बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-19)

चल उड़ जा रे पंछी—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

दिनांक 9 जुलाई 1974(प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना

भगवान!

नित्य की तरह शिष्यों को उपदेश देने के निमित्त,

भगवान बुद्ध सुबह-सुबह सभागृह में पधारे। श्रोताओं की भीड़ इकट्ठी थी पहले से ही।

इसके पहले कि वे बोलने के लिये अपना मौन तोड़ दें,

एक पक्षी कक्ष के वातायन पर आ बैठा;

परों को फड़फड़ाया, चहका, और फिर उड़ गया।

भगवान बुद्ध ने वातायन की तरफ नजर उठाकर कहा,

‘आज का प्रवचन समाप्त हुआ!’ और वे सभा से चले गए।

भगवान! कृपापूर्वक बतायें कि यह कैसा प्रवचन था और इसमें क्या कहा गया? Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-19)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-18)

वासना-रहितता और विशुद्ध इंद्रियां—(प्रवचन—अट्ठारहवां)

दिनांक 8 जुलाई 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

संत उत्झूगेन ने एक दिन अपने शिष्यों से कहा,

‘तुम में से प्रत्येक के पास एक जोड़ा कान है,

लेकिन उनसे तुमने क्या कभी कुछ सुना?

प्रत्येक के पास मुंह हैं, लेकिन उससे तुमने क्या कभी कुछ कहा?

और प्रत्येक के पास आंखें हैं, उनसे क्या कभी कुछ देखा?’

‘नहीं-नहीं। तुमने न कभी सुना है, न कभी कहा है, न कभी देखा है, न कभी सूंघा है।

लेकिन ऐसी हालत में ये रंग, रूप, स्वर और सुगंध आते कहां से हैं?’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-18)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-17)

अहंकार की उलझी पूंछ—(प्रवचन—सत्रहवां)

दिनांक 7 जुलाई 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

एक दिन गोसो ने अपने शिष्यों से कहा,

‘एक भैंस उस आंगन से बाहर निकल गयी है, जिसमें कि वह कैद थी।

उसने आंगन की दीवार तोड़ डाली है।

उसका पूरा शरीर ही दीवार से बाहर निकल गया–सींग, सिर, पैर, धड़, सब;

लेकिन पूंछ बाहर नहीं निकल पा रही है। और पूंछ कहीं उलझी हुई भी नहीं है।

और पूंछ को किसी ने पकड़ भी नहीं रखा है। Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-17)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-16)

साधु, असाधु और संत—(प्रवचन—सोलहवां)

दिनांक 6 जुलाई 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

एक धनाढय बुढ़िया बीस वर्षों से एक साधु को आश्रय दिये थी।

उसके लिये एक झोपड़ा बनवा दिया था और भोजन देती थी।

एक दिन उसने साधु की जांच लेने की सोची। इसके लिये एक वेश्या की मदद ली।

उससे उसने कहा, ‘जाओ और साधु का आलिंगन करो।’ और फिर पूछो, ‘अब क्या हो?’

वेश्या साधु के पास गयी, उस पर प्रेम प्रगट किया और

फिर पूछा कि अब क्या होना चाहिये? Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-16)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-15)

आखिरी भोजन हो गया?—(प्रवचन—पंद्रहवां)

दिनांक 5 जुलाई 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

एक नया-नया शिष्य, गुरु जोशू के पास आकर बोला,

‘मैं हाल ही धर्मसंघ में सम्मिलित हुआ हूं और ध्यान का पहला सूत्र सीखना चाहता हूं।

क्या आप मुझे वह सिखाने की कृपा करेंगे?’

जोशू ने पूछा, ‘क्या तुमने शाम का भोजन कर लिया?’

शिष्य ने कहा, ‘जी, मैंने कर लिया।’

गुरु ने तब कहा, ‘अब जाकर अपनी थाली धो लो।’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-15)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-14)

जो जगाये, वही गुरु–(प्रवचन–चौदहवां)

दिनांक 4 जुलाई 1974 (प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

गुरु पूर्णिमा के इस पवित्र अवसर पर हमारे शत-शत नमन स्वीकार करें।

भगवान! एक सद्गुरु ने अपने शिष्य को आवाज दी, ‘होशिन!’

गुरु का नाम था कोकुशी।

गुरु की आवाज पर शिष्य ने कहा, ‘जी।’

कोकुशी ने दुबारा पुकारा, ‘होशिन!’

