हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-21)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

ओशो !   ओशो !   ओशो !

जब ओशो के देहावसान पर मैंने एक अध्याय लिखना प्रारम्भ किया तो मुझे लगा कि यह सम्भव नहीं क्योंकि ओशो की मृत्यु नहीं हुई है। यदि उनकी मृत्यु हो गई होती तो मुझे उनका अभाव महसूस होता, परन्तु जब से वे हमें छोड़कर गए हैं मुझे कुछ खो जाने का एहसास नहीं हुआ। मेरा अभिप्राय यह नहीं कि मैं उनकी आत्मा को एक प्रेत की भांति अपने आसपास मंडराते हुए पाती हूं या बादलों में से आती उनकी आवाज़ को सुनती हूं। नहीं, केवल इतना ही है कि मैं आज भी उन्हें इतना अनुभव करती हूं जितना तब करती थी जब वे शरीर में थे । जब वे ‘जीवित’ थे, उनके आसपास मैं जिस ऊर्जा का अनुभव करती थी वह वही शुद्ध ऊर्जा होगी जो अमर है। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-21)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-20)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

क्‍या हम दस हजार बुद्धों का उत्‍सव मना सकते है?

      आनन्‍दो तथा निर्वाणों ने ओशो के लिए उद्यान में ‘वाक-वे’बनने का निश्‍चय किया ताकि वे कुछ घूम-फिर सकें और अस्‍वस्‍थ होने के कारण जब प्रवचन देने के लिए न जा सकें तो उद्यान को देख सकें। वे मान गए यद्यपि उन्‍हें ज्ञात था कि वह एक दो बार से अधिक उसका उपयोग नहीं कर सकेंगे। इन दोनों का विचार ओशो के लिए एक चित्र कला कक्ष बनाने का था। वर्षों पहले वे बहुत चित्र बनाया करते थे। परंतु उन्‍हें ‘फैल्‍ट पैन’ तथा स्‍याही की गंध ऐ एलर्जी हो गई थी। उनके बेड़ रूम के साथ वाले कमरे को चित्रकला-कक्ष बनाया गया। जहां वे चित्र बना सकें हम उनके लिए ऐसे एयर ब्रश,इंक और रंग ढूंढने में सफल हो गए थे जिनमें किसी प्रकार की कोई गंध नहीं आती थी। यह कमरा सफेद तथा हरे संगमरमर से बनाया गया और यह उन्‍हें इतना पसंद अया कि बहुत ही छोटी होने के बावजूद वे वहां नौ महीने सोए। वे इसे अपनी छोटी सी कुटिया कहते थे। परंतु उन्‍होंने इसमें एक ही बार पेंटिंग बनाई। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-20)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-19)

माई डायमंड डे विद ओशो–(मां प्रेम शुन्‍यो)-आत्म कथा

अन्‍तिम स्‍पर्श—

वे कुछ सप्‍ताह ही अस्‍वस्‍थ रहे और मार्च में फिर प्रवचन के लिए आने लगे। मैने उनसे अंतिम प्रश्‍न पूछा और पहली बार हमने अपने प्रश्‍न बिना हस्‍ताक्षर के भेजे। यद्यपि मैंने पुनर्जन्‍म के सम्‍बंध में कुछ नहीं पूछा था, ओशो ने उत्‍तर दिया।

…..पुनर्जन्‍म की धारणा जो पूर्व के सभी धर्मों में है, कहती है कि आत्‍मा एक शरीर से दूसरे में, एक जीवन से दूसरे जीवन में प्रवेश करती है। यह धारणा उन धर्मों में नहीं है जो यहूदी धर्म से निकले है। जैसे ईसाई और मुस्‍लिम धर्म। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-19)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-18)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

क्‍या हम दस हजार बुद्धों का उत्‍सव मना सकते है?

