ध्यान के कमल-(प्रवचन-10)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-दसवां-(ध्यान: जीवन में  क्रांति)

जीसस ने कहा है: जो भारग्रस्त हैं, चिंता से भरे हैं, जिनका मन विक्षिप्तता का बोझ हो गया है, वे मेरे पास आएं, मैं उन्हें निर्भार कर दूंगा।

यही मैं तुमसे भी कहता हूं। चिंताएं, दुख, पीड़ाएं, संताप इसलिए हैं, क्योंकि तुमने इन्हें जोर से पकड़ रखा है। चिंताएं किसी को पकड़ती नहीं, दुख किसी को पकड़ते नहीं, आदमी ही उन्हें पकड़ लेता है। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-10)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-09)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-नौवां-(ध्यान: चुनावरहित सजगता)

ध्यान के संबंध में थोड़े से प्रश्न हैं। एक मित्र ने पूछा है कि वृत्तियों का देखना, ऑब्जर्वेशन भी क्या एक तरह का दमन नहीं है? एक प्रकार का सप्रेशन नहीं है?

आपकी आंतरिक आकांक्षा पर निर्भर करता है कि वृत्तियों का देखना भी दमन बन जाए या न बने।

यदि कोई व्यक्ति वृत्तियों का ऑब्जर्वेशन, निरीक्षण, देखना, साक्षी होना, इसीलिए कर रहा है कि वृत्तियों से मुक्त कैसे हो जाए, तो यह देखना दमन बन जाएगा, सप्रेशन बन जाएगा। यदि आपकी आकांक्षा निरीक्षण में केवल इतनी ही है कि मैं वृत्तियों से मुक्त कैसे हो जाऊं? मुक्त होने की बात आपने पहले ही तय कर रखी है, Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-09)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-08)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-आठवां-(ध्यान: मन की मृत्यु)

थोड़े से सवाल हैं। एक मित्र ने पूछा है कि सुबह के ध्यान में शरीर बिलकुल ही गायब हो जाता है। और जो बचता है वह बहुत विशाल, ओर-छोर से परे लगता है। पर ध्यान के बाद शेष दिन में शरीर का बोध फिर शुरू हो जाता है, फिर क्षुद्र शरीर का अनुभव होने लगता है। तो क्या यह सब अहंकार की ही लीला है?

इस संबंध में तीन बातें खयाल में लेनी चाहिए। एक तो ध्यान में जैसे ही गहराई बढ़ेगी, शरीर तिरोहित हो जाएगा। या कभी-कभी बहुत विशाल हो जाएगा। या कभी ऐसा भी हो सकता है कि बहुत क्षुद्र, बहुत छोटा भी हो जाएगा; जितना है उससे भी छोटा मालूम पड़ेगा। शरीर की प्रतीति मन पर निर्भर है। यदि मन बहुत फैल जाता है तो शरीर फैला हुआ मालूम पड़ने लगता है। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-08)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-07)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-सातवां-(ध्यान: प्रकाश का जगत)

एक मित्र ने पूछा है: जब आप ध्यान में कहते हैं कि प्रकाश के सागर में डूब जाएं, तो हमें तो यही पता चलता रहता है कि जमीन पर पड़े हैं, तो सागर में कैसे डूब जाएं?

निश्चित ही पता चलता रहेगा कि आप जमीन पर पड़े हैं, अगर आपने इससे पहले के दो चरणों में पूरा श्रम नहीं उठाया। यदि पहले चरण में आप अपने को बचा कर कीर्तन करते रहे हैं, अगर कीर्तन में पूरे नहीं डूबे; अगर कीर्तन के बाद पंद्रह मिनट में, जब आपको कहा है कि आप अब कीर्तन की धुन पर सवार हो जाएं, अगर उस पर सवार नहीं हुए, अगर उस लहर में बहे नहीं, तो तीसरे चरण में आप पाएंगे कि आप जमीन पर ही पड़े हैं। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-07)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-06)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-छट्ठवां-(ध्यान: प्रभु के द्वार में  प्रवेश)

प्रभु के द्वार में प्रवेश इतना कठिन नहीं है, जितना मालूम पड़ता है। सभी चीजें कठिन मालूम पड़ती हैं, जो न की गई हों। अपरिचित, अनजान कठिन मालूम पड़ता है। जिससे हम अब तक कभी संबंधित नहीं हुए हैं, उससे कैसे संबंध बनेगा, यह कल्पना में भी नहीं आता।

जो तैरना नहीं जानता है, वह दूसरे को पानी में तैरता देख कर चकित होता है। सोचता है बहुत कठिन है बात। जीवन-मरण का सवाल मालूम पड़ता है। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-06)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-05)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-पांचवां-(ध्यान: द्वैत से अद्वैत की ओर)

दोत्तीन मित्रों ने एक ही सवाल पूछा है कि ध्यान का प्रयोग करते समय, जब मैं कहता हूं कि आप अपने शरीर के बाहर निकल जाएं, छलांग लगा लें, और पीछे लौट कर देखें, तो उन्होंने पूछा है, यह हमारी समझ में नहीं आता कि कैसे निकल जाएं और कैसे पीछे लौट कर देखें?

