साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-10)

जरा-सी चिनगारी काफी है!—दसवां प्रवचन

२० जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

ऐसी भक्ति भरो प्राणों में, सब कीर्तन हो जाए

ऐसा उत्सव दो जीवन को, सब नर्तन हो जाए

मेरे जीवन के पादप को फूल नहीं मिल पाया

मैं हूं ऐसी लहर कि जिसको कूल नहीं कूल पाया

 कहते हैं देवत्व छिपा है पत्थर के प्राणों में

पर मेरे अंतर्मन का सौंदर्य नहीं खिल पाया Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-10)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-09)

जो है, उसमें पूरे के पूरे लीन होना समाधि है—नौवां प्रवचन

१९ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

गुमनाम मंजिल दूर है सबेरा

कोई संगी न साथी मैं हूं अकेला

दुनिया की रीत क्या है? भला ऐसी चीज क्या है?

जिसके बिना यह नाव चलती नहीं।

उल्फत का गीत क्या है? जीवन संगीत क्या है?

जिसके बिना यह रात ढलती नहीं!

नदिया की धार कहे, एहसास जीने का मरता नहीं

अपनी अग्नि में जले, ऐसे तो प्यार कोई करता नहीं!

आप ही कहें, क्या कोई रास्ता नहीं? Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-09)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-08)

प्रेम ही धर्म है—आठवां प्रवचन

१८ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम पूना

पहला प्रश्न: भगवान, जैन धर्म में अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांतवाद(सह-अस्तित्व) आदि सिद्धांतों का विशेष स्थान  है। लेकिन आज एक समाचार-पत्र में आपके संबंध में एक जैनमुनि, श्री भद्रगुप्त विजय जी का वक्तव्य पढ़ तो आश्चर्य हुआ। ये मुनिश्री आपके कच्छ-प्रवेश के विरोध में लोगों को सब कुछ बलिदान कर देने के लिए आह्वान कर रहे हैं, संगठित कर रहे हैं। अपरिग्रह माननेवालों को कच्छ प्रदेश पर परिग्रह क्यों? और उनके अनेकांतवाद में आपकी जीवनदृष्टि का विरोध क्यों क्या मुनिश्री का लोगों को इस तरह भड़काना शोभा देता है? Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-08)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-07)

बोध क्रांति है—सातवां प्रवचन

१७ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम; पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

खामोश नजर टूटे दिल से हम अपनी कहानी कहते हैं:

बहते हैं आंसू बहते हैं!

कल तक इन सूनी आंखों में शबनम थी चांद-सितारे थे

ख्वाबों की गमकती कलियां थीं दिलकश रंगीन नजारे थे

पर अब हमको मालूम नहीं हम किस दुनिया में रहते हैं।

कृपा कर पता बताएं।

दीपक शर्मा! जीवन दो ढंग से जीया जा सकता है। एक ढंग तो है नींद का। वहां मीठे सपने हैं। पर सपने ही सपने हैं, जो टूटेंगे ही टूटेंगे। आज नहीं कल, कल नहीं परसों, देर-अबेर की बात है। और जब टूटेंगे तो गहन उदासी छोड़ जाएंगे। जब टूटेंगे तो पतझड़ छा जाएगा। Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-07)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-06)

प्रार्थना अंतिम पुरस्कार है—छठवां प्रवचन

१६ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

चमक-चमक कर हजार आफताब डूब गये

हम अपनी शामे-अलम को सहर बना न सके

कृपया, अब बताइये क्या करें?

अब्दुल कदीर!

चांदत्तारे तो ऊगेंगे, डूबेंगे; सूरज ऊगेगा, डूबेगा; इससे तुम्हारे अंतरात्मा की अंधकार नहीं मिट सकता है। बाहर का कोई प्रकाश भीतर के अंधकार को मिटाने में असमर्थ है। वह भरोसा ही छोड़ दो। वह भरोसा रखोगे तो भटकोगे। और वही हम सबका भरोसा है। वहीं हम चूक रहे हैं। Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-06)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-05)

धर्म क्रांति है, अभ्यास नहीं—पांचवां प्रवचन

१५ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

ढूंढता हुआ तुम्हें पहुंचा कहां-कहां

न स्वर्ग ही कुछ बोलता न नर्क द्वार खोलता

हर आंख में मैं आंख डाल तसवीर तेरी टटोलता

पहुंच गया कहां-कहां

सांसों के फासले हैं या कि दूरियां ही दूरियां

न तुम ही कुछ हो बोलते मुख से जुबां न खोलते

चलता है कब तलक मुझे यूं सबके दिल टटोलते

तुम कहां और मैं कहां

ढूंढता हुआ तुम्हें पहुंच गया कहां-कहां

जमीं से मिल सका न पता आसमां लगा सका Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-05)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-04)

प्रार्थना या ध्यान?—चौथा प्रवचन

१४ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान,

तमसो मा ज्योतिर्गमय

असतो मा सदगमय

मृत्योर्माऽमृतं गमय

उपनिषद की इस प्रार्थना में मनुष्य की विकसित चेतना के अनुरूप क्या कुछ जोड़ा जा सकता है?

