नव संन्यास क्या?
प्रवचन-सातवां
सावधिक संन्यास की धारणा मेरे मन में इधर बहुत दिन से एक बात निरंतर ख्याल में आती है और वह यह है कि सारी दुनिया से आनेवाले दिनों में संन्यासी के समाप्त हो जाने की संभावना है। संन्यासी आनेवाले पचास वर्ष के बाद पृथ्वी पर नहीं बच सकेगा, वह संस्था विलीन हो जाएगी। उस संस्था की नीचे की ईंटें तो खिसका दी गयी हैं और अब उसका मकान भी गिर जाएगा। लेकिन संन्यास इतनी बहुमूल्य चीज है कि जिस दिन दुनिया से विलीन हो जाएगा उस दिन दुनिया का बहुत अहित हो जाएगा। मेरे देखे पुराना संन्यास तो चला जाना चाहिए पर संन्यास बच जाना चाहिए और इसके लिए सावधिक संन्यास का, पीरियाडिकल रिनन्सिएशन का मेरे मन में ख्याल है। ऐसा कोई आदमी नहीं होना चाहिए जो वर्ष में एक महीने के लिए संन्यासी न हो। जीवन में तो कोई भी ऐसा आदमी नहीं होना चाहिए जो दो-चार बार संन्यासी न हो गया हो। स्थायी संन्यास खतरनाक सिद्ध हुआ है। कोई आदमी पूरे जीवन के लिए संन्यासी हो जाए, उसके दो खतरे हैं। एक खतरा तो यह है कि वह आदमी जीवन से दूर हट जाता है, और परमात्मा के प्रेम की, और आनंद की जो भी उपलब्धियां हैं वे जीवन के घनीभूत अनुभव में हैं, जीवन के बाहर नहीं। Continue reading “नव संन्यास क्या? (प्रवचन-07)”