और शिष्य ने फिर कहा, ‘जी।’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-14)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-13)

प्रयास नहीं, प्रसाद—(प्रवचन—तेरहवां)

दिनांक 3 जुलाई 1974 (प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

यह सुनकर कि अब आप चुने हुए साधकों के बीच ही बोलते हैं

और उन पर ही काम करते हैं, हमारे बीच तरहत्तरह की प्रतिक्रियाएं हुई हैं।

एक संन्यासी मित्र ने कहा, ‘इससे एक ओर,

जहां मेरे अहंकार को रस मिला कि मैं चुना गया,

वहां दूसरी ओर यह डर भी लगा कि अब शायद

भगवान के प्रवचनों में रोज सम्मिलित होना ऐच्छिक न रहकर अनिवार्य हो जाए।

एक दूसरे संन्यासी मित्र ने कहा, ‘भगवान तो परम करुणावान हैं, Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-13)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-12)

पृथ्वी में जड़ें, आकाश में पंख—(प्रवचन—बारहवां)

दिनांक 2 जुलाई 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

जीवन का गंतव्य क्या है, इस संबंध में प्राचीन हिंदू मनीषी चार चीजें बताते हैं:

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

और आप कहते हैं, मैं तुम्हें एक साथ जीवन में जड़ें देना चाहता हूं

और जीवन के महाआकाश में उड़ने के पंख भी।

कृपाकर बताएं कि दोनों बातों में मेल क्या है और फर्क क्या है?

साथ ही यह भी बताने का कष्ट करें कि प्रज्ञा और तर्क; अमृत और प्रकाश; Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-12)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-11)

मृत्यु : जीवन का द्वार—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)

दिनांक 1 जुलाई 1974 (प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

किसी सौदागर के पास एक हिंदुस्तानी पक्षी था। उसे उसने पिंजरे में बंद रखा था।

जब वह सौदागर दुबारा भारत जाने लगा, तब उसने पक्षी से पूछा

कि तुम्हारे देश से तुम्हारे लिये क्या लाऊं?

पक्षी ने कहा, ‘लाना कुछ नहीं, केवल हिंदुस्तान के किसी जंगल में जाना Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-11)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-10)

भक्त की पहचान: शिकायत-शून्य हृदय—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक 30 जून 1974(प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना.

 भगवान!

एक बार मूसा ने भगवान से कहा, ‘मुझे आपके किसी भक्त को देखने की इच्छा है।’

इस पर एक आवाज आई कि फलां घाटी में चले जाओ, वहां तुम्हें वह मिलेगा

जो भगवान को प्यारा है, जो भगवान को प्रेम करता है और जो सत्पथ पर चलता है।

मूसा वहां गये और उन्होंने देखा कि वह आदमी तो चीथड़ों से लिपटा पड़ा है।

और तरहत्तरह के कीड़े-मकोड़े उसके शरीर पर रेंग रहे हैं।

मू्सा ने पूछा, ‘क्या मैं तुम्हारे लिये कुछ कर सकता हूं?’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-10)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-09)

जहां वासना, वहां विवाद—(प्रवचन—नौवां)

 दिनांक 29 जून 1974 (प्रातः), श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

 एक आदमी था, जो जानवरों की भाषा समझता था।

वह एक दिन किसी रास्ते से जा रहा था।

वहां एक गधा और एक कुत्ता आपस में बड़े जोर-जोर से झगड़ रहे थे।

कुत्ता कह रहा था, ‘बंद करो ये घास और चारागाह की बातें!

कुछ खरगोश या हड्डियों के संबंध में कहो। मैं तो उकता गया हूं।

उस आदमी से न रहा गया और वह बोला,

‘सूखी घास का उपयोग भी तो किया जा सकता है; जो गोश्त जैसा ही होगा।’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-09)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-08)

बेईमानी : संसार के मालकियत की कुंजी—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक 28 जून 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

एक बदमाश था, जिसे गांव के लोगों ने पकड़ा और एक पेड़ से बांध लिया।

और उससे कहा कि तुम्हें आज शाम तक हम समुद्र में डुबो देंगे।

यह कहकर वे लोग अपने काम पर चले गये। इस बीच एक गड़रिया आया

और उसने बदमाश से पूछा कि क्यों यहां बंधे पड़े हो?

चालाक बदमाश ने कहा, ‘कुछ लोगों ने मुझे इसलिये बांध दिया कि

मैंने उनके रुपये लेने से इनकार कर दिया।

हैरत में आकर गड़रिये ने पूछा, ‘वे तुम्हें रुपये क्यों देना चाहते थे? Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-08)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-07)

मनुष्य की जड़: परमात्मा—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 27 जून 1974(प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

किसी आदमी ने एक दिन एक पेड़ को काट लिया।

एक सूफी फकीर ने, जो यह सब देख रहे थे, कहा, ‘

इस ताजा डाल को तो देखो!

वह रस से भरा है और खुश है।

क्योंकि वह अभी नहीं जानता है कि काट डाला गया है।

हो सकता है यह इस भारी घाव से अनजान हो, Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-07)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-06)

प्रेम मृत्यु से महान है—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक 26 जून 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

 भगवान!

