नौवां प्रवचन
मुक्ति का सूत्र
सारसूत्र:
बहु बैरी घट में बसैं, तू नहिं जीतत कोय।
निस-दिन घेरे ही रहैं, छुटकारा नहिं होय।।
या मन के जाने बिना, होय न कबहूं साध।
जक्त-वासना ना छुटै, लहै न भेद अगाध।।
सरकि जाय बिष ओरहिं, बहुरि न आवै हाथ।
भजन माहिं ठहरै नहीं, जो गहि राखूं नाथ।।
इन्द्री पलटैं मन विषै, मन पलटै बुधि माहिं।
बुधि पलटै हरि-ध्यान में, फेरि होय लय जाहिं।।
तन मन जारै काम हीं, चित कर डांवाडोल।
धरम सरम सब खोय के, रहै आप हिय खोल।।
मोह बड़ा दुख रूप है, ताकूं मारि निकास।
प्रीत जगत की छोड़ दे, जब होवै निर्वास।।
जग माहीं ऐसे रहो, ज्यों अम्बुज सर माहिं।
रहै नीर के आसरे, जल छूवत नाहिं।।
जग माहीं ऐसे रहो, ज्यों जिहवा मुख माहिं।
घीव घना भच्छन करै, तो भी चिकनी नाहिं।।
जा घट चिन्ता नागिनी, ता मुख जप नहिं होय।
जो टुक आवै याद भी, उहीं जाय फिर खोय।। Continue reading “नहीं सांझ नहीं भोर-(प्रवचन-09)”
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