नरेंद्र बोधिसत्व, यह प्रार्थना अपूर्व है! पृथ्वी के किसी शास्त्र में, किसी समय में, किसी काल में इतनी अपूर्व प्रार्थना को जन्म नहीं मिला। इसमें पूरब की पूरी मनीषा सन्निहित है। जैसे हजारों गुलाब से बूंद भर इत्र निकले, ऐसी यह प्रार्थना है। प्रार्थना ही नहीं है,समस्त उपनिषदों का सार है। इसमें कुछ भी जोड़ना कठिन है। लेकिन फिर भी मनुष्य निरंतर गतिमान है, यह अजस्र धारा है मनुष्य की चेतना की, जिसका कोई पारावार नहीं है। Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-04)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-03)

प्रेम बड़ा दांव है—तीसरा प्रवचन

१३ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान, मैं कौन हूं, क्या हूं, कुछ पता नहीं। आपसे अपना पता पूछने आया हूं।

नारायण शंकर! यह पता तुम्हें कोई और नहीं दे सकता। न मैं, न कोई और। यह तो तुम्हें खुद ही अपने भीतर खोदना होगा। बाहर पूछते फिरोगे, भटकाव ही हाथ लगेगा। बहुत मिल जाएंगे पता देनेवाले। जगह-जगह बैठे हैं पता देनेवाले। बिना खोजे मिल जाते हैं। तलाश में ही बैठे हैं कि कोई मिल जाए पूछनेवाला। सलाह देने को लोग इतने उत्सुक हैं, ज्ञान थोपने को एक-दूसरे के ऊपर इतने आतुर हैं कि जिसका हिसाब नहीं। क्योंकि अहंकार को इससे ज्यादा मजा और किसी बात में नहीं आता। Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-03)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-02)

ये फूल लपटें ला सकते हैं—दूसरा प्रवचन

१२ जुलाई १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

पहला प्रश्न: भगवान, आपकी मधुशाला में ढाली जानेवाली शराब पी-पीकर मखमूर हो गया हूं। भगवान, प्यार करने वालों पर दुनिया तो जलती है मगर अपनी मधुशाला के दूसरे पियक्कड़ भी प्रेम के इतने विरोध में हैं–खासकर पचास प्रतिशत भारतीय, जो कि आज दस-बारह वर्षों से आपके साथ हैं। प्रभु, हमारे विदेशी मित्र तो प्यार करनेवालों को देखकर खुश होते हैं, मगर भारतीय सिर्फ जलते ही नहीं बल्कि अपराधजनक दृष्टि से देखते हैं और घंटों व्यंग्यपूर्ण बातचीत करते रहते हैं। यह जमात प्रेम का बस एक ही मतलब जानती है–“काम’। ऐसा क्यों, प्रभु? क्या प्रेम कर कोई और आयाम नहीं है, खासकर नर-नारी के संबंध में? Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-02)”

साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-01)

साहिब मिले साहिब भये-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

भगवान श्री रजनीश का पूर्ण मनुष्य—

“”…हसन ने कहा,” राबिया, तूने तो बात ही बदल दी, तूने तो मुझे बहुत झेंपाया। क्षमा कर, आता हूं, भीतर आता हूं, तू ही ठीक कहती है।’

और राबिया ने कहा,”बाहर तो सब माया है, भ्रम है, सत्य तो भीतर है।’

वहां मैं राजी नहीं हूं। बहार भी सत्य है, भीतर भी सत्य है। तुम्हारी नजर जहां पड़ जाए। तुम बाहर को देखोगे तो भीतर के सत्य से वंचित रह जाओगे। और तुम भीतर देखोगे तो तुम बाहर के सत्य से वंचित रह जाओगे। और अब तक यही हुआ। पूरब ने भीतर देखा, बाहर के सत्य से वंचित रह गया। इसलिए दीन है, दरिद्र है, भूखा है,प्यासा है, उदास है, क्षीण है। जैसे मरणशय्या पर पड़ा है। क्योंकि बाहर तो सब माया है। तो फिर कौन विज्ञान को जन्म दे? कौन उलझे माया में? और कौन खोजे माया के सत्यों को? और माया में सत्य हो कैसे सकते हैं? Continue reading “साहिब मिले साहिब भये-(प्रवचन-01)”

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