उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-10)

दसवां-प्रवचन-(कोई ताजा हवा चली है अभी)

दिनांक 20-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

01-दिल में एक लहर सी उठी है अभी

कोई ताजा हवा चली है अभी

शोर बरपा है खाना ए दिल में

कोई दीवार सी गिरी है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता

जाने किस चीज की कमी है अभी

कुछ तो नाजुक मिजाज हैं हम भी

और यह चोट भी नई है अभी

कोई ताजा हवा चली है अभी

दिल में कोई लहर सी उठी है अभी!

02-मने खबर नथी–हूं कौण छूं, अइयां सू करूं छूं? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-10)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-09)

नौवां-प्रवचन–(सत्य का निमंत्रण)

दिनांक 19-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

01-आपने कहीं कहा कि मैं मूर्तिभंजक हूं, भ्रमभंजक हूं। मुझे लगता है कि उससे बढ़कर आप महान धारणाभंजक हैं। क्या इस पर कुछ कहने की अनुकंपा करेंगे?

02-इस मधुषाला से हम जितना पीते हैं उतना ही कम क्यों लगता है? मुझे ऐसा लगता है कि मैं चूकती जाती हूं। इतना आप पिलाते हैं, मैं नहीं पीती हूं। मेरे वष में नही है। क्या यह एक षिकायत की आदत तो नहीं है, कि सच में ऐसा है कि मैं साहस नहीं कर पाती? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-09)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-08)

आठवां-प्रवचन-(विद्रोह और ध्यान)

दिनांक 18-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

01-आपने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम धार्मिक नहीं थे क्योंकि उनके जीवन में कहीं विद्रोह की चिनगारी दिखाई नहीं पड़ती। फिर क्या कारण है कि उनका नाम हजारों वर्शो से जीवित है और भगवान का पर्याय बना हुआ है?

02-मैं जब घर से चला था तो बहुत अच्छे-अच्छे विचार थे-वेदान्त और निर्वाण की बातें थीं; मगर यहां आकर मन में सारे दिन लड़कियों के विचार ही चलते रहते हैं। बहुत कोषिष करता हूं, हटते ही नहीं। यहां तक कि ध्यान में भी ये विचार चलते रहते हैं। मैं षादीषुदा हूं और अपनी पत्नी के बिना कभी किसी स्त्री के पास नहीं गया। भगवान, क्या करूं, कोई रास्ता बताएं! Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-08)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-07)

सातवां-प्रवचन-(व्यक्ति होना धर्म है

दिनांक 17-05-1980 ओशो आश्रम पूना। 

01-आपका हम बूढों के लिए क्या संदेष है?

02-सीखने से भी अनसीखना क्यों इतना कठिन मालूम पड़ता है?

03-मैं षादी करना चाहता हूं। आपके कल के प्रवचन के बाद मैं भी डांवाडोल हो गया हूं। भगवान, मेें क्या करूं? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-07)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-06)

छठवां-प्रवचन-(श्रद्धा यानी अंतर्यात्रा)

दिनांक 16-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

 01-मैं धर्म करते-करते थक गया हूं; व्रत-उपवास, यम-नियम सब कर देखे, पर पाया कुछ भी नहीं। अब क्या करूं, यह पूछने आपकी शरण आया हूं।

02-व्यक्ति के मर जाने पर क्यों सभी लोग उसकी प्रषंसा करते हैं? वे भी जो कि जीवन भर उसकी निंदा करते रहे! इसका राज क्या है?

03-क्या तर्कशास्त्र बिलकुल व्यर्थ है? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-06)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-05)

पांचवां-प्रवचन-(सत्य की अग्नि-परीक्षा)

दिनांक 15-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

01-हम भी मिट जाते कोई जख्मे तमन्ना बन कर

काष आती न तेरी याद मसीहा बन कर

हम भी मिट जाते…

दिल की हर आग बुझाने को, तेरी याद आई

कभी कतरा कभी षबनम कभी दरिया बन कर

हम भी मिट जाते…

रास्ता भूल गई याद किसी की वरना

हम गरीबों के घर आती न उजाला बन कर

हम भी मिट जाते कोई जख्मे तमन्ना बन कर Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-05)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-04)

प्रवचन-चौथा-(तुम बहते जाना भाई)

दिनांक 14-05-1980 ओशो आश्रम पूना।

01-संन्यास जीवन का त्याग है या कि जीवन जीने की कला?

