सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-15)

प्रवचन-पंद्रहवां

वर्तमान में जीना ही संन्यास है

 (अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने कहा है कि हमें दूसरों के साथ संबंध नहीं जोड़ना चाहिए, लेकिन हममें से अधिकतम लोग जो पश्चिम से हैं, वहां हमारे मित्र और संबंधी हैं, हमने यहां जो कुछ पाया है, उसे उनके साथ बांटकर हम उन्हें अपना सहभागी बनाना चाहते हैं।

संन्यास के बारे में हमें उन्हें क्या बताना चाहिए? आपके बारे में हमें उन्हें क्या बताना चाहिए? और जो स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है, उसे हम कैसे अभिव्यक्त कर सकते हैं? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-15)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-14)

प्रवचन-चौहदवां

पितृत्व अर्थात बच्चे को संपूर्णता देना

 (अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने कहा है कि प्रत्येक बच्चा जन्म से ही परमात्मा होता है। मेरे दोनों बच्चे ठीक जन्म के समय से ही बहुत भिन्न थे। एक बहुत शांत, निर्मल स्वभाव का ईश्वर-तुल्य है, लेकिन दूसरी बच्ची किसी पूर्व परिस्थितियों से प्रभावित प्रतीत होती है, वह शुरू से ही अशांत और क्षुब्ध है। इस समस्या-ग्रस्त बच्ची से हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए?

 

इससे एक बहुत मौलिक प्रश्न उठ खड़ा होता है। अस्तित्व स्वयं ही दिव्य है, इसलिए अनिष्ट अथवा बुराई कहां से आती है? अशांति, अनैतिकता और अस्वीकृती कहां से आती है? जो शुभ है, जो अच्छा है, वह तो ठीक है, क्योंकि हमने उसे परमात्मा का समानार्थक बनाया है, शुभ यानि परमात्मा। लेकिन अशुभ कहां से आता है? इस प्रश्न ने मनुष्यता को सदियों से उलझन में डाल रखा है। इतिहास में हम जितनी दूर तक पीछे जा सकते हैं, वहां तक यह समस्या मनुष्य के मन में हमेशा से ही बनी रही है। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-14)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-13)

प्रवचन-तैहरवां

ईश्वर भी तुम्हें खोज रहा है!

 (अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! कल आपने हमें बहुत स्पष्ट रूप से यह बताया था कि हमें सदगुरु द्वारा कही गई बातों का शब्दश : पालन करना आवश्यक है, लेकिन हम आपसे बार-बार, प्रत्येक विवरण पर परामर्श नहीं कर सकते हैं। ऐसे में हमारा मन हमेशा सरल मार्ग चुनने के लिए उत्सुक होता है, तब उस परिस्थिति में हम ठीक मार्ग का चुनाव कैसे करें?

 

वास्तविक समस्या सदगुरु से परामर्श करना नहीं है, बल्कि अधिक ध्यानपूर्ण होने की कला सीखना है, क्योंकि सदगुरु का भौतिक पक्ष उतना महत्त्वपूर्ण और आवश्यक नहीं है। यदि तुम पूरी तरह से ध्यानपूर्ण हो, तो तुम प्रत्येक क्षण सदगुरु से परामर्श कर सकते हो। तब भौतिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है और भौतिक उपस्थिति केवल तभी अति आवश्यक होती है, जब तुम ध्यानपूर्ण नहीं हो। क्योंकि तुम अपने शरीर को ही स्वयं का होना मानते हो और Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-13)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-12)

प्रवचन-बाहरवां 

समग्र बनो

 (अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने सदगुरु के प्रति पूर्ण समर्पण के बारे में हमें बताया, लेकिन निर्देशों का शब्दश : पालन न करने के लिए हमारा मन प्रायः कई कारण ढूंढ लेता है। हम लोग इस तरह की बातें कहने लगते हैं कि सदगुरु आज की व्यावहारिक परिस्थितियों को नहीं समझ सकते हैं, वे पश्चिमी देशों के हालात से परिचित नहीं हैं।