जिनको छलांग लग जाती हो उनके लिए तो किसी विधि की जरूरत नहीं है। इसीलिए मैंने विधि की बात नहीं कही। क्योंकि कुछ लोग सहज ही बाहर निकल जाते हैं, किसी विधि की जरूरत नहीं है। निकलने का खयाल ही उन्हें बाहर ले जाता है। जिनको ऐसा न होता हो, उनके लिए मैं विधि कहता हूं। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-05)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-04)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-चौथा-(ध्यान: जीवन की बुनियाद)

जीवन में दुख भी है और सुख भी, क्योंकि जन्म भी है और मृत्यु भी। लेकिन इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि दोनों में से हम किसको चुन कर जीवन की बुनियाद बनाते हैं।

यदि कोई व्यक्ति मृत्यु को चुन कर जीवन की बुनियाद रखे, तो फिर जन्म भी केवल मृत्यु की शुरुआत मालूम पड़ेगी। और अगर कोई जीवन को ही बुनियाद रखे, तो फिर मृत्यु भी जीवन की परिपूर्णता और जीवन की अंतिम खिलावट मालूम पड़ेगी। कोई व्यक्ति अगर दुख को ही जीवन का आधार चुन ले, तो सुख भी केवल दुख में जाने का उपाय दिखाई पड़ेगा। और अगर कोई व्यक्ति सुख को जीवन का आधार बना ले, तो दुख भी केवल एक सुख से दूसरे सुख में परिवर्तन की कड़ी होगी। यह निर्भर करता है चुनाव पर। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-04)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-03)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-तीसरा- (ध्यान: मनुष्य की आत्यंतिक संभावना)

पहले ध्यान के संबंध में कुछ बातें और फिर हम ध्यान में प्रवेश करेंगे।

सबसे पहली बात, साहस न हो तो ध्यान में उतरना ही नहीं। और साहस का एक ही अर्थ है: अपने को छोड़ने का साहस। और सब साहस नाम मात्र के ही साहस हैं। एक ही साहस–अपने से छलांग लगा जाने का साहस, अपने से बाहर हो जाने का साहस–ध्यान बन जाता है। जैसे कोई वस्त्रों को उतार कर रख दे, नग्न हो जाए, ऐसे ही कोई अपने को उतार कर रख कर नग्न हो सके तो ही ध्यान में प्रवेश कर पाता है। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-03)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-02)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-दूसरा (ध्यान: एक गहन मुमुक्षा)

ध्यान के संबंध में एक-दो बातें आपसे कह दूं और फिर हम ध्यान में प्रवेश करें।

एक तो ध्यान में स्वयं के संकल्प के अभाव के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। यदि आप ध्यान में जाना ही चाहते हैं तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको ध्यान में जाने से नहीं रोक सकती है। इसलिए अगर ध्यान में जाने में बाधा पड़ती हो तो जानना कि आपके संकल्प में ही कमी है। शायद आप जाना ही नहीं चाहते हैं। यह बहुत अजीब लगेगा! क्योंकि जो भी व्यक्ति कहता है कि मैं ध्यान में जाना चाहता हूं और नहीं जा पाता, वह मान कर चलता है कि वह जाना तो चाहता ही है। लेकिन बहुत भीतरी कारण होते हैं जिनकी वजह से हमें पता नहीं चलता कि हम जाना नहीं चाहते हैं। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-02)”

ध्यान के कमल-(प्रवचन-01)

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)–ओशो

प्रवचन-पहला (ध्यान: एक बड़ा दुस्साहस)

प्रश्न: सांझ आप कहते हैं कि इंद्रियों की पकड़ में जो नहीं आता वही अविनाशी है। और सुबह कहते हैं कि चारों तरफ वही है; उसका स्पर्श करें, उसे सुनें। क्या इन दोनों बातों में विरोध, कंट्राडिक्शन नहीं है?

इंद्रियों की पकड़ में जो नहीं आता वही अविनाशी है। और जब मैं कहता हूं सुबह आपसे कि उसका स्पर्श करें, तो मेरा अर्थ यह नहीं है कि इंद्रियों से स्पर्श करें। इंद्रियों से तो जिसका स्पर्श होगा वह विनाशी ही होगा। लेकिन एक और भी गहरा स्पर्श है जो इंद्रियों से नहीं होता, अंतःकरण से होता है। और जब मैं कहता हूं, उसे सुनें, या मैं कहता हूं, उसे देखें, तो वह देखना और सुनना इंद्रियों की बात नहीं है। Continue reading “ध्यान के कमल-(प्रवचन-01)”

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