जीवन के विभिन्न आयाम-(प्रवचन-10)

जीवन के विभिन्न आयामों पर ओशो का नजरिया-(प्रवचन-दसवां)

Misc. English discourses

जीवन के विभिन्न आयामों पर ओशो का नजरिया

अध्याय-10

प्रेमः

यह प्रेम कोई बंधन नहीं निर्मित कर सकता। और यह प्रेम ही हृदय को सम्पूर्ण आकाश के प्रति, सारी हवाओं के प्रति खोल देना है।

ईर्ष्या बहुत जटिल है। उसमें कई उपादान सम्मिलित हैं। कायरता उनमें से एक है; अहंकारी ढंग दूसरा है; एकाधिकारत्व की आकांक्षा- प्रेम की अनुभूति नहीं बल्कि पकड़ की; प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृत्ति; हीन होने का एक गहरे में बैठा भय। Continue reading “जीवन के विभिन्न आयाम-(प्रवचन-10)”

संसार क्यों है?-(प्रवचन-09)

संसार क्यों है? ताकि मुक्ति फलित हो सके!-(प्रवचन-नौंवां)

(पतंजलि योग सूत्र से अनुवादित- ‘कष्ट, दुख और शांति’ में भी प्रकाशित)

published in a book titled- “Kasht, Dukh aur Shanti” from- “Yoga: The Alpha and the Omega”, Vol 5, Chapter #1, Chapter title: The bridegroom is waiting for you,1 July 1975 am in Buddha Hall

वैज्ञानिक मानस सोचा करता था कि अव्यक्तिगत ज्ञान की, विषयगत ज्ञान की संभावना है। असल में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यही ठीक-ठीक अर्थ हुआ करता था। ‘अव्यक्तिगत ज्ञान’ का अर्थ है कि ज्ञाता अर्थात जानने वाला केवल दर्शक बना रह सकता है। जानने की प्रक्रिया में उसका सहभागी होना जरूरी नहीं है। इतना ही नहीं, बल्कि यदि वह जानने की प्रक्रिया में सहभागी होता है तो वह सहभागिता ही ज्ञान को अवैज्ञानिक बना देती है। वैज्ञानिक ज्ञाता को मात्र द्रष्टा बने रहना चाहिए, अलग-थलग बने रहना चाहिए, किसी भी तरह उससे जुड़ना नहीं चाहिए जिसे कि वह जानता है। Continue reading “संसार क्यों है?-(प्रवचन-09)”

झेन शुद्ध धर्म है-(प्रवचन-08)

झेन शुद्ध धर्म है–(प्रवचन-आठवांं)

(ओशो झेनः दि पाथ ऑफ पैराडॉक्स अंग्रेजी से अनुवादित)

Zen: The Path of Paradox, Vol 1, Chapter #1, Chapter title: Join the Farthest Star,

11 June 1977 am, Poona.

झेन कोई दर्शनशास्त्र नहीं है, बल्कि एक धर्म है। और धर्म जब बिना दर्शनशास्त्र के होता है, बिना किसी शाब्दिक जाल के तो वह घटना बहुत अनोखी हो जाती है। बाकी के सभी धर्म परमात्मा की धारणा के आसपास घूमते हैं। उनके अपने दर्शन हैं। वे धर्म परमात्मा की ओर केंद्रित हैं, मनुष्य केंद्रित नहीं हैं; उनके लिए मनुष्य लक्ष्य नहीं है, परमात्मा उनका लक्ष्य है। Continue reading “झेन शुद्ध धर्म है-(प्रवचन-08)”

 तंत्र की कल्पना की विधि-(प्रवचन-07) 

तंत्र की कल्पना की विधि–प्रवचन-सातवां

(ओशो दि ट्रांसमिशन ऑफ दि लैंप से अनुवादित)

The Transmission of the Lamp, Chapter #6,

(Chapter title: Pure consciousness has never gone mad, 29 May 1986 am in Punta Del Este, Uruguay)

