चौथा-प्रवचन-(जाग जाना धर्म है)
मेरे प्रिय आत्मन्!
बीते तीन दिनों में जीवन में जागरण की संभावना कैसे वास्तविक बन सके, इस संबंध में थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कहीं।
मनुष्य एक सोती हुई दशा में है, लेकिन जागरण संभव है। अंधेरा कितना ही घना क्यों न हो, दीया जल सकता है। और अंधेरे का घनापन दीये के जलने में न तो कभी बाधा बना है और न बन सकता है। अंधेरे की कोई शक्ति नहीं होती है कि दीये के जलने में बाधा बन जाए। अंधेरा कितना ही हो और कितना ही पुराना। छोटे से दीये की ज्योति के सामने एकदम न हो जाता है, एकदम समाप्त हो जाता है। जीवन में बहुत निद्रा है, बहुत अंधकार है। जीवन भर शायद हम निद्रा का और अंधकार का ही संग्रह करते हैं। लेकिन इससे निराश हो जाने की कोई भी बात नहीं है। एक छोटी सी किरण जागरण की उस सारे अंधकार को समाप्त कर देगी। Continue reading “क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-04)”