नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-10)

प्रार्थना को गज़ल बनाओ—(प्रवचन—दसवां)

दिनांक 10 अगस्‍त 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्नसार:

1—ध्यान, साधना, परमात्मा इत्यादि की जरूरत क्या है?

2—मैं जीवनभर से प्रार्थना कर रहा हूं लेकिन कोई फल नहीं मिलता।

3—स्वप्न में भगवान श्री का दर्शन तथा साधक के लिए संकेत।

4—भगवान, आपके पदचिह्नों पर चल सकूं ऐसा आशीर्वाद दें। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-10)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-09)

तीरथ—ब्रत की तजि दे आसा—(प्रवचन—नौवां)

दिनांक 9 अगस्‍त 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:  

सुनु सुनु सखि री, चरनकमल तें लागि रहु री।

नीचे तें चढ़ि ऊंचे पाउ मंदिल मगन मगन ह्वै गाउ।।

दृढ़करि डोरि पोढ़िकरि लाव इत—उत कतहूं नाहीं घाव।।

सत समरथ पिय जीव मिलाव नैन दरस रस आनि पिलाव।।

माती रहहु सबै बिसराव आदि अंत तें बहु सुख पाव।।

सन्मुख ह्वै पाछे नहिं आव जुग—जुग बांधहु एहै दाव।।

जगजीवन सखि बना बनाव अब मैं काहुक नाहिं डेरांव।।

तीरथ—ब्रत की तजि दे आसा। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-09)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-08)

संन्यास परम भोग है—(प्रवचन—आठवां)

दिनांक 8 अगस्‍त 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्नसार:

1—अल्बेयर कामू की सत्य की परिभाषा और भगवान श्री की सत्य की परिभाषा में भिन्नता क्यों है?

2—वेदांतमार्गी संन्यासी तथा आर्यसमाज के प्रचारकों द्वारा भगवान श्री की आलोचना करने का क्या कारण होगा?

3—प्रेम की इतनी महिमा है तो फिर मैं प्रेम करने से क्यों डरता हूं?

4—एक लहर उठी, किनारे से टकराने के पहले मझधार में डूब गई। उस डूबने में आनंद घना होकर छा गया। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-08)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-07)

नाम बिनु नहिं कोउकै निस्तारा—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 7 अगस्‍त, 1978;

श्री रजनीश आश्रम पूना।

सारसूूूूत्र::

नाम सुमिर मन बावरे, कहा फिरत भुलाना हो।।

मट्टी का बना पूतला, पानी संग साना हो।

इक दिन हंसा चलि बसै, घर बार बिराना हो।।

निसि अंधियारी कोठरी, दूजे दिया न बाती हो।

बांह पकरि जम लै चलै, कोउ संग न साथी हो।।

गज रथ घोड़ा पालकी, अरु सकल समाजा हो।

इक दिन तजि जल जाएंगे रानी औ राजा हो।।

सेमर पर बैठा सुवना, लाल फर देख भुलाना हो।

भारत टोंट मुआ उधिराना, फिरि पाछे पछिताना हो।। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-07)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-06)

जीवन सृजन का अवसर है—(प्रवचन—छट्ठवां)

दिनांक 6 अगस्‍त 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्नसार:

1—क्या भक्ति में डूबने के पूर्व जीवन की बहुत—सी समस्याएं सुलझाना आवश्यक नहीं है?

2—मनुष्य—जीवन का संघर्ष क्या है?

3—वासना क्या है और प्रार्थना क्या है?

