दि सूफीज़-(इदरीस शाह)-045

दि सूफीज़—(इदरीस शाह)-ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

The Way of the Sufi-Idries Shah

समुंदर ने पूछा किसी ने कि ‘’तुम नीला रंग क्‍यों पहले हुए हो ? यह तो मातम का रंग है। और तुम निरंतर उबलते क्‍यों रहते हो ? वह कौन सी आग है जो तुम्‍हें उबालती है ? समुंदर ने कहा, ‘’मेरे महबूब से बिछुड़ कर में उदास हूं इसलिए नीला पड़ गया हूं, और वह प्‍यार की आग है जिससे मैं खोलता रहता हूं।‘’

     यह है सूफी तरीका। सीधा सी बात को प्रतीक रूप में कहना और उस कहने में अर्थों के समुंदर को उंडेलना सूफियाना अंदाज है।

सूफियों की जीवन शैली, उनके तौर-तरीकों के बारे में अगर सब कुछ एक साथ जानना हो तो इस किताब की सैर करें। रहस्‍य के पर्दे में ढँके सूफियों को दिन के उजाले में लाने  का महत्‍वपूर्ण काम इदरीस शाह ने किया है। Continue reading “दि सूफीज़-(इदरीस शाह)-045”

बालशेम तोव—(हसीद)-044

बालशेम तोव—(हसीद दर्शन)-ओशो की प्रिय पुस्तके 

The Baal Shem Tov-Tzavaat HaRivash

हसीद की धारा कुछ चंद रहस्यदर्शीयों की रहस्‍यपूर्ण गहराइयों से पैदा हुई है। बालशेम उनमें सबसे प्रमुख है। हमीद पंथ का जा भी दर्शन है वह शाब्‍दिक नहीं है, बल्‍कि उसके रहस्यदर्शीयों के जीवन में, उनके आचरण में प्रतिबिंबित होता है। इसलिए उनका साहित्‍य सदगुरू के जीवन की घटनाओं की कहानियों से बना है। हसीदों की मान्‍यता है कि ईश्‍वर का प्रकरण स्‍तंभ इन ज़द्दिकियों में प्रवेश करता है और उनका आचरण इस प्रकाश की किरणें है अंत:, स्‍वभावत: दिव्‍य प्रकाश से रोशन है। Continue reading “बालशेम तोव—(हसीद)-044”

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)-043

दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)–ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Way of Zen-Alan W. Watts

आध्‍यात्‍मिक अनुभवों का सौंदर्य यह है कि उनके घटने से विश्‍व की और देखने का नजरिया बदल जाता है। विश्‍व एक समस्‍या नहीं रहता। उल्‍टे ऐसा लगता है कि जो भी है बिलकुल ठीक है, इससे अन्‍यथा हो ही नहीं सकता।   

इस बार ऐलन वॉटस की दो किताबों को एक साथ प्रस्‍तुत कर रहे है। ये दोनों किताबें ओशो ने एक साथ गिनाई है। ऐलन वॉटस ओशो का प्रिय लेखक है। बहुत कम लेखक है जिनकी शख्‍सियत ओशो को प्रसंद आती है। और ऐलन वॉटस उनमें से एक है। आम तौर पर लेखक और उनकी रचना में जमीन आसमान का फर्क होता है। लेकिन ऐलन वॉटस उसका अपवाद है। Continue reading “दि वे ऑफ झेन-(ऐलन वॉटस)-043”

मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन-(ओस्पेंस्की)-042

दि साइकोलाजी ऑफ-मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन—पी. डी. ओस्पेंस्की–(मनुष्‍य कासंभावित विकास) 

ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Psychology of Man’s Possible Evolution-Peter D Ouspensky

     पी. डी. ओस्पेंस्की बीसवीं सदी के विख्‍यात रहस्‍यदर्शी गुरजिएफ का प्रधान शिष्‍य था। वह अत्‍यंत विद्वान और प्रतिभाशाली तो था ही, उसे शब्‍दों की बादशाहत भी हासिल थी। उसने आध्‍यात्‍मिक जगत की खोजों पर एक से एक अद्भुत किताबें लिखी है। यक किताब ‘’दि सॉयकॉलाजी ऑफ मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन’’ ओस्पेंस्की की सबसे छोटी किताब है। वस्‍तुत: यह उसके पाँच व्‍याख्‍यानों का संकलन है जो उसने लंदन में 1934 के दौरान दिये। Continue reading “मैन्‍स पॉसिबल इवोलुशन-(ओस्पेंस्की)-042”

माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(गांधी)-041

माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(महात्‍मा गांधी)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

My Experiments with Truth: An Autobiography-Mahatma Gandhi

आज में जिस किताब का जिक्र करने जा रहा हूं, उसके बारे में किसी ने सोचा नहीं होगा कि मैं  बोलूगा। वह है: महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा। माय ऐक्सपैरिमैंट विथ टूथ। सत्‍य को लेकिर उनके प्रयोगों के विषय में बात करना सचमुच अद्भुत है। यह सही समय है।

आज महात्‍मा गांधी के बारे में मैं कुछ अच्‍छी बातें कहता हूं, एक: एक भी व्‍यक्‍ति ने अपनी जीवनी इतनी ईमानदारी से, इतनी प्रामाणिकता से नहीं लिखी। आज तक जो सबसे प्रमाणिक जीवनी लिखी गई उसमें से एक है। Continue reading “माय ऐक्सपैरिमैंट विद दि टूथ-(गांधी)-041”

दि आऊटसाइडर-(विलसन)-040

दि आऊटसाइडर-(अजनबी)—कॉलिन विलसन

ओशो की प्रिय पुस्तकें

 The Outsider-Colin Wilson

(प्रसिद्ध लेखक एच. जी. वेल्‍स भी एक अजनबी है। वह स्‍वयं को ‘’अंधों के देश में आँखवाला आदमी’’ कहता है। सोरेन किर्कगार्ड एक गहरा आध्‍यात्‍मिक  दार्शनिक था। ‘’अस्तित्ववाद’’ उसी ने प्रचलित की हुई संज्ञा है। उसने तर्क और दर्शन को बिलकुल ही नकार दिया। वह कहता था: मैं कोई गणित का फार्मूला नहीं हूं—मैं वास्‍तव में ‘’हूं’’।

     बीसवीं सदी के मध्‍य में जो शब्‍द लोकप्रिय हुआ उनमें से एक है: आऊटसाइडर। अस्तित्ववादी दार्शनिक सार्त्र और आल्बेर कामू ने अपनी किताबों में इस शब्‍द का बहुतं प्रयोग किया है। आऊटसाइडर। इस किताब पर एक फिल्‍म भी बनी थी जो बहुचर्चित रही। Continue reading “दि आऊटसाइडर-(विलसन)-040”

ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स-(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-039

ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स—(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

A New Model of the Universe-P. D. Ouspensky

पी. डी. ऑस्पेन्सकी एक रशियन गणितज्ञ और रहस्‍यवादी था। उसे रहस्‍यदर्शी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन रहस्‍य का खोजी जरूर था। विज्ञान अध्‍यात्‍म, गुह्म विद्या, इन सबमें उसकी एक साथ गहरी पैठ थी। इस अद्भुत प्रतिभाशाली लेखक ने पूरी जिंदगी अस्‍तित्‍व की पहेली को समझने-बुझने में लगायी। उसने विश्वंभर में भ्रमण किया, वह भारत भी आया, कई योगियों और महात्‍माओं से मिला। और अंत मैं गुरजिएफ का शिष्‍य बन गया। गुरजिएफ के साथ उसे जो अनुभव हुए उनके आधार पर उसने कई किताबें लिखी।

     ऑस्पेन्सकी को बचपन से ही अदृश्‍य पुकारता था; उसकी झलकें आती थी। एक तरफ वह फ़िज़िक्स का अध्‍यन करता और दूसरी तरफ उसे ‘’अनंतता’’ दिखाई देता। Continue reading “ए न्‍यू मॉडल ऑफ दि यूनिवर्स-(पी. डी. ऑस्पेन्सकी)-039”

एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे कृष्ण मुर्ति)-038

एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे. कृष्‍ण मूर्ति)—ओशो की प्रिय पुस्तकें 

At the Feet of the Master: Selected-J. Krishnamurti

     यह किताब गागर में सागर है। इतनी छोटी है कि उसे किताब कहने में झिझक होती हे। चार इंच चौड़ी और पाँच इंच लंबी इस लधु पुस्‍तक के सिर्फ 46 पृष्‍ठों में पूरा ज्ञान सम्‍माहित है। किताब के लेखक का नाम दिया है ‘’अल्‍कायन’’। मद्रास के थियोसोफिकल पिब्लशिग हाऊस ने सन 1910 में पहली बार यह किताब प्रकाशित की। उसके बाद इसके दर्जनों संस्‍करण हुए। ओशो ने यह किताब 1969 में जबलपुर की किसी दुकान से खरीदी थी।

किताब की भूमिका है एनी बेसेंट द्वारा लिखित। उन्‍होंने लिखा है कि हमारे एक छोटे बंधु की—जो कि आयु में छोटा है, आत्‍मा में बड़ा—यह पहली किताब है जो उसके गुरु ने उसे हस्‍तांतरित की है। गुरु के विचार शिष्‍य के शब्‍दों का परिधान पहन कर आये है। Continue reading “एट दि फीट ऑफ दि मास्‍टर-(जे कृष्ण मुर्ति)-038”

कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(कृष्ण मूर्ति)-037

कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(जे. कृष्‍ण मूर्ति) ओशोे की प्रिय पुस्तकें

Commentaries on Living: Jiddu Krishnamurti’s

जे कृष्‍ण मूर्ति की बेहद खूबसूरत किताब, ‘’कमेंटरीज़ ऑन लिविंग’ एक निर्मल झील है। जो कृष्‍ण मूर्ति के अंतरतम को पूरा का पूरा प्रतिबिंबित करती है। कृष्‍ण मूर्ति प्रकृति के सौंदर्य से असीम प्रेम करते थे। जंगलों में, पहाड़ों में देर तक सैर करने का उनका शौक सर्वविदित है। वे प्रकृति की बारीक से बारीक भंगिमा का अति संवेदनशीलता से आत्‍मसात करते थे।

यह डायरीनुमा दस्‍तावेज कृष्‍ण मूर्ति ने अल्डुअस हक्‍सले के अनुरोध पर लिखा है। कृष्‍ण मूर्ति अमेरिका यूरोप और भारत में निरंतर भ्रमण करते थे। वहां के लोगों से मिलते थे, उनके प्रश्‍नों को हल करते थे। उनका वर्णन उन्‍होंने एक डायरी के रूप में लिखा है। इस डायरी का एक नक्‍शा है जो कृष्‍ण मूर्ति का अपना है। Continue reading “कमेंटरीज़ ऑन लिविंग-(कृष्ण मूर्ति)-037”

दि फर्स्‍ट एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे कृृष्णमूर्ति)-036

दि फर्स्‍ट  एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे. कृष्णामूर्ति) ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The First and Last Freedom-Jiddu Krishnamurti

      यह किताब जे. कृष्णामूर्ति के लेखों का संकलन है। यह उस समय छपी है जब कृष्‍ण मूर्ति आत्म क्रांति से गुजरकर स्‍वतंत्र बुद्ध पुरूष के रूप में स्‍थापित हो चूके थे। लंदन के ‘’विक्‍टर गोलांझ लिमिटेड’’ प्रकाशन ने 1958 में यह पुस्‍तक प्रकाशित की। कृष्‍ण मूर्ति के एक प्रशंसक और सुप्रसिद्ध अमरीकी लेखक अल्‍डुअस हक्‍सले ने इस किताब की विद्वत्तापूर्ण भूमिका लिखी है।

      ओशो ने यह किताब 1960 में जबलपुर के मार्डन बुक स्‍टॉल से खरीदी है। इस पर उनके हस्‍ताक्षर है, सिर्फ ‘’रजनीश’। किताब के दो खंड है। पहले खंड में विविध मनोवैज्ञानिक विषयों पर कृष्‍ण मूर्ति के प्रवचन है और दूसरे खंड में प्रश्‍नोतरी है। प्रवचनों के कुछ विषय इस प्रकार है: Continue reading “दि फर्स्‍ट एंड लास्‍ट फ़्रीडम-(जे कृृष्णमूर्ति)-036”

दि बुक-(ऐलन वॉटस)-035

ऑन दि टैबू अगेंस्‍ट नोइग हू यू आर-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Book on the Taboo Against Knowing Who You Are

-Alan W. Watts

     किताब में प्रवेश करने से पहले खुद ऐलन वॉटस संक्षेप में इसे लिखने की वजह बताता है।

‘’यह किताब मनुष्‍य के उस निषिद्ध लेकिन अनचीन्‍हें टैबू के संबंध में है जो एक तरह से हमारी साजिश है हमारे ही प्रति कि हम स्‍वयं को जानना नहीं चाहते। चमड़े के थैले में बंद हम जो एक अलग-थलग हस्‍ती बनकर जीते है वह एक भ्रांति है। यही वह भ्रांति है जिसकी वजह से मनुष्‍य ने टैकनॉलॉजी का उपयोग अपने पर्यावरण पर विजय पाने के लिए और फलत: खुद के अंतिम विनाश के लिए किया। Continue reading “दि बुक-(ऐलन वॉटस)-035”

दि गॉस्पल-(थॉमस)-034

दि गॉस्पल-(एकॉर्डिंग टू थॉमस)–ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

 The Gospel of Thomas

     वह दिसंबर का एक भाग्‍य शाली दिन था। सन था 1951 उत्‍तर ईजिप्‍त में एक शहर है नाग हम्‍मदि। उसके आसपास बियाबान में एक अरब किसान अपने खेत के लिए खुदाई कर रहा था। अचानक उसे एक मिट्टी का बड़ा सा लाल रंग का पुराना बर्तन मिला। वह उत्‍तेजना से भर गया, उसे लगा की कोई गड़ा हुआ धन मिल गया। पहले तो उसे डर लगा कि कोई जिन प्रेत है; उसने जल्‍दी से फावड़ा मार कर बर्तन को नीचे गिराया, अंदर उसे न तो जिन मिला और न धन। कुछ कागजी किताबें जरूर मिलीं। लगभग एक दर्जन किताबें सुनहरे भूरे रंग के चमड़े में बंधी हुई। उसे क्‍या पता था कि उसे एक ऐसा असाधारण दस्‍तावेज मिला है जो तकरीबन 1500 साल पहले निकटवर्ती मठ के भिक्षुओं ने पुरातनपंथी चर्च के विध्‍वंसक चंगुल से बचाने की खातिर भूमि के नीचे दफ़ना रखा था। चर्च उस समय जो-जो भी विद्रोही मत रखते थे उन सबको नष्‍ट कर रहा था। चर्च का क्रोध जायज भी है कि क्‍योंकि जीसस के ये मूल सूत्र प्रकाशित होते तो चर्च का काम तमाम हो जाता। Continue reading “दि गॉस्पल-(थॉमस)-034”

एक आदमी पर्वत जैसा-(हु आंग पो)-033

दि ज़ेन टीचिंग ऑफ हु आंग पो ऑन दि ट्रांसमिशन ऑफ माईड–ं

अंग्रेजी अनुवाद: जॉन ब्‍लोफेल्‍ड

The Zen teaching of Huang Po on the transmission of mind-John Blofield

    हु आंग पो एक मनुष्‍य का नाम था और पर्वत का भी क्‍योंकि हु आंग पो इसी नाम के पर्वत पर रहता था। यह एक उतंग ज़ेन सदगुरू था जिसे पर्वत शिखर का नाम मिला क्‍योंकि वह खुद भी एक उत्तुंग शिखर था।

यह किताब उसके शिष्‍य और विद्वान पंडित पेई सियु द्वारा किया गया संकलन है। चांग साम्राज्‍य में ईसवीं सदी 850 में यह संकलन चीनी भाषा में किया गया था। Continue reading “एक आदमी पर्वत जैसा-(हु आंग पो)-033”

रिसरेक्‍शन-(टॉलस्टॉय)-032

रिसरेक्‍शन-(लियो टॉलस्‍टॉय)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Resurrection-Leo Tolstoy

     ‘’रिसरेक्शन’’ टॉलस्‍टॉय का आखिरी उपन्‍यास है। इससे पहले ‘’वार एंड पीस’’ और ऐना कैरेनिना’’ जैसे श्रेष्‍ठ और महाकाय उपन्‍यास लिखकर टॉलस्‍टॉय ने विश्‍व भर में ख्‍याति अर्जित कर ली थी। ऐना कैरेनिना के बारे में उसने खुद कहा कि मैंने अपने आपको पूरा उंडेल दिया है। इस उपन्‍यास के बाद टॉलस्‍टॉय की कल्‍पनाशीलता वाकई चुक गई थी क्‍योंकि इसके बाद वह दार्शनिक किताबें लिखने लगा था। अपने आपको एक संत या ऋषि की तरह प्रक्षेपित करने लगा था। उस भाव दशा में ‘’रिसरेक्शन’’ जैसा उपन्‍यास लिखने की प्रेरणा टॉलस्‍टॉय के पुनर्जन्‍म जैसी ही थी। रिसरेक्‍शन अर्थात पुनरुज्जीवन। Continue reading “रिसरेक्‍शन-(टॉलस्टॉय)-032”

ब्रदर्स कार्मोझोव-(दोस्तोव्सकी)-031

ब्रदर्स कार्मोझोव-(फ्योदोर दोस्तोव्सकी)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

The Brothers Karamazov by Fyodor Dostoevsky

विश्‍व विख्‍यात रशियन उपन्‍यासकार फ्योदोर दोस्तोव्सकी की श्रेष्‍ठ रचना ब्रदर्स कार्मोझोव ओशो की दृष्‍टि में सर्वश्रेष्‍ठ तीन किताबों में से एक है। यह कहानी है बेइंतहा प्‍यार की, कत्‍ल की और आध्‍यात्‍मिक खोज की। यह कहानी वस्‍तुत: लेखक की अपनी खोज की कहानी है। उसकी खोज यह है कि सत्‍य क्‍या है। मनुष्‍य क्‍या चीज है, जीवन क्‍या है, ईश्‍वर क्‍या है, है या नहीं। इस उपन्‍यास के सशक्‍त चरित्र दोस्तोव्सकी की गहरी निगाह के प्रतीक है जो मनुष्‍य के अवचेतन की झाड़ियों में गहरी पैठती है। इस किताब के विषय में वह खुद कहता है कि ‘’अगर मैंने इस उपन्‍यास को पूरा कर लिया तो मैं प्रसन्‍नतापूर्वक विदा लुंगा। इसके द्वारा मैंने अपने आपको पूरी तरह अभिव्‍यक्‍त कर लिया है। Continue reading “ब्रदर्स कार्मोझोव-(दोस्तोव्सकी)-031”

