सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-11)

ठहरो, विराम में आओ—प्रवचन-ग्याहरवां  

दिनांक 31 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

संत बुल्लेशाह की ते काफी इस प्रकार है–

तंग छिदर नहीं विच तेरे, जिथे कख न इक समांवदा ए।

ढूंढ वेख जहां दी ठौर किथे, अनहुंदड़ा नजरी आंवदा ए।

जिवें ख्वाब दा खयाल होवे सुत्तियां नूं, तरहां तरहां दे रूप दिखांवदा ए। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-11)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-10)

समाधि की सुवास—प्रवचन-दसवां  

दिनांक 30 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

आपने उस दिन आद्य शंकराचार्य का निम्नलिखित श्लोक उद्धृत किया था, उस पर विस्तार से प्रकाश डालें–

तत्वं किमेकं शिवमद्वितीयं,

      किमुत्तमं सच्चरितं यदस्ति।

त्याज्यं सुखं किम् स्त्रियमेव,

      सम्यग देयं परमं किम् त्वभयं सदैव।। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-10)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-09)

दरवाजा खुला रखना—प्रवचन-नौवां  

दिनांक 29 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

कल बुल्लेशाह की आपने अलफ काफी हमें पिलाई। उनकी बे काफी इस प्रकार है–

बन्ह अखीं अते कन्न दोवें, गोशे बैठ के बात विचारिए जी।

छड खाहिशां जग जहान कूड़ा, कहिआ आरफा दा हीए धारिए जी।

पैरी पहन जंजीर बेखाहिशी दी, इस नफस नूं कैद कर डारिए जी।

जा जान देवें जान रूप तेरा, बुल्लाशाह एह खुशी गुजारिए जी। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-09)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-08)

आपने आपनूं समझ पहले—प्रवचन-आठवां  

दिनांक 28 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

संत बुल्लेशाह ने आत्म-परिचय पर जोर देते हुए इस प्रकार गाया है–

आपने आपनूं समझ पहले, कि वस्त है तेरड़ा रूप प्यारे।

बाझ अपने आपदे सही कीते, रहियों विच विश्वास दे दुख भारे।

होर लख उपाओ न सुख होवे, पुछ वेख सियानने जग सारे।

सुख रूप अखेड़ चेतन है तू, बुल्लाशाह पुकार दे वेद सारे। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-08)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-07)

जीवन चुनौती है, खतरा है—प्रवचन-सातवां  

दिनांक 27 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

आपके कल के ओजस्वी प्रवचन से ऐसा स्पष्ट आभास हुआ कि आप भारत को उसकी अनंत क्षमताओं के प्रति जगा रहे हैं। भारत का यह परम सौभाग्य है कि उसे आप जैसा मार्गदर्शक उपलब्ध है, फिर भी वह आपकी बातों को अपनाता क्यों नहीं? और क्यों नहीं सर्वांगीण विकास के पथ पर अग्रसर होता? वरन आपका तिरस्कार और उपेक्षा क्यों करता है?

भगवान, निवेदन है कि कुछ कहें।

भारत भूषण, Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-07)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-06)

विज्ञान और धर्म के बीच सेतु—प्रवचन-छठवां  

दिनांक 26 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

पड़ोसी देशों द्वारा किए जाने वाले शस्त्र-संग्रह और उसके कारण बढ़ रहे तनाव के संदर्भ में देश की सुरक्षा की दृष्टि से श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा हाल ही एक भाषण में दी गई चेतावनी की आलोचना करते हुए महर्षि महेश योगी ने कहा है कि देश को इस प्रकार के भय और अनिश्चितता से छुड़वाने के लिए सरकार को उनके भावातीत ध्यान (टी.एम.) तथा टी.एम. सिद्धि कार्यक्रम का उपयोग करना चाहिए। अपनी ध्यान पद्धति को वैदिक ज्ञान का सार बताते हुए उन्होंने कहा है कि इसके प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपने तनावों से मुक्त होकर अपनी चेतना को ऊपर उठाते हैं और समाज में सामंजस्य स्थापित करने में प्रभावशाली होते हैं। महर्षि महेश योगी के अनुसार उनकी ध्यान पद्धति अपनाने से सेना और शस्त्रों की जरूरत नहीं रह जाएगी और बहुत थोड़े-से खर्च में भारत की सुरक्षा हो सकेगी, उसकी समस्याएं हल हो सकेंगी तथा देश की चेतना में सत्व का उदय हो सकेगा। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-06)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-05)

प्रेम एक इंद्रधनुष है—प्रवचन-पांंचवां

दिनांक 25 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

प्रेम क्या है? और क्या प्रेम कभी नष्ट भी हो सकता है या नहीं?

 राम किशोर,

प्रेम एक इंद्रधनुष है। उसमें सभी रंग हैं–निम्नतम से लेकर श्रेष्ठतम तक, काम से लेकर राम तक। प्रेम कोई एक-आयामी घटना नहीं है, बहु-आयामी है। मूलतः तीन आयाम समझ लेने जरूरी हैं।

पहला आयाम तो शरीर का है। शरीर का प्रेम नाममात्र को प्रेम है। प्रेम की भ्रांति ज्यादा प्रेम का अस्तित्व कम। एक प्रतिशत प्रेम, निन्यानबे प्रतिशत रसायनशास्त्र। एक प्रतिशत तुम, निन्यानबे प्रतिशत अचेतन प्रकृति। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-05)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-04)

बुद्ध का शून्य: मीरा की वीणा—प्रवचन-चौथा

दिनांक 24 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

भारत के लोग सदियों से गुलाम और गरीब रहने के कारण भयानक हीनता के भाव से पीड़ित हैं, और इसलिए पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं। क्या यह अंधानुकरण अस्वस्थ नहीं है? और क्या उन्हें अपना मार्ग और गंतव्य स्वयं ही नहीं ढूंढना चाहिए? इस संदर्भ में आप हमें क्या मार्गदर्शन देंगे?

 मृत्युंजय देसाई,

यह प्रश्न तो महत्वपूर्ण है, लेकिन उत्तर शायद तुम्हें चोट पहुंचाए। क्योंकि इस प्रश्न के भीतर और बहुत-से प्रश्न छिपे हैं, शायद तुम्हें उनका बोध भी न हो। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-04)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-03)

जीवन एक तिलिस्म है—प्रवचन-तीसरा

दिनांक 23 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

हाजार बोछोर धोरे

कोतो नोदी-प्रांतर,

बेरिए गेलाम।

ए चौलार माने तोबू

बोझा गेलो ना!

आमि हारिए गेलाम।

आमि हारिए गेलाम।

अर्थात हजारों वर्षों की यात्रा में मैंने कितने ही नदी और वन-प्रांतर पार किए, लेकिन फिर भी इस चलने का अर्थ अब तक नहीं समझ पाया। अब तो मैं हार गया, हार ही गया! Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-03)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-02)

स्वयं का बोध मुक्ति है—प्रवचन-दूसरा

दिनांक 22 जनवरी, सन् 1981 ओशो आश्रम पूना।

पहला प्रश्न: भगवान,

आद्य शंकराचार्य की एक प्रश्नोत्तरी इस प्रकार है–

कस्याऽस्ति नाशे मनसो हि मोक्षः

      क्व सर्वथा नास्ति भयं विमुक्तौ।

शल्यं परं किम् निजमूर्खतेव

      के के हयुपास्या गुरुदेववृद्धाः।।

किसके नाश में मोक्ष है? मन के नाश में ही। किसमें सर्वथा भय नहीं है? मोक्ष में। सबसे बड़ा कांटा कौन है? अपनी मूर्खता ही। कौन-कौन उपासना के योग्य हैं? गुरु, देवता और वृद्ध। Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-02)”

सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-01)

सांच-सांच सो सांच-(प्रशनोंत्तर)-ओशो, 

पहला प्रश्न: भगवान,

आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला का शीर्षक आपने चुना है: सांच सांच सो सांच।

भगवान, निवेदन है कि दरिया साहब के इस पद को हमें समझाने की अनुकंपा करें–

कंचन कंचन ही सदा, कांच कांच सो कांच।

दरिया झूठ सो झूठ है, सांच सांच सो सांच।।

 योग मुक्ता, Continue reading “सांच-सांच सो सांच-(प्रवचन-01)”

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