गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-09)

(राजनीति से छुटकारा–नौवां प्रवचन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

शिविर का अंतिम दिन है और इसलिए यहां से विदा होने के पूर्व कुछ थोड़ी सी जरूरी बातें आपसे कह देनी आवश्यक हैं। लेकिन इसके पहले कि मैं उन्हें कहूं, एक-दो प्रश्न और, जो महत्वपूर्ण हैं और छूट गए हैं, उनकी भी चर्चा कर लेनी उचित होगी। फिर भी कुछ प्रश्न छूट जाएंगे, तो मैं निवेदन करूंगा कि जिन प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं, जिनकी चर्चा की गई, यदि उनको ठीक से सुना गया होगा, तो जो प्रश्न छूट जाएं उनका भी विचार आपके भीतर पैदा हो सकता है। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-09)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-08)

(अभाव का बोध–आठवां प्रवचन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीते दो दिनों में सुबह की चर्चाओं में दो बिंदुओं पर हमने विचार कियाः अज्ञान का बोध और रहस्य का बोध।

अज्ञान का बोध न हो तो ज्ञान ही बाधा बन जाता है और रहस्य का बोध न हो तो व्यक्ति अपने में ही सीमित हो जाता है। और जो विराट ब्रह्म विस्तीर्ण है चारों ओर, उससे उसके संपर्क-सूत्र शिथिल हो जाते हैं, उससे उसकी जड़ें टूट जाती हैं। और जो व्यक्ति अपने में ही केंद्रित हो जाता है वह स्वभावतः पीड़ा और दुख में पड़ जाता है और चिंता में पड़ जाता है। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-08)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-07)

(शास्त्र, धर्म और मंदिर-सातवां प्रवचन)

किसी ने पूछा है कि मैं कहता हूंः शास्त्र-ग्रंथ और धर्म-मंदिर व्यर्थ हैं। यह कैसे? शास्त्र-ग्रंथों से तो तत्व का ज्ञान मिलता है और मंदिर की भगवान की मूर्ति देख कर सम्यक दर्शन की प्राप्ति होती है।

संभवतः मैंने जो इतनी बातें कहीं, जिन्होंने भी पूछा है उन्हें सुनाई नहीं पड़ी होंगी।

मैंने यह कहा कि पदार्थ का ज्ञान बाहर से मिल सकता है, क्योंकि पदार्थ बाहर है। जो बाहर है उसका ज्ञान बाहर से मिल सकता है। कोई आत्म-ज्ञान से गणित और इंजीनियरिंग और केमिस्ट्री और फिजिक्स का ज्ञान नहीं हो जाएगा और न ही भूगोल के रहस्यों का पता चल जाएगा। जो बाहर है उसे बाहर खोजना होगा। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-07)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-06)

(ध्यान–जागरण का द्वार-छठवां प्रवचन)

तने दिन की चर्चा में मैंने यह कहा कि अज्ञानी मनुष्य, अज्ञान से घिरा हुआ व्यक्ति जो भी करेगा वह गलत होगा। वह जो भी करेगा गलत होगा।

पूछा हैः यदि अज्ञान से घिरा हुआ व्यक्ति जो भी करेगा वह गलत होगा, तो ध्यान, जागरण, इसकी जो चेष्टा है वह भी उसकी गलत होगी। फिर तो कोई द्वार नहीं रहा, फिर तो कोई मार्ग नहीं रहा। इससे संबंधित और दो-तीन प्रश्न भी हैं इसलिए सबसे पहले इसी प्रश्न को मैं ले लेता हूं। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-06)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-05)

अज्ञान का बोध, रहस्य का बोध-पांचवां प्रवचन

ज्ञान का बोध, इस संबंध में थोड़ी सी बात मैं आपसे कहना चाहता हूं।

जैसा मुझे दिखाई पड़ता है, अज्ञान के बोध के बिना कोई व्यक्ति सत्य के अनुभव में प्रवेश न कभी किया है और न कर सकता है। इसके पहले कि अज्ञान छोड़ा जा सके, ज्ञान को छोड़ देना आवश्यक है। इसके पहले कि भीतर से अज्ञान का अंधकार मिटे, यह जो ज्ञान का झूठा प्रकाश है, इसे बुझा देना जरूरी है। क्योंकि इस झूठे प्रकाश की वजह से, जो वास्तविक प्रकाश है, उसे पाने की न तो आकांक्षा पैदा होती है, न उसकी तरफ दृष्टि जाती है। एक छोटी सी घटना इस संबंध में कहूंगा और फिर आज की चर्चा शुरू करूंगा। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-05)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-04)

(नई संस्कृति का जन्म-प्रवचन-चौथा)