दि विल टु पावर: (नीत्से)-030

दि विल टु पावर-(फ्रेडरिक नीत्‍से)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

The Will To Power-Nietzche’s

     कुछ व्‍यक्‍तियों का वजूद इतना बड़ा होता है कि उनके देश का नाम उनके नाम सक जुड़ जाता है। जैसे ग्रीस सुकरात और प्लेटों की याद दिलाता है। चीन लाओत्से का देश बन गया। वैसे ही जर्मनी फ्रेडरिक नीत्‍शे का पर्यायवाची हुआ। नीत्‍शे—जिस महान दार्शनिक को ओशो ‘’जायंट’’ या विराट पुरूष कहते है। नीत्‍शे की प्रतिभा को ओशो ने बहुत सम्‍मान दिया है। नीत्‍शे के महाकाव्‍य ‘’दसस्‍पेक जुरतुस्त्र’’ पर प्रवचन माला कर ओशो ने नीत्‍शे को अपनी साहित्‍य संपदा में अमर कर दिया है। उसी नीत्‍शे की अंतिम किताब ‘’दि विल टु पावर’’ ओशो की मनपसंद किताबों में  शामिल है। Continue reading “दि विल टु पावर: (नीत्से)-030”

दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी-(रसेल)-029

दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी—(बर्ट्रेंड रसेल)-ओशो की प्रिय पुस्तकें  

A History of Western Philosophy – Bertrand Russell

 इंग्‍लैंड के विश्‍व विख्‍यात दार्शनिक, लेखक बर्ट्रेंड रसेल ने अपरिसीम श्रम करके विचार के विकास की कहानी लिखी है। यह कहानी उसके एक महाकाव्‍य पुस्‍तक में उंडेली है। जिसका नाम है: ‘’दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी’’ पाश्‍चात्‍य दर्शन का इतिहास अर्थात मनुष्‍य के विचारों का इतिहास। इस पुस्‍तक में रसेल ने 2500 वर्षों के काल-खंड को समेटा है। लगभग 585 ईसा पूर्व से लेकिर 1859 के जॉन डूयुए तक सैकड़ों दार्शनिकों के चिंतन, दार्शनिक सिद्धांत और मनुष्‍य जाति पर हुए उनके परिणामों का संकलन तथा सशक्‍त विश्‍लेषण इस विशाल ग्रंथ में ग्रंथित है। Continue reading “दि हिस्‍ट्री ऑफ वेस्‍टर्न फिलॉसॉफी-(रसेल)-029”

सायकोसिंथेसिस-(असोजियोली)-028

ए मैन्‍युअल ऑफ प्रिंसिपल्‍स एंड टेकनिक्स—असोजियोली एम. डी.

ओशो की प्रिय पुस्तकें

Psychosynthesis: A manual of principles and techniques -Roberto Assagioli

(यद्यपि असोजियोली  बुद्ध पुरूष नहीं है, और वह चेतना की परम स्‍थिति का वर्णन नहीं करता, तथापि अंतर् याता की समूची प्रक्रिया को वह अत्‍यंत विधायक दृष्‍टिकोण से और वैज्ञानिक ढंग से प्रस्‍तुत करता है। लगता है कहीं उसका तार ओशो चेतना द्वारा होने वाली आगामी आध्‍यात्‍मिक क्रांति से मिला हुआ है। अंत: आश्‍चर्य नहीं कि ओशो कहते है, मैं चाहूंगा कि मेरे सभी संन्‍यासी असोजियोली को पढ़े।) Continue reading “सायकोसिंथेसिस-(असोजियोली)-028”

दीवान-ए-गालिब-(गालिब)-027

 दीवान-ए-गालिब-(असदल्‍ला खां ग़ालिब)-ओशो की प्रिय पूस्तकें

Deewan-E-Galib-(Mirza Galib)

कल हमने दिल्‍ली के ही एक सूफी फकीर सरमद की बात की थी आज भी दिल्‍ली की गलियों में जमा मस्जिद से थोड़ा अंदर की तरफ़ कुच करेंगें बल्‍लिमारन। जहां, महान सूफी शायद मिर्जा गालिब के मुशायरे में चंद देर रूकेंगे। बल्लिमारन के मोहल्‍ले की वो पेचीदा दरीरों की सी गलियाँ…सामने टाल के नुक्‍कड पर बटेरों के क़सीदे…गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद, वो वाह, वाह….चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कूद टाट के परदे…एक बकरी के मिमियाने की आवाज….ओर धुँधलाती हुई शाम के बेनूर अंधेर ऐसे दीवारों से मुंह जोड़कर चलते है यहां, चूड़ी वाला के कटरे की बड़ी बी जैसे अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाजे टटोलते। आज जो गली इतनी बेनुर लग रही है। जब मैं पहली बार उस घर में पहुंचा तो कुछ क्षण तो उसे अटक निहारता ही रह गया। Continue reading “दीवान-ए-गालिब-(गालिब)-027”

सरमद :यहूदी संत-(सरमद)-026

सरमद : भारत का यहूदी संत—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

( सरमद का कत्‍ल कर दिया गया मुगल बादशाह औरंगज़ेब के हुक्‍म से। उसने मुल्‍लाओं के साथ साजिश की थी। लेकिन सरमद हंसता रहा। उसने कहा, मरने के बाद भी मैं यहीं कहूंगा। दिल्‍ली की विशाल जामा मस्‍जिद, जहां सरमद का कत्‍ल हुआ, इस महान व्‍यक्‍ति की समृति लिये खड़ी है। बड़ी बेरहमी से, अमानवीय तरीके से उसका कत्‍ल हुआ। उसका कटा हुआ सर मस्‍जिद की सीढ़ियों पर लुढकता हुआ चिल्‍ला रहा था: ‘’ला इलाही इल अल्‍लाह।‘’ वहां खड़े हजारों लोग इस वाकये को देख रहे थे।

      दिल्‍ली की मशहूर जामा मस्‍जिद से कुछ ही दूर, बल्‍कि बहुत करीब, एक मज़ार है जिस पर हजारों मुरीद फूल चढ़ाते, चादर उढ़ाने आते है। इत्र की बोतलों और लोबान की खुशबू से महक उठता है उसका परिवेश। वह मज़ार है हज़रत सईद सरमद की।

आज वे हज़रत कहलाते है लेकिन जब तक जिस्‍म ओढ़े थे तब तक वह एक नंगा फकीर था। सच पुछें तो मुगल बादशाह औरंगज़ेब की निगाहों में फकीर कम, काफ़िर ज्‍यादा। सरमद एक यहूदी सौदागर था, जो सत्रहवीं सदी में पैदा हुआ—शायद पैलेस्‍टाइन में। वह आर्मेनिया, पर्शिया और हिन्‍दुस्‍तान के बीच बगीचों और मेवों का व्‍यापार करता था। हिंदुस्‍तान में सोने-चाँदी के बर्तन, पीतल और तांबे की चीजों की खरीद-फरोख्‍त करता था। उस वक्‍त हिंदुस्‍तान की हर तरह की कारीगरी में बड़ी साख थी।व्‍यापार के सिलसिले में सरमद हिंदुस्‍तान आया और घूमते-घूमते बिहार पहुंचा। वहां उसे एक पहुंचे हुए पीर का दीदार हुआ। उसके नूर से सरमद इतना चुंधिया गया कि उसके होश और हवास खो गये। उसने सोचा, अगर खुदा की बनायी हुई मिट्टी में ऐसा नूर है तो वह खुदा कैसा नूरानी होगा।

एक आग सी लगी सरमद के तन-बदन में, और वह बदहवास सा, खुदा की खोज में पूरे मुल्‍क के कोने-कोने में घूमने लगा। न जाने कितनी गुफाओं और मठो, साधु संतो, तीर्थ, कितने वेद उपनिषद छान मारे। सभी धर्मों और पंथों के दर पर गया। हवाओं और पेड़-पौधों में, झरनों और पहाड़ों में उसकी खुशबु सूंधने कौशिश की लेकिन उसकी रूह की तल्‍खी कम न हुई। आखिर उत्‍तर प्रदेश के गाज़ीपुर शहर में उसे संत भीखा मिले। भीखा क्‍या मिले, प्‍यासे को पानी मिल गया। उसे पानी आकंठ पी गया सरमद और उसकी सारी खोज को अंजाम दे दिया।

संत भीखा, गुलाल साहब के शिष्‍य थे और गृहस्‍थ जीवन जीते थे। सिर से पैर तक भीगा हुआ सरमद भीखा पर कुरबान हो गया। सारा आना-जाना समाप्‍त हुआ। इससे पहले ऐयाशी की जिंदगी जी रहे सरमद ने अब फकिराना गिरेबान पहन लिया। अब उसे भीखा के सिवाय कुछ सूझता ही नहीं था। ऐसा क्‍या जादू किया भीखा ने?

भीखा ने एक ही करिश्मा किया: सरमद का रूख बाहर से भीतर की और मोड़ दिया। बहुत घूम लिये बाजारों और जंगलों में, अब भीतर ठहर जाओं। अपने जिस्‍म में ही काबा और काशी है, उसे ढूंढो। और सरमद ने वाकई उसे ढूंढ लिया।

दिल्‍ली में दो मुगल बादशाहों की सल्‍तनत के दौरों से सरमद गुजरा: शाहजहां और उसका बेटा औरंगज़ेब। शाहजहां ने उसे बहुत इज्‍जत बख्शी और औरंगज़ेब ने मौत। शाहजहां सरमद के औलियापन और उसकी गहरी समझ का बड़ा कायल था। उसने अपने बेटे दारा शिकोह को सरमद के पास तालीम लेने के लिए भेजा। सरमद ने गीता और उपनिषाद की गहराइयों मैं दारा को डुबो दिया। दारा सरमद से इतना अभिभूत था कि उसके दिन और रातें भी सरमद के पास गुजरने लगीं। सरमद दारा से इतना खुश था कि उसने कहा, ‘’तुझे एक दिन जन्‍नत में बड़ा सिंहासन मिलेगा।‘’ शाहजहां के दरबार में सरमद का आना-जाना रहता था। और किस्‍मत से अचानक करवट ली। शाहजहां के तीसरे बेटे औरंगज़ेब ने उसे कैद कर दिया। उसने एक के बाद एक अपने भाईयों और भतीजों का कत्‍ल करना शुरू कर दिया। उनमें दारा का नंबर सबसे पहला था क्‍योंकि वह सबसे बड़ा बेटा था। इसलिए तख्‍त पर बैठने का हक रखता था।

पूरी सियासत के तेवर बदल गये, और उसके साथ सरमद के भी। औरंगज़ेब सरमद को अपने रास्‍ते का कांटा मानता था। उस वक्‍त सरमद के मुरीद बहुत बढ़ गये थे। वह सदा लोगों की भीड़ से धीरा रहता। वह लोगों को समझाता, झकझोरता। वह बात तो साधारण आदमी से करता और मुल्‍ला-मौलवियों की मस्‍जिद के गुंबद कांप उठते। वह कहता, ‘’मत जाओ काबा काशी। वहां अंधकार है। और कुछ भी नहीं। मेरे गुलशन में आओं, तब तुम्‍हें रोशनी को देख पाओंगे। अच्‍छी तरह से देखो। आशिको, फूल और कांटा एक ही है।‘’

पहले तो लोग सरमद को पागल समझते थे। इतना पढ़ा-लिखा, अकलमंद आदमी और इस कदर बेहाल रहता है। लोग समझ नहीं पाते। लेकिन  सरमद को इलहाम हुआ और पूरी बात ही बदल गई। वह खुद को सम्राटों को सम्राट करने लगा।

मुसलमान उसे बुतपरस्‍त कहते क्‍योंकि वह गुरु की तस्वीर के आगे झुकता था। सरमद बेहद बेबाक था। वह मौलवी से कहता।

’’तुम्‍हारे जैसा लंबा चोगा नहीं ओढ़ा है ऐ मुलला,

क्‍योंकि मेरी रूह तुम्‍हारे जैसी नंगी नहीं है दोस्‍त

मैं शहनशाहों का शहनशाह हूं,

सारे जज्‍ब़ात, आरमान कलाओं की कद्र,

खयालों के तूफान—मेरे है

लेकिन मैं उनमें परेशां नहीं हूं

मैं बुतपरस्‍त हूं, बेशक

काफिर, ईमानदार झुंड में से नहीं

लेकिन मैं एक ही बुत को मानता हूं–

मेरे मुर्शिद के…..     

    दिल्‍ली के मौलवी सरमद से किसी तरह छुटकारा पाना चाहते थे। लेकिन उन दिनों सरमद का जादू दिल्‍ली के लोगों पर तारी था। उसे कुछ हो जाता तो बवाल खड़ा हो सकता था। लोगों में यक अफवाह जड़ जमा चुकी थी कि सरमद दारा को एक सिंहासन देना चाहता था। औरंगज़ेब ने सरमद को बुलवा कर इस बारे में  सफाई पेश करने के लिए कहा।

सरमद ने बताया कि वह किसी मिट्टी के सिंहसन की बात नहीं कर रहा था, वह तो स्‍वर्ग के सिंहासन की और इशारा कर रहा था। जब औरंगज़ेब को भरोसा न हुआ तो सरमद ने उसे कहा, ‘’आंखे बंद करो और खुद देख लो।‘’

औरंगज़ेब ने आंखे बंद कीं तो उसे यह नज़ारा दिखाई दिया कि दारा स्‍वर्ग में एक सिंहासन पर बैठा है। और औरंगज़ेब उसके सामने एक भिखारी की तरह खड़ा है। यह देखकर औरंगज़ेब आगबबूला हुआ। और तबसे सरमद उसकी आंखो की किरकिरी हो गया। उसे दहशत पैदा हुई कि यह नज़ारा सरमद कहीं और लोगों को न दिखाये।

दिल्‍ली के मुल्‍ला और मौलवी बुरी तरह सरमद को खत्‍म करना चाहते थे। वे आये दिन औरंगज़ेब के पास उसकी शिकायते लेकर जाते। लेकिन एक भी शिकायत औरंगज़ेब को सरमद को मारने के लायक न लगी। जामा मस्‍जिद में सरमद अक्‍सर बैठा रहता था। या कभी उसकी लंबी-चौड़ी सीढ़ियों पर नंगा पडा रहता। औरंगज़ेब जुम्‍मे के जुम्‍मे।

(हर शुक्रवार) मस्‍जिद में नमाज पढ़ने जाता था। एक दिन मुल्‍लाओं ने साजिश कर मस्‍जिद की उस बाजू में बादशाह का रथ रूकवाया जहां सिढ़ियों पर सरमद नंगा पडा हुआ था।

सीढ़ियां चढ़ते हुए बादशाह रूका और उसने पूछा, ‘’सरमद तुम इतने विद्वान और समझदार हो, इतने सारे लोग तुम्‍हारे पीछे दीवाने है, तुम नंगे क्‍यों रहते हो? कम से कम तुम्‍हारे पैरों तले पडा हुआ कंबल ही ओढ़ लेते। तुम ठीक से कपड़े क्‍यों नहीं पहनते?

सरमद ने कहा, ‘’अगर आपको इतनी ही फ्रिक है तो आप ही कंबल क्‍यों नहीं उढ़ा देते?’’

जैसे ही औरंगज़ेब ने कंबल उठाया, उसे कंबल में उसके भाइयों और भतीजों के खून से लथपथ सिर दिखाई दिये। सरमद ने औरंगज़ेब से पूछा, ‘’बादशाह सलामत, ये कंबल में अपने बदन के नंगेपन को ढ़ांकने के लिए इस्‍तेमाल करूं या आपकी नीयत और ईमान के नंगेपन को छुपाने के लिए?

औरंगज़ेब सर से पेर तक कांप गयो। सरमद की रूबाइयों में यक वाक्‍यां दर्ज किया गया है।

जिसने ताज का मुर्दा वज़न और सियासत

की फिक्र तुम्‍हारे नापाक सिर रखी

उसी ने मुझे गरीबी की अमीरी दी

मैंने खुद चुनी है दौलत की सारी

परेशानियों से महरूम

नापाक बंदों से उसने कहा, ’’अपनी शर्म

को कपड़ों की कई पर्तीं में छुपाओं।‘’

लेकिन जो पाक रूह है उन्‍हें उसने बच्‍चों

की खूबसूरत पोशाक बख्शी

मासूमियत और नंगापन

     सरमद के सभी  मुरीदों और दार्शनिकों के लिए यह पहेली थी कि वह नंगा क्‍यों रहा। सरमद का एक ही जवाब था, ‘’मेरे गुरु का हुक्‍म है।‘’ दिल्‍ली के लाल किले में उस दिन लोगों का समुंदर लहरा रहा था। सरमद, जो कि हजारों लाखों के लिए अल्‍लाह का पैगंबर था उसे काफिर करार दे दिया गया था। और उसका कुफ्र क्‍या था?

     दिल्‍ली के प्रधान काजी के मुताबिक सरमद का कुफ्र था: दिल्‍ली की सड़कों पर ‘’अनलहक, अनलहक…चिल्‍लाते हुए गुजरना। यह कुरान की बेइज्‍जती थी क्‍योंकि कुरान में लिखा है कि बस एक ही अल्‍लाह है। और इस नंगे फकीर की जुर्रत कि अपने आपको सरेआम अल्‍लाह कहता फिरे?

तख़्तनशीन औरंगज़ेब ने सरमद से पूछा, ‘’तुम्‍हें अपने बचाव में कुछ कहना है?’’