4—क्या अंतसमय में रामनाम लेने से मुक्ति हो जाती है? Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-06)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-05) 

बौरे, जामा पहिरि न जाना—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 5 अगस्‍त, 1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

बौरे, जामा पहिरि न जाना।

को तैं आसि कहां ते आइसि, समुझि न देखसि ज्ञाना।।

घर वह कौन जहां रह बासा, तहां से किहेउ पयाना।

इहां तो रहिहौ दुई—चार दिन, अंत कहां कहं जाना।।

पाप—पुन्न की यह बजार है, सौदा करु मन माना।

होइहि कूच ऊंच नहिं जानसि, भूलसि नाहिं हैवाना।।

जो जो आवा रहेउ न कोई, सबका भयो चलाना।

कोऊ फूटि टूटि गारत मा, कोउ पहुंचा अस्थाना।।

अब कि संवारि संभारि बिचारि ले, चूका सो पछिताना।

जगजीवन दृढ़ डोरिलाइ रहु, गहि मन चरन अडाना।। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-05) “

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-04)

धर्म एक क्रांतिकारी उद्घोष है—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक 4 अगस्त 1978,

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—आपका जादू मुझ पर छाया रहता है। रोता हूं, गाता हूं, नाचता हूं, मौन रहता हूं।

2—मैं दुनिया के दुख देखकर बहुत रोता हूं। क्या ये दुख रोके नहीं जा सकते?

3—आप कहते हैं कि प्रेम परमात्मा है लेकिन मैं तो प्रेम में ऐसा जला बैठा हूं कि मुझे प्रेम शब्द से ही चिढ़ हो गई है।

4—मैं बहुत—से प्रश्न पूछना चाहता हूं लेकिन सभी प्रश्न व्यर्थ मालूम होते हैं। आप जो अमृत पिला रहे हैं उसे पीने से मैं बहुत डरता हूं? क्या कारण होगा? Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-04)”

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-03) 

तीसरा-प्रवचन

पंडित, काह करै पंडिताई

सारसूत्र:

हमारा देखि करै नहिं कोई।

जो कोई देखि हमारा करिहै, अंत फजीहति होई।।

जस हम चले चलै नहिं कोई, करी सो करै न सोई।

मानै कहा कहे जो चलिहै, सिद्ध काज सब होई।।

हम तो देह धरे जग नाचब, भेद न पाई कोई।

हम आहन सतसंगो-बासी, सूरति रही समोई।।

कहा पुकारि बिचारि लेहु सुनि, बृथा सब्द नहिं सोई।

जगजीवनदास सहज मन सुमिरन, बिरले यहि जग कोई।। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-03) “

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-02) 

कीचड़ में खिले कमल—(प्रवचन—दूसरा)

दिनांक 2 अगस्‍त,1978;

श्री रजनीश आश्रम, पूना।

 प्रश्नसार:

1—संन्यास लेने पर गहरे ध्यान में प्रवेश और लोगों—द्वारा पागल समझा जाना।

2—विरह की असह्य पीड़ा से साधक की तड़पन।

3—‘शेष प्रश्न क्या है?

4—मेरे जीवन में क्यों कष्ट हैं?

5—संसार की कीचड़ से कैसे मुक्त हुआ जाए?

6—भगवान की बातें सुनकर प्रेम और मस्ती का नशा चढ़ जाना। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-02) “

नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-01) 

नाम सुमिर मन बावरे-(जगजीवन)

(जगजीवन वाणी पर ओशो द्वारा बोले गये दस अमृत प्रवचनों का संकलन जो ओशो आश्रम पूना में दिनांक 01-08-1976 से 10-08-1976 तक बोले गये।)

पहला प्रवचन

सारसूत्र:

तमसों मन लागो है मोरातुमसों मन लागो है मोरा।

हम तुम बैठे रही अटरिया, भला बना है जोरा।।

सत की सेज बिछाय सूति रहि, सुख आनंद घनेरा। 

करता हरता तुमहीं आहहु, करौं मैं कौन निहोरा।।

रह्यो अजान अब जानि परयो है, जब चितयो एक कोरा।

आवागमन निवारहु सांईं, आदि-अंत का आहिऊं चोरा। Continue reading “नाम सुमिर मन बावरे-(प्रवचन-01) “

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