छठवां–प्रवचन
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह
मेरे प्रिय आत्मन्!
एक मित्र ने पूछा है: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह आदि व्रतों के लिए गांधी जी ने करने के लिए बोला है, और पतंजलि ने भी इन पर जोर दिया है। तो क्या समाधि के पहले इन्हें साधना आवश्यक है? या इनके बिना ही समाधि तक पहुंचा जा सकता है?
समाधि न मिले तो कोई अहिंसक नहीं हो सकता है, न अपरिग्रही हो सकता है, न ही सत्य को उपलब्ध हो सकता है। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, और सब समाधि के परिणाम हैं, कांसीक्वेंसेस हैं, कारण नहीं, कॉज़ेज़ नहीं। अहिंसा को साध कर कोई समाधि तक नहीं पहुंचता है, समाधि तक जो पहुंच जाता है उसके जीवन में अहिंसा फलित होती है। ये फूल की तरह हैं, बीज की तरह नहीं। बोना तो पड़ता है समाधि के बीज को… Continue reading “समाधि के द्वार पर-(प्रवचन-06)”