क्या हमें सदगुरु की प्रत्येक बात का अक्षरश : अनुसरण करना चाहिए? अथवा कभी-कभी किसी विशेष समय में अपने विवेक का भी प्रयोग करना चाहिए? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-12)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-11)

प्रवचन-ग्याहरवां 

जीवन का मृत्यु के संग मिलन

 (अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! जब आपके सामने बैठे हुए हम आपके वचनों को सुनते हैं और आपकी उपस्थिति का अनुभव कर रहते हैं तो आपके द्वारा कहा गया सबकुछ संभव जैसा प्रतीत होता है। परंतु जैसे ही हम अपने दैनिक जीवन की परिस्थितियों में वापस लौटते हैं तो स्पष्टता और पारदर्शिता खो जाती है और हम स्वयं को आपसे दूर महसूस करने लगते हैं।

आप कहते हैं कि हमें संसार का परित्याग नहीं करना चाहिए, बल्कि इसी जगत में रहते हुए ध्यानपूर्ण होना चाहिए। आपने यह भी बताया है कि हमें हर पल मस्ती में जीना चाहिए। हम अपने परिवार, समाज और मित्रों के बीच रहते हुए, कैसे इन दोनों बातों के बीच सामंजस्य बिठा सकते हैं? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-11)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-10)

प्रवचन-दसवां

न कोई लक्ष्य, न कोई प्रयास

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! झेन परम्परा है कि जब कोई भिक्षु अपनी शिक्षाएं देने बाहर जाता था तो उसके पूर्व उसे अपने सदगुरु के साथ दस वर्षों तक मठ में ठहरना होता था। एक बार एक भिक्षु ने मठ में दस वर्षों का समय पूरा कर लिया था। वह एक दिन भारी बरसात के दौरान अपने सदगुरु ‘नानइन’ से भेंट करने के लिए गया। उसका स्वागत करने के बाद नानइन ने उस से पूछा : ‘निसंदेह रूप से तुमने अपने जूते दालान में उतारे होंगे। तुमने अपने छाते के किस ओर जूते उतारे हैं’ एक क्षण के लिए भिक्षु हिचकिचाया और उसने महसूस किया कि वह प्रतिपल ध्यानपूर्ण नहीं था।

आपने हमें बतलाया है कि जीवन एक स्फुरण है, स्पंदन है : अंदर और बाहर, यिन और यांग, तो क्या हमें प्रत्येक क्षण सचेतन बने रहने का प्रयास करना होगा? अथवा क्या हम भी जीवन के साथ स्पंदित हो सकते हैं और क्या उस समय हमें प्रयास छोड़ देना चाहिए? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-10)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-09)

प्रवचन-नौवां

समर्पण संपूर्ण ही हो सकता है

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने कहा है कि हजारों वर्षों में पृथ्वी पर ऐसा सुअवसर नहीं आया, और आपने यह भी कहा है यह युग अन्य दूसरे युगों के समान ही है। एक ओर आपने कहा है कि एक पत्थर को भी समर्पण कर दो तो घटना घटित हो जाएगी। दूसरी ओर आपने यह भी कहा है कि इस पृथ्वी पर पैर जमाकर आगे बढ़ना बहुत खतरनाक है, जब तक कि तुम एक प्रामाणिक सदगुरु के मार्गदर्शन में नहीं चलते हो।

आपने कहा है कि समर्पण करो और शेष कार्य मैं करूंगा, और आपने यह भी कहा है कि आप कुछ भी नहीं करते। यहीं और अभी मौजूद हम लोगों के लिए, तथा पश्चिम के उन लोगों के लिए जो इन शब्दों को कभी पढ़ेंगें, क्या आप सदगुरु और शिष्य के मध्य घटने वाले रहस्मयी संबंध के बारे में हमें और अधिक बताने की कृपा करेंगें? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-09)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-08)

प्रवचन-आठवां

केवल पका फल ही गिरता है

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! मैं अनुभव करता हूं कि कठिनाइयों में धैर्य व सहनशीलता का दृष्टिकोण विकसित करने के कारण मैं जीवन को परिपूर्ण ढंग से नहीं जी पाता हूं। मैं जीवन से पलायन करने लगा हूं। जीवन का यह परित्याग, ध्यान में जीवंत बने रहने के मेरे प्रयास के विरूद्ध, एक बोझ की तरह प्रतीत हो रहा है। क्या इसका अर्थ यह है कि मैंने अपने अहंकार का दमन किया है और वास्तव में उससे मुक्त होने के लिए मुझे पुनः उसे पोषण देना चाहिए? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-08)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-07)

प्रवचन-सातवां 

संबंधों का रहस्य

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! अपने जीवन साथियों जैसे पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के बारे में कब तक हमें धैर्य के संग उसका साथ निभाते हुए, संबंध में दृढ़ता से बने रहना चाहिए और कब हमें उस संबंध को निराश अथवा विध्वंसात्मक मानकर छोड़ देना चाहिए? क्या हमारे संबंध हमारे पिछले जन्मों से भी प्रभावित होते हैं?

 

संबंध अनेक रहस्यों में से एक हैं और क्योंकि वे दो व्यक्तियों के मध्य होते हैं, इसलिए वह दोनों पर निर्भर करते हैं। जब भी दो व्यक्ति मिलते हैं, एक नया संसार सृजित होता है। केवल उनके मिलन के द्वारा ही एक नवीन तथ्य सृजित हो जाता है, जो पहले वहां नहीं था, जो कभी भी अस्तित्व में नहीं था। और इस नई घटना के द्वारा दोनों व्यक्ति बदलकर, रूपांतरित हो जाते हैं। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-07)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-06)

प्रवचन-छट्ठवां 

दमन या रूपांतरण?

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

 

पहला प्रश्नः

ओशो! दो भिक्षुओं के बारे में एक झेन कथा है, जो अपने मठ में वापस लौट रहे थे। मार्ग पर आगे बढ़ते हुए प्रौढ़ भिक्षु एक नदी के तट पर पंहुचा। वहां एक सुंदर युवा लड़की खड़ी थी, जो अकेले नदी पार करने से डर रही थी। इस प्रौढ़ भिक्षु ने उसकी ओर देखते ही, तेज़ी से अपनी दृष्टि दूसरी तरफ फेर ली और नदी पार करने लगा। जब वह दूसरे किनारे पंहुचा तो उसने मुड़कर वापस पीछे की ओर देखा और यह देखकर दंग रह गया कि युवा भिक्षु उस लड़की को अपने कंधों पर उठाकर नदी पार कर रहा है। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-06)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-05)

प्रवचन-पांचवां

अहंकार को इसी क्षण छोड़ देना है

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने कहा कि अहंकार को ठीक इसी क्षण छोड़ा जा सकता है। क्या अहंकार को धीमे-धीमे अर्थात क्रमश: भी छोड़ा जा सकता है?

 

छोड़ना हमेशा क्षण में और हमेशा इस क्षण में ही होता है। इसके लिए कोई क्रमिक प्रक्रिया नहीं है और हो भी नहीं सकती। यह घटना क्षणिक होती है। तुम उसके लिए पहले से तैयार नहीं हो सकते, तुम उसके लिए कोई तैयारी नहीं कर सकते, क्योंकि तुम जो कुछ भी करते हो और मैं कहता हूं कि जो कुछ भी करोगे, वह अहंकार को और अधिक मजबूत बनाएगा। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-05)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-04)

प्रवचन-चौथा 

सभी आशाएं झूठी हैं

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

ओशो! आप हमें बताते रहे हैं कि अपने अहंकार को छोड़ना और श्वेत बादलों के साथ एक हो जाना कितना अधिक सरल है। आपने हमें यह भी बताया है कि हमारे लाखों जन्म हुए हैं और उनमें से अनेक में हम कृष्ण और क्राइस्ट जैसे बुद्धों के साथ रहे हैं, पर तब भी हम अपने अहंकारों को नहीं छोड़ पाए।

क्या आप हमारे अंदर झूठी आशाएं उत्पन्न कर रहे हैं?

