जीवन : अस्तित्व की एक लीली—(प्रवचन—बीसवां)
दिनांंक 10 सितम्बर 1975 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्न—सार:
1—आपने कहा, मनुष्य एक सेतु है—पशु और परमात्मा के बीच। तो हम इस सेतु पर कहां हैं?
2—कभी आप कहते हैं कि गुरु और शिष्य का, प्रेम और प्रेयसी का अंतर्मिलन संभव है। कभी आप कहते हैं कि हम नितांत अकेले है और कोई मिलन संभव नहीं है। कृपया इस विरोधाभाष को समझाये।
3—यदि जीवन अस्तित्व की एक आनंदपूर्ण लीला है,
तो फिर सभी जीव दुख क्यों भोग रहे हैं?
4—कभी—कभी ऐसा लगता है जैसे कि आप एक स्वप्न हैं…!
5—ऐसा कैसे है कि मैं अभी भी भटका हुआ हूं….? Continue reading “पतंजलि : योग-सूत्र-(प्रवचन-60)”