चल उड़ जा रे पंछी—(प्रवचन—उन्नीसवां)
दिनांक 9 जुलाई 1974(प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना
भगवान!
नित्य की तरह शिष्यों को उपदेश देने के निमित्त,
भगवान बुद्ध सुबह-सुबह सभागृह में पधारे। श्रोताओं की भीड़ इकट्ठी थी पहले से ही।
इसके पहले कि वे बोलने के लिये अपना मौन तोड़ दें,
एक पक्षी कक्ष के वातायन पर आ बैठा;
परों को फड़फड़ाया, चहका, और फिर उड़ गया।
भगवान बुद्ध ने वातायन की तरफ नजर उठाकर कहा,
‘आज का प्रवचन समाप्त हुआ!’ और वे सभा से चले गए।
भगवान! कृपापूर्वक बतायें कि यह कैसा प्रवचन था और इसमें क्या कहा गया? Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-19)”