क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-04)

चौथा-प्रवचन-(जाग जाना धर्म है)

मेरे प्रिय आत्मन्!

बीते तीन दिनों में जीवन में जागरण की संभावना कैसे वास्तविक बन सके, इस संबंध में थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कहीं।

मनुष्य एक सोती हुई दशा में है, लेकिन जागरण संभव है। अंधेरा कितना ही घना क्यों न हो, दीया जल सकता है। और अंधेरे का घनापन दीये के जलने में न तो कभी बाधा बना है और न बन सकता है। अंधेरे की कोई शक्ति नहीं होती है कि दीये के जलने में बाधा बन जाए। अंधेरा कितना ही हो और कितना ही पुराना। छोटे से दीये की ज्योति के सामने एकदम न हो जाता है, एकदम समाप्त हो जाता है। जीवन में बहुत निद्रा है, बहुत अंधकार है। जीवन भर शायद हम निद्रा का और अंधकार का ही संग्रह करते हैं। लेकिन इससे निराश हो जाने की कोई भी बात नहीं है। एक छोटी सी किरण जागरण की उस सारे अंधकार को समाप्त कर देगी। Continue reading “क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-04)”

क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-03)

तीसरा-प्रवचन-(जागरण के तीन सूत्र)

मेरे प्रिय आत्मन्!

मनुष्य एक यंत्र है और मनुष्य की चेतना जागी हुई नहीं है। मनुष्य एक सोती हुई आत्मा है। इस संबंध में बीते दो दिनों में थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कहीं।

मनुष्य के सोए हुए होने से मेरा क्या अर्थ है? मनुष्य यंत्र है; इस बात को कहने से क्या प्रयोजन है? इस बात को कहने से मेरा प्रयोजन यह है कि हम जिसे जागरण समझते हैं, वह जागरण नहीं है। बल्कि स्वप्न देखने की ही एक दशा है। रात आकाश में तारे भरे होते हैं, सुबह सूरज निकलता है और हम सोचते होंगे कि सूरज निकलने के साथ तारे समाप्त हो गए या कि तारे कहीं चले गए? न तो तारे समाप्त होते हैं और न कहीं जाते हैं, सूरज की रोशनी में छिप जाते हैं, मौजूद रहते हैं। अगर कोई बहुत गहरे कुएं के भीतर चला जाए, अंधेरे में; तो वहां से उसे दिन में भी आकाश के तारे दिखाई पड़ सकते हैं। तारे मौजूद होते हैं, लेकिन रोशनी में छिप जाते हैं, दिखाई नहीं पड़ते। Continue reading “क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-03)”

क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-02)

दूसरा-प्रवचन-(यांत्रिकता को जानना क्रांति है)

मेरे प्रिय आत्मन्!

कल संध्या मनुष्य के संबंध में थोड़ी सी बातें मैंने आपसे कही। मैंने कहा कि मनुष्य एक यंत्र है, लेकिन इसका हमें कोई स्मरण नहीं है। मनुष्य का जीवन एक जाग्रत जीवन नहीं है, बल्कि सोया हुआ जीवन है, इसका भी हमें कोई स्मरण नहीं है। इस संबंध में कुछ प्रश्न पूछे गए हैं, उनकी मैं पहले चर्चा करूंगा, फिर कुछ और दूसरे प्रश्न हैं, उनकी आपसे बात करूंगा।

यह पूछा गया हैः मैं मनुष्य को यंत्र क्यों कह रहा हूं?

एक छोटी सी कहानी से आपको यह समझाना चाहूंगा। Continue reading “क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-02)”

क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-01)

पहला-प्रवचन-(मनुष्य एक यंत्र है)

एक छोटी सी कहानी से मैं अपनी चर्चा शुरू करना चाहूंगा।

अंधेरी रात थी, और कोई आधी रात गए एक रेगिस्तानी सराय में सौ ऊंटों का एक बड़ा काफिला आकर ठहरा। यात्री थके हुए थे और ऊंट भी थके हुए थे। काफिले के मालिक ने खूंटियां गड़वाईं और ऊंटों के लिए रस्सियां बंधवाईं, ताकि वे रात भर विश्राम कर सकें। लेकिन खूंटियां गाड़ते समय पता चला, ऊंट सौ थे, एक खूंटी कहीं खो गई थी। खूंटियां निन्यानबे थीं। एक ऊंट को खुला छोड़ना कठिन था। रात उसके भटक जाने की संभावना थी।

उन्होंने सराय के मालिक को जाकर कहा कि यदि एक खूंटी और रस्सी मिल जाए, तो बड़ी कृपा हो। हमारी एक खूंटी और रस्सी खो गई है। सराय के मालिक ने कहाः खूंटियां और रस्सियां तो हमारे पास नहीं हैं। लेकिन तुम ऐसा करो, खूंटी गाड़ दो और रस्सी बांध दो और ऊंट को कहो कि सो जाए। Continue reading “क्या मनुष्य एक यंत्र है?-(प्रवचन-01)”

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