संन्यास और अंतस—क्रांति—सातवां प्रवचन
सातवां प्रवचन घाटकोपर, बंबई, दिनांक 9 अप्रैल 1966
अगर आप पुरुष हैं और आपको किसी स्त्री का आकर्षण है, तो यह आकर्षण बहुत गहरे में आपके भीतर ही जो आधी स्त्री बैठी है, उसके प्रति है। और जब तक यह स्त्री भीतर नष्ट न हो जाये, तब तक आप बाहर कितनी पत्नियां छोडते रहें, भागते रहें, कोई परिणाम नहीं होगा। आपके मन में स्त्री का आकर्षण बना ही रहेगा। वह घूम—फिर कर आता ही रहेगा। फिर आप नयी—नयी कल्पनाओं में उसका ही रस लेते रहेंगे।
संन्यास बच्चों जैसी बात नहीं है कि एक लड़के को साधु—संन्यासियों की बात सुनकर या किसी लड़की को भावावेश आ गया और उसने कपड़े बदल लिए और कुछ उलटा—सीधा कर लिया, तो वह कोई संन्यासी हो गया! भीतर उसकी साइक कैसी बनेगी! उसका पूरा का पूरा अंतःकरण और मन कैसे बनेगा? उस मन में तो, उसके अनकांशस में विपरीत लिंग बैठा हुआ है। Continue reading “चल हंसा उस देश-(प्रवचन-07)”