तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-32)-ओशो

समर्पण का मार्ग: तंत्र—(प्रवचन—बत्‍तीसवां)

प्रश्‍नसार:

1—ये विधियां तंत्र की केंद्रीय विषय—वस्‍तु है

            या योग की?

      2—संभोग को ध्‍यान कैसे बनाएं? क्‍या किसी

            विशेष आसन का अभ्‍यास जरूरी है?

      3—अनाहत नाद कोई ध्‍वनि है या निर्ध्‍वनि? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-32)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-31)-ओशो

शब्‍द से शांति की और—(प्रवचन—इक्कतीसवां)

सूत्र:

45—अ: से अंत होने वाले किसी शब्‍द का उच्‍चार

चुपचाप करो। और तब हकार में अनायस सहजता

को उपलब्‍ध होओ।

46—कानों को दबाकर और गुदा को सिकोड़कर बंद

करो, और ध्‍वनि में प्रवेश करो।

47—अपने नाम की ध्‍वनि में प्रवेश करो, और उस Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-31)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-30)-ओशो

संभोग, स्‍वीकार और समर्पण—(प्रवचन—तीसवां)

प्रश्‍न—सार:

1—अगर तंत्र मध्‍य में रहने को कहता है तो भोग

और दमन के फर्कको कैसे समझा जाए?

2—क्‍या गुरु के प्रति खुलेहोने और कामवासना

के प्रति खुले होने के बीच कोई संबंध है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-30)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-29)-ओशो

ध्‍वनि से मौन की यात्रा—(प्रवचन—उन्‍नतीसवां)

सूत्र:

42—किसी ध्‍वनि का उच्‍चार ऐसे करो कि वह सुनाई

दे; फिर उस उच्‍चार को मंद से मंदतर किए जाओ—

जैसे—जैसे भाव मौन लयबद्धता में लीन होता जाए।

43—मुंह को थोड़ा—सा खुला रखेत हुए मन को जीभ

के बीच में स्‍थिर करो। अथवा जब श्‍वास चुपचाप

भीतर आए, हकार ध्‍वनि को अनुभव करो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-29)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-28)-ओशो

ध्‍यान : दमन से मुक्‍ति—(प्रवचन—अट्ठाईसवां)

प्रश्‍नसार:

1—दमन इतना सहज सा हो गया है कि हम कैसे

जाने कि हममें असली क्‍या है?

2—कृपया मंत्र—दीक्षा की प्रक्रीया और उसे गुप्‍त

रखने के कारणों पर प्रकाश डालें।

3—सक्रिय ध्‍यान के अराजक संगीत और पश्‍चिमी

रॉक संगीत में क्‍या फर्क है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-28)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-27)-ओशो

ध्वनि—संबंधी तीन विधियां—(प्रवचन—सत्‍ताइसवां)

सूत्र:

39—ओम जैसी किसी ध्‍वनि का मंद—मंद उच्‍चारण करो।

      जैसे—जैसे ध्‍वनि पूर्णध्‍वनि में प्रवेश करती है।

      वैसे—वैसे तुम भी….।

40—किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और

      उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-27)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-26)-ओशो

तंत्र: घाटी और शिखर की स्‍वीकृति—(प्रवचन—छब्‍बीसवां)

प्रश्‍नसार:

 

1—क्‍या हम सचेतन रूप से वृत्‍तियों का नियमन और संयमन करें?

2—अराजक शोरगुल को विधायक ध्‍वनि में कैसे बदलें? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-26)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-25)-ओशो

शब्‍द,ध्‍वनि और अनाहत—(प्रवचन—पच्‍चीसवां)

सूत्र:

37—हे देवी, बोध के मधु—भरे दृष्‍टिपथ में संस्‍कृत

वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहले अक्षरों की भांति,

फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति और फिर सूक्ष्‍म भाव की भांति।

और तब, उन्‍हें अलग छोडकर मुक्‍त हो जाओ। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-25)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-24)-ओशो

संदेह और श्रद्धा, मृत्‍यु और जीवन—(प्रवचन—चौबीसवां)

प्रश्‍नसार:

1—क्‍या मिश्रित ढंग के व्‍यक्‍ति को दो भिन्‍न—भिन्‍न विधि करनी चाहिए?

2—जीवन—स्‍वीकारकी दृष्‍टि रखने वाले तंत्र में मृत्‍यु—दर्शन का कैसे उपयोग हो सकता है?

3—शरीर के मृतवत होने से मन का रूपांतरण कैसे संभव है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-24)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-23)-ओशो

शांति और मुक्‍ति के चार प्रयोग—(प्रवचन—तैइसवां)

सूत्र:

33—बादलों के पार नीलाकाश को देखने मात्र से शांति

को, सौम्‍यता को उपलब्‍ध होओ।

34—जब परम रहस्‍यमय उपदेश दिया जा रहा हो,

उसे श्रवण करो। अविचल, अपलक आंखों से;

अविलंब परम मुक्‍ति को उपलब्‍ध होओ। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-23)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-22)-ओशो

तीसरी आँख और सिद्धियां—(प्रवचन—बाईस्‍वां)

प्रश्‍न सार:

1—देखने की विधियां तीसरी आँख को कैसे

प्रभावित करती है?

      2—सम्‍मोहन विद्याओं में लगे लोगों की आंखें

            डरावनी क्‍यों होती है?

      3—आंखों की गति रोकने से मानसिक तनाव क्‍यों

            होता है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-22)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-21)-ओशो

अंतर्यात्रा में आँख के उपयोग—(प्रवचन—इक्‍कीसवां)

      सूत्र:

30—आंखें बंद करके अपने अंतरस्‍थ अस्‍तित्‍व को

विस्‍तार से देखो। इस प्रकार अपने सच्‍चे

स्‍वभाव को देखो।

31—किसी कटोरेकेो उसके पार्श्‍व—भाग या पदार्थ को

देखे बिना देखो। थोड़ी ही क्षणों में बोध को

उपलब्‍ध हो जाओ।

32—किसी सुंदर व्‍यक्‍ति या सामान्‍य विषय को ऐसे

देखो जैसे उसे पहली बार देख रहे हो। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-21)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-20)-ओशो

शरीर और तंत्र, आसक्‍ति और प्रेम—(प्रवचन—बीसवां)

प्रश्‍न—सार:

1—क्‍या प्रेम में सातत्‍य जरूरी है? और प्रेम कब

भक्‍ति बनता है?

2—तंत्र शरीर को इतना महत्‍व क्‍यों देता है?

3—कृपया हमें आसक्‍ति और स्‍वतंत्रता के संबंध में कुछ कहें। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-20)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-19)-ओशो

भक्‍ति मुक्‍त करती है—(प्रवचन—उन्‍नीसवां)

सूत्र:

1—कलपना करो कि तुम धीरे—धीरे शक्‍ति या ज्ञान से

वंचित किए जा रहे हो। वंचित किए जाने के क्षण

अतिक्रमण करो।

2—भक्‍ति मुक्‍त करती है। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-19)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-18)-ओशो

प्रामाणिक होना अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है—(प्रवचन—अठ्ठाहरवां)

प्रश्‍न—सार:

1—क्‍या अभिव्‍यक्‍ति की उन्‍मुक्‍तता प्रामाणिक

होने की और एक कदम है?

 2—काम—क्रोध आदि पर ध्‍यान देने से बेचैनी सी

                  क्‍यों होती है?

3—भाववेग में मूर्च्‍छा पकड़ती है, तो रूकें कैसे?

4—क्‍या दीक्षा और गुरु—कृपा विधियों से अधिक

                  महत्‍वपूर्ण नहीं है? Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-18)-ओशो”

तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-17)-ओशो

अचानक रूकने की कुछ विधियां—(प्रवचन—सत्रहवां)

सूत्र:

25—जैसे ही कुछ करने की वृति हो, रूक जाओ।

26—जब कोई कामना उठे, उस पर विमर्श करो।

फिर, अचानक, उसे छोड़ दो।

27—पूरी तरह थकने तक घूमते रहो,

और तब जमींन पर गिरकर,

इस गिरने में पूर्ण होओ। Continue reading “तंत्र-सूत्र-(प्रवचन-17)-ओशो”

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