प्रवचन-चौथा-(ओशो)
मोक्ष से मुक्ति
मेरे प्रिय आत्मन्!
जीवन-क्रांति के सूत्रों में दो सूत्रों पर हमने विचार किया। पहले दिन अतीत से मुक्तिः वह जो बीत गया है, वह मन से भी बीत जाए; वह जो अस्तित्व में नहीं बचा है, वह हमारे विचारों में भी न रहे। वह जा चुका है, वह चला ही जाए। हमारे ऊपर उसका बंधन न हो, हम उससे मुक्त हो सकें। जैसे कोई सांप केंचुल को छोड़ देता है और आगे निकल जाता है, केंचुल पीछे छूट जाती है। कल तक वह उसके शरीर का अंग थी, आज अतीत हो गई, मृत हो गई, अलग हो गई। वह छोड़ कर उसे बाहर हो गया। जो समाज अपने अतीत को केंचुली की भांति छोड़ कर आगे बढ़ जाता है, वह विकासमान है। जो व्यक्ति भी अतीत से निरंतर मुक्त होता रहता है, वह सदा सत्य के और जीवन के निकट पहंुचता चला जाता है। इसलिए पहले सूत्र में अतीत से मुक्ति की बात समझी। Continue reading “प्रेम गंगा-(विविध)-प्रवचन-04”