और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-11)

और फूलों की बरसात हुई-ग्याहरवां

न मन, न बुद्ध और न विषय वस्तुएं

 

जागे हुए लोगों की शिक्षाएँ, किसी भी प्रकार से शिक्षाएँ नहीं हैं क्योंकि वे सिखाई नहीं जा सकती- इसलिए कैसे उन्हें शिक्षाएँ अथवा सिखावनें कहकर पुकारा जाए? एक सिखावन वह होती है जो सिखाई जा सकती है। लेकिन कोई भी व्यक्ति तुम्हें सत्य नहीं सिखा सकता। यह असंभव है। तुम उसका ज्ञान प्राप्त कर सकते हो, लेकिन वह सिखाया नहीं जा सकता। उसे सीखना होता है। तुम उसे अवशोषित कर सकते हो, तुम उसे मन में धारण कर सकते हो, तुम एक सद्गुरू के साथ उसे जी सकते हो और उसे घटित होने को स्वीकार कर सकते हो, लेकिन वह सिखलाया नहीं जा सकता। वह एक बहुत अप्रत्यक्ष प्रक्रिया है। Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-11)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-10)

और फूलों की बरसात हुई-दसवां

द्वैतता अर्थात दोनों ओर देखना

 

एक उत्सुक भिक्षु द्वारा

एक सद्गुरू से पूँछा गया-मार्ग क्या है?

सद्गुरू ने कहा : ‘वह ठीक तुम्हारी आँखों के सामने है।’

भिक्षु ने पूछा : तो मैं स्वयं उसे क्यों नहीं देख पाता?’

सद्गुरू ने कहा :‘क्योंकि तुम स्वयं अपने बारे में सोच रहे हो।’ Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-10)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-09)

और फूलों की बरसात हुई-नौवां

बहरे, गूंगे और अंधे होना

 

एक दिन गेंशा ने असंतोष प्रकट करते हुए

अपने अनुयाइयों से कहा-

‘‘दूसरे सद्गुरु हमेशा प्रत्येक व्यक्ति को मुक्त करने की

अनिवार्यता के बारे में पथ-प्रदर्शन करना जारी रखते हैं-

लेकिन तनिक सोचो कि यदि तुम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हो

जो बहरा, गूंगा और अंधा है :

वह तुम्हारे हाव-भाव और चेष्टाओं को देख नहीं सकता, तुम्हारे उपदेश को सुन नहीं सकता, अथवा उस महत्वपूर्ण विषय पर वह प्रश्न नहीं पूछ सकता तो उसे मुक्त करने में असमर्थ होकर तुमने स्वयं को एक अयोग्य बौद्ध सिद्ध कर दिया।’’ इन शब्दों से व्याकुल होकर गेंशा के शिष्यों में से एक परामर्श लेने सद्गुरु उम्मोन के पास गया, Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-09)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-08)

और फूलों की बरसात हुई-आठवां

तोज़ान के पांच पाउन्ड़स

 

सद्गुरु तोज़ान भंडारघर में

कुछ पटसन को तौल रहा था।

 

एक भिक्षु उसके पास आया

और उससे पूछा-‘‘बुद्ध कौन है?’’

 

तोज़ान ने कहा-‘‘इस पटसन

का भार पांच पाउंड्स है।

 

धर्म का दार्शनिक प्रश्नों और उत्तरों के साथ कोई भी संबंध नहीं है। इस तरह से देखते चले जाना मूर्खता है और जीवन, समय, ऊर्जा और चेतना को केवल व्यर्थ नष्ट करना है, क्योंकि तुम पूछे चले जा सकते हो और उत्तर भी दिए जा सकते हैं- लेकिन उत्तरों से केवल अधिक प्रश्न ही प्रकट होंगे। यदि प्रारंभ में वहां केवल एक प्रश्न था तो अंत में अनेक उत्तरों द्वारा वहां लाखों प्रश्न होंगे। Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-08)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-07)

और फूलों की बरसात हुई-सातवां

मठ में लगी हुई आग

 

जिस समय तोकाई एक विशिष्ट मठ में

एक अभ्यागत की भांति रुका हुआ था।

तो रसोईघर में नीचे फर्श पर,

एक आग लगना शुरू हो गई।

 

एक भिक्षु ने तेज़ी से तोकाई के-

शयनकक्ष में प्रवेश करते हुए

और चिल्लाते हुए कहा :

‘सद्गुरु! एक आग, आग लग गई है।’ Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-07)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-06)

और फूलों की बरसात हुई-छट्ठवां

धर्नुविद्या की कला

 

लीह्त्सू ने अपनी धर्नुविद्या की कुशलता का

पो-हुन-वू-जे के सामने प्रदर्शन किया।

जब उसने धनुष को उसकी पूरी लम्बाई तक खींचा।

तो एक पानी से भरा प्याला उसकी कोहनी के पास

रख दिया गया, और उसने तीर चलाना शुरू कर दिया।

जैसे ही पहला तीर हवा में उड़ते हुए गया, दूसरा तीर

पहले ही से प्रत्यंचा पर था, और तब तीसरे तीर ने

उसका अनुसरण किया। इसके मध्य समय में

वह बिना हिले डुले एक प्रस्तर प्रतिमा की भाँति खड़ा रहा।

पो हुन वू जेन ने कहा : तीर चलाने और निशाना साधने का कला-कौशल सुंदर और अच्छा है।

लेकिन यह तीर न चलाने की कला कुशलता नहीं है।

हमको पहाड़ पर ऊपर चलना चाहिए और तब तुम आगे की ओर

उभरी चट्टान पर खड़े हो जाना, और तब तीर चलाने का प्रयास करना।

वे लोग एक पहाड़ पर चढ़े और एक आगे को निकली और उभरी हुई चट्टान पर

खड़े हो गए, जो एक दस हजार पफीट ऊँची ढालू कगार थी।

पो-हुन-वू-जेन पीछे की ओर खिसकता गया, जब तक कि उसके पैरों का Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-06)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-05)

और फूलों की बरसात हुई-पांचवां

क्या वह मर गया है?

 

मठ के एक ध्यानी की मृत्यु होने पर

सद्गुरु डोगो अपने शिष्य ज़ेनगेन के साथ

मृत व्यक्ति के परिवार से मिलने गया।

सहानुभूति और संवेदना का एक शब्द

भी अभिव्यक्त करने का समय लिए बिना,

ज़ेनगेन ताबूत तक गया और उसे ठकठकाते हुए

उसने सद्गुरु डोगो से पूछा :

‘‘क्या वह वास्तव में मर गया है?’’

डोगो ने कहा-‘‘मैं वुफछ भी नहीं कहूंगा।’’

ज़ेनगेन ने हठ करते हुए कहा-‘‘यह तो ठीक है, पर…

डोगो ने कहा-‘‘मैं वुफछ भी नहीं कह रहा हूं Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-05)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-04)

और फूलों की बरसात हुई-चौथा

मार्ग क्या है?

एक सद्गुरु जो एक पर्वत पर

अकेला ही रहता था

उससे एक भिक्षु ने पूछा :

(सत्य को पाने का) मार्ग क्या है?

उत्तर देते हुए सद्गुरु ने कहा :

‘यह पहाड़ कितना अधिक सुंदर है?’

 

भिक्षु ने कहा : मैं पहाड़ के बारे में

न पूछकर, मार्ग के बारे में पूछ रहा हूं।

सद्गुरु ने उत्तर दिया : ‘मेरे पुत्र!

जिस समय तक तुम उस पहाड़

के पार न जा सको-

तुम मार्ग तक नहीं पहुंच सकते। Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-04)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-03)

और फूलों की बरसात हुई-तीसरा

उत्तेजना से भरा स्वभाव

एक ज़ेन (ध्यान) सीखने वाला शिष्य सद्गुरु बांके के पास आया और उसने कहा-‘‘सद्गुरु! मेरे पास एक उच्छृंखल और उत्तेजित स्वभाव है मैं कैसे उसे ठीक कर सकता हूं?’’