सरमद ने कहा, ‘’कुछ नहीं, यह सच है।‘’

फौरन औरंगज़ेब ने हुक्‍म दिया कि सरमद का सिर कलम कर दिया जाये। बाहर खड़ी भीड़ पर तो जैसे गाज गिर गई। सरमद उनका सब कुछ था, मां-बाप, गुरु, दोस्‍त, तारनहार। उनकी आंखों के आगे अँधेरा छा गया। धीरे-धीरे उनका दुःख गुस्‍से में और बगावत में बदल गया। लोग बेकाबू हो रहे थे। और बगावत करने को बेताब थे। औरंगज़ेब ने दिल्‍ली की सड़कों पर सेना को बुलाया और दिल्‍ली के गली-कूचों में फैला दिया ताकि लोगों में दहशत फैल जाये। और दूसरे दिन जामा मस्‍जिद के पास सरमद के सिर कलम करने की तैयारियाँ कीं।

लेकिन सरमद की मस्‍ती उन आखिरी घड़ियों में भी उतनी ही थी। अपना सर काटने के लिए करीब आते हुए जल्‍लाद को देखकर वह बोल उठा, ‘’या खुदा, आज तू मेरे पास इस शक्‍ल में आया है।‘’

जब उसका सर काटा गया तो उसके खून का कतरा-कतरा बोल उठा, ‘’अनलहक़, अनलहक़…।‘’

उसके बाद जो हुआ वह चमत्‍कार था। सरमद के धड़ ने अपने टूटे हुए सिर उठाया और ‘’अनलहक़’’ पुकारता हुआ जामा मस्‍जिद की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ चला गया। लोग एक बरगी स्‍तब्‍ध रह गये और फिर चीखने-चिल्लाने जयकार करने लगे। तब सरमद का गुरु सूक्ष्‍म शरीर में प्रगट हुआ और उसने कहा, ‘’इस शरीर में तुझे जो करना था वह तूने कर लिया, अब कुदरत को अपना काम करने दे।‘’

तत्‍क्षण सरमद का शरीर गिर पडा।

सरमद का सिर क्‍यों कलम किया गया इस पर उसकी जीवनी लिखने वालों में मतभेद है। एक मत के अनुसार सरमद गति कलमा पढ़ता था इसलिए उसे सज़ा-ए-मौत दी गई। ‘’ला इलाह इल तल्‍लाह’’ की जगह वह सिर्फ ‘’ला इलाह’’ कहता था, जिसका मतलब होता है कोई खुदा नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि सरमद मुसलमान नहीं था, यहूदी था। फिर उस पर कुरान की तौहीन करने का इल्‍जाम कैसे लगाया जा सकता है? इसका जवाब कोई नहीं दे सकता।

औरंगज़ेब 1658 में तख़्तनशीन हुआ और उसने 1659 में सरमद का कांटा हटा दिया। सरमद को मारकर उसे तसल्‍ली नहीं हुई। उसने सरमद की सारी रूबाइयात जला दी। किसी तरह 321 रूबाइयां औरंगज़ेब के चंगुल से बच गई।

सरमद को किसी तरह अपनी मौत का अंदेशा हो गया था। उसने लिखा है:

एक अरसा हो गया

मंसूर को दुनिया को अपना पैग़ाम दिये हुए

और उसका पाक असर मद्धिम हो रहा है

और तेरी मदद से उसे फिर से बुलंद करना है–

जल्‍लाद की कसी हुई रस्‍सी और लकड़ी के खंभे–

अल्लाह के बंदों को मौत ज्‍यादा बड़ी जिंदगी देती है।

सरमद का यह अंदेशा हकीकत में बदल गया। कहते है कि सरमद की कत्‍ल से पूरी दिल्‍ली इस कदर थर्रा गई कि औरंगज़ेब को शहर में फैली हुई सेना को हटाने में महीनों लग गए।

सरमद की रूबाइयां:

सरमद जैसे मस्‍तो की रूबाइयां महज कविता नहीं होती। शब्‍दों को सरमद ‘’शराब’’ कहता है। और गुरु है साकी। आदमी के मस्‍तिष्‍क में जो गहरे केंद्र है वह है मैख़ाना। सरमद की रूबाइयां पढ़ते वक्‍त ये प्रतीक ख्‍याल में रखने जरूरी है।

1–   बड़ा अजीब वाकया है यह

      जो शराब पीता है वह शराब ही हो जाता है

      दसवें द्वार में, तीसरे लोक में,

      अमृत की झील है

      उस लाल रंग की झील से लाल शराब

      ले लो

      और तुम्‍हारे बुढ़ापे में खुशी से पीओ

      उस वक्‍त यही अकेली चीज है

      जो तुम्‍हें सुकून देगी

      कब तक यहां कैदी बने रहोगे?

      अल्‍लाह का करम पी लो

      और सदा क लिए आजाद हो जाओ

2—    जिंदगी के रंगबिरंगे तजुबों में मैंने देखा है

      तेरी रहमत मेरे काले और बदसूरत गुनाहों से

      बहुत बड़ी है।

      हैरान हूं, मेरे गुनाह जो कि सज़ा पाने के हकदार थे

      तेरी बेइंतहा रहमत के बहाने बन गए।

3–   ऐ सरमद, तेरी जिंदगी इतनी बदलती हुई

      कभी सुख का फूल, कभी बुलंदी का पहाड़

      और कभी गरीबी का रेगिस्‍तान

      कभी मुर्शिद की रोशनी या कभी वह फूल

      जो अपनी खुशबू से औरों को खुश करे

      कभी तू अज़ीम हस्‍तियों के बीच बैठता है

      तो कभी गुलशन में, या कूड़े के वीरान ढेर पर

      जिंदगी के इन बदलते हुए तेवरों को सीख

      कुछ भी थिर नहीं है,

      कुछ भी कायम नहीं है।

4–   ऐ सरमद, संगठित मज़हबों पर चोट कर

      तूने कहर ढ़ा दिया।

      तूने अपने मज़हब को

      उस आदमी पर क़ुरबान किया जिसकी आंखे

      नशे में लाल है

      तेरी सारी दौलत तूने मुर्शिद के कदमों में लुटा दी

      जो कि बुत परस्‍त है।

5–   ऐ आदमी, तू एक पहेली है

      तू सिर्फ उसे जानता है

      जो कि दिखाई देता है

      लेकिन तेरी हकीकत ढंकी हुई है

      तू जिस्‍म नहीं, जान है

      जैसे सियाह कांच के पीछे छिपी हुई लौ

      तेरी रोशनी छिपी है

      लेकिन कांच के पीछे तेरी बेपर्दा हकीकत है

6–   मेरे महबूब, इस ग़मगीन दूनिया में

      तू ही मेरा चैन और सुकून है

      दोस्‍त और रिश्‍तेदार,

      मैंने तराजू में तौल लिए

      उनका पलड़ा हल्‍का है

      मेरी बेबसी के दौर में तू ही

      मेरे साथ खड़ा पाता है।     

(सरमद की रूबाइयां मूल फारसी भाषा में लिखी गई है। उन्‍हें लखनऊ के मुन्‍शी सैयद नवाब अली ने उर्दू में अनुवादित किया। यहूदी लेखक आई. ए. इज़िकेल जो कि एक साधक थे, उन्‍होंने अपने अन्‍य सत्‍संगी मित्रों की मदद से इन रबाइयों का अंग्रेजी अनुवाद किया। अंग्रेजी से उठा कर अधकचरी हिंदी का जामा पहिनाने की गुस्‍ताखी ……)

ओशो का नजरिया:

आज जिसका बात करने जा रहा हूं वह उन अनोखे लोगों में से है जो इस पृथ्‍वी पर चले है। उसका नाम है सरमद। वह सूफी था और एक मुसलमान राजा के हुक्‍म से मस्‍जिद में उसका कत्‍ल किया गया।

वह इसलिए मारा गया क्‍योंकि एक मुस्‍लिम कलमा है: अल्‍लाह ही एक मात्र परमात्‍मा है। और वह उसके लिए काफी नहीं है। वह  कुछ और चाहते है। वे दुनिया में घोषित करना चाहते है कि सिर्फ मोहम्‍मद ही अल्‍लाह के पैगंबर है। ईश्‍वर ही ईश्‍वर है। और मोहम्‍मद अकेले पैगंबर है।

सूफी इस कलमा के दूसरे हिस्‍से को कबूल नहीं करते। सरमद का कुफ्र यही था। स्‍वभावत: कोई भी अकेला पैगंबर नहीं हो सकता। कोई भी आदमी—फिर से जीसस हो या मोहम्‍मद या मोज़ेज या बुद्ध, एकमात्र नहीं हो सकता।

सरमद का कत्‍ल कर दिया गया मुगल बादशाह के हुक्‍म से। उसने मुल्लाओं के साथ साजिश की थी। लेकिन सरमद हंसता रहा। उसने कहा, मरने के बाद भी मैं यही कहूंगा।

दिल्‍ली की विशाल जामा मस्‍जिद, जहां सरमद का कत्‍ल किया गया। इस महान व्‍यक्‍ति की स्‍मृति लिये खड़ी है। बड़ी बेरहमी से, अमानवीय तरीके से उसका कत्‍ल हुआ। उसका कटा हुआ सिर मस्‍जिद की सीढ़ियों पर लुढ़कता हुआ चिल्‍ला रहा था: ‘’ला इल्‍लाही इल अल्‍लाहा।‘’ वहां खड़े हजारों लोग इस वाक्‍य को देख रहे थे।

