प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-10)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन)–प्रवचन-दसवां  

दिनांक : 10-फरवरी, सन् 1979श्री ओशो  आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:  

1—प्रार्थना में बैठता हूं तो शब्द खो जाते हैं।

यह कैसी प्रार्थना!

2—मैं संन्यास तो लेना चाहता हूं लेकिन समाज से बहुत डरता हूं।

कृपया मार्ग दिखाएं।

3—संतों की सृजनात्मकता का स्रोत कहां है?

सब सुख-सुविधा है, फिर भी मैं उदास क्यों हूं?       Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-10)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-09)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन) —प्रवचन-नौवां  

दिनांक : 06-फरवरी, सन् 1979श्री ओशो  आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

चारा पील पिपील को, जो पहुंचावत रोज।

दूलन ऐसे नाम की, कीन्ह चाहिए खोज।।

कोउ सुनै राग अरु रागिनी, कोउ सुनै जु कथा पुरान।

जन दूलन अब का सुनै, जिन सुनी मुरलिया तान।।

दूलन यह परिवार सब, नदी-नाव-संजोग।

उतरि परे जहंत्तहं चले, सबै बटाऊ लोग।। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-09)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-08)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन) —प्रवचन-आठवां   

दिनांक : 08-फरवरी, सन् 1979श्री ओशो  आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार: 

1—भगवान! मनुष्य इस संसार में रह कर परमात्मा को कभी नहीं पा

सकता है, यह मेरा कथन है। क्या यह सच है?

2—भगवान! क्या आप सामाजिक क्रांति के विरोधी हैं?

3—मेरे, मेरे, हां मेरे भगवान!

अधरों से या नजरों से हो वह बात, भला क्या बात हुई!

तू कर जो भी तेरा जी चाहे। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-08)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-07)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन)  —प्रवचन-सातवां

दिनांक : 07-फरवरी, सन् 1979;  श्री ओशो  आश्रम, पूना।

सारसूत्र-

गुरु ब्रह्मा गुरु बिस्नु है, गुरु संकर गुरु साध।

दूलन गुरु गोविंद भजु, गुरूमत अगम अगाध।।

श्री सतगुरु-मुखचंद्र तें, सबद-सुधा-झरि लागि।

हृदय-सरोवर राखु भरि, दूलन जागे भागि।।

दूलन गुरु तें विषै-बस, कपट करहिं जे लोग।

निर्पल तिनकी सेव है, निर्पल तिनका जोग।।

दूलन यहि जग जनमिकै, हरदम रटना नाम।

केवल राम-सनेह बिनु, जन्म-समूह हराम।। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-07)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-06)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन) —प्रवचन-छठवां

दिनांक : 06-फरवरी, सन् 1979;  श्री ओशो  आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—भगवान! दूलनदास एक ओर तो जीवन की क्षणभंगुरता का राग अलापते हैं और दूसरी ओर प्रेम-रस पी कर अल्हड़ मस्ती में डूब जाते हैं, जहां समय अनंत हो जाता है। कृपा करके उनके विपर्यास को समझाएं।

2—भगवान! कृष्णमूर्ति ने गुरु और शिष्य का नाता न बनाकर अपनेलिए कोई मुसीबत खड़ी नहीं की; जबकि यहां आपको गुरु और शिष्य का नाता बनाकर अपने लिए मुसीबतों के अतिरिक्त कुछ भी नहींमिल रहा है। क्या बुद्धपुरुषों की करुणा में भेद है? Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-06)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-05)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन) —प्रवचन-पांचवां   

दिनांक : 05-फरवरी, सन् 1979;-श्री ओशो  आश्रम, पूना।

सारसूत्र:

पिया मिलन कब होइ, अंदेसवा लागि रही।।

जबलग तेल दिया में बाती, सूझ परै सब कोइ।

जरिगा तेल निपटि गइ बाती, लै चलु होइ।।

बिन गुरु मारग कौन बतावै, करिए कौन उपाय।

बिना गुरु के माला फेरै, जनम अकारथ जाए।।

सब संतन मिलि इकमत कीजै, चलिए पिय के देस।

पिया मिलैं तो बड़े भाग से, नहिं तो कठिन कलेस।। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-05)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-04)

प्रेम-रंग-रस ओढ़ चुंदरिया-(दूल्‍हन) —प्रवचन-चौथा

दिनांक : 04-फरवरी, सन् 1979श्री ओशो  आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

1—भगवान! आपकी बातें सुनता हूं तो लगता है कि अब आप कहते हैं तो परमात्मा होगा ही। फिर भी मन प्रमाण मांगता है। परमात्मा का क्या प्रमाण है?

2—भगवान! कल आपने बताया कि प्रेम नीचे गिरे तो वासना बन जाता है और ऊपर उठे तो प्रार्थना।

भगवान, मेरे लिए वासना कई अर्थो में स्पष्ट है, और प्रार्थना का विषय अपने-आप में स्पष्ट है। लेकिन इन दोनों के बीच में एक धुंधलापन और अस्पष्टता पाता हूं। भगवान, कृपा करके कहें कि मुझमें प्रेम का यह धुंधलापन क्या है और क्यों है? Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-04)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-03)

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(दूलन)–प्रवचन-तीसरा

दिनांक: 03 फरवरी सन् 1979श्री  ओशो आश्रम , पूना।

सारसूत्र:

साईं, तेरे कारन नैना भए बैरागी।           

तेरा सत दरसन चहौं, कछु और न मांगी।।

निसबासर तेरे नाम की अंतर धुनि जागी।

फेरत हौं माला मनौं, अंसुवनि झरि लागी।।

पलक तजि इत उक्ति तें, मन माया त्यागी।

दृष्टि सदा सत सनमुखी, दरसन अनुरागी।।

मदमाते रातें मनौं दाधें विरह-आगी।

मिलु प्रभु दूलनदास के, करू परमसुभागी।। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-03)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-02)

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(दूलन)–प्रवचन-दूसरा

दिनांक: 02 फरवरी सन् 1979श्री  ओशो आश्रम , पूना।

प्रश्‍नसार:

1—जब भी आकाश की तरफ देखता हूं तो करोड़ों तारों को देखकर चकित हो जाता हूं। और ऐसा घंटों तक होता है। सोचता हूं ये करोड़ों तारे, जो हमारे सूरज से बड़े हैं, यह सब कैसे हुआ, किसलिए हुआ?क्या ब्रह्मांड में हम अकेले पृथ्वीवासी हैं। कृपया समझाएं।

2—प्रभु! तुम्हें रिझाऊं कैसे

मीरा जैसा नृत्य न आया

कोयल जैसा कंठ न पाया

जम्बू जैसा ध्यान न ध्याया

तेरी महिमा इस जड़ वाणी से

समझाऊं कैसे

प्रभु तुम्हें रिझाऊं कैसे? Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-02)”

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-01)

प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(दूलन)

दिनांक: 01 फरवरी सन् 1979 श्री  ओशो आश्रम , पूना।

सारसूत्र:

जग में जै दिन है जिंदगानी।

लाइ लेव चित गुरु के चरनन, आलस करहु न प्रानी।।

या देही का कौन भरोसा, उभसा भाठा पानी।।

उपजत मिटत बार नहिं लागत, क्या मगरूर गुमानी।।

यह तो है करता की कुदरत, नाम तू ले पहिचानी।।

आज भलो भजने को औसर, काल की काहु न जानी।। Continue reading “प्रेम-रस-रंग ओढ़ चदरिया-(प्रवचन-01)”

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें