सातवां प्रवचन-(धर्म जीवन की कला है)
मेरे प्रिय आत्मन्!
एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी अंतिम चर्चा शुरू करना चाहता हूं। एक पूरे चांद की रात में, एक गांव में कुछ मित्रों ने आधी रात तक शराबघर में इकट्ठा होकर शराब पी ली। वे जब नशे में बिल्कुल डूब गए, तब उन्हें ख्याल आया कि पूर्णिमा की रात है, चलें नदी पर नौका-विहार करें।
वे नदी पर गए। मछुए अपनी नौकाएं बांध कर कभी के घर जा चुके थे। वे एक बड़ी नौका में सवार हो गए, उन्होंने पतवारें उठा लीं और नौका को खेना शुरू कर दिया। फिर वे तेजी से–नशे में–ताकत से नौका को खेते रहे, खेते रहे, खेते रहे। और फिर बाद में सुबह होने के करीब आ गई, उन्होंने आधी रात तक नौका चलाई, सुबह की ठंडी हवाओं ने उनके होश को थोड़ा वापस लौटाया और उन्हें ख्याल आया–हम न मालूम कितनी दूर निकल आए होंगे, अपने गांव से न मालूम कितनी दूरी पर आ गए होंगे, और न मालूम किस दिशा में आ गए हैं। अब उचित है कि हम वापस लौट चलें, सुबह होने के करीब है, और हमें वापस लौट जाना चाहिए। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-07)”