      आनन्‍दो तथा निर्वाणों ने ओशो के लिए उद्यान में ‘वाक-वे’बनने का निश्‍चय किया ताकि वे कुछ घूम-फिर सकें और अस्‍वस्‍थ होने के कारण जब प्रवचन देने के लिए न जा सकें तो उद्यान को देख सकें। वे मान गए यद्यपि उन्‍हें ज्ञात था कि वह एक दो बार से अधिक उसका उपयोग नहीं कर सकेंगे। इन दोनों का विचार ओशो के लिए एक चित्र कला कक्ष बनाने का था। वर्षों पहले वे बहुत चित्र बनाया करते थे। परंतु उन्‍हें ‘फैल्‍ट पैन’ तथा स्‍याही की गंध ऐ एलर्जी हो गई थी। उनके बेड़ रूम के साथ वाले कमरे को चित्रकला-कक्ष बनाया गया। जहां वे चित्र बना सकें हम उनके लिए ऐसे एयर ब्रश,इंक और रंग ढूंढने में सफल हो गए थे जिनमें किसी प्रकार की कोई गंध नहीं आती थी। यह कमरा सफेद तथा हरे संगमरमर से बनाया गया और यह उन्‍हें इतना पसंद अया कि बहुत ही छोटी होने के बावजूद वे वहां नौ महीने सोए। वे इसे अपनी छोटी सी कुटिया कहते थे। परंतु उन्‍होंने इसमें एक ही बार पेंटिंग बनाई। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-18)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-17)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

पुणे दो विश्‍लेषण: थैलीयम ज़हर (अध्‍याय—17)

     पुलिस कमिशनर ने आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। लेकिन आश्रम के लिए आचार-प्रतिमानों के रूप में कुछ शर्तों पर उसे स्‍थापित कर देने की इच्‍छा  प्रकट की शर्तें चौदह थी। उनमें से कुछ शर्तें ऐसी थी जो यह भी निश्चित करती थी कि ओशो किस विषय पर और कितना समय प्रवचन दें। वे किसी धर्म के विरूद्ध न बोले या कोई भड़काने वाली बात न कहें। केवल एक सौ विदेशियों को ही आश्रम के द्वार के भीतर प्रवेश कर सकते है; प्रत्‍येक विदेशी का नाम पुलिस के पास होना चाहिए, हमें कितने ध्‍यान करने होंगे और ध्‍यान की समयावधि क्‍या होगी यह भी निर्धारित किया जाएगा; पुलिस को किसी भी समय आश्रम में प्रवेश करने और प्रवचन में सम्‍मिलित होने का अधिकार होगा। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-17)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-16)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

रिश्‍ते—(अध्‍याय—16)

      ओशो के भारत चले जाने के बाद मैंने लंदन में एक माह प्रतीक्षा की। फिर मुझे लगा कि भारत में प्रवेश करने का प्रयत्‍न सुरक्षित होगा। विवेक दो महीने पहले ही चली गई थी। उसने मुझे बताया कि जब मेरे भार आने की तिथि आई तो उसने ओशो से कहा कि मेरे बारे में कोई समाचार नहीं मिला और वह चिंतित थी कि मैं पहुंची हूं या नहीं। ओशो बस मुस्‍कुरा दिए। मैं पहले ही पहुंच चुकी थी। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-16)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-15)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

तुम मुझे छुपा नहीं सकते—(अध्‍याय-15)

      ओशो को संसार से छिपाए रखना उचित नहीं लग रहा था। एक हीरे के इन्द्रधनुष रंग प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति पर प्रतिबिम्‍बित होने चाहिए ताकि वह चकाचौंध हो जाए। इसी कारण उन्‍होंने भारत छोड़ा था। हम ओशो के लिए विश्‍व में एक ऐसा स्‍थान ढूंढ़ रहे थे जहां वे अपने लोगों से जो कहना चाहते है कह सकें। उन्‍हें कुछ ज्‍यादा नहीं चाहिए था—बस इतना ही कि वे अपने अनुभव को दूसरों के साथ बांट सकें।   Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-15)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-14)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

उरूग्‍वे—(अध्‍याय—14)

      चार अंगरक्षकों सहित मैं लंदन एयरपोर्ट से उरूग्‍वे रवाना हुई। हास्‍या तथा जयेश ने सुरक्षा कर्मियों का प्रबंध किया। जो प्रति-विद्रोह प्रति आतंकवाद के कार्य में निपुण थे तथा सूचना पहुंचाने, विध्‍वंस तथा गोलाबारी में प्रशिक्षित थे। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति अपने-अपने विशेष कार्य में प्रवीण था। उरूग्‍वे में वे ओशो की सुरक्षा के लिए तैयार किए गए थे क्‍योंकि हमें मालूम नहीं था कि वहां कैसा रहेगा। वे मेरे आस-पास सिपाहियों की भांति खड़े थे और उनकी सूरतें धमकाने वाली रही थी। और मुझे लगा कि मेरी अच्‍छी देख भाल हो रही है। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-14)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-13)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