प्यारे ओशो,

बारह से पंद्रह वर्ष की उम्र के बीच, रात के समय बिस्तर पर लेटे हुए मुझे कुछ विचित्र अनुभव हुआ करते थे, जो मुझे बहुत अच्छे लगते थे। मैं बिस्तर पर लेटकर ऐसी कल्पना किया करता था कि जैसे मेरा बिस्तर गायब हो गया, फिर मेरा कमरा, फिर घर, फिर शहर, सभी लोग, पूरा देश, पूरा संसार…  जगत में जो कुछ है सब गायब हो गया। बिल्कुल अंधेरा और सन्नाटा बचता; मैं अपने को आकाश में तैरता हुआ पाता। Continue reading ” तंत्र की कल्पना की विधि-(प्रवचन-07) “

दर्पण में देखना-(तंत्र विधि)-(प्रवचन-06)

तंत्र की विधि- दर्पण में देखना-प्रवचन-छठवांं

(ओशो दि ट्रांसमिशन ऑफ दि लैंप से अनुवादित)

Traslated from- The Transmission of the Lamp, Chapter #3, Chapter title: True balance, 27 May 1986 pm in Punta Del Este, Uruguay   

प्यारे ओशो,

जब मैं ग्यारह या बारह वर्ष की रही होंगी, मेरे साथ एक विचित्र घटना घटी। स्कूल में एक बार खेल-कूद का पीरियड चल रहा था, मैं यह देखने के लिए कि मैं ठीक-ठाक लग रही हूं या नहीं, बाथरूम में गई। शीशे के सामने मैं खुद को देखने लगी तो अचानक, मैंने पाया कि मैं अपने शरीर और शीशे में अपने प्रतिबिंब दोनों से अलग बीच में खड़ी हूं और देख रही हूं कि मेरा शरीर अपने प्रतिबिंब को शीशे में देख रहा है। Continue reading “दर्पण में देखना-(तंत्र विधि)-(प्रवचन-06)”

गोल-गोल घूमने की विधि-(प्रवचन-05)

ओशो के अंग्रेजी साहित्य से अनुवादित विभिन्न प्रवचनांश

प्रवचन-05 सूफी दरवेश गोल-गोल घूमने की विधि-ओशो

The Transmission of the Lamp, chapter #27, Chapter title: Unless your feet are holy…,

8 June 1986 am in Punta Del Este, Uruguay.

(ओशो दि ट्रांसमिशन ऑफ दि लैंप से अनुवादित)

प्यारे ओशो,

अपने बचपन के जिन अनुभवों के विषय में हमने आपको बताया, आपने कहा कि वे अनुभव वास्तव में ध्यान की विधियां हैं जो शरीर से बाहर निकलने के लिए सदियों से उपयोग की जाती रही हैं। क्या यह विधियां बचपन में हुए अनुभवों को देखते हुए ही विकसित की गई थीं, या बचपन में ऐसे अनुभव पिछले जन्मों की स्मृतियों के कारण होते हैं?

ये विधियां- और केवल ये ही नहीं, बल्कि अब तक विकसित की गईं सभी विधियां- मनुष्य के अनुभवों पर ही आधारित हैं। Continue reading “गोल-गोल घूमने की विधि-(प्रवचन-05)”

जीवन का अंतिम उपहार-(प्रवचन-04)

जीवन का अंतिम उपहार-(प्रवचन-चौथा)

ओशो के अंग्रेजी साहित्य से अनुवादित विभिन्न प्रवचनांश

The Book of Wisdom, Chapter #14, Chapter title: Other Gurus and Etceteranandas, 24 February 1979 am in Buddha Hall

प्यारे ओशो,

क्या आप मृत्यु तथा मृत्यु की कला के संबंध में कुछ कहेंगे?