02-मैं मारवाड़ी हूं। क्या मैं भी मोक्ष पा सकता हूं?

03-क्या मैं अगले जन्म में गधे के रूप में पैदा हो सकता हूं?

04-यह मौसम चुनाव का है। क्या एकाध लतीफा राजनेताओं के संबंध में न सुनाएंगे? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-04)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(संन्यासः जीवन का महारास)

दिनांक 13-05-1980 ओशो आश्रम पूना। 

अधिकांश समाचार-पत्र आपके विशय में बहुत ऊलजलूल बातें छापते हैं, जिससे लोगों में भी बहुत ही गलत तरह की बातें प्रचारित होती हैं और गलत अपेक्षांए लिए लोग आश्रम देखने चले आते हैं। भगवान, क्या समय रहते इसे रोकने का कोई उपाय करना जरूरी नहीं है?

मैंने सत्य के अनुभव के लिए कई धर्मों को अपनाया। उनके द्वारा बताई विधियों से ध्यान भी करता रहा, परंतु सफलता नहीं मिली। अब संन्यास लेने में गेरूआ वस्त्र व माला अड़चन बन रही है। कोई हल बतावें! क्या केवल ध्यान करने से संन्यास मिल सकता है, जिससे सत्य का अनुभव हो? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-03)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन-(क्रांति का आह्वान)

दिनांक 12-5-1980 ओशो आश्रम पूना।

परिवार के भीतर शीलभंग को कैसे निर्मूल किया जाए और कैसे स्त्रियों को उससे लड़ने का बल प्राप्त हो? निंदा शीलभंग करने वाले की की जानी चाहिए, उसकी नहीं जिसका शीलभंग किया जाता है। लेकिन भारत में आक्रांत की निंदा, होती है और आक्रामक अपना खेल अबाध जारी रखता है और स्त्री मूक होकर दुख झेलती है। छोटी लड़की तक को यह दुख चुपचाप झेलना पड़ता है, जिस कारण आगे चल कर वह अपने पति के साथ वैवाहिक सुख तक भोगने से वंचित रह जाती है। पुरुष बलात्कार, शीलभंग, हिंसा आदि अपनी पाशविक प्रवृत्तियों पर काबू पाने में समर्थ क्यों नहीं हो पाता है?

पहला प्रश्न: ओशो, परिवार के भीतर शीलभंग को कैसे निर्मूल किया जाए और कैसे स्त्रियों को उससे लड़ने का बल प्राप्त हो? निंदा शीलभंग करने वाले की की जानी चाहिए, उसकी नहीं जिसका शीलभंग किया जाता है। लेकिन भारत में आक्रांत की निंदा, होती है और आक्रामक अपना खेल अबाध जारी रखता है और स्त्री मूक होकर दुख झेलती है। छोटी लड़की तक को यह दुख चुपचाप झेलना पड़ता है, जिस कारण आगे चल कर वह अपने पति के साथ वैवाहिक सुख तक भोगने से वंचित रह जाती है। पुरुष बलात्कार, शीलभंग, हिंसा आदि अपनी पाशविक प्रवृत्तियों पर काबू पाने में समर्थ क्यों नहीं हो पाता है? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-02)”

उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-01)

उड़ियो पंख पसार-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

यह प्रवचन माला दिनांक 11-5-1980 से 20-5-1980 तक ओशो आश्रम पूना में प्रशनोंत्तर के रूप दि गई थी।

पहला प्रवचन–(श्रद्धा के पंख)

सोबत हौ केहि नींद, मूरख अग्यानी।

भोर भये परभात, अबहिं तुम करो पयानी।।

अब हम सांची कहत हैं, उड़ियो पंख पसार।

छुटि जैहो या दुक्ख तें, तन-सरवर के पार।।

भगवान, हमें संतश्रेष्ठ धनी धरमदास के इस पद का अभिप्राय समझाने की अनुंकपा करें। हम तो धरती पर भी पांव घसीट कर चलते हैं; आप यहां किस आकाश और किन पंखों की बात कर रहे हैं?

 

हम चल तो पड़े हैं जज्बा-ए दिल, जाना है किधर मालूम नहीं

आगाजे-सफर पर नाजां हैं, अंजामे-सफर मालूम नहीं Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-01)”

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