किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)

 अध्याय—पाँच

कुठालियाँ और चलनियाँ

शब्द प्रभु का और मनुष्य का

प्रभु का शब्द एक कुठाली है। जो कुछ वह रचता है उसको पिघला कर एक कर देता है. न उसमें से किसी को अच्छा मान कर स्वीकार करता है, न ही बुरा मान कर ठुकराता है। दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण होने के कारण वह भली—भाँति जानता है कि उसकी रचना और वह स्वय एक हैं, कि एक अंश को ठुकराना सम्पूर्ण को ठुकराना है; और सम्पूर्ण को ठुकराना अपने आप को ठुकराना है। इसलिये उसका उद्देश्य और आशय सदा एक ही रहता है।

जब कि मनुष्य का शब्द एक चलनी है। जो कुछ यह रचता है उसे लड़ाई—झगड़े में लगा देता है। यह निरन्तर किसी को मित्र मान कर अपनाता रहता है तो किसी को शत्रु मान कर ठुकराता रहता है। और अकसर इसका कल का मित्र आज का शत्रु बन जाता है, आज का शत्रु? कल का मित्र। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)

अध्याय—चार

मनुष्य पोतड़ों में लिपटा एक परमात्मा है।

नुष्य पोतड़ो में लिपटा एक परमात्मा है। समय एक पोतडा है. स्थान एक पोतड़ा है, देह एक पोतड़ा है, और इसी प्रकार हैं इन्द्रियाँ तथा उनके द्वारा अनुभव—गम्य वस्तुएँ भी। माँ भली प्रकार जानती है कि पोतड़े शिशु नहीं हैं। परन्तु बच्चा यह नहीं जानता।

अभी मनुष्य का अपने पोतड़ों में बहुत अधिक ध्यान रहता है जो हर दिन के साथ, हर युग के साथ बदलते रहते हैं। इसलिये उसकी चेतना में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-04)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-03)

अध्याय—तीन

पावन त्रिपुटी

और

पूर्ण सन्तुलन

मीरदाद : यद्यपि तुममें से हर एक अपने—अपने ‘मैं’ में केन्द्रित है फिर भी तुम सब एक ‘मैं’ में केन्द्रित हो— प्रभु के एकमात्र ‘मैं’ में।

प्रभु का ‘मैं’, मेरे साथियो, प्रभु का शाश्वत, एकमात्र शब्द है। इसमें प्रभु प्रकट होता है जो परम चेतना है। इसके बिना वह पूर्ण मौन ही रह जाता। इसी के द्वारा स्रष्टा ने अपनी रचना की है। इसी के द्वारा वह निराकार अनेक आकार धारण करता है जिनमें से होते हुए जीव फिर से निराकारता में पहुँच जायेंगे। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-03)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-02)

अध्‍याय—दो

सिरजनहार शब्द

‘’मैं’’ समस्त वस्तुओं का स्रोत और केन्द्र है।

मीरदाद: जब तुम्‍हारे मुख से ‘मैं’ निकले तो तुरन्त अपने हृदय में कहो, ”प्रभु, ‘मैं’ की विपत्तियों में मेरा आश्रय बनो, और ‘मैं’ के परम आनन्द की ओर चलने में मेरा मार्गदर्शन करो।’’ क्योंकि इस शब्द के अन्दर, यद्यपि यह अत्यन्त साधारण है, प्रत्येक अन्य शब्द की आत्मा कैद है। एक बार उसे मुक्त कर दो, तो सुगन्ध फैलायेगा तुम्हारा मुख मिठास में पगी होगी तुम्हारी जिह्वा, और तुम्हारे प्रत्येक शब्द से जीवन के आहलाद का रस टपकेगा।

उसे कैद रहने दो, तो दुर्गन्‍धपूर्ण होगा तुम्हारा मुख, कड्वी होगी तुम्हारी जिह्वा, और तुम्हारे प्रत्येक शब्द से मृत्यु का मवाद टपकेगा। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-02)”

किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-01)

अध्‍याय—एक

यह है

किताब— ए मीरदाद

उस रूप में जिसमें इसे

उसके साथियों में से

सबसे छोटे और

सबसे तुच्छ

नरौंदा

ने लेखनीबद्ध किया।

जिनमें

आत्म—विजय के लिये

तड़प है

उनके लिये यह

आलोक—स्तम्भ और

आश्रय है।

बाकी सब

इससे सावधान रहें।

मीरदाद अपना परदा हटाता है

और

परदों और मुहरों के विषय में बात करता है Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(अध्‍याय-01)”

किताबे-ए-मीरदाद-(किताब की कहानी)

किताब की कहानी:-(ओशो की प्रिय पुस्तके)

बन्दी महन्त:

दूधिया पर्वत—माला के ऊँचे शिखर पर, जो पूजा—शिखर के नाम से जाना जाता है, एक मत के विशाल और उदास खण्डहर हैं। यह मठ किसी समय ”नूह की नौका” के नाम से प्रसिद्ध था। परम्परा के अनुसार इसकी प्राचीनता पौराणिक जल—प्रलय के साथ जुड़ी हुई है।

पूजा—शिखर की छाँह में मुझे एक गरमी का मौसम बिताने का अवसर मिला। मैंने पाया कि इस नौका के साथ अनेक लोक— कथाओं के ताने तन गये हैं। परन्तु जो कथा स्थानीय पर्वत—निवासियों की जबान पर सबसे ज्यादा चढ़ी हुई थी वह इस प्रकार हैद्। महान जल—प्रलय के कई वर्ष बाद हज़रत नूह अपने परिवार और उसमें हुई वृद्धि के साथ घूमते—घूमते दूधिया पर्वत—माला में पहुँचे। यहाँ उन्हें उपजाऊ घाटियाँ, जल से भरपूर सोते तथा सुखद जल—वायु मिला। उन्होंने यहीं बस जाने का निर्णय किया। Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(किताब की कहानी)”

किताबे-ए-मीरदाद-(मिखाइल नईमी)

किताब—ए—मीरदाद (मिखाइल नईमी) ओशो की प्रिय पुस्तके

(किसी समय ‘’नौका’’ के नाम से पुकारे जाने वाले मठ की अद्भुत कथा)

प्रकाश की और से:

‘द बुक ऑफ मीरदाद में लोक कथा, कविता, दर्शन और आध्यात्मिकता का एक विलक्षण सम्मिश्रण देखने को मिलता है। पश्चिम के पाठकों में मिखाइल नईमी की दो दर्जन से अधिक पुस्तकों में से इसी को सबसे अधिक स्नेहपूर्ण स्थान प्राप्त है, और नईमी स्वय भी इसी को अपनी सर्वोत्तम रचना मानते थे।

नईमी का जन्म सन् 1889 ईस्वी में मध्य—पूर्व के देश लैबनान में समुद्र—तट के निकट. ऊँचे पहाड़ की ढलान पर बसे एक गाँव में एक निर्धन यूनानी ईसाई परिवार में हुआ जो मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर था। स्कूल की सबसे ऊँची क्सा का सर्वश्रेष्ठ छात्र होने के फलस्वरूप छात्रवृत्ति पाकर उन्होंने सन् 1906 से 1911 तक पाँच वर्ष रूस में शिक्षा प्राप्त की. और फिर कुछ मास लैबनान में बिताने के बाद उनको आगे पढ़ने के लिये संयोगवश अमेरिका जाने का अवसर मिला। वहाँ उनका अपने ही देश के एक प्रमुख लेखक खलील जिब्रान से परिचय हुआ, जिनके साथ मिल कर Continue reading “किताबे-ए-मीरदाद-(मिखाइल नईमी)”

राबिया बसरी के गीत—(061)

राबिया-बसरी के गीत-(ओशो की प्रिय पुस्तके)

स किताब का नाम लिए बिना ओशो ने राबिया के गीतो को अपनी पसंदीदा किताबों की फेहरिस्‍त में रखा है। इसी फहरिस्‍त में मीरा भी आती है। जिसे ओशो बहुत ‘मीठी’ कहते है। और राबिया को ‘नमकीन’। और इसी तुलना के ऊपर एक मजाक भी कहते है: मुझे डायबिटीज है, इसलिए मीरा को तो मैं बहुत ज्‍यादा खा या पी नहीं सकता। लेकिन राबिया चलेगी—नमक तो में जितना चाहे ले सकता हूं। शायद फकीरों में राबिया वह अकेली औरत है जिसकी कहानियां ओशो के प्रवचनों में बार—बार सुनाई देती है। दरअसल खोज की तो पाया कि ओशो ऐसी कोई किताब ही नहीं है, जिसमें राबिया का जिक्र न आया हो; ऐसा दूसरा नाम केवल बुद्ध का है।

राबिया 713 इस्‍वी में इराक के बसरा शहर में पैदा हुई थी। हजरत मुहम्‍मद और राबिया के बीच लगभग कोई सौ साल का ही फासला है। इसीलिए सबसे पहले हुई सूफी नारी राबिया है। और यह भी कहा जाता है कि प्रेम के मार्ग का प्रारंभ राबिया से होता है। Continue reading “राबिया बसरी के गीत—(061)”

दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ-(060)

दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ—रमण महर्षि-(ओशो की प्रिय पुस्‍तके) 

श्री रमण महर्षि बीसवीं सदी के प्रारंभ में तमिलनाडु के एक पर्वत अरुणाचल पर रहते थे। परम ज्ञान को उपलब्ध रमण महर्षि भगवान कहलाते थे। अत्यंत साधारण जीवन शैली को अपनाकर वे सादगी से जीवन बिताते थे। उनका दर्शन केवल तीन शब्दों में समाहित हो सकता है : ‘मैं कौन हूं?’ यही उनकी पूरी खोज थी, यही यात्रा और यही मंजिल। अधिकतर मौन रहनेवाले रमण महर्षि के बहुत थोड़े से बोल शिष्यों के साथ संवाद के रूप में उपलब्ध हैं। ऐसी तीन छोटी—छोटी पुस्तिकाओं का इकट्ठा संकलन है : ‘दि स्पिरिचुअल टीचिंग ऑफ रमण महर्षि।’ Continue reading “दि स्‍प्रिचुअल टीचिंग ऑफ-(060)”

सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि-(059)

सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि:-मैडम ब्‍लावट्स्‍की—(ओशो की प्रिय पुस्तके) 

(हवा का एक झोंका है ब्‍लावट्स्‍की। और कोई उससे बहुत महानतर शक्‍ति उस पर आविष्‍ट हो गई है: और वह हवा का झोंका उस सुगंध को ले आया है।)

इस जगत में जो भी जाना लिया जाता है। वह कभी खोता नहीं है। ज्ञान के खोने का कोई उपाय नहीं है। न केवल शास्‍त्रों में संरक्षित हो जाता है ज्ञान, वरन और भी गुह्म तलों पर ज्ञान की सुरक्षा और संहिता निमित होती है। शास्‍त्र तो खो सकते है। और अगर सत्‍य शास्‍त्रों में ही हो तो शाश्‍वत नहीं हो सकता। शास्‍त्र तो स्‍वयं भी क्षणभंगुर है। इसलिए शास्‍त्र संहिताएं नही है। इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है। तभी ब्‍लावट्स्‍की की यह सूत्र पुस्‍तिका समझ में आ सकती है। Continue reading “सेवन पोर्टलस आफ़ समाधि-(059)”

लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-058

लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-ओशो की प्रिय पुस्तके

जुलाई 1855, वॉल्‍ट विटमैन छत्‍तीस साल का रहा होगा। जब उसकी ‘लीव्‍स ऑफ ग्रास’का प्रथम संस्‍करण छपा। यदि वह तारीख चार जुलाई ‘अमेरिका का स्‍वतंत्रता दिवस’ नहीं रही होगी तो होनी चाहिए। उस दिन विटमैन ने न केवल पत्रकारिता के अपने अभूतपूर्व व्‍यवसाय से, स्‍वच्‍छंद लिखने से और तुकबंदी से बल्‍कि साहित्‍य की उन परंपराओं से जो साहित्‍य को लोकतंत्र के कालवाह्मा बनाती है। स्‍वतंत्र होने की घोषणा की। विटमैन ने ऐसी कविता लिख जिसके व्‍यापक आकार और कल्‍पना में उन अमरीकी लोगों के जीवन की और व्‍यवसाय की झलक थी जिनके पास कविता पढ़ने की फुरसत नहीं थी। Continue reading “लीव्‍स ऑफ ग्रास: (वॉल्‍ट विटमैन)-058”

मिस्‍टर एकहार्ट-रहस्‍य सूत्र—(057)

मिस्‍टर एकहार्ट के रहस्‍य सूत्र—(ओशो की प्रिय पुस्तकें)

एक हार्ट बहुत करीब था। एक कदम और, और संसार का अंत आ जाता—उस पार का लोक खुल जात।

     एक हार्ट जर्मन का सबसे रहस्यपूर्ण और ग़लतफ़हमियों से घिरा रहस्‍यदर्शी है। एक सदी पहले तक जर्मन रोमांटिक आंदोलन के द्वारा मिस्‍टर एकहार्ट को, ‘’एक अर्ध रहस्‍यवादी चरित्र’’  समझा जाता था। न तो उसके जन्‍म की तारीख मालूम थी, न स्‍थान। जर्मनी में किसी कब्र पर उसका नाम दिवस खुदा नहीं था। कुछ छुटपुट तथ्‍यों की जानकारी थी—मसलन वह परेसा में पढ़ा, सन 1402 में डाक्‍टर ऑफ थियॉलॉजी की उपाधि प्राप्‍त की, जर्मनी के स्‍टैसवर्ग शहर में वह उपदेशक था। 1322 में कालोन के एक विद्यापीठ में उसे ससम्‍मान आमंत्रित किया गया। और पीठाधीश बनाया गया। तब तमक एकहार्ट अपने रहस्‍यवाद से ओतप्रोत प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध हो चुका था। कालोन के आर्चबिशप को रहस्यवाद से चिढ़ थी। उसे उसमें बगावत की बू नजर आती थी। 1326 में उसने एकहार्ट पर मुकदमा दायर किया। उस पर इलजाम था, वह सामान्‍य जनों में खतरनाक सिद्धांत फैल रहा है। Continue reading “मिस्‍टर एकहार्ट-रहस्‍य सूत्र—(057)”

अन्‍ना कैरेनिना:-लियो टॉलस्टॉय-(056)

अन्‍ना कैरेनिना: लियो टॉलस्टॉय (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

जीवन के शाश्‍वत, अबूझ रहस्‍यों और विरोधाभासों को सुलझाने का एक ललित प्रयास—

     अन्‍ना कैरेनिना रशियन समाज की एक संभ्रांत महिला की कहानी है। जो अनैतिक प्रेम संबंध जोड़कर अपने आपको बरबार कर लेती है। इस उपन्‍यास में टॉलस्‍टॉय कदम-कदम पर यह दिखाता है कि समाज कैसे स्‍त्री और पुरूष के विषय में दोहरे मापदंड रखता है। अन्‍ना के सगा भाई ऑब्‍लान्‍स्‍की के अनैतिक प्रेम संबंध होते है, और न केवल वह अपितु उसके स्‍तर के कितने ही पुरूष खुद तो पत्‍नी से धोखा करते है, लेकिन अपनी पत्‍नियों से वफादारी की मांग करते है। समाज चाहता है कि पत्‍नी अपने पति की बेवफाई को भूल जाये और उसे माफ कर दे। Continue reading “अन्‍ना कैरेनिना:-लियो टॉलस्टॉय-(056)”

एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(055)

एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

’कविता और कला के संबंध में एरिस्‍टोटल का सिद्धांत।‘’ यह शीर्षक ही विरोधाभासी मालूम होता है। कविता और कला दोनों ही सूक्ष्‍म तत्‍व है। वायवीय है, उनका सिद्धांत कैसे हो सकता है। और वह भी एरिस्‍टोटल जैसे तर्कशास्‍त्री द्वारा।

काव्‍य का शास्‍त्र लिखने की परंपरा नई नहीं है। और न ही केवल पश्‍चिम की है। भारत में भी कश्मीरी पंडित मम्‍मट ने काव्‍य शास्‍त्र लिखा था। वह संस्‍कृत भाषा में है। और बड़ा रसपूर्ण है, क्‍योंकि संक्षिप्‍त सूत्रों में गूंथा हुआ है। उसका पहला ही सूत्र है: ‘’रसों आत्‍मा काव्यत्व‘’ रस काव्‍य की आत्‍मा। इसकी तुलना में एरिस्‍टोटल का पोएटिक्‍स गंभीर है, लेकिन उसकी बारीक बुद्धि ने काव्‍य और नाटक की गहराई में प्रवेश कर उनके एक-एक पहलुओं को उजागर कर दिया है। उसकी यह कलाकारी अपने आप में एक सुंदर रचना शिल्‍प है। इस संबंध में हमें कुछ बातें ख्‍याल में लेनी चाहिए। Continue reading “एरिस्‍टोटल्‍स थियोरी ऑफ पोएट्री एंड फाइन आर्ट—(055)”

एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस-(054)

एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस—ओशो की प्रिय पुस्तकें

कन्फूशियस चीन के प्राचीन और प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक है। जैसा कि सभी प्राचीन पौर्वात्‍य व्‍यक्‍तियों के साथ हुआ है, इतिहास में उसके जन्‍म और मृत्‍यु की कोई सुनिश्‍चत तारीख दर्ज नहीं है। जो भी उपलब्‍ध है वह केवल अनुमान है। कन्‍फ्यूशियस का जीवन काल ईसा पूर्व 551-479 बताया जाता है। कुछ इतिहासविद् उससे सहमत है, कुछ नहीं। जो भी हो, उसके जैसे व्‍यक्‍तियों के वचन महत्‍वपूर्ण होते है, उनका इतिहास या भूगोल नहीं। उसके जीवन के संबंध में जो भी आंशिक जानकारी इधर-उधर उपलब्‍ध है उसे जोड़कर जो चित्र बनता है वह यह कि कन्‍फ्यूशियस सामान्‍य परिवार में पैदा हुआ, वह विवाहित था। जीते जी उसकी ख्‍याति एक विद्वान और सर्वज्ञ ऋषि के रूप में फैल चुकी थी। और वह लगातार उसका खंडन करता था। वह इसका इन्‍कार करता था कि वह उसके पास कोई विशेष ज्ञान है। उसके मुताबिक उसके पास जो असाधारण बात थी वह थी सत्तत सीखने की प्‍यास। सुदूर अतीत में जो दिव्‍य शास्‍ता थे उनके आगे वह स्‍वयं को नाकुछ मानता था। Continue reading “एनेलेक्‍टस ऑफ कन्फ्यूशियस-(054)”

दि बुक ऑफ ली तज़ु—(053)

दि बुक ऑफ ली तज़ु—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

कन्‍फ्यूशियन दर्शन के बाद, ताओ वाद की बहुत बड़ी दार्शनिक परंपरा है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में ताओ दर्शन प्रौढ़ हुआ। और तभी से ताओ ग्रंथों में किसी ली तज़ु नाम के रहस्‍यदर्शी का उल्‍लेख पाया जाता है। जी तज़ु जो हवाओं पर सवार होकर यात्रा करता था। उसकी ऐतिहासिकता भी संदिग्‍ध है। पता नहीं उसका समय क्‍या था। कुछ सुत्रों के अनुसार वह ईसा पूर्व 600 में हुआ, और कुछ कहते है 400 में पैदा हुआ। ली तज़ु एक व्‍यक्‍ति भी है, और दर्शन भी। कहते है ली तज़ु पु-तिएन शहर में रहता था। और चालीस साल तक किसी ने उसकी दखल नहीं ली। और राज्‍य के उच्‍च पदस्‍थ और राजसी परिवार के लोग उसे सामान्‍य आदमी समझते थे। चेंग में सूखा पडा और ली तज़ु ने वेइ जाने का फैसला लिया। Continue reading “दि बुक ऑफ ली तज़ु—(053)”

मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था-(052)

मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

कई देश मुल्‍ला नसरूद्दीन को पैदा करने का दावा करते है। टिर्की में तो उसकी कब्र तक बनी हुई है। और हर साल वहां नसरूद्दीन उत्‍सव मनाया जाता है। उस उत्‍सव में मुल्‍ला जैसी पोशाक पहनकर लोग उसके क़िस्सों को अभिनीत करते है। एस्‍किशहर उसका जन्‍म गांव बताया जाता है।

ग्रीन लोग नसरूद्दीन के क़िस्सों को अपनी लोककथा का हिस्‍सा बनाते है। मध्‍ययुग में नसरूदीन के क़िस्सों का उपयोग तानाशाह अधिकारियों का मजाक उड़ाने के लिए किया जाता था। उसके बाद मुल्‍ला नसरूदीन सोवियत यूनियन का लोक नायक बना। एक फिल्‍म में उसे देश के दुष्‍ट पूंजीवादी शासकों के ऊपर बाजी मारते हुए दिखाया गया था। Continue reading “मुल्‍ला नसरूद्दीन कौन था-(052)”

ट्रैक्‍टेटस लॉजिको-फिलोसफिकस-(051)

ट्रैक्‍टेटस लॉजिको—फिलोसफिकस (ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

विटगेंस्‍टीन ऑस्‍टिया के वियना शहर में एक रईस खानदान में पैदा हुआ। उसके पिता उद्योगपति थे उनके पास धन का अंबार था। अंत: विटगेंस्‍टीन को उसके सात भाई-बहनों के साथ उच्‍च कोटि की शिक्षा मिली। उसकी मां और पिता दोनों ही संगीतज्ञ थे और अत्‍यंत सुसंस्‍कृत थे।

इंजीनियरिंग तथा गणित को सीखने के लिए विटगेंस्‍टीन 1908 में इंग्‍लैड गया। वह बहुत ही मेधावी छात्र था और हर सिद्धांत का खुद प्रयोग करने में विश्‍वास रखता था। 1903 में बर्ट्रेंड रसेल की विख्‍यात किताब ‘’प्रिंसिपल ऑफ मैथेमेटिक्‍स’’ प्रकाशित हुई थी। तो विटगेंस्‍टीन सहज ही रसेल की और खिंचा चला आया। 1911 में वह केंब्रिज जाकर रहने लगा जो कि रसेल का ठिकाना था। विटगेंस्‍टीन रसेल का विद्यार्थी बन गया। सामान्‍यतया बर्ट्रेंड रसेल किसी विद्यार्थी से प्रभावित नहीं होता था—उसकी अपनी प्रतिभा इतनी बुलंद थी कि उसने सामने सभी बौने लगते थे। Continue reading “ट्रैक्‍टेटस लॉजिको-फिलोसफिकस-(051)”

लस्‍ट फॉर लाइफ-(विंसेंट वैनगो)-050

लस्‍ट फॉर लाइफ—विंसेंट वैनगो-(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

यह कहानी है उत्‍तप्‍त भावोन्‍मेष की, सृजन के विवश करनेवाले विस्‍फोट की; प्रसिद्ध डच चित्रकार विंसेंट बैन गो की जो अपनी ही प्रतिभा की आग में जीवन भर जलता रहा और अंतत: उसी में  जलकर भस्‍मसात हो गया।

     अजीब किस्‍मत लेकिन पैदा हुआ यह प्रतिभाशाली, बदसूरत कलाकार। हॉलैंड के प्रतिष्‍ठित वैनगो परिवार में जन्‍मा वैनगो बंधु योरोप के उच्‍च वर्गीय, ख्‍यातिलब्‍ध चित्रों के सौदागर और प्रदर्शक थे। पूरे योरोप में उनकी अपनी आर्ट गैलरीज थी। छह भाईयों में से दो धर्मोपदेशक थे। उनमें से एक धर्मोपदेशक भाई की संतान थी विंसेंट और थियो। थियो विंसेंट से दो साल छोटा था। थियो समाजिक रस्मों रिवाज के मुताबिक चलने वाला, अपने व्‍यवसाय में सफल आर्ट डीलर था। विंसेंट उससे ठीक उलटा। समाज के तौर तरीके, शिष्‍टाचार उसे कभी रास नहीं आते थे। संभ्रांत व्‍यक्‍तियों दंभ और नकलीपन से बुरी तरह बौखला जाता था। और उसी समय प्रतिक्रिया करता। Continue reading “लस्‍ट फॉर लाइफ-(विंसेंट वैनगो)-050”

प्रिंसिपिया एथिका-(जी. इ. मूर)-049

प्रिंसिपिया एथिका—जी. इ. मूर—(ओशो की प्रिय पुस्‍तकें)

आधुनिक दर्शन शास्‍त्र के विकास में जी. ई मूर का योगदान उतना ही महत्‍वपूर्ण है! जितना कि बर्ट्रेंड रसेल का। उसकी बहुत कम रचनाएं प्रकाशित हुई। और ‘’प्रिंसिपिया एथिका’’ उनमें से सर्वप्रथम और सर्वाधिक प्रसिद्ध किताब है।

अंग्रेजी साहित्‍य और चिंतन पर उसका प्रभाव विचारणीय है। बर्ट्रेंड रसेल ने इस किताब के बारे में लिखा, ‘’इसका हमारे ऊपर (कैम्ब्रिज में) जो प्रभाव पडा, और इसे लिखने से पहले और बाद में जो व्‍याख्‍यान हुआ उसने हर चीज को प्रभावित किया। हमारे लिए वह विचारों और मूल्यों का बहुत बड़ा स्‍त्रोत था। लॉर्ड केन्‍स का तो मानना था कि यह किताब प्लेटों से भी बेहतर है। Continue reading “प्रिंसिपिया एथिका-(जी. इ. मूर)-049”

बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—48

बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

कभी-कभार कोई ऐसी किताब प्रकाशित होती है। जो बुद्धिजीवियों की जमात पर टाइम-बम का काम करती है। पहले तो उसकी अपेक्षा की जाती है लेकिन जैसे-जैसे मत बदलते है वह लोगों का ध्‍यान आकर्षित करने लगती है। ऐसी किताब है जर्मन दार्शनिक मार्टिन हाइडेगर द्वारा लिखित ‘’बीइंग एंड टाईम’’

इसका प्रभाव न केवल यूरोप और अमेरिका के दर्शन पर हुआ बल्‍कि वहां के साहित्‍य और मनोविज्ञान पर भी हुआ। इसके प्रशंसक तो यहां तक कहते है कि उसने आधुनिक विश्‍व का बौद्धिक नक्‍शा बदल दिया। सार्त्र, मार्टिन वूबर, और कामू जैसे अस्‍तित्‍ववादी दार्शनिक हाइडेगर से बहुत प्रभावित थे। यह किताब पहली बार 1927 में प्रकाशित हुई। चूंकि हाइडेगर जर्मन लोगों के लिए बेबूझ था। Continue reading “बीइंग एंड टाईम-(मार्टिन हाइडेगर)—48”

उमर ख्‍याम की रूबाइयां—047

उमर ख्याम की रूबाईया-(उमर ख्याम)-ओशो की प्रिय पुस्तके

उमर ख्‍याम  सुंदरी, शराबी, इश्‍क के बारे में लिखता है। उसे पढ़कर लगता है, यह आदमी बड़े से बड़ा सुखवादी होगा। उसकी कविता का सौंदर्य अद्वितीय है। लेकिन वह आदमी ब्रह्मचारी था। उसने कभी शादी नहीं की, उसका कभी किसी से प्रेम नहीं हुआ। वह कवि भी नहीं था। गणितज्ञ था। वह सूफी था। जब वह सौंदर्य के संबंध में लिखता तो ऐसा लगता कि वह स्त्री के सौंदर्य के बारे में लिख रहा है। नहीं, वह परमात्‍मा के सौंदर्य का बखान कर रहा है।

…..पर्शियन भाषा में उसकी किताबों में चित्र बनाये हुए है और अल्‍लाह को साकी के रूप में चित्रित किया गया है—एक सुंदर स्‍त्री हाथ में सुराही लेकिर शराब ढाल रही है। सूफी शराब को प्रतीक की तरह इस्‍तेमाल करते है। जो इंसान अल्‍लाह से इश्‍क करता है उसे अल्‍लाह एक तरह की मस्‍ती देता है जो उसे बेहोश नहीं करती बल्‍कि होश में लाती है। एक मदहोशी जो उसे नींद से जगाती है। Continue reading “उमर ख्‍याम की रूबाइयां—047”

लिसन-लिटल मैन-(विलहम रेेक)-46

लिसन-लिटल मैन—(विलहम रेक)-ओशो की प्रिय पुस्‍तकें

ऑर्गोन इंस्टिट्यूट की आर्काइव्‍ज का एक दस्तावेज ‘’लिसन लिटल मैन’’ एक मानवीय पुस्‍तक है, वैज्ञानिक नहीं। यह ऑर्गोन इंस्टिट्यूट के आर्काइव्‍ज के लिए 1945 की गर्मी में लिखी गई थी। इसे प्रकाशित करने का कोई इरादा नहीं था। यह एक (Natural scientist) प्राकृतिक वैज्ञानिक और चिकित्‍सक के अंतर्द्वंद्व और आंतरिक आंधी तूफ़ानों का परिमाण है। इस वैज्ञानिक ने बरसों तक पहले भोलेपन से, फिर आश्‍चर्य से और अंतत: भय से देखा है कि सड़क पर जानेवाला छोटा आदमी अपने साथ क्‍या करता है। कैसे वह दुःख झेलता है। और विद्रोह करता है; कैसे वह अपनी दुश्‍मनों को सम्‍मान करकता है और दोस्‍तों की हत्‍या करता है। कैसे जब भी उसे लोक प्रतिनिधि बनने की ताकत मिलती है वह इस ताकत का गलत उपयोग कर उससे क्रूरता ही पैदा करता है। इससे पहले उच्‍च वर्ग के पर पीड़कों ने उसके साथ जो किया है। उससे यह क्रूरता अधिक भंयकर होती है। Continue reading “लिसन-लिटल मैन-(विलहम रेेक)-46”

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