प्रेम दर्शन-(साधना-शिविर)-ओशो
प्रवचन-चौथा -(विद्रोही भगवान)
मेरे प्रिय आत्मन्!
पिछले तीन दिनों में सुबह और सांझ जो बाते मैंने कहीं है, उस संबंध में बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। जितने प्रश्नों का उत्तर संभव हो सकेगा वह मैं देने की कोशिश करूंगा।
एक मित्र ने पूछा है कि कहा जाता है प्रेम अंधा है और आप कहते हैं कि प्रेम परमात्मा है। तब क्या परमात्मा भी अंधा है?
उन्होंने ठीक पूछा है। सदियों से यह कहा जा रहा है कि प्रेम अंधा है। और यह वे ही लोग कहते हैं जिन्हें प्रेम का कोई अनुभव नहीं है। जिन्हें प्रेम का अनुभव है वे तो कहते हैं प्रेम के अतिरिक्त कोई आंख ही नहीं है। क्योेंकि प्रेम जो देख पाता है और कोई आंख नहीं देख पाती है। प्रेम ही आंख है। Continue reading “प्रेम दर्शन-(प्रवचन-04)”