मौन प्रतीक्षा—(अध्‍याय—13)

6मार्च 1986, रात्रि 1.20बजे।

ओशो के साथ एक छोटे जैट विमान में विवेक देवराज,आनंदों, मुक्‍ति और जॉन सवार हुए। एथेंस से विमान ने एक अज्ञात लक्ष्‍य की और उड़ान भरी—जिसका पता पायलेटों को भी नहीं था। आकाश में उन्‍होंने जान से पूछा, ‘किधर।’ जॉन भी यह नहीं जानता था। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-13)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-12)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

क्रीट—(अध्‍याय—12)

यह फरवरी का मध्‍य था और ‘’एजियन’’ समुंद का पानी ठंडा था, लेकिन चट्टानों के बीच बन गए गहरे और स्‍वच्‍छ ताल में, जहां समुंद चट्टानों के ऊपर से धीमे-धीमे बहकर आ रहा था, मुझे उसमे नग्‍न तैरना बहुत ही अच्‍छा लगता था। सूर्य चमक रहा था, और मैंने चट्टान में बने घर और उस तक जाती चट्टान में से कांट कर बनाई गई घुमावदार सीढ़ियों की और देखा। मकान के सबसे ऊपरवाले कमरों में ओशो रहते थे। और उनकी बैठक की गोलाकार खिड़की से समुद्र व खड़ी चट्टानें दिखाई देती थी। उनका शयनकक्ष मकान के पिछवाड़े में बना हुआ था। इसलिए वहां अँधेरा रहता था। और वह गुफा जैसा लगाता था। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-12)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-11)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

नेपाल—(अध्‍याय—11)

      विमान के धरती को छूने से पहले ही में नेपाल के जादू को महसूस कर रही थी। मैं धीरे से फुसफुसाई, ‘मैं घर लौट रही हूं।’ एयरपोर्ट अधिकारी भद्र व्‍यक्‍ति थे। उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी तथा सड़को पर आ जा रहे लोगों के चेहरे इतने सुंदर थे जो मैंने पूरे विश्‍व में कही नहीं देखे थे1 यद्यपि नेपाल भार से अधिक निर्धन है परंतु वहां के लोगों में एक गरिमा है। जो इस तथ्‍य का खंडन करती है। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-11)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-10)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

कूल्लू मनाली—(अध्‍याय–10)

      हवाई जहाज़ ने दिल्‍ली से प्रात: दस बजे कूल्‍लू मनाली के लिए उड़ान भरी। वह सुबह पहल ही बहुत व्‍यस्‍त रही थी क्‍योंकि सात बजे हयात रिजेंसी होटल में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई थी। जिसमें ओशो ने अमरीका के प्रति अपने विचारों को निर्भीकता पूर्वक व्‍यक्‍त किया था। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-10)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-09)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

सूली देने का अमेरिकी ढंग—(अध्‍याय—09)

      जब हम मध्‍य नवम्‍बर की एक शाम को बारिश से भीगी पोटलैंड़ की सड़कों पर ड्राइव कर रहे थे। प्रिसीडेंट के मोटर काफ़िले जितने एक दस्‍ते ने रोल्‍स रायस को घेर लिया। कम से कम पचास पुलिसवाले होंगे जो चमकते काले कपड़ों में दैत्‍यों जैसे लग रहे थे। उनके चेहरे ऐनक तथा हैल्मेट से ढँके हुए थे तथा वे शक्‍तिशाली हारले डेविडसन मोटर साइकिलों पर सवार थे। सभी सड़कों के प्रत्‍येक जंकशन पर घेरा डाल लिया गया था। मोटरसाइकल सवारों ने बड़ी नाटकीय ढंग अपनाया ऐसे कि अगले दो कार के दानों और खड़े दो लोगों का स्‍थान आसानी से ले सकते थे। वे ट्रैफिक के बीच में तथा उसके आस-पास कला बाजों के समान ड्राइव कर रहे थे। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-09)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-08)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

अमरीका—क़ैद—(अध्‍याय—08)