बांके ने कहा-‘‘इस उत्तेजना को मुझे दिखलाओ, सजगता के मंत्र से वह ठीक हो जाती है।

उस शिष्य ने कहा-‘‘ठीक अभी तो वह मेरे पास नहीं है इसलिए मैं उसे आपको दिखला नहीं सकता।’’

बांके ने कहा-‘‘तब ठीक है। जब वह तुम्हारे पास हो तो उसे मेरे पास ले आना।’’

उस शिष्य ने प्रतिरोध करते हुए कहा-‘‘लेकिन मैं उसे आपके पास नहीं ला सकता क्योंकि जब मुझे वह घटित होता है तभी वह मेरे पास होता है। वह अनायास उत्पन्न होता है और मैं उसे आपके पास ला सवूंफ, उससे पूर्व ही निश्चित रूप से मैं उसे खो दूंगा।’’ Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-03)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-02)

और फूलों की बरसात हुई-दूूसरा

एकढीठ-छात्र

 

जब यामूका एक ढीठ छात्र था।

वह सद्गुरु डोक्यंन से भेंट करने गया।

 

सद्गुरु को प्रभावित करने के लिए उसने उनसे कहा…

‘वहां कोई मन नहीं है, वहां कोई भी शरीर नहीं है-

और न वहां कोई बुद्ध ही है।

वहां न कुछ अच्छा है, वहां न कुछ भी बुरा है।

वहां न कोई सद्गुरु है, और न कोई भी छात्र है।

वहां न कोई कुछ दे रहा है, और वहां न कोई कुछ ले रहा है।

जो कुछ हम सोचते हैं, हम देखते हैं और अनुभव करते हैं

वह साथ नहीं है। ये प्रतीत होनेवाली कोई भी चीजें-

वास्तव में अस्तित्व में नहीं हैं।’ Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-02)”

और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-01)

और फूलों की बरसात हुई-एक

पुष्प वर्षा होने लगी

 

बुद्व के शिष्यों में से सुभूति एक था। वह शून्यता की सामर्थ्य को समझने में समर्थ था जिसकी दृष्टि में विषयी और विषय और उसके सापेक्ष संबंध में उनके सिवाय कुछ भी अस्तित्व में नही रहा।

 

एक दिन, जब सुभूति एक वृक्ष के नीचे सर्वोच्च शून्यता की भावदशा में बैठा हुआ था, कि उसके चारों ओर पुष्प बरसने प्रारम्भ हो गए। देवताओं ने बहुत धीमें स्वर में, जैसे लगभग पफुसपफुसाओं हुए उससे कहा :

‘‘हम शून्यता पर दिए गए आपके प्रवचन के लिए-

आपकी स्तुति कर रहे हैं।’’

सुभूति ने कहा : ‘‘ लेकिन मैंने तो शून्यता पर कुछ भी नहीं कहा है।’’

देवताओं ने प्रत्युत्तर में कहा : आपने शून्यता पर न कुछ कहा है।

और न हमने शून्यता पर कुछ भी सुना है यही वास्तविक शून्यता है। Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-(प्रवचन-01)”

और फूलों की बरसात हुई-ओशो

और फूलों की बरसात हुई

भूमिका

बोधि धर्म प्रथम जेन सद्गुरू हैं, जो ध्यान के बीज को भारत से चीन ले गए। चीन में बौद्ध धर्म और ताओ वाद की मिट्टी में, बुद्ध और लाओत्से की देशनाओं की जलवायु में वह बीज अंकुरित हो कर विकसित हुआ और ध्यान से ‘चान’ कहा जाने लगा। पर वह वृक्ष जापान में जाकर पुष्पित हुआ क्योंकि वहां की जलवायु में सौंदर्य बोध, सृजनात्मकता, कलात्मकता और एक सुरूचि सम्पन्नता थी। पर जापान में द्वितीय विश्व युद्व के संहार और उसके बाद तेजी से विकसित और प्रसारित होने वाली पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से जेन-मठ उजड़ने, जेन-मठों के कठोर संयति और अनुशासित जीवन के प्रति, श्रद्वा धैर्य और समर्पण के प्रभाव में सत्य के खोजियों की संख्या निरंतर कम होती गई। चीन में भी माओ वाद ने जेन-मठो को ध्वस्त कर दिया। Continue reading “और फूलों की बरसात हुई-ओशो”

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