तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-06)

तंत्र अध्यात्म और काम
छठवां-प्रवचन (तंत्र-सपर्पण का मार्ग)

(Tanta Spituality And Six-का हिन्दी अनुवाद)

पहला प्रश्न: भगवान, विज्ञान-भैरव-तंत्र की जिन विधियों की हमने अब तक चर्चा की है क्या वे वास्तव में तंत्र का केंद्रीय विषय होने की अपेक्षा योग के विज्ञान से संबंधित हैं? और तंत्र का केंद्रीय विषय क्या है? इसे समझाने की कृपा करें।

यह प्रश्न बहुतों के मन में उठता है। जिन विधियों की हमने चर्चा की है उनका योग में भी प्रयोग होता है लेकिन कुछ भिन्न ढंग से। तुम एक ही विधि का प्रयोग बिल्कुल भिन्न दर्शन की पृष्ठ भूमि में भी कर सकते हो। उसका ढांचा उसकी पृष्ठभूमि अलग होती है विधि नहीं। योग का जीवन के प्रति भिन्न दृष्टिकोण है तंत्र से बिल्कुल
विपरीत। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-06)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-05)

तंत्र, अध्यात्म और काम
पांचवां–प्रवचन-(तंत्र के माध्यम से परम संभोग)

(Tanta Spituality And Six-का हिन्दी अनुवाद)

इससे पहले कि मैं तुम्हारा प्रश्न लूं कुछ और बातें स्पष्ट हो जानी चाहिए क्योंकि उनसे तंत्र को समझने में और मदद मिलेगी। तंत्र कोई नैतिक धारणा नहीं है। न तो वह नीति है न अनीति–वह नीति से परे है। तंत्र विज्ञान है–विज्ञान वे दोनों ही नहीं। तुम्हारी नैतिकताएं और नैतिक आचरण संबंधी धारणाएं तंत्र के लिए अप्रासंगिक हैं। कोई किसी तरह का आचरण करे तंत्र का इससे कुछ संबंध नहीं। उसका आदर्शों से कुछ संबंध नहीं। उसका संबंध क्या है और तुम क्या हो, इससे है। इस फर्क को गहराई से समझ लेना जरूरी है। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-05)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-04)

तंत्र, अध्यात्म और काम-(ओशो)
चौथा-प्रवचन-(तांत्रिक काम-क्रीडा की आध्यात्मिकता)

(Tanta Spituality And Six-का हिन्दी अनुवाद)

 सिगमंड फ्रायड ने कहीं कहा है कि मनुष्य जन्म-जात स्नायु-रोगी है। यह अर्द्ध सत्य है। मनुष्य स्नायु-रोगी नहीं पैदा होता, लेकिन स्नायुरोग-ग्रस्त मनुष्यता में जन्म लेता है; और चारों तरफ का सामाजिक प्रवेश प्रत्येक व्यक्ति को देर-अबेर सायुरोगी बना देता है। आदमी जब पैदा होता है वह प्राकृतिक वास्तवकि सामान्य होता है। लेकिन जैसे
ही नवजात शिशु इस समाज का हिस्सा हो जाता है उस पर स्नायुरोग का प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-04)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-03)

तीसरा प्रवचन—(काम में समग्र समर्पण)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

तुम जो भी करो उसे ध्यान बनाते हुए समग्रस्ता से करो–काम को भी। यह समझना आसान है कि अकेले क्रोध कैसे किया जाए लेकिन तुम संभोग भी अकेले कर सकते हो। और उसके बाद जो तुम्हें मिलेगा उससे गुणात्मक भेद होगा।

जब तुम नितांत अकेले हो, अपना कमरा बंद कर लो और तुम इस तरह व्यवहार करो जैसे काम-क्रीड़ा में करते हो। अपने पूरे शरीर को हिलने-डुलने दो। कूदो, चीखो, चिल्ला- जो कुछ करने को मन हो रहा हो उसे करो। उसे समग्रस्ता से करो। सब कुछ भूल जाओ- समाज, वर्जनाएं आदि। अकेले ही काम-क्रीड़ा में रत हो जाओ; ध्यान
पूर्वक, लेकिन अपनी सारी कामुकता इसमें डाल दो। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-03)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-02)

     तंत्र, अध्यात्म और काम-ओशो
दूसरा प्रवचन—(का अंश, तांत्रिक प्रेम)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

 शिव देवी से कहते हैं:?

”जब प्रेम किया जा रहा हो प्रिय देवी, प्रेम में शाश्वत जीवन की भांति प्रवेश करो।”

 शिव प्रेम से शुरू करते हैं। पहली विधि प्रेम से संबंधित है क्योंकि प्रेम ही वह निकटतम अनुभव है जिसमें तुम विश्राम पूर्ण, रिलैक्स होते हो। अगर तुम प्रेम नहीं कर सकते तो तुम्हारा विश्रामपूर्ण होना असंभव है। अगर तुम विश्रामपूर्ण हो सको तुम्हारा जीवन एक प्रेममय जीवन होगा।

तनाव से भरा व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता। क्यों? तनाव से भरा व्यक्ति हमेशा किसी उद्देश्य के लिए जीता है। वह धन कमा सकता है लेकिन प्रेम नहीं कर सकता। क्योंकि प्रेम का कोई उद्देश्य नहीं प्रेम कोई वस्तु नहीं। तुम उसका संग्रह नहीं कर सकते; तुम उसे बैंक में जमा-पूंजी नहीं बना सकते, तुम उससे अपने अहंकार को मजबूत नहीं कर सकते। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-02)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-01)

     तंत्र, अध्यात्म और काम-(ओशो)
पहला-प्रवचन-(तंत्र और योग)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

प्रश्न: भगवान, पारंपारिक योग और तंत्र में क्या अंतर है? क्या वे दोनों समान हैं?

तंत्र और योग मौलिक रूप से भिन्न हैं। वे एक ही लक्ष्य पर पहुंचते हैं लेकिन मार्ग केवल अलग-अलग ही नहीं, बल्कि एक दूसरे के विपरीत भी हैं। इसलिए इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। योग की प्रक्रिया तत्व-ज्ञान प्रणाली-विज्ञान भी है योग विधि भी है। योग दर्शन नहीं है। तंत्र की भांति योग
भी किया, विधि, उपाय पर आधारित है। योग में करना होने की ओर ले जाता है लेकिन विधि भिन्न है। योग में व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है; वह योद्धा का मार्ग है। तंत्र के मार्ग पर संघर्ष बिल्कुल नहीं है। इसके विपरीत उसे भोगना है लेकिन होशपूर्वक बोधपूर्वक। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(प्रवचन-01)”

तंत्र-अध्यात्म और काम-(ओशो)

तंत्र, अध्यात्म और काम-ओशो

(तांत्रिक-प्रेम विधियों के संबंध में छ: प्रवचनों का संकलन)

(Tantra Spiituality and Sex का हिन्दी अनुवाद)

इस पुस्तक से:

योग होशपूर्वक दमन है तंत्र होशपूर्वक भोग है।

तंत्र कहता है कि तुम जो भी हो परम-तत्व उसके विपरीत नहीं है। यह विकास है तुम उस परम तक विकसित हो सकते हो। तुम्हारे और सत्य के बीच कोई विरोध नहीं है। तुम उसके अंश हो इसलिए प्रकृति के साथ संघर्ष की, तनाव की, विरोध की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें प्रकृति का उपयोग करना है; तुम जो भी हो उसका

उपयोग करना है ताकि तुम उसके पार जा सको। Continue reading “तंत्र-अध्यात्म और काम-(ओशो)”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें