समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-07)

सातवां प्रवचन-(धर्म जीवन की कला है)

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी अंतिम चर्चा शुरू करना चाहता हूं। एक पूरे चांद की रात में, एक गांव में कुछ मित्रों ने आधी रात तक शराबघर में इकट्ठा होकर शराब पी ली। वे जब नशे में बिल्कुल डूब गए, तब उन्हें ख्याल आया कि पूर्णिमा की रात है, चलें नदी पर नौका-विहार करें।

वे नदी पर गए। मछुए अपनी नौकाएं बांध कर कभी के घर जा चुके थे। वे एक बड़ी नौका में सवार हो गए, उन्होंने पतवारें उठा लीं और नौका को खेना शुरू कर दिया। फिर वे तेजी से–नशे में–ताकत से नौका को खेते रहे, खेते रहे, खेते रहे। और फिर बाद में सुबह होने के करीब आ गई, उन्होंने आधी रात तक नौका चलाई, सुबह की ठंडी हवाओं ने उनके होश को थोड़ा वापस लौटाया और उन्हें ख्याल आया–हम न मालूम कितनी दूर निकल आए होंगे, अपने गांव से न मालूम कितनी दूरी पर आ गए होंगे, और न मालूम किस दिशा में आ गए हैं। अब उचित है कि हम वापस लौट चलें, सुबह होने के करीब है, और हमें वापस लौट जाना चाहिए। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-07)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-06)

छटवां प्रवचन-(नई दृष्टि का जन्म)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीती चर्चाओं के संबंध में बहुत से प्रश्न उपस्थित हुए हैं।

 

एक मित्र ने पूछा है कि मैंने कल कहा कि अतीत में ऐसे शिक्षक हुए हैं जिन्होंने जीवन को असार बताया। उन मित्र ने कहा है कि जीवन को असार किसी ने भी नहीं बताया, संसार को असार बताया है।

 

संसार को भी असार बताया हो तो गलत बताया है, संसार असार नहीं है। संसार को देखने की दृष्टि गलत हो तो संसार असार दिखाई पड़ेगा। संसार को देखने की दृष्टि सएयक हो तो संसार ही प्रभु के रूप में परिवर्तित हो जाता है। दृष्टि ही गलत हो सकती है, और कुछ भी गलत नहीं है।

लेकिन आदमी की पुरानी कमजोरी है, और वह यह कि दोष कभी वह अपने ऊपर नहीं लेना चाहता है, दोष सदा किसी और पर डाल देना चाहता है। संसार असार है, यह कहना सुविधापूर्ण मालूम होता है, बजाय इसके कि मेरी दृष्टि अंधी है, मेरी दृष्टि गलत है। संसार को असार कहने से मुझे स्वयं को नहीं बदलना पड़ता; लेकिन मेरे देखने को ढंग गलत है, तो मुझे स्वयं को बदलने की जरूरत आ जाती है। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-06)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-05)

पांचवां प्रवचन-(तीन असत्य

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक अंधेरी रात में, एक निर्जन रेगिस्तान में, एक काफिला एक सराय में आकर ठहरा। रात थी, अंधेरा था और काफिला रास्ता भटक गया था। आधी रात गए खोजते-खोजते वे उस सराय के पास पहुंचे। यात्री थके थे, उनके ऊंट भी थके थे। उन्होंने जल्दी से खूंटियां गाड़ीं, रस्सियां निकालीं और ऊंटों को बांधा। सौ ऊंट थे उस काफिले के पास। लेकिन शायद जल्दी में रात के अंधेरे में एक ऊंट की खूंटी और रस्सी खो गई। एक ऊंट अनबंधा रह गया। अंधेरी रात थी और ऊंट को अनबंधा छोड़ना ठीक न था, उसके भटक जाने की संभावना थी। उस काफिले के मालिकों ने सराय के बूढ़े मालिक को जाकर कहा कि अगर एक खूंटी मिल जाए और एक रस्सी, तो बड़ी कृपा होगी। एक ऊंट हमारा खुला रह गया, रस्सी-खूंटी कहीं खो गई है। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-05)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-04)

चौथा प्रवचन-(जीवन का सृजन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं इस ज्ञान सत्र की पहली चर्चा को शुरू करना चाहता हूं। एक सम्राट अपने जीवन के अंतिम क्षणों में था। उसे निर्णय लेना था कि वह अपने किस पुत्र को राज्य का अधिकार दे। उसके तीन पुत्र थे। वह बहुत चिंतित था। उनमें से तीन में से कौन सर्वाधिक पात्र और योग्य व्यक्ति है? और कोई भी निर्णय करना उसे आसान नहीं मालूम होता था। और अब तो जीवन की अंतिम घड़ी करीब आ रही थी, निर्णय लेना जरूरी था। उसने नगर के एक वृद्ध संन्यासी को बुलाया और उस संन्यासी को कहा कि कोई रास्ता बताएं! इन तीन में से कौन योग्य है, जो राज्य को सएहाल सकेगा?