      अक्‍टूबर 28, 1985

अलियर जैट शारटल उतरी कैरोलिया के हवाई-अड्डे पर उतरने वाला था और मैंने बाहर अंधेरे में देखा, हवाई अड्डा सूनसान पडा था। कुछ लम्‍बी, पतली झाड़ियां जैट द्वारा उड़ाई गई हवा में झूल रही थी।     जैसे ही जैट ने ज़मीन को छुआ और इंजन बंद हुआ। निरूपा ने हान्‍या को देखा। हास्‍या,जिसके हाथ हम शारलट में रहनेवाले थे निरूपा की अत्‍यंत युवा सास थी। वह तारकोल की विमान पट्टी पर अपने मित्र प्रसाद के साथ खड़ी थी। निरूपा ने उत्‍साहपूर्वक हान्‍या को पुकारा और ठीक उसी समय कई दिशाओं से आई ‘हैंड्स आप’ की आवाज़ों ने मुझे किसी अन्‍या सच्‍चाई में पहुंचा दिया। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-08)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-07)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

जनीशपुरम—02 (अध्‍याय—07)

               जब तक न्‍यायालय हमारे पक्ष में कोई निर्णय न दे व्‍यावसायिक क्षेत्र (कमार्शियल-जोन) में न होने के कारण हम कोई व्‍यवसाय स्‍थापित नहीं कर सकते थे; पर्याप्‍त टेलीफ़ोन भी लगवा सकते थे। निकटतम क़सबा एंटिलोप था जिसके लगभग चालीस निवासी थे। यह क़सबा ऊंचे-ऊंचे पॉपलर (पहाड़ी पीपल) वृक्षों के बनों में बसा हुआ था। तथा रजनीशपुरम से अठारह मील की दूरी पर था। व्‍यापार के लिए हम वहां एक ट्रेलर ले गए थे। मात्र एक ट्रेलर और थोड़े से संन्‍यासी, और हम पर कस्बे पर अधिकार जमाने का आरोप लगा। भय के कारण स्‍थानीय निवासियों ने अपने नगर का ‘अनिवासी करण’ कर दिया। हमने उनके विरूद्ध न्‍यायालय में मुकदमा दायर कर दिया। जीत हमारी हुई। इस घटना ने ऐसे कुरूप नाटक का रूप ले लिया कि अमरीका वासियों में इसकी चर्चा उनके नवीनतम धारावाहिकों से भी अधिक होने लगी। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-07)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-06)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

रजनीश पुरम—भाग-1 (अध्‍याय—06)

            रजनीशपुरम अमरीका में नहीं था। वह अपने में एक देश था—अमरीकी स्‍वप्‍नों से मुक्‍त। शायद  यही कारण था कि अमरीका राजनीतिज्ञों ने उसके साथ युद्ध छेड़ दिया।

आशीष, अर्पिता, गायन और मैं हवाई जहाज़ से अमरीका के पार आ गए।

आशीष लकड़ी का जादूगर था। वह केवल एक उत्‍कृष्‍ट बढ़ई ही नहीं था जो ओशो के लिए कुर्सीया बनाता है। बल्‍कि और कोई भी तकनीकी या बिजली का काम हो तो वह उसे करने में सक्षम है। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-06)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-05)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

न्‍यूजर्सी—दुर्ग  (अध्‍याय—05)

               ओशो ने लगभग बीस शिष्‍यों के साथ भारत छोड़ दिया। अलविदा कहते हुए उनके संन्‍यासी हाथ जोड़े उनके द्वार के बाहर रास्‍ते, कार पोर्च में तथा आश्रम की सड़क के दोनों और कतार में खड़े थे। विवेक और निजी चिकित्‍सक देवराज के साथ उन्‍होंने मरसीडीज़ से प्रस्‍थान किया।

विवेक, जिसमें बच्‍चों जैसी सुकुमार चंचलता थी जो उसके चारित्र्य बल और किसी भी परिस्‍थिति को संभालने की उसकी योग्‍यता को छिपाए रखती और देवराज जो एक लम्‍बा उँचा चाँदी जैसे बालों वाला सुशिष्‍ट-सुरुचिपूर्ण युवक था-दोनों एक सुंदर जोड़ी बना रहे थे। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-05)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-04)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

ऊर्जा दर्शन—(अध्‍याय—04)  

       ओशो 21 मार्च 1953 में बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हुए। उसी दिन से वे उन लोगों की खोज में है जो उन्‍हें समझ सकें। और बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हो सकें। उन्‍होंने उन सैंकड़ों सशस्त्रों की सहायता की है जो आत्‍म-बोध के मार्ग पर है।

मैंने उन्‍हें कहते सूना है :

