अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-10)

दसवां-प्रवचन-(समाधि समाधान है)

प्रश्न-सार:

01-दीनता, धीरज और शील को कैसे साधें?

02-प्रकृति के कण-कण की भगवत्ता और बुद्धत्व की भगवत्ता के गुणधर्म में क्या फर्क है?

03-क्या कभी भगवान भी भक्त होता है?

04-सार-असार की सीमा-रेखा कहां है?

05-स्वप्नों से रहित जीवन भी रसपूर्ण कैसे होता है?

06-फरीद जैसे संत हमें इतने आत्मीय क्यों लगते हैं?

07-परमात्मा ने हमें बनाया..फिर भी उसका विस्मरण क्यों? Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-10)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-09)

नौवां-प्रवचन-(इसी क्षण उत्सव हैैै)

ओशो, भक्तराज फरीद के कुछ पद हैं..

सारसूत्र:

सरवर पंखी हेकड़ो, फाहीवाल पचास।

इहु तन लहरी गडु थिआ, सचे तेरी आस।।

कवणु सु अखरु कवणु गुणु, कवणु सु मड़ीआ मंतु।

कवणु सु वेसो हउ करि, जितु वसी आवै कंतु।।

निवणु सु अखरु खवणु गुणु, जिहवा मणीआ मंतु।

एत्रै भैणे वेस करि, ता वसि आवी कंतु।।

मति होंदी होइ इआणा, तान होंदे होइ निताणा।

अणहोंदे आपु वंडाए, कोइ ऐसा भगतु सदाए।।

इक फिक्का ना गालाई, सभना मैं सचा धणी।

हिआउ न कैही ठाहि, माणिक सभ अमोलवै।।

सभना मन माणिक, ठाहणु मूलि म चांगवा।

जे तउ पिरी आसिक, हिआउ न ठाहे कहीदा।। Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-09)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-08)

आठवां-प्रवचन-(प्रेम महामृत्यु है)

प्रश्न-सार:

01-प्रेम और मृत्यु का अंतर्संबंध क्या?

02-प्रेम, काल और ध्यान हमारे लिए इतने बेबूझ क्यों?

03-अकथ कहानी प्रेम की..उसका अंत होता हुआ क्यों नहीं दिखता?

04-अकथ कहानी प्रेम की भांति अकथ कहानी ध्यान की क्यों नहीं कही जाती?

05-सब सयानों का प्रेम पर ही जोर क्यों?

06-नकली प्रेम का गोरखधंधा बंद क्यों नहीं होता?

07-दर्शन के समय कंपकंपी और भय की स्थिति का रहस्य?

08-जीवन प्रयोजन-रहित है तो खाली हाथ जाएं या भरे हाथ..क्या अंतर?

09-आप राजनीति के विपक्ष में क्यों हैं? क्या अराजकवादी हैं? क्रांति के अगुआ क्यों नहीं बनते? Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-08)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-07)

सातवां-प्रवचन-(धर्म मोक्ष है)

सूत्र:

फरीदा जिन लोइण जगु मोहिआ, से लोइण मैं डिठु।

काजल रेख न सहदिआ, से पंखी सुए बहिठु।।

फरीदा खाकु न निंदीए; खाकु जेडु न कोइ।

जीऊंदियां पैरा तलै, मुइआ उपरि होइ।।

फरीदा जा लबु ते नेहु किआ, लबु ते कूड़ा नेह।

किचरु झति लंघाईऐ, छपरि तुटै मेहु।।

फरीदा जंगलु जंगलु किआ; भवहि वणि कंडा मोड़ेहि। Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-07)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-06)

छठवां-प्रवचन-(धर्मः एकमात्र क्रांति)

प्रश्न-सार:

01-फरीद जैसे संत हर पद में अपना नाम क्यों जा.ेडते हैं?

02-ओशो जैसी श्रेष्ठ मनीषा राजनीति और सत्ता की ओर ध्यान क्यों नहीं देती?

03-देश जब आपात और संकट की स्थिति में हैं, तब भी क्या ओशो का भगवत-भजन का एकतारा बजाए जाना उचित है?

04-माता, पिता, गुरु और भगवान से मांगने में क्या संकोच करना चाहिए?