 

सभी आशाएं झूठी हैं। आशा करना ही अपने आप में झूठ है, इसलिए यह प्रश्न झूठी आशाएं निर्मित करने का नहीं है। तुम जो भी आशा कर सकते हो, वह झूठी ही होगी। आशा तुम्हारे मिथ्या होने की स्थिति से आती है। यदि तुम वास्तविक और प्रामाणिक हो तो किसी भी आशा की कोई आवश्यकता ही नहीं है। तब तुम भविष्य के बारे में सोचते ही नहीं कि कल क्या घटित होगा? तुम वर्तमान के क्षण में इतने अधिक सच्चे और इतने अधिक प्रामाणिक होते हो कि भविष्य विलुप्त हो जाता है। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-04)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-03)

प्रवचन-तीसरा

प्रसन्नचित्त रहो

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

 

पहला प्रश्नः

ओशो! आपने हमें एक बार एक सौ वर्ष से भी अधिक आयु वाले एक वृद्ध व्यक्ति के बारे में एक कहानी सुनाते हुए यह बताया था कि एक दिन उसकी वर्षगांठ पर उससे यह पूछा गया था कि वह हमेशा इतना अधिक प्रसन्न क्यों रहता है? उसने उत्तर दिया- ‘प्रत्येक सुबह जब मैं जागता हूं तो मेरे पास यह चुनाव होता है कि मैं प्रसन्न रहूं अथवा अप्रसन्न, और मैं हमेशा प्रसन्न बने रहने का चुनाव करता हूं।’

ऐसा क्यों है कि हम प्रायः अप्रसन्न बने रहने का ही चुनाव करते हैं? ऐसा क्यों है कि हम प्रायः चुनाव के प्रति जागरूकता का अनुभव नहीं करते? Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-03)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-02)

प्रवचन-दूसरा

मन के पार का रहस्य

( अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

पहला प्रश्नः

प्यारे ओशो, आकाश में मँडराते हुये ये सुंदर, शुभ्र बादल और हमारा यह अद्भुत सौभाग्य कि आप हमारे बीच उपस्थित हो और हम आपके संग यहां हैं। किंतु ऐसा ‘क्यों’ है?

 

ऐसे ‘क्यों’ हमेशा ही उत्तररहित होते हैं। जब कभी आप ऐसा ‘क्यों’ पूछते हो, मन हमेशा सोचता है कि उसका कोई उत्तर होगा। लेकिन यह एक बहुत ही भ्रामक कल्पना है। ऐसे किसी ‘क्यों’ का कहीं कोई जबाब नहीं दिया गया है और न ही कभी दिये जाने की संभावना है। यह अस्तित्व बस ‘है’ और इसके बारे में कोई ‘क्यों’ संभव नहीं है। फिर भी यदि तुम पूछते हों और पूछने पर तुले ही हो तो शायद एक उत्तर निर्मित कर सकते हो लेकिन याद रहे कि वह एक निर्मित किया हुआ उत्तर होगा, वह कभी भी असली उत्तर नहीं होगा। ऐसा सवाल पूछना अपने आप में ही असंगत है। Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-02)”

सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-01)

सफेद बादलों का मार्ग-(अनुवाद)-ओशो 

(10 से 24 मई 1974 तक श्री रजनीश आश्रम, पूना में सदगुरु ओशो द्वारा दी गई

मूल अंग्रेजी प्रवचनमाला ‘माई वे : दि वे ऑफ व्हाइट क्लाउड्स’ का हिंदी रूपांतर)

सफेद बादलों का मार्ग, प्रवचन-1

मेरा मार्गः शुभ्र मेघों का मार्ग

पहला प्रश्नः

प्यारे सदगुरु ओशो, आपका मार्ग सफेद बादलों का मार्ग क्यों कहलाता है?

 

देह त्यागने के ठीक पूर्व गौतम बुद्ध से किसी ने पूछा : ‘जब एक संबुद्ध व्यक्ति शरीर छोड़ता है तो वह कहां जाता है? क्या वह शेष बचता है या शून्य में विलीन हो जाता है’

यह सवाल जरा भी नया नहीं था। यह बड़ा प्राचीन प्रश्न है; जो बहुत बार पूछा जा चुका है। उस दिन भी जब बुद्ध से पूछा गया तो वे बोले : ‘जैसे कोई सफेद बादल देखते-देखते विलीन हो जाता है… !’ Continue reading “सफेद बादलों का मार्ग-(प्रवचन-01)”

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