‘मनुष्‍य की सत्‍य के लिए प्‍यास जन्‍मों-जन्‍मों तक चलती है। कई जन्‍मों के पश्‍चात वह उसे पाने में समर्थ होता है। और जो इसकी खोज करते है सोचते है कि इसकी प्राप्‍ति के बाद वे शान्ति का अनुभव करेंगे। लेकिन जो इसे पाने में सफल हो जाते है, पाते है उन्‍हें पता चलता है कि उनकी सफलता एक नई प्रसव-पीड़ा की शुरूआत है, बिना किसी पीड़ा-मुक्‍ति के। सत्‍य जब एक बार मिल जाता है, एक नई प्रसव-पीड़ा को जन्‍म देती है।’ Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-04)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-03)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शून्यो )-आत्म कथा 

प्रेम मुख विहीन आता है—(अध्‍याय—03)

       लाओत्से हाउस (ओशो-गृह) एक महाराजा की सम्‍पति था। जिसका चुनाव इसके बीच खड़े बादाम के उस विशाल पेड़ के कारण किया गया था। जिसके रंग गिरगिट की भांति लाल से केसरी पीले फिर हरे रंग में बदल जाते है। इसके मौसम कुछ सप्‍ताह उपरान्‍त बदलते रहते है। और फिर भी मैंने इसकी शाखाओं को कभी पत्र-विहीन नहीं देखा। उधर एक पत्‍ता गिरा कि नया चमकीला हरा पत्‍ता उसका स्‍थान लेने को आतुर होता है। पेड़ के पत्‍तों की छाया के नीचे एक छोटा सा झरना है और एक रॉक गार्डन है। जिसका निर्माण एक सनकी दीवाने इटालियन ने किया था। जो उसके बाद कभी दिखाई नहीं दिया। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-03)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-02)

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शूून्यो )-आत्म कथा 

ज्‍योतिर्मय अंधकार—(अध्‍याय—02)

       भारत में पूना के एक होटल में प्रथम रात्रि व्‍यतीत करने के बाद मैंने सत्‍य की खोज का परित्‍याग करने का निश्‍चय किया। यह होटल बाहर से देखने में अच्‍छा लग रहा था। मैं भारतीय हवाई-अड्डे और रेलवे स्‍टेशन के अपने प्रथम अनुभव के उपरान्‍त थकी-घबराई, कुछ डांवाडोल सी यहां पहुंची थी। स्‍टेशन किसी शरणार्थी शिविर जैसा लग रहा था। वहां प्‍लेटफार्म के ठीक मध्‍य में लोग अपने पूरे परिवार के साथ गठरियों पर सोये हुए थे। और दूसरे यात्री उनके उपर से; उनके आसपास से आ-जा रहे थे। लंगड़े-लूले व भूखे से पीड़ित लोग मेरी और टूट पड़े। भीख मांगने लगे और मुझे यूं घूरकर देखने लगे जैसे मुझे ही खा जाएंगे। Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-02)”

हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-01 )

हीरा पाया बांठ गठियायों-(मा प्रेम शूून्यो )-आत्म कथा 

मैं यहीं हूं  (अध्‍याय—01 )

कुछ कहना है?

एक आवाज भीतर पुकार-पुकार कर कहती है। ‘मैं यहीं हूं, मैं यहीं हूं।’ मैं अवाक हूं। और तभी वे आंखें।

जब गुरु शिष्‍य की आंखों में देखता है, यह देखता है, और वह देखता है। वह पूरी कहा कहानी देख रहा है अतीत वर्तमान और भविष्‍य—सभी कुछ। गुरु के सामने शिष्‍य पारदर्शी है। और यह उसमें छिपे अप्रकट बुद्ध को देख सकता है। मैं वहां बैठी ही रह सकती थी ताकि ‘वे मेरे भीतर तक पहुंच जाएं…..क्‍योंकि हीरे को पाने का बस यही एकमात्र उपाय है। भीतर एक भय है कि कहीं वे मेरे अचेतन में पड़ी उन बातों को ने देख लें। जिन्‍हें मैं छिपाए रखना चाहती थी। परंतु वह मेरी ओर ऐसी प्रेम पूर्ण दृष्‍टि से देखते है कि मैं केवल इतना ही कह पाती हूं, ‘हां।’ Continue reading “हीरा पाया बांठ गठियायों-(अध्याय-01 )”

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