प्रेम दर्शन-(प्रवचन-04)

प्रेम दर्शन-(साधना-शिविर)-ओशो

प्रवचन-चौथा -(विद्रोही भगवान)

मेरे प्रिय आत्मन्!

पिछले तीन दिनों में सुबह और सांझ जो बाते मैंने कहीं है, उस संबंध में बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। जितने प्रश्नों का उत्तर संभव हो सकेगा वह मैं देने की कोशिश करूंगा।

एक मित्र ने पूछा है कि कहा जाता है प्रेम अंधा है और आप कहते हैं कि प्रेम परमात्मा है। तब क्या परमात्मा भी अंधा है?

उन्होंने ठीक पूछा है। सदियों से यह कहा जा रहा है कि प्रेम अंधा है। और यह वे ही लोग कहते हैं जिन्हें प्रेम का कोई अनुभव नहीं है। जिन्हें प्रेम का अनुभव है वे तो कहते हैं प्रेम के अतिरिक्त कोई आंख ही नहीं है। क्योेंकि प्रेम जो देख पाता है और कोई आंख नहीं देख पाती है। प्रेम ही आंख है। Continue reading “प्रेम दर्शन-(प्रवचन-04)”

प्रेम दर्शन-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(साधना-शिविर)-ओशो

प्रेम की अनंतता

मेरे प्रिय आत्मन्!

प्रेम है द्वार, प्रेम है मार्ग और प्रेम ही है प्राप्ति। मनुष्य की भाषा में प्रेम से ज्यादा बहुमूल्य और कोई शब्द नहीं। लेकिन बहुत कम सौभाग्यशाली लोग हैं जो प्रेम से परिचित हो पाते हैं। क्योंकि प्रेम की पहली शर्त ही आदमी पूरी नहीं कर पाता। और पहली शर्त पूरी करनी थोड़ी कठिन भी है।

पहली शर्त यह है कि जो आदमी अपने अहंकार को मिटाने को राजी है वही केवल प्रेम को उपलब्ध हो सकता है। और हम अपने अहंकार को ही भरने के लिए जीवनभर लगे रहते हैं। बहुत-बहुत रुपों में अहंकार को भरने की चेष्टा करते हैं। धन से भी, यश से भी, पद से भी, ज्ञान से भी, और यहां तक कि त्याग से भी हम अहंकार को ही भरने की कोशिश करते हैं। जीवन की सारी दिशाओं से हम एक ही काम करते हैं कि मैं अपने मैं को मजबूत कर लें। Continue reading “प्रेम दर्शन-(प्रवचन-03)”

प्रेम दर्शन-(प्रवचन-02)

प्रेम दर्शन-(साधना-शिविर)-ओशो

दूसरा-प्रवचन

आनंद के क्षण

मेरे प्रिय आत्मन्!

मैंने सुना है, एक गांव था जिसमें सभी लोग अंधे थे। और जब भी उस गांव में भूल से कोई आंख वाला पैदा हो जाता, तो उस गांव के चिकित्सक उसकी आंख का आपरेशन कर देते थे यह सोच कर कि यह बेचारा कुछ गलत पैदा हो गया है।

ठीक ही था उनका तर्क। अंधो की भीड़ कैसे माने कि किसी के पास आंख भी होती हैं? और इसलिए इस पृथ्वी पर जब भी कोई धार्मिक व्यक्ति पैदा हुआ है, तो अंधों की भीड़ ने उसे मार डाला है। सिर्फ इस कारण कि यह हमारे विश्वास के बाहर है कि ऐसा आदमी ठीक हो सकता है? हम उसे मिटा डालना चाहते हैं। मर जाने के बाद हम पूजा करते हैं जरुर। मर जाने के बाद पूजा बहुत आसान है। पूजा भी जिनसे हम छुटकारा चाहते है उनकी ही करते है। पुज्य बना कर हम अपने और उनके बीच एक फासला बना लेते हैं–राम, कृष्ण, बुद्ध, क्राइस्ट हम कहने लगते हैं, वे भगवान हैं और हम आदमी हैं। सोचते हम हैं कि शायद इस भांति हम उन्हें आदर दे रहे हैं। हम सिर्फ एक चालाक तरकीब खोज रहे हैं जिससे हम धार्मिक होने से बच जाएं। Continue reading “प्रेम दर्शन-(प्रवचन-02)”

प्रेम दर्शन-(प्रवचन-01)

प्रेम दर्शन-(साधना-शिविर)-ओशो

पहला-प्रवचन

असंभव घटना

मेरे प्रिय आत्मन्!

और हर आदमी की जिंदगी रोज बुरी से बुरी होती जा रही है। लेकिन लोग कुछ इस तरह कहते हैं, जैसे अंधेरा आज ही आ गया हो। अंधेरा सदा से है, और ऐसा नहीं है कि आदमी आज बुरा हो गया है; आदमी सदा से ही बुरा रहा है। लेकिन आज की बुराई दिखाई पड़ती है, पिछली बुराइयां छिप जाती हैं, खो जाती हैं और दिखाई नहीं पड़ती। और इतिहास के साथ एक बुनीयादी भूल हो जाती है और वह भूल यह है कि अतीत के तो अच्छे लोग याद रह जाते हैं और आज के सिर्फ बुरे लोग दिखाई पड़ते हैं। उनके बीच तुलना करने से कठिनाई हो जाती है। Continue reading “प्रेम दर्शन-(प्रवचन-01)”

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