दूसरा प्रवचन-(क्रांति का आह्वान)
दिनांक 12-5-1980 ओशो आश्रम पूना।
परिवार के भीतर शीलभंग को कैसे निर्मूल किया जाए और कैसे स्त्रियों को उससे लड़ने का बल प्राप्त हो? निंदा शीलभंग करने वाले की की जानी चाहिए, उसकी नहीं जिसका शीलभंग किया जाता है। लेकिन भारत में आक्रांत की निंदा, होती है और आक्रामक अपना खेल अबाध जारी रखता है और स्त्री मूक होकर दुख झेलती है। छोटी लड़की तक को यह दुख चुपचाप झेलना पड़ता है, जिस कारण आगे चल कर वह अपने पति के साथ वैवाहिक सुख तक भोगने से वंचित रह जाती है। पुरुष बलात्कार, शीलभंग, हिंसा आदि अपनी पाशविक प्रवृत्तियों पर काबू पाने में समर्थ क्यों नहीं हो पाता है?
पहला प्रश्न: ओशो, परिवार के भीतर शीलभंग को कैसे निर्मूल किया जाए और कैसे स्त्रियों को उससे लड़ने का बल प्राप्त हो? निंदा शीलभंग करने वाले की की जानी चाहिए, उसकी नहीं जिसका शीलभंग किया जाता है। लेकिन भारत में आक्रांत की निंदा, होती है और आक्रामक अपना खेल अबाध जारी रखता है और स्त्री मूक होकर दुख झेलती है। छोटी लड़की तक को यह दुख चुपचाप झेलना पड़ता है, जिस कारण आगे चल कर वह अपने पति के साथ वैवाहिक सुख तक भोगने से वंचित रह जाती है। पुरुष बलात्कार, शीलभंग, हिंसा आदि अपनी पाशविक प्रवृत्तियों पर काबू पाने में समर्थ क्यों नहीं हो पाता है? Continue reading “उड़ियो पंख पसार-(प्रवचन-02)”
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