उस संन्यासी ने उस मरते हुए सम्राट के कान में कुछ कहा। और दूसरे दिन सुबह तीनों पुत्रों को बुला कर उसने सौ-सौ रुपये दिए, और उन पुत्रों से कहा, अपने-अपने महल में सौ रुपये से तुम जो भी लाकर भर सकते हो, सौ रुपये के भीतर तुम जो भी चीज लाकर भर सकते हो, महल को भर लो। यह तुएहारी परीक्षा होगी। और फिर जो परीक्षा में सफल होगा वह राज्य का अधिकारी हो जाएगा। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-04)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन-(भारत का दुर्भाग्य)

मेरे प्रिय आत्मन्!

भारत के दुर्भाग्य की कथा बहुत लंबी है। और जैसा कि लोग साधारणतः समझते हैं कि हमें ज्ञात है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है, वह बात बिल्कुल ही गलत है। हमें बिल्कुल भी ज्ञात नहीं है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है। दुर्भाग्य के जो फल और परिणाम हुए हैं वे हमें ज्ञात हैं। लेकिन किन जड़ों के कारण, किन रूट्स के कारण भारत का सारा जीवन विषाक्त, असफल और उदास हो गया है? वे कौन से बुनियादी कारण हैं जिनके कारण भारत का जीवन-रस सूख गया है, भारत का बड़ा वृक्ष धीरे-धीरे कुएहला गया, उस पर फूल-फल आने बंद हो गए हैं, भारत की प्रतिभा पूरी की पूरी जड़, अवरुद्ध हो गई है? वे कौन से कारण हैं जिनसे यह हुआ है? Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-03)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-02)

दूसरा प्रवचन-(भारत का भविष्य)

मेरे प्रिय आत्मन्!

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। बहुत पुराने दिनों की घटना है, एक छोटे से गांव में एक बहुत संतुष्ट गरीब आदमी रहता था। वह संतुष्ट था इसलिए सुखी भी था। उसे पता भी नहीं था कि मैं गरीब हूं। गरीबी केवल उन्हें ही पता चलती है जो असंतुष्ट हो जाते हैं। संतुष्ट होने से बड़ी कोई संपदा नहीं है, कोई समृद्धि नहीं है। वह आदमी बहुत संतुष्ट था इसलिए बहुत सुखी था, बहुत समृद्ध था। लेकिन एक रात अचानक दरिद्र हो गया। न तो उसका घर जला, न उसकी फसल खराब हुई, न उसका दिवाला निकला। लेकिन एक रात अचानक बिना कारण वह गरीब हो गया था। आप पूछेंगे, कैसे गरीब हो गया? उस रात एक संन्यासी उसके घर मेहमान हुआ और उस संन्यासी ने हीरों की खदानों की बात की और उसने कहा, पागल तू कब तक खेतीबाड़ी करता रहेगा? पृथ्वी पर हीरों की खदानें भरी पड़ी हैं। अपनी ताकत हीरों की खोज में लगा, तो जमीन पर सबसे बड़ा समृद्ध तू हो सकता है। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-02)”

समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-01)

समुंद समाना बूंद में-(विविध)

पहला प्रवचन-सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य के जीवन में या जगत के अस्तित्व में एक बहुत रहस्यपूर्ण बात है। जीवन को तोड़ने बैठेंगे तो जीवन भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है। अस्तित्व को खोजने निकलेंगे तो अस्तित्व भी तीन इकाइयों में खंडित हो जाता है। तीन की संख्या बहुत रहस्यपूर्ण है। और जब तक धार्मिक लोग तीन की संख्या की बात करते थे तब तक तो हंसा जा सकता था, लेकिन अब वैज्ञानिक भी तीन के रहस्य को स्वीकार करते हैं। पदार्थ को तोड़ने के बाद अणु के विस्फोट पर, एटामिक एनालिसिस से एक बहुत अदभुत बात पता लगी है, और वह यह है कि अस्तित्व जिस ऊर्जा से निर्मित है उस ऊर्जा के तीन भाग हैं–न्यूट्रान, प्रोटान, इलेक्ट्रान। एक ही विद्युत तीन रूपों में विभाजित होकर सारे जगत का निर्माण करती है। Continue reading “समुंद समाना बूंद में-(प्रवचन-01)”

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