देव वंदना, मृत्यु के संबंध में सबसे पहली बात समझने जैसी है कि मृत्यु एक झूठ है। मृत्यु होती ही नहीं; यह सर्वाधिक भ्रामक बातों में से एक है। मृत्यु एक और झूठ की छाया है- उस दूसरे झूठ का नाम है अहंकार। मृत्यु अहंकार की छाया है। क्योंकि अहंकार है, इसलिए मृत्यु भी प्रतीत होती है। Continue reading “जीवन का अंतिम उपहार-(प्रवचन-04)”

धर्म और राजनीति-(प्रवचन-03)

प्रवचन-तीसरा -(धर्म और राजनीति) ओशो

ओशो के अंग्रेजी साहित्य से अनुवादित विभिन्न प्रवचनांश

The Hidden Splendor, Chapter #6, Chapter title: Only fools choose to be somebody, 15 March 1987 am in Chuang Tzu Auditorium,

राजनीति सांसारिक है- राजनीतिज्ञ लोगों के सेवक हैं। धर्म पवित्र है- वह लोगों के आध्यात्मिक विकास के लिए पथ-प्रदर्शक है। निश्चित ही, जहां तक मूल्यों का संबंध है राजनीति निम्नतम है, और धर्म उच्चतम है, जहां तक मूल्यों का संबंध है। वे अलग ही हैं।

राजनेता चाहते हैं कि धर्म राजनीति में हस्तक्षेप न करे; मैं चाहता हूं कि राजनीति धर्म में हस्तक्षेप न करे। उच्चतर को हस्तक्षेप का हर अधिकार है, किंतु निम्नतर को कोई अधिकार नहीं। Continue reading “धर्म और राजनीति-(प्रवचन-03)”

मौन नाद-कमल में मणि-(प्रवचन-02)

-ओम मणि पद्मे हुम्-(प्रवचन-दूसरा)

ओशो के अंग्रेजी साहित्य से अनुवादित विभिन्न प्रवचनांश

OM MANI PADME HUM #01

Translation published in book- ओम मणि पद्मे हुम् (1988)

-ओशो, ओम मणि पद्मे हुम्, प्रवचन 1 (संस्करण :1988)

प्यारे ओशो,

क्या आप तिब्बती मंत्र ओम मणि पद्मे हुम पर कुछ कहने की कृपा करेंगे?

ओम मणि पद्मे हुम परम अनुभव की सुंदरतम अभिव्यक्तियों में से एक है। इसका अर्थ हैः मौन का नाद, कमल में मणि।

मौन का भी अपना नाद है, अपना संगीत है; यद्यपि बाहरी कान इसे सुन नहीं सकते। वैसे ही जैसे बाहरी आंखें इसे देख नहीं सकतीं।

हमें छह बाह्य ज्ञानेंद्रियां हैं। अतीत में मनुष्य जानता था कि उसे मात्र पांच बाह्य ज्ञानेंद्रियां हैं। छठी नई खोज है। यह तुम्हारे कान के भीतर है; इसीलिए लोग इसे पहचानने में चूक गए। यह संतुलन की ज्ञानेंद्रिय है। तुम जब उनींदे होते हो, या जब तुम किसी शराबी को चलते हुए देखते हो तो यह संतुलन की ही इंद्रिय है जो प्रभावित हुई होती है। Continue reading “मौन नाद-कमल में मणि-(प्रवचन-02)”

समग्रता-पूरी त्वरा से जीओ-(प्रवचन-01)

ओशो के अंग्रेजी साहित्य से अनुवादित विभिन्न प्रवचनांश

(समग्रता से और पूरी त्वरा से जीओ)

(The Transmission of the Lamp, Chapter #30, Chapter title: This chair is empty, 10 June 1986 am in Punta Del Este, Uruguay)

प्रवचन-पहला

समग्रता से और पूरी त्वरा से जीओ

समग्रता से जीओ, और पूरी त्वरा से जीओ, ताकि प्रत्येक क्षण स्वर्णिम हो उठे और तुम्हारा पूरा जीवन स्वर्णिम क्षणों की एक माला बन जाये।

ऐसा व्यक्ति कभी नहीं मरता क्योंकि उसके पास मिदास का स्पर्श होता हैः वह जो भी छूता है, स्वर्णिम हो उठता है।

सही अर्थ में एकमात्र जिम्मेदारी तुम्हारी अपनी सम्भावनाओं के प्रति, तुम्हारी अपनी बुद्विमत्ता और सजगता के प्रति है- और फिर उनके अनुसार व्यवहार करने के प्रति है। Continue reading “समग्रता-पूरी त्वरा से जीओ-(प्रवचन-01)”

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