिले साहिब भये-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
भगवान श्री रजनीश का पूर्ण मनुष्य—
“”…हसन ने कहा,” राबिया, तूने तो बात ही बदल दी, तूने तो मुझे बहुत झेंपाया। क्षमा कर, आता हूं, भीतर आता हूं, तू ही ठीक कहती है।’
और राबिया ने कहा,”बाहर तो सब माया है, भ्रम है, सत्य तो भीतर है।’
वहां मैं राजी नहीं हूं। बहार भी सत्य है, भीतर भी सत्य है। तुम्हारी नजर जहां पड़ जाए। तुम बाहर को देखोगे तो भीतर के सत्य से वंचित रह जाओगे। और तुम भीतर देखोगे तो तुम बाहर के सत्य से वंचित रह जाओगे। और अब तक यही हुआ। पूरब ने भीतर देखा, बाहर के सत्य से वंचित रह गया। इसलिए दीन है, दरिद्र है, भूखा है,प्यासा है, उदास है, क्षीण है। जैसे मरणशय्या पर पड़ा है। क्योंकि बाहर तो सब माया है। तो फिर कौन विज्ञान को जन्म दे? कौन उलझे माया में? और कौन खोजे माया के सत्यों को? और माया में सत्य हो कैसे सकते हैं? Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-01)”
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