हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा
ओशो ! ओशो ! ओशो !
जब ओशो के देहावसान पर मैंने एक अध्याय लिखना प्रारम्भ किया तो मुझे लगा कि यह सम्भव नहीं क्योंकि ओशो की मृत्यु नहीं हुई है। यदि उनकी मृत्यु हो गई होती तो मुझे उनका अभाव महसूस होता, परन्तु जब से वे हमें छोड़कर गए हैं मुझे कुछ खो जाने का एहसास नहीं हुआ। मेरा अभिप्राय यह नहीं कि मैं उनकी आत्मा को एक प्रेत की भांति अपने आसपास मंडराते हुए पाती हूं या बादलों में से आती उनकी आवाज़ को सुनती हूं। नहीं, केवल इतना ही है कि मैं आज भी उन्हें इतना अनुभव करती हूं जितना तब करती थी जब वे शरीर में थे । जब वे ‘जीवित’ थे, उनके आसपास मैं जिस ऊर्जा का अनुभव करती थी वह वही शुद्ध ऊर्जा होगी जो अमर है। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-21)”