किसी जमाने में एक शरीफ की बेटी थी–सौंदर्य में अप्रतिम।

रूप में ही नहीं, गुण-शील में भी उसका जोड़ नहीं था।

वह ब्याहने के योग्य हुई तब रूप-गुण में श्रेष्ठ

तीन युवकों ने उससे ब्याह का प्रस्ताव रखा।

यह देखकर कि तीनों युवक समान योग्यता के हैं,

पिता ने लड़की पर ही चुनाव का भार छोड़ दिया।

लेकिन महीनों तक लड़की कुछ तय नहीं कर पाई। Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-06)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-05)

जीवन एक वर्तुल है—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 25 जून 1974 (प्रातः),   श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

आज एक लोककथा जैसी दिखने वाली सूफी कहानी का अर्थ

आप हमें समझाने की कृपा करें।

एक चोर चोरी के इरादे से खिड़की की राह, एक महल में घुस रहा था।

खिड़की की चौखट के टूटने से वह जमीन पर गिर पड़ा और उसकी टांग टूट गई।

चोर ने इसके लिए महल के मालिक पर अदालत में मुकदमा कर दिया।

गृहपति ने कहा, ‘इसके लिए तो चौखट बनाने वाले बढ़ई पर मुकदमा होना चाहिए।’ Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-05)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-04)

मृत शब्दों से जीवित सत्य की प्राप्ति असंभव—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक २४ सितंबर, १९७४.  श्री ओशो आश्रम, पूना।

भगवान!

एक घुमक्कड़ साधु ने एक बूढ़ी स्त्री से तैजान का रास्ता पूछा। तैजान एक प्रसिद्ध मंदिर है और समझा जाता है कि वहां पूजा करने से विवेक की उपलब्धि होती है।

बूढ़ी स्त्री ने कहा: ‘सीधे आगे चले जाओ।’

जब साधु कुछ दूर गया था तो बुढ़िया ने स्वयं से कहा: ‘यह भी एक साधारण मंदिर जाने वाला है।’

किसी ने यह बात जोशू से कह दी। Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-04)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-03)

ध्यान: एक अकथ कहानी—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 23 जून 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

झेन संत, होजेन अपने शिष्यों से कहा करते थे, कि ध्यान उस आदमी की तरह है,

जो एक ऊंची चट्टान के किनारे खड़े वृक्ष को दांत से पकड़कर लटक रहा है।

न उसके हाथ किसी डाली को थामे हैं, और न उसके पांवों को ही कोई सहारा है।

और तभी चट्टान के किनारे खड़ा दूसरा आदमी उससे पूछता है,

‘बोधिधर्म भारत से चीन क्यों आये?’

यदि वह उत्तर नहीं देता है तो वह खो जायेगा और Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-03)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-02)

मन की आंखें खोल—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 22 जून 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर से रात के समय विदा होने लगा तो

मित्र ने अपनी लालटेन उसके हाथ में थमा दी।

अंधे ने कहा,’मैं लालटेन लेकर क्या करूं? अंधेरा और रोशनी दोनों मेरे लिए बराबर हैं।’

मित्र ने कहा,’रास्ता खोजने के लिए तो आपको इसकी जरूरत नहीं है,

लेकिन अंधेरे में कोई दूसरा आपसे न टकरा जाये

इसके लिये यह लालटेन कृपा करके आप अपने साथ रखें। Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-02)”

बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-01)

मृण्मय घट में चिन्मय दीप—(प्रवचन—पहला)

दिनांक 21 जून 1974 (प्रातः),  श्री रजनीश आश्रम; पूना.

भगवान!

परम तत्व को उपनिषद स्वयंभू या स्वप्रकाश कहते हैं।

आप कहते हैं कि जो सकारण है वह पदार्थ है;

और जो अकारण है, वह परमात्मा।

इसी बात को संत कवित्वमयी भाषा में कहते हैं:

‘दिया बले अगम का बिन बाती बिन तेल।’

लेकिन हम हैं कि अकारण तत्व तो दूर,

इस सकारण जगत को भी ठीक से नहीं समझते हैं। Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(प्रवचन-01)”

बिन बाती बिन तेल-(झेन कहानियां)-ओशो

बिन बाती बिन तेल्–(ओशो

सूफी, झेन एवं उपनिषाद की कहानियों एवं बोध—कथाओं पर ओशो के सुबोधगम्‍य 19 अमृत प्रवचनों की शृंखला (जून—जूलाई 1974)

जो भी हम जानते है, जिन दियों से भी हमारा परिचयहै, वे सभी तेल से जलते है; उन सभी में बातीकी जरूरत होती है। अकारण हमारी जानकारी में कुछ भी नहीं।आग जलेगी तो ईंधन होगा। आदमी चलेगा तो भोजनजरूरी होगा। भोजन ईंधन है। जो भी हम जानते है, जो भी हमारा ज्ञान है। वह सभी कारण से बंधा है।…..

Continue reading “बिन बाती बिन तेल-(झेन कहानियां)-ओशो”

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