मुझे पता नहीं यह कहानी सत्‍य है कि नहीं, लेकिन होनी चाहिए। सत्‍य को भी सरमद जैसे व्‍यक्‍ति के साथ समझौता करना पड़ेगा। मैं सरमद से प्रेम करता हूं। उसने कोई किताब नहीं लिखी लेकिन उसके वचन है: ‘’अल्‍लाह ही अकेला अल्‍लाह है, और कोई पैगंबर नहीं है। तुम्‍हारे और अल्‍लाह के बीच कोई मध्‍यस्‍थ नहीं है। अल्‍लाह सीधा उपलब्‍ध है।‘’ बस, जरूरत है तो थोड़ी सी दीवानगी की और बहुत से ध्‍यान की।

ओशो

बुक्‍स आय हैव लव्‍ड

लल्‍लावाख—(लल्ला)-025

लल्‍लावाख -(लल्‍ला की वाणी)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Lalla-Vakyani

     योग मार्ग स्‍त्री-पुरूष, दोनों के लिए समान रूप से उपल्‍बध है। लेकिन न जाने क्‍यों स्‍त्रियां उस मार्ग पर बहुत कम चलीं। और जो चलीं भी, उनमें पहुंचने वाली अत्‍यंत कम है। कश्‍मीरी रहस्‍यदर्शी स्‍त्री लल्‍ला ऐसी अद्वितीय स्‍त्रियों में से एक है। वह योगिनी थी इसलिए उसे नाम मिला, लल्‍ला योगेश्‍वरी।

लल्‍ला की एक और अद्वितीयता यह थी कि वह आजीवन नग्‍न रही। शायद विश्‍व में एक मात्र स्‍त्री होगी जो निर्वस्‍त्र होकर बीच बाजार रही। पुरूष भी इतनी हिम्‍मत नहीं कर पाते जो आज से सात सौ साल पहले एक भारतीय स्‍त्री ने की। स्‍त्रियों के लिए अपनी देह के पार जाना लगभग असंभव है। एक लल्‍ला ही अनोखी थी जो विदेही अवस्‍था में मुक्‍त मन से विचरती रही। इसलिए कश्‍मीरी लोग कहते थे, ‘’हम दो ही नाम जानते है; एक अल्‍लाह और दूसरा लल्‍ला।‘’ Continue reading “लल्‍लावाख—(लल्ला)-025”

सायकोएनेलिसिस एंड दि अनकांशस–(लॉरेन्स)-024

सायकोएनेलिसिस एंड दि अनकांशस—(डी. एच. लॉरेन्स)

ओशो की प्रिय पुस्तकें

Psychoanalysis and the Unconscious-Lawrence D. H.

     बीसवीं सदी के आरंभ में सिगमंड फ्रायड और उसके शिष्‍योत्‍तम युग ने पहली बार मनुष्‍य के मन की गहराई में दबे हुए अवचेतन या अनकांशस का उॅहापोह किया। ओशो स्‍पष्‍ट कहते है कि लॉरेन्‍स एक स्‍थापित मनोवैज्ञानिक न होते हुए भी वह मन की गहराइयों में अधिक कुशलता से पहुंचा है। और उसने बड़ी सुंदरता से अवचेतन की बारीकियां को शब्‍दांकित किया है।

यह किताब सबसे पहले 1923 में प्रकाशित हुई। इन दो निबंधों में लॉरेन्‍स का मूल बिंदू यह है कि ‘’अवचेतन’’ जीवन का ही दूसरा नाम है। उसका मानना है कि मानव जीवन में जो भी कहा नहीं जा सकता वह उसकी निजता और भावनाओं का सबसे गहरा स्‍त्रोत है। फ्रायड ने मनुष के अवचेतन को बड़ा की कुरूप, अंधियारा, और रूग्‍ण Continue reading “सायकोएनेलिसिस एंड दि अनकांशस–(लॉरेन्स)-024”

मदर-(गोर्की)-023

मदर—(मैक्‍सिम गोर्की)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Mother– Maxim Gorky

(विख्‍यात रशियन लेखक मैक्‍सिम गोर्की उपन्‍यास मदर पहली रशियन क्रांति के पहले लिखा गया था जब ज़ार शाही के खिलाफ मजदूरों को उत्‍थान शुरू हुआ। रशिया में नया-नया औधोगिकीकरण हुआ था। शहरों में कारखाने खड़े हुए और उनमें काम करने के लिए मजदूरों की जरूरत पड़ने लगी। कारख़ानों के मालिक मजदूरों का शोषण ठीक उसी तरह करने लगे जैसे ज़ार किसानों का करते थे। मजदूरों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।)

यह उपन्‍यास भी एक कारखाने की पृष्‍ठभूमि में लिखा गया। एक अर्थ में उपन्‍यास की नायिका मदर है, मदर अर्थात मां, पावेल की मां—लेकिन सच देखा जाये तो मजदूरों की बदतर हालत, उनका असंतोष और असंतोष जन्य बगावत इस उपन्‍यास के मुख्‍य चरित्र है। सारे मजदूर यहां एक सामूहिक चेहरा बनकर उभरते है। मदर है उन मजदूरों के नेता पावेल की मां। वह अप्रयोजन, परिस्थितिवश उनके आंदोलन में खिंच जाती है। Continue reading “मदर-(गोर्की)-023”

दि डेस्‍टिनी ऑफ दि माइंड-(हास)-022

दि डेस्‍टिनी ऑफ दि माइंड—(विलियम हास)-ओशो कीी प्रिय पुस्तकें 

The Destiny of the Mind. East and West by William S. Has

बीसवीं सदी के प्रारंभ में अनेक जर्मन तथा यूरोपियन विद्वान पूरब की प्रज्ञा की और आकर्षित हुए। यूरोप में बुद्धिवाद का उत्कर्ष चरम शिखर पर था लेकिन यह बुद्धिवाद तर्क पर आधारित था। वह बुद्धि की संतुष्‍टि तो कर सकता था लेकिन ह्रदय की प्‍यास बुझाने में असमर्थ था। इसीलिए विशेष रूप से जर्मन विद्घान भारत की वैदिक प्रज्ञा को समझने के लिए उत्‍सुक हुए।

विलियम हास भी उनमें से एक था। Continue reading “दि डेस्‍टिनी ऑफ दि माइंड-(हास)-022”

दि फीनिक्स-(लॉरन्स)-021

दि फीनिक्स—(डी. एच. लॉरेन्स)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Phoenix and the Flame- D. H. Lawrence

लॉरेन्स इंग्‍लैण्‍ड में 1885 में पैदा हुआ। दुर्भाग्‍य से इस प्रतिभाशाली लेखक को बड़ी छोटी सी जिंदगी मिली। केवल पैंतालीस वर्ष—लेकिन उम्र के इस छोटे से सफर में उसकी सर्जनशीलता जलप्रपात की तरह धुंआधार बहती रही। उसने चालीस से अधिक किताबें लिखी। वह पूर्णतया नैसर्गिक जीवन के हक में था। कारख़ानों और मशीनों के आक्रमण से विकृत हुई इंग्‍लैण्‍ड की संस्‍कृति से वह बेहद दुःखी था। वह स्‍वस्‍थ जीवन, प्रेम और मानवीयता का आलम चाहता था। उसका लेखन अत्‍यंत संवेदनशील, सौंदर्य पूर्ण और नजाकत से भरा हुआ था। सेक्‍स और प्रेम के विषय में उसकी कोई कुंठाएं नहीं थी। Continue reading “दि फीनिक्स-(लॉरन्स)-021”

मैैैन एंड सुपरमैन-(बर्नार्ड शॉ)-020

मैक्‍ज़िम्‍स फॉर रिवोल्‍युशनिस्‍ट-(जॉर्ज बर्नार्ड शॉ)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Man and Superman by Georj Barnad Shaw

     जॉर्ज बर्नार्ड शॉ इस सदी का अद्भुत मेधावी और मजाकिया लेखक था। उसका व्‍यक्‍तित्‍व उतना ही रंगबिरंगा था जितनी कि उसकी साहित्‍य-संपदा। उसकी रोजी रोटी कमाने का मूल व्‍यवसाय था। ‘’नाटकों को लेखन।’’ बर्नार्ड शॉ एक साथ कई चीजें था। उसको किसी एक श्रेणी में रखना संभव नहीं था। उसको किसी एक श्रेणी में रखना संभव नहीं था। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। वह परिष्‍कृत कलाओं का—साहित्‍य, संगीत, चित्र, नाटक—समीक्षक था। वह अर्थशास्‍त्री और जैविकीतज्ञ था। वह अपना धर्म ‘’क्रिएटिव इवोल्‍युशनिस्‍ट, सृजनात्‍मक, विकासवादी बताता था। Continue reading “मैैैन एंड सुपरमैन-(बर्नार्ड शॉ)-020”

श्री भाष्‍य-(रामानुज)-019

श्री भाष्य-रामानुज आचार्य-ओशो की प्रिय पुस्तकें  

Shri Sutra-Rama Nujama

रामानुज लिखित श्री भाष्‍य उस युग का प्रतिनिधित्‍व करता है जिस युग में भारत चित पर पांडित्‍य राज करता था। बुद्धत्‍व की अनुभूति तो बहुत तो बहुत संक्षिप्‍त सुत्रों में लिखी जाती है। ठीक वैसे जैसे विज्ञान के सूत्र होते है। तीन या चार सुगठित शब्‍दों में समुंदर जैसा अनुभव भर देना प्रबुद्ध पुरूषों की प्रिय क्रीड़ा थी। लेकिन इन आणविक सूत्रों पर लंबी-लंबी दार्शनिक टीकाएं लिखना पंडितों का मनपसंद खेल था। इन टीकाओं का जंगल इतना घना होता कि उसमें से रास्‍ता खोजते हुए मूल सूत्रों तक पहुंचना माउंट एवरेस्‍ट पर चढ़ने से कम दूभर नहीं था। पढ़ने वाले भी दार्शनिकों के वाग वैभव का खूब आनंद लेते थे। Continue reading “श्री भाष्‍य-(रामानुज)-019”

