प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-04

प्रवचन-चौथा-(ओशो)

मोक्ष से मुक्ति

मेरे प्रिय आत्मन्!

जीवन-क्रांति के सूत्रों में दो सूत्रों पर हमने विचार किया। पहले दिन अतीत से मुक्तिः वह जो बीत गया है, वह मन से भी बीत जाए; वह जो अस्तित्व में नहीं बचा है, वह हमारे विचारों में भी न रहे। वह जा चुका है, वह चला ही जाए। हमारे ऊपर उसका बंधन न हो, हम उससे मुक्त हो सकें। जैसे कोई सांप केंचुल को छोड़ देता है और आगे निकल जाता है, केंचुल पीछे छूट जाती है। कल तक वह उसके शरीर का अंग थी, आज अतीत हो गई, मृत हो गई, अलग हो गई। वह छोड़ कर उसे बाहर हो गया। जो समाज अपने अतीत को केंचुली की भांति छोड़ कर आगे बढ़ जाता है, वह विकासमान है। जो व्यक्ति भी अतीत से निरंतर मुक्त होता रहता है, वह सदा सत्य के और जीवन के निकट पहंुचता चला जाता है। इसलिए पहले सूत्र में अतीत से मुक्ति की बात समझी। Continue reading “प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-04”

प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-03

तीसरा-प्रवचन-(ओशो)

प्रेम गंगा

मेरे प्रिय आत्मन्।

पिछली चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न आए हैं।

एक मित्र ने पूछा है कि आप शास्त्र पर, गुरु पर, दूसरों पर विश्वास करने में मना करते हैं तो उस स्थिति में तो बाहर के सारे कार्य चलने बंद हो जाएंगे? और विज्ञान की आप बात करते हैं तो वैज्ञानिक भी पिछले वैज्ञानिकों पर विश्वास करता है, तब ही आगे बढ़ता है।

इस संबंध में कुछ बातें समझ लेनी उपयोगी होंगी। पहली बात तो यह कि बाहर के संबंध में, जीवन के रोज के कार्यों के संबंध में, या विज्ञान के संबंध में हम जो दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं, उससे शायद थोड़ा बहुत काम चल जाता है। क्योंकि जो बाहर है, वह दूसरे के द्वारा भी बताया जा सकता है, और जाना जा सकता है। लेकिन जो स्वयं मेरे भीतर है, वह किसी दूसरे के द्वारा न बताया जा सकता है, और न किसी दूसरे के द्वारा जाना जा सकता है। Continue reading “प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-03”

प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-02

दूसरा-प्रवचन-(ओशो)

विश्वास से मुक्ति

मेरे प्रिय आत्मन्!

कल की चर्चा के संबंध में बहुत से प्रश्न मित्रों ने भेजे हैं।

एक मित्र ने पूछा है कि आप अतीत को भूल जाने के लिए कहते हैं, लेकिन अतीत को भूल कर तो भविष्य में मार्ग भटक जाएंगे। अतीत तो हमारा प्रेरणा-स्रोत है, अतीत का अनुभव ही हमारा आधार है।

इस संबंध में दो-एक बातें हैं, समझ लेनी जरूरी है। पहली तो बात यह है कि अतीत को भूल जाने का अर्थः अतीत की तरफ वे जो कि सम्मोहित होकर आंखें गड़ाए हुए हैं, वे जो कि हिप्नोटाइज्ड हैं, अतीत पर आंखों को टिकाए हुए हैं, उन्हें वक्त से हटा लेनी चाहिए। अतीत को भूल जाने का यह अर्थ नहीं है कि अतीत (…-अस्पष्ट) नहीं है। Continue reading “प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-02”

प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-01 

प्रेम गंगा-(विविध)-ओशो

पहला-प्रवचन

विचार का स्वागत

मेरे प्रिय आत्मन्!

कल संध्या जीवन-क्रांति के सूत्रों पर पहले सूत्र के संबंध में कुछ बातें की थीं। वह पहला सूत्र थाः अतीत से मुक्ति। जो व्यक्ति पीछे लौट कर देखते रहते हैं वे आगे देखने में असमर्थ हो जाते हैं–और जीवन सदा आगे की ओर है, पीछे की ओर नहीं। जो पीछे है, उसका ही नाम मृत्यु है। पीछे वह है, जो मर चुका है। आगे वह है, जो जीवंत है। पीछे की ओर जिनकी दृष्टि है वे मृत्यु को देखने में संलग्न हो जाते हैं, और जो मृत्यु को देखते हैं वे धीरे-धीरे मर जाएं तो आश्चर्य नहीं। Continue reading “प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-01 “

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