पूछा हैः क्या जीवन में किसी तरह के अनुशासन की, डिसिप्लिन की आवश्यकता नहीं है? और अगर अनुशासन न रहेगा तो अराजकता हो जाएगी। और न तो सभ्यता रहेगी, न कोई व्यवस्था रहेगी, बल्कि एक अराजकता, एक अनारकी पैदा हो जाएगी।

ठीक ही बात पूछी है। अब तक मनुष्य जिस भांति जिया है, और जैसी सभ्यता का उसने निर्माण किया है, जैसे समाज को बनाया, वह पूरा का पूरा समाज ही अनुशासन पर खड़ा है। और इसीलिए यह भय बिलकुल स्वाभाविक है कि यदि अनुशासन टूट जाए, तो समाज भी टूट जाए, सभ्यता भी टूट जाए, संस्कृति भी मिट जाए। अराजकता हो जाए। यह भय इसीलिए है, क्योंकि हमारे जीवन में जो भी नीति है, जो भी चरित्र है, वह सभी का सभी अनुशासन पर खड़ा है। और अनुशासन किस बात पर खड़ा हुआ है? अनुशासन किस बात पर निर्भर है? अनुशासन का, या डिसिप्लिन का अर्थ क्या है? Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-04)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-03)

(विवेक का अनुशासन-तीसरा

बहुत से प्रश्न हैं। मनुष्य का मन ऐसा है कि उसमें प्रश्न लगते हैं, जैसे वृक्षों में पत्ते लगते हैं। और हम यह भी सोचते हैं कि शायद प्रश्नों का कोई हल हो जाए, इसलिए उत्तर की खोज करते हैं। लेकिन उत्तर की खोज से प्रश्न का हल न कभी हुआ है, और न होगा। प्रश्न क्यों उठता है भीतर? जब तक इस बात की खोज न हो तब तक प्रश्न मिटता नहीं है। प्रश्न उठता है, मन की अशांति से और मन के अज्ञान से। उस अशांति को और उस अज्ञान को तो हम मिटाना नहीं चाहते, प्रश्न को हल करना चाहते हैं। तो ज्यादा से ज्यादा यही हो सकता है कि प्रश्न तो हल न हो, उत्तर सीखने में आ जाए। इसीलिए तो हमने बहुत से उत्तर सीख लिए। हमने प्रश्न पूछे और उत्तर मिल गया और उत्तर हमने सीख लिए। लेकिन उत्तर सीखने से भी प्रश्न समाप्त नहीं होता। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-03)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-02)

अज्ञान का घना अंधेरा-(दूसरा प्रवचन)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मैंने आपको कहा, एक दर्पण मैं आपको भेंट करना चाहता हूं। लेकिन फिर मुझे याद आया कि उसमें तो थोड़ी भूल हो गई है। दर्पण तो आपके पास ही है, लेकिन उस पर बहुत धूल जमी हुई है। उस धूल को ही अलग किया जा सके तो दर्पण कहीं और से पाने की कोई जरूरत नहीं है और धूल कुछ ऐसी है, जिसे अलग कर देना बड़ी आसान बात है, कठिन नहीं।

सुना होगा आपने, सत्य को या आत्मा को या मोक्ष को पा लेना बहुत कठिन है। निश्चित ही, अगर सरल से सरल बात भी गलत ढंग से की जाए, तो कठिन हो जाती है। हम यदि सूरज के पास पहुंचना चाहते हों और पीठ करके चलते हों, तो पहुंचना कठिन हो जाएगा। लेकिन वह कठिनाई, जहां हम जाना चाहते हैं, उस लक्ष्य में नहीं, बल्कि Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-02)”

गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-01)

मन दर्पण कहलाए-(पहला प्रवचन)

जीवन-सत्य के संबंध में थोड़ी सी बातें न केवल हम विचार करेंगे, बल्कि कैसे सत्य के जीवन में प्रवेश किया जाए, कैसे हम स्वयं छलांग लगा सकते हैं और सत्य का स्वाद ले सकते हैं, इस संबंध में प्रयोग भी करेंगे। बात का तो कोई बहुत मूल्य नहीं है, विचारों की कोई बहुत कीमत नहीं है, क्योंकि विचार मनुष्य के सारे प्राणों को न तो छूते हैं और न समस्त प्राणों को डुबाने में समर्थ हैं। जीवन में जो भी अर्थपूर्ण है, उसे पूरे प्राणों से अनुभव करने की तैयारी करनी पड़ती है। जैसे हम किसी को प्रेम करते हैं तो बुद्धि भी डूब जाती है, हृदय भी। देह भी डूब जाती है, श्वास भी डूब जाती है। सारा प्राण और सारा व्यक्तित्व प्राण में डूब जाता है और प्रेम का अनुभव होता है। Continue reading “गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-01)”

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