टशियन ऑर्गेनम-(आॅॅस्पेन्सकी)-018

टर्शियम ऑगेंनम—(डी.पी. ऑस्‍पेन्‍सकी)-ओशो की प्रिय पुसतकें

Tertium Organum-P.D. Ouspensky

     इस पूस्‍तक का लेखक पी.डी ऑस्‍पेन्‍सकी गणितज्ञ ओर तर्कशास्‍त्री, दोनों था। ओर इन दोनों विषयों में उसकी जो पैठ थी उसका इत्र निचोड़कर उसने एक दर्शन खड़ा किया जिसका लोकप्रिय नाम था: चौथा आयाम। उसकेआधार पर उसने पश्‍चिमी तर्कसरणी तथा रहस्‍यवाद के बीच सेतू बनाया।

ऑस्‍पेन्‍सकी कहता है: आकाश का आयाम चेतना के विकास से तालमेल रखता है। वहकहता है कि चौथा आयाम, चेतना की अभिव्‍यक्‍ति है। ओर वह चौथा आयाम; अंत:प्रज्ञा। आज मनुष्‍यजाति चेतना के जिस उच्‍चतर स्‍तर पर खड़ी है, विश्‍व चेतना का उदय हो रहा है। उसके लिएएक नये किस्‍म की तर्कसारणी की आवश्‍यकत होगी—ऐसी तर्कसरणी जो अरस्‍तु ओर बेकन के पार है। इसीलिए वह शीषक दिया गया है: दर्शियम आर्गोनम विचार का नवीन सिद्धांत। नवीन गणित और सापेक्षता के सिद्धांत का ऊहापोह करने वाला हये पहला महत्‍वपूर्ण ग्रंथ है। Continue reading “टशियन ऑर्गेनम-(आॅॅस्पेन्सकी)-018”

दि सॉंग्‍ज ऑफ मारपा-(तिलोपा)-017

महामुद्रा का उत्‍सव-(तिलोपा)-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

Song of Marpa-Khenpo Tsultrim 

     तिब्‍बत में काग्‍यु गुरूओं की एक लंबी परंपरा थी। जो सदियों-सदियों से चली आ रही थी: रहस्‍यदर्शी गुरु अपनी गहरी आध्‍यात्‍मिक अनुभूति को अभिव्‍यक्‍त करने के हेतु सहजस्‍फूर्त गीत रचते थे। तिब्‍बती साहित्‍य में इन बौद्ध शिक्षकों को गीत बहुत प्रसिद्ध है। इन गीतों में सत्‍य की अभीप्‍सा, ह्रार्दिक भक्‍ति और विनोद बुद्धि भी झलकती है।

काग्‍यु गुरूओं की परंपरा चर्च की तरह बहुत संगठित धर्म नहीं थी। इस परंपरा को तिलोपा  ने स्‍थापित किया था। या कहें, उसके बाद काग्‍यु गुरूओं की परंपरा बनी। तिलोपा गुरूओं की शरण में गांव-गांव भटका, और उसने उनसे ध्‍यान के प्रयोग सीखें। अंतत: गंगा किनारे एक घास की झोंपड़ी बनाई और वहां रहने लगा। Continue reading “दि सॉंग्‍ज ऑफ मारपा-(तिलोपा)-017”

दि सांग ऑफ सांगस्–(सालोमन)-016

सोलोमन का गीत—(विच इज़ सोलोमनस्) 

ओशो की प्रिय पुस्तकें

     गीतों का गीत जो कि सोलोमन का है।

यहूदियों के धर्मग्रंथ ‘’दि ओल्‍ड टैस्टामैंट’’ या बाइबिल के कुछ विवादास्‍पद पन्‍ने ‘’सोलोमन का गीत’’ बनकर आज भी यहूदी आरे ईसाई धर्म गुरूओं के लिए शर्म और संकोच की वजह बने हुए है।

गुरु गंभीर धार्मिक संहिता के बीच अचानक लगभग छह गीत ऐसे उभरे है जैसे मजबूत पुराने किले की दीवारों में कहीं लिली का नाजुक गुलाबी ह्रदय खिल उठा हो। Continue reading “दि सांग ऑफ सांगस्–(सालोमन)-016”

दि तवासिन-(मंसूर)-015

तवासिन—(मंसूर मस्ताना)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Tawanish-Mansoor Mastana

     कभी-कभी इंसान की मौत इतनी जिंदा हो जाती है कि उसकी जिंदगी को भी अपनी रोशनी से पुनरुज्जीवित कर देती है। पर्शियन सूफी औलिया अल-हृल्लास मंसूर का नाम दो चीजों के लिए इन्‍सानियत के ज़ेहन में खुद गया है : एक उसकी रूबाइयात और दूसरा उसकी मौत। ‘’अनलहक़’’ का निडर ऐलान करने वाले कई औलिया होंगे लेकिन इस क्रूफ्र के लिए अपने जिस्‍म की बोटी-बोट कटवाने वाला एक ही था: ‘’मंसूर’’ इस खौफनाक, अमानुष मौत की वजह से उसका प्‍यारा वचन ‘’अनलहक़’’ भी दसों दिशाओं में अब तक गूंज रहा है। आदि शंकराचार्य ने भी ‘’अहं ब्रह्मास्‍मि’’  के महावाक्य का उद्घोष किया था लेकिन सहनशील, उदारमना हिंदू धर्म ने उन्‍हें इतनी कठोर सज़ा नहीं दी। Continue reading “दि तवासिन-(मंसूर)-015”

ताओ तेह किंग-(लाओत्से)-014

ताओ तेह किंग—(लाओत्‍से)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Tao Teh King-Lao Tzu

लाओत्‍से ने जो कहा : वह पच्‍चीस सौ साल पुराना जरूर है। लेकिन, एक अर्थ में यह इतना ही नया है। जितनी सुबह की ओस की बुंदे नयी होती है। नया इसलिए है कि उस पर अब तक प्रयोग नहीं हुआ। नया इसलिए है कि मनुष्‍य की आत्‍मा उस रास्‍ते पर एक कदम भी नहीं चली। रास्‍ता बिलकुल अछूता और कुंआरा है।

भारत की तरह चीन ने भी धरती पर सबसे पुरानी वह समृद्ध सभ्‍यता की विरासत पायी है। कोई छह हजार वर्षों का उसका ज्ञात इतिहास है—अर्जनों और उपलब्‍धियों से लदा हुआ। यदि पूछा जाए कि चीन के इस लंबे और शानदार इतिहास में सबसे उजागर व्‍यक्‍तित्व, एक ही व्‍यक्‍तित्‍व कौन हुआ, तो आज का प्रबुद्ध जगत बिना हिचकिचाहट के लाओत्‍से का नाम लेगा। कुछ समय पूर्व इस प्रश्‍न के उत्‍तर में शायद कंफ्यूशियस का नाम लिया जाता। कंफ्यूशियस लाओत्‍से का समकालीन था। और यह भी सच है कि बीते समय में चीनी समाज पर लाओत्‍से की जीवन दृष्‍टि के बजाय कंफ्यूशियस के नीतिवादी विचार अधिक प्रभावी सिद्ध हुए।

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दि प्रॉफेट-(खलिल जिब्रान)-013

दि गार्डन ऑफ दि प्रॉफेट(खलिल जिब्रान)

The Prophe-Kahlil Gibran

यह छोटी सी खूबसूरत किताब अधिकत: गद्य में लिखी गई है। लेकिन इसके ह्रदय में कविता बह रही है। खलिल जिब्रान का अंतस् उस सौंदर्य लोक में प्रविष्‍ट हुआ है। जहां गद्य और पद्य में बहुत फर्क नहीं होता और विचार भी एक तरह का संगीत हो जाता है।

यह किताब भी जिब्रान ने उसी अंदाज में लिखी है जैसे उसकी अन्‍य किताबें। अल मुस्‍तफा, एक प्रबुद्ध रहस्‍यदर्शी बहुत यात्राएं कर उसके अपने द्वीप में वापस लौटता है जहां उसका अपना बग़ीचा है। उस बग़ीचे में उसके मां-बाप दफनाये गये है। इसी बग़ीचे में वह पला, बड़ा हुआ। Continue reading “दि प्रॉफेट-(खलिल जिब्रान)-013”

विमल कीर्ति निर्देश-सूत्र-012

विमल कीर्ति निर्देश सूत्र—(सार बॉयन)-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

Vimalakirti Sutra-Saar Baryan

     विमल कीर्ति बुद्ध के वरिष्‍ठ शिष्‍य थे और स्‍वयं बुद्धत्‍व को उपलब्‍ध हो चूके थे। उनके द्वारा कथित निर्देश सूत्र महायान बौद्धो के साहित्‍य के कोहिनूर हे। लेकिन इन बहुमूल्‍य सूत्रों की मूल संहिता कहीं भी उपलब्‍ध नहीं है। विमल कीर्ति बुद्ध के समय थे (500-600 ईसा पूर्व) लेकिन लगभग पाँच सौ वर्षों तक उनके सूत्रों का कोई अता-पता नहीं था। वह तो नागार्जुन ने ईसा पूर्व पहली सदी या पहली शताब्‍दी ईसवी के बीच महायान परंपरा के ग्रंथ खोज निकाले। उन्‍हीं में से एक थे विमल कीर्ति निर्देश सूत्र। ये सूत्र सात बार चीनी भाषा में अनुवादित हुए, फिर तिब्‍बती भाषा में अनुवादित हुए लेकिन मूल संस्‍कृत सूत्र खो गये। हमारे हाथों में उनका सिर्फ अनुवाद आया है। Continue reading “विमल कीर्ति निर्देश-सूत्र-012”

ब्रह्मसूत्र-(बादनारायण)-011

ब्रह्मसूत्र—(महाऋिषि बादनारायण)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Brahma Sutra- Badarayana

ब्रह्मसूत्र और आधुनिक मनुष्‍य के बीच हजारों वर्ष का फासला है। यह फासला सिर्फ समय का नहीं है, मानसिकता का भी है। मनुष्‍य के अंतरतम पर व्‍यक्‍तित्‍व की इतनी पर्तें चढ़ गई है कि उसका मूल चेहरा खो गया है। अगर कहा जाये कि ब्रह्मसूत्र मुल चेहरे की खोज है। तो गलत नहीं होगा।

भारतीय अध्‍यात्‍म के आकाश में कुछ दैदीप्‍यमान सितारे है, उनमें से एक अनोखा सितारा है: बादरायण व्‍यास विरचित ब्रह्मसूत्र। ब्रह्मसूत्रों का प्रत्‍येक पहलू उतना ही रहस्‍यपूर्ण है,जितना कि स्‍वयं ब्रह्म। ब्रह्म एक ऐसी अवधारणा है जिसका भारतीय दर्शन में सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। हो सकता है ‘’ब्रह्म’’ कुछ ऋषियों की अनुभूति रही हो, लेकिन अधिकांश लोगों के लिए तो यह महज एक शब्‍द है, जो उनकी सामान्‍य जिंदगी में जरा भी उपयोगी नहीं है। Continue reading “ब्रह्मसूत्र-(बादनारायण)-011”

दि लाइट ऑफ एशिया:(अर्नाल्ड)-010

दि लाइट ऑफ एशिया: (सर एडविन अर्नाल्‍ड)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

The Light Of Asia–Sir Edwin Arnold

     विश्‍व की महान कृतियों में जो श्रेष्‍ठ कोटि का साहित्‍य है उनमें ‘’लाइट ऑफ एशिया’’ का स्‍थान बहुत ऊँचा है। अंग्रेज पत्रकार और कवि सर एडविन अर्नाड न सन 1879 में इस सुमधुर काव्‍य सलिला की रचना की। सर अर्नाल्‍ड का जीवन बहुत अनूठा है। वे सन् 1861 में भारत आये और सीधे पूना आकर बसे। उनकी विद्वता को देखते हुए उन्‍हें यहां के डेक्‍कन कॉलेज का प्रिंसिपल बनाया गया। भारत में उन्‍होंने संस्‍कृत भाषा सीखी ओर उनके लिए संस्‍कृत साहित्‍य के समृद्ध और विस्मयकारी भंडार के द्वार खुल गये। वे भारतीय दर्शन, चिंतन और प्रगल्‍भता और साहित्‍य से इतने अभिभूत हुए कि अपने अंग्रेज देशवासियों तक उसका ऐश्‍वर्य पहुंचाने की अभीप्‍सा से भर उठे। उनहोंने अनेक संस्‍कृत ग्रंथों का अनुवाद किया। गौतम बुद्ध के जीवन से वह अत्‍यंत प्रभावित हुए और उनके कवि ह्रदय ने बुद्ध की जीवनी को काव्‍य रस में डुबोकर एक अद्भुत माला बनाई जिसमें कल्‍पना विलास और यथार्थ का खूबसूरत संमिश्रण किया। Continue reading “दि लाइट ऑफ एशिया:(अर्नाल्ड)-010”

दि मैडमैन:(खलील जिब्रान)-009

दि मैडमैन: (खलील जिब्रान)-ओशो की प्रिय पुस्तकें 

The Madman -Khalil Gibran

मैडमैन खलील जिब्रान की प्रतीक कथाएं है। उसने एक पागल आदमी के ज़रिये कहलवायी है। यह पागल वस्‍तुत: एक रहस्‍यदर्शी फकीर है और वह दुनियां की नजरों में पागल है। दूसरी तरफ से देखा जाये तो वह वास्‍तव में समझदार है क्‍योंकि उसकी आँख खुल गई है। इस छोटी सी किताब में कुछ 34 प्रतीक कथाएं है जो ईसप की कहानियों की याद दिलाती है। Continue reading “दि मैडमैन:(खलील जिब्रान)-009”

थियोलॉजिया मिस्‍टिका-(डियोनोसियस)-008

थियोलॉजिया मिस्‍टिका—(एलन वॉटस)-ओशो की प्रिय पुस्तकेंं

Woody Allen Whats- New Pussycat Stock

     अगर ‘’गागर में सागर’’ इस मुहावरे का सही इस्‍तेमाल करना हो तो वह इस छोटी सी पुस्‍तिका के लिए किया जा सकता है। इतने थोड़े से शब्‍दों में इतना गहरा आशय भर देना, जैसे एक-एक शब्‍द अणु बम हो, एक रहस्‍यदर्शी ही कर सकता है।

ग्रीक रहस्‍यदर्शी डियोनोसियस के वचनों ने यही कमाल कर दिखाया है। इसीलिए ओशो न उन वचनों के अपने प्रवचनों के काबिल समझा। डियोनोसियस पर दिये गये ओशो के प्रवचनों की किताब उसी नाम से प्रकाशित है। और डियोनोसियस को उन्‍होंने अपनी मनपसंद किताबों में भी सम्‍मिलित किया है। Continue reading “थियोलॉजिया मिस्‍टिका-(डियोनोसियस)-008”

मिटिंग्‍ज़ विद रिमार्केबल मैन-(गुरूजिएफ)-007

असाधारण लोगो से मुलाक़ातें-(जार्ज गुरजिएफ)-ओशो की प्रिय पुस्तकें

Meetings with Remarkable-G. I. Gurdjieff

     (एक आसाधारण इंसान द्वारा लिखी गई असाधारण किताब। बीसवीं सदी का रहस्‍यदर्शी जार्ज गुरजिएफ कॉकेशन में पैदा हुआ और उसने मूलत: योरोप और अमेरिका में अपना आध्‍यात्‍मिक संदेश फैलाया। यह किताब उसके जीवन के कुछ प्रसंगों का, उन प्रसंगों की प्रमुख भूमिका निभाने वाले कुछ अद्भुत व्‍यक्‍तियों का चित्रण है जिन्‍होंने गुरजिएफ की चेतना को प्रभावित और शिल्‍पित किया।)

गुरजिएफ सत्‍य का खोजी था। उसे कुदरत ने कुछ अतींद्रिय शक्‍तियां दे रखी थी। उनका विकास और उनका उपयोग कर जीवन के कुछ गहन रहस्‍यों को खोजने में और बाद में उन्‍हें अपने शिष्यों को बांटने में गुरूजिएफ का जीवन व्‍यतीत हुआ। Continue reading “मिटिंग्‍ज़ विद रिमार्केबल मैन-(गुरूजिएफ)-007”

सिद्धार्थ-(हरमन हेस)-006

सिद्धार्थ—हरमन हेस-(ओशो की प्रिय पुस्तकें) 

Siddhartha – Hermann Hes

     हरमन हेस की सिद्धार्थ बहुत ही विरल पुस्‍तकों में से एक है। वह पुस्‍तक उसकी अंतर्तम गहराई से आयी है। हरमन हेस सिद्धार्थ से ज्‍यादा सुंदर और मूल्‍यवान रत्‍न कभी नहीं खोज पाया। जैसे वह रत्‍न तो उसमें विकसित ही हो रहा था। वह इससे ऊँचा नहीं जा सका। सिद्धार्थ हेस की पराकाष्‍ठा है।

सिद्धार्थ बुद्ध भगवान से कहता है, आप जो कुछ कहते है सच है। इससे विपरीत हो ही कैसे सकता है। आपने वह सब समझा दिया है। जिसे पहले कभी नहीं समझाया गया था। आपने सभी कुछ स्‍पष्‍ट कर दिया है। आप बड़े से बड़े सदगुरू है। लेकिन आपने संबोधि स्‍वयं के असाध्‍य श्रम से ही उपलब्‍ध की है। आप कभी किसी के शिष्‍य नहीं बने। आपने किसी का अनुसरण नहीं किया; आपने अकेले ही खोज की। आपने अकेले ही यात्रा करके संबोधि उपलब्‍ध की है। आपने किसी का अनुसरण नहीं किया। Continue reading “सिद्धार्थ-(हरमन हेस)-006”

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