05-धार्मिक क्रांति की शुरुआत..व्यक्तिगत जिम्मेवारी अथवा परस्पर-तंत्रता का बोध?

06-प्रेम की पीड़ा और प्रेम के आनंद का रहस्य?

07-शासन और आश्रम के बीच किसी सहयोग का सुझाव? Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-06)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-05)

पांचवां-प्रवचन-(साईं मेरे चंगा कीता)

सूत्र:

किझु न बूझै किझु न सूझै, दुनिया गुझी भाहि।

साईं मेरै चंगा कीता, नाहीं त हंभी दझां आहि।।

फरीदा जे तू अकलि लतीफ, काले लिखु न लेख।

आपनड़े गिरीबान महि, सिरु नीवां करि देख।।

फरीदा जो तैं मारनि मुकीआं, तिन्हा न मारे घुंमि।

आपनड़े घर जाईए, पैर तिन्हादे चुंमि।।

फरीदा जा तउ खट्टण वेल तां तू रत्ता दुनि सिउ। Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-05)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-04)

चौथा-प्रवचन-(धर्म समर्पण है)

प्रश्न-सार:

01-पश्चिम का मृत्यु पर बहुत अन्वेषण क्या धर्म की खोज है?

02-धर्मगं्थों में प्रार्थनाएं मांग जैसी क्यों हैं? क्या प्रकाश और प्रज्ञा की प्रार्थना भी मांग है?

03-परमात्मा के प्रति प्रेमानुभूति से भरना क्या उन्नत और श्रेष्ठ आत्मा की संभावना है?

04-अंधविश्वास और शोषण पर खड़े मंदिरों और धर्माचार्यों के चरणों में झुकना क्या उचित है? Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-04)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(प्रेम प्रसाद है

ओशो, सदगुरु शेख फरीद ने गाया है..

सूत्र:

(क)-तपि तपि लुहि लुहि हाथ मरोरऊं। बावली होई सो सहु लोरऊं।।

तैं सहि मन महि कोआ रोसु। मुझु अवगुन सह नाही दोसु।।

तैं सहिब की मैं सार न जानी। जोबनु खोई पीछे पछतानी।।

काली कोइल तू कित गुन काली। अपने प्रीतम के हउ विरहै जाली।।

पिरहि विहून कतहि सुखु पाए। जा होइ कृपालु ता प्रभु मिलाए।।

विधण खूही मुंध अकेली। ना कोइ साथी ना कोइ बेली।।

बाट हमारी खरी उडीणी। खंनिअहु तिखी बहुत पिईणी।।

उसु उपरी है मारगु मेरा। सेख फरीदा पंथु सम्हारि सवेरा।। Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-03)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-02)

दूसरा-प्रवचन-(मैं तुमसे बोल रहा हूं)

प्रश्न-सार

01-तड़फते-तड़फते जब सीना छलनी हो जाए, व्यक्ति एक घाव हो जाए और फिर भी होश न आए..तब क्या?

02-लगातार बारह वर्षों तक सत्य-भाषण से क्या मुक्ति उपलब्ध होती है?

03-मेरा तथा अन्यों का दुख ओशो कैसे जान लेते हैं, और प्रवचन से ही सभी संदेहों और प्रश्नों का समाधान कैसे मिल जाता है? Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-02)”

अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-01)

अकथ कहानी प्रेम की-बाबा शेख फरिद

पहला-प्रवचन

अकथ कहानी प्रेम की प्रवचनमाला के शुभारंभ पर कृपया हमारा नमन स्वीकार करें। ये प्रवचन माला दिनांक 21-9-1975 से 30-9-1975 ओशो आश्रम पूना में दि गई थी।

भक्त-शिरोमणि शेख फरीद के कुछ पद इस प्रकार हैं..

सूत्र

बोलै सेखु फरीदु पियारे अलह लगे।

इहु तन होसी खाक निमाणी गोर घरे।।

आजु मिलावा सेख फरीद टाकिम।

कूंजड़ीआ मनहु मचिंदड़ीआ।।

जे जाणा मरि जाइए घुमि न आईए।

झूठी दुनिया लगी न आपु वआईए।। Continue reading “अकथ कहानी प्रेम की-